सतावर के औषधीय उपयोगों से काफी परिचित हैं सदियों से उपयोग
किया जाता रहा है। वैज्ञानिक परीक्षणों
में भी विभिन्न विकारों के निवारण में इसकी औषधीय उपयोगिता सिद्ध हो
चुकी है तथा वर्तमान में इसे एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है।
सतावर की पूर्ण विकसित लता 30 से 35 फुट तक ऊंची हो सकती है। प्राय: मूल से इसकी कई लताएं अथवा शाखाएं एक साथ निकलती हैं। यह लता की तरह बढ़ती है परन्तु इसकी शाखाएं काफी कठोर (लकड़ी के जैसी) होती हैं। इसके पत्ते काफी पतले तथा सुइयों जैसे नुकीले होते हैं। इनके साथ-साथ इनमें छोटे-छोटे कांटे भी लगते हैं। जो किन्हीं प्रजातियों में ज्यादा तथा किन्हीं में कम आते हैं ग्रीष्म ऋतु में प्राय: इसकी लता का ऊपरी भाग सूख जाता है तथा वर्षा ऋतु में पुन: नवीन शाखाएं निकलती हैं। सितंबर-अक्टूबर माह में इसमें गुच्छों में पुष्प आते हैं तथा तदुपरान्त उन पर मटर के दाने जैसे हरे फल लगते हैं। धीरे-धीरे ये फल पकने लगते हैं तथा पकने पर प्राय: लाल रंग के हो जाते हैं। इन्हीं फलों से निकलने वाले बीजों को आगे बिजाई हेतु प्रयुक्त किया जाता है।
सतावर की पूर्ण विकसित लता 30 से 35 फुट तक ऊंची हो सकती है। प्राय: मूल से इसकी कई लताएं अथवा शाखाएं एक साथ निकलती हैं। यह लता की तरह बढ़ती है परन्तु इसकी शाखाएं काफी कठोर (लकड़ी के जैसी) होती हैं। इसके पत्ते काफी पतले तथा सुइयों जैसे नुकीले होते हैं। इनके साथ-साथ इनमें छोटे-छोटे कांटे भी लगते हैं। जो किन्हीं प्रजातियों में ज्यादा तथा किन्हीं में कम आते हैं ग्रीष्म ऋतु में प्राय: इसकी लता का ऊपरी भाग सूख जाता है तथा वर्षा ऋतु में पुन: नवीन शाखाएं निकलती हैं। सितंबर-अक्टूबर माह में इसमें गुच्छों में पुष्प आते हैं तथा तदुपरान्त उन पर मटर के दाने जैसे हरे फल लगते हैं। धीरे-धीरे ये फल पकने लगते हैं तथा पकने पर प्राय: लाल रंग के हो जाते हैं। इन्हीं फलों से निकलने वाले बीजों को आगे बिजाई हेतु प्रयुक्त किया जाता है।
सतावर की प्रमुख किस्में
सतावर की कई किस्मों का विवरण मिलता है जिनमें प्रमुख हैं- एस्पेरेगस सारमेन्टोसस,
- एस्पेरेगस कुरिलस,
- एस्पेरेगस गोनोक्लैडो,
- एस्पेरेगस एडसेंडेस,
- स्पेरेगस आफीसीनेलिस,
- एस्पेरेगस प्लुमोसस,
- एस्पेरेगस फिलिसिनस,
- एस्पेरेगस स्प्रेन्गेरी आदि।
सतावर की खेती करने की विधि
सतावर की कृषि प्रमुख पहलू निम्नानुसार हैं- जलवायु सतावर के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु ज्यादा उत्तम मानी जाती हैं प्राय: जिन क्षेत्रों का तापमान 100 से 500 सेल्सियस के बीच हो, वे इसकी खेती के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। इस प्रकार ज्यादा ठंडे प्रदेशों को छोड़कर सम्पूर्ण भारतवर्ष की जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त हैं विशेष रूप से मध्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में यह काफी अच्छी प्रकार पनपता हैं।मध्यभारत के साल वनों तथा मिश्रित
वनों मे एवं राजस्थान के रेतीले इलाकों में प्राकृतिक रूप से इसकी काफी
अच्छी बढ़त देखी जाती है। मिट्टी
सतावर का मुख्य उपयोगी भाग इसकी जड़ें होती हैं जो प्राय: 6से 9
इंच तक भूमि में जाती हैं।
इस दृष्टि से रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें जलनिकास की पर्याप्त व्यवस्था हो, इसकी खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं यूं तो हल्की कपासिया तथा चिकनी मिट्टी में भी इसे उपजाया जा सकता है। परन्तु ऐसी मिट्टी में रेत आदि का मिश्रण करके इसे इस प्रकार तैयार करना होगा कि यह मिट्टी कंदो को बलपूर्वक बांधे नहीं, ताकि उखाड़ने पर कंद क्षतिग्रस्त न हों।
इस दृष्टि से रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें जलनिकास की पर्याप्त व्यवस्था हो, इसकी खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं यूं तो हल्की कपासिया तथा चिकनी मिट्टी में भी इसे उपजाया जा सकता है। परन्तु ऐसी मिट्टी में रेत आदि का मिश्रण करके इसे इस प्रकार तैयार करना होगा कि यह मिट्टी कंदो को बलपूर्वक बांधे नहीं, ताकि उखाड़ने पर कंद क्षतिग्रस्त न हों।
2. नर्सरी अथवा पौधशाला बनाने की विधि - सतावर की व्यावसायिक खेती करने के लिए सर्वप्रथम इसके बीजों से
इसकी पौधशाला अथवा नर्सरी तैयार की जाती हैं यदि एक एकड़ के क्षेत्र
में खेती करना हो तो लगभग 100 वर्ग फीट की एक पौधशाला बनाई जाती
है जिसे खाद आदि डालकर अच्छी प्रकार तैयार कर लिया जाता है। इस
पौधाशाला की ऊंचाई सामान्य खेत से लगभग 9 इंच से एक फीट ऊंची
होनी चाहिए ताकि बाद में पौधों को उखाड़ कर आसानी से स्थानांतरित
किया जा सके।
3. खेत की तैयारी - इसके लिए माह
मई-जून में खेत की गहरी जुताई करके उसमें 2 टन केंचुआ खाद अथवा
चार टन कम्पोस्ट खाद के साथ-साथ 15 कि.ग्रा. बायोनीमा जैविक खाद
प्रति एकड़ की दर से खेत में मिला दी जानी चाहिए। यूं तो सतावर सीधे
प्लेन खेत में भी जा सकती है परन्तु जड़ों के अच्छे विकास के लिए यह
वांछित होता है कि खेत की जुताई करने तथा खाद मिला देने से उपरान्त
खेत में मेड़ें बना दी जाए। इसके लिए 60-60 सें.मी. की दूरी पर 9 इंच ऊँची
मेड़ियां बना दी जाती हैं।
15
मई के करीब इस
पौधशाला में सतावर
के (5 कि.ग्रा. बीज
एक एकड़ हेतु) बीज
छिड़क दिए जाने
चाहिए। बीज
छिड़कने के उपरान्त
इन पर गोबर मिश्रित
मिट्टी की हल्की परत चढ़ा दी जाती है। ताकि बीज ठीक से ढंक जाएं।
सतावर की लताओं पर तैयार हो रहे बीज
तदुपरांत पौधशाला की फव्वारे से हल्की सिंचाई कर दी
जाती हैं 10 से 15 दिनों में इन बीजों में अंकुरण प्रारंभ हो जाता है।
तथा बीजों से अंकुरण का प्रतिशत
लगभग 40 प्रतिशत तक रहता हैं
जब ये पौधे लगभग 40-45 दिनों
के हो जाए तो इन्हें मुख्य खेत में
प्रतिरोपित कर दिया जाना
चाहिए।
4. मुख्य खेत में पौधों की रोपाई - जब नर्सरी में पौध 40-45 दिन की हो जाती है तथा यह 4-5 इंच
की ऊँचाई प्राप्त कर लेती है तो इसे इन मेड़ियों पर 60-60 सें.मी. की दूरी
पर चार-पांच इंच गहरे गड्ढे खोदकर के रोपित कर दिया जाता है। खेत
में खाद मिलाने का काम खेत की तैयारी के समय भी किया जा सकता है
तथा गड्ढों में पौध की रोपाई के समय भी। पहले वर्ष के उपरान्त आगामी
सतावर का जड़
वर्षों में भी प्रतिवर्ष माह
जून-जुलाई में 750 कि.ग्रा केंचुआ
खाद अथवा 1.5 टन
कम्पोस्ट खाद तथा 15 किग्रा.
बायोनीमा जैविक खाद
प्रति एकड़ डालना उपयोगी
रहता है।
6. खरपतवार नियंत्रण तथा निराई-गुड़ा़ई की व्यवस्था - सतावर के पौधों को खरपतवार से मुक्त रखना आवश्यक होता है
इसके लिए यह उपयुक्त होता है कि आवश्यकता पड़ने पर नियमित
अंतरालों पर हाथ से निराई-गुड़ाई की जाए। इससे एक तरफ जहां
खरपतवार पर नियंत्रण होता है वहीं हाथ से निराई-गुड़ाई करने से मिट्टी
भी नर्म रहती है जिससे पौधों की जड़ों के प्रसार के लिए उपयुक्त वातावरण
भी प्राप्त होता है।
7. सिंचाई की व्यवस्था - सतावर के पौधों को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। यदि
माह में एक बार सिंचाई की व्यवस्था हो सके तो ट्यूबर्स (जड़ों का अच्छा
विकास हो जाता है।
8. फसल का पकना अथवा फसल की परिपक्वता - लगाने के 24 माह के उपरान्त सतावर की जड़ें खोदने के योग्य
हो जाती है। किन्हीं किसानों द्वारा इनकी 40 माह बाद भी खुदाई की जाती
है।
9. जड़ों की खुदाई तथा उपज की प्राप्ति - 24 से 40 माह की फसल हो जाने पर सतावर की जड़ों की खुदाई
कर ली जाती है। सावधानीपूर्वक जड़ों को खोद लिया जाता है। खुदाई से पहले यदि खेत में
हल्की सिंचाई देकर मिट्टी को थोड़ा नर्म बना लिया जाए तो फसल को
उखाड़ना आसान हो जाता है।
जड़ों को उखाड़ने के उपरान्त उनके ऊपर का छिलका उतार लिया
जाता है।
छिलका उतारने का कार्य ट्यूबर्स उखाड़ने के तत्काल बाद कर लिया जाना चाहिए अन्यथा यदि ट्यूबर्स थोड़ी सूख जाऐं तो छिलका उतारना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में इन्हें पानी में हल्का उबालना पड़ता है तथा ठंडे पानी में थोड़ी देर रखने के उपरान्त ही इन्हें छीलना संभव हो पाता है। छीलने के उपरान्त इन्हें छाया में सुखा लिया जाता है। पूर्णतया सूख जाने के बोरियों में पैक करके बिक्री हेतु प्रस्तुत कर दिया जाता है।
छिलका उतारने का कार्य ट्यूबर्स उखाड़ने के तत्काल बाद कर लिया जाना चाहिए अन्यथा यदि ट्यूबर्स थोड़ी सूख जाऐं तो छिलका उतारना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में इन्हें पानी में हल्का उबालना पड़ता है तथा ठंडे पानी में थोड़ी देर रखने के उपरान्त ही इन्हें छीलना संभव हो पाता है। छीलने के उपरान्त इन्हें छाया में सुखा लिया जाता है। पूर्णतया सूख जाने के बोरियों में पैक करके बिक्री हेतु प्रस्तुत कर दिया जाता है।
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सतावर
एक एकड़ में34हजार रुपये की बचत वो भी24माह में।कोई फायदा नहीं, बेहद घाटे का काम।
ReplyDeleteगलत कैलकुलेशन है सर कमसे कम ६ लाख और ज्यादा से ज्यादा ९ लाख होता है प्रॉफिट...कॉल करें 9670111103
ReplyDeleteमुझे इसकी गेड़ चाहिये इसके लिये किससे सम्पर्क करें
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