तनाव के लक्षण और इसके मुख्य कारण

तनाव एक स्थिति तक सामान्य व्यक्तित्व विकास के लिए उपयोगी है। इसकी अधिक मात्रा व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार कर देती है। नकारात्मक तथा तनाव युक्त घटनाए कई प्रकार के मानसिक विकार उत्पन्न करती है। जिसका सम्बन्ध सामान्यतः शारीरिक, जटिल पारिवारिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक या जैविक घटकों से होता है। ये घटक मनुष्य में शारीरिक और मानसिक बैचेनी उत्पन्न करके कई प्रकार के रोग को निमन्त्रण देते है।

तनाव के लक्षण

तनाव अनेकानेक प्रकार से मानवीय जीवन को प्रभावित करता है। मनोवैज्ञानिकों ने तनाव के लक्षण को मुख्यतः शारीरिक, मानसिक एवं व्यवहार के अन्तर्गत रखा है-

1. तनाव के शारीरिक लक्षण

तनाव के शारीरिक प्रभाव का सम्बन्ध मुख्यतः न्यूरोलाॅजिकल, एंडोक्राइन एवं इम्युनोलाॅजिकल संस्थानों से है। हेंस सेल्ये के अध्ययन के अनुसार तनाव का लम्बा दौर मनुष्य की एड्रीनल एवं पिट्यूटरी जैसी अन्तःस्रावी ग्रंथियों को असामान्य रूप से उत्तेजित कर देता है ऐसे में ये ग्रंथियाँ लाभकारी हाॅर्मोनों के स्थान के हानिकारक हाॅर्मोन रसायनों का स्रावण करने लगती हैं। तनाव के दौरान सिम्पैथेटिक स्नायुसंस्थान सक्रिय हो जाता है। सामान्य क्रम में शरीर का इम्युनोलाॅजिकल तन्त्र प्रतिरक्षा का कार्य करता है, परन्तु उस पर लगातार अतिरिक्त दबाव पड़ने से उसकी कार्यशक्ति घटने लगती है, और शरीर विभिन्न प्रकार के रोगों का शिकार होने लगता है।

अन्तःस्रावी ग्रंथियों से ऐड्रीनलिन तथा नाॅरऐड्रीनलिन का स्रावण होने लगता है। जिसके प्रभाव में उत्पन्न शारीरिक लक्षणों में हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, मांस-पेशियों के कड़े होने से हाथ-पैर तन जाते है और उदर कड़ा हो जाता है, रक्त चाप बढ़ जाता है, रक्त का प्रवाह अंतरांगों से वाह्य परिधीय अंगों की ओर हो जाता है, पाचन क्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ता है, श्वास की संख्या बढ़ जाती है।

2. तनाव के मानसिक लक्षण

तनाव मन पर अत्यन्त गहरा प्रभाव डालकर मानसिक पीड़ा पहुँचाता है। इसका समय रहते यदि उपचार न किया जाये तो यह शरीर को विभिन्न प्रकार के मनोशारीरिक रोगों का आश्रय-स्थल बना देता है। तनाव के मानसिक लक्षण के अन्तर्गत-मन का कहीं पर न लगना, आत्म विश्वास का निम्न स्तर, बार-बार गुस्सा आना या चिड़चिडा़हट, घबराहट, अकारण भय का अनुभव, एकाग्रता की कमी, लेखन में अक्षर का आगे पीछे लिख जाना, लोभी प्रवृत्ति एवं निर्णय लेने में असमर्थता इत्यादि आते है।

3. तनाव के व्यवहारगत लक्षण

व्यवहार के माध्यम से प्राणी अपने आपको अभिव्यक्त करता है। अच्छे व्यवहार द्वारा वह दूसरों को प्रभावित करता है। भिन्न-भिन्न तनाव कारकों का मानवीय व्यक्तित्व पर प्रभाव विभिन्न रूपों में होता है और उसकी व्यवहारगत अभिव्यक्ति में भी असमरूपता होती है। साधारणतया तनाव की साधारण अवस्था के सकारात्मक परिणाम होते है और व्यक्ति का व्यवहार समायोजित रहता है। तीव्र तनाव के प्रभाव नकारात्मक होते है और व्यक्ति के व्यवहार पर विपरीत प्रभाव डालते है। तनाव के दौरान सामान्यतः सामाजिक सम्बन्ध भी बाधित होते है। 

तनाव की अवस्था में व्यक्ति के व्यवहार में प्रदर्शित होने वाले कुछ परिवर्तनों के अन्तर्गत़- भूख का अत्यधिक बढ़ या घट जाना, शराब एवं धू्रमपान की लत, बहुत जल्दी नर्वस हो जाना, नाखून चबाना, मुँह सूखना एवं जल्दी-जल्दी प्यास लगना, समस्याओं के निराकरण में विफल साबित होना, शीघ्र क्रोधित हो जाना, अवसाद ग्रसित होना आदि आता है।

तनाव के कारण

तनाव के कारण व्यक्ति के कार्य की कुशलता में कमी आ जाती है। व्यक्ति अपने सहज स्वाभाविक शान्त स्वरूप को छोड़कर चिड़चिडे़ स्वभाव का भी हो जाता है, जिसका विपरीत प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर पड़ता है। तनाव से ग्रसित व्यक्ति स्वाभाविक आनन्द के साथ किसी कार्य को सम्पादित एवं सम्पन्न नहीं कर पाता है। तनाव को उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारण है-

1. स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानियाँ - स्वस्थ शरीर और स्वच्छ मन मानवीय उन्नति के दो प्रमुख द्वार है। इनमें से किसी पर भी आघात लगने पर न केवल उन्नति का द्वार अवरूद्ध होता है अपितु जीवन के लिए भी संकट खड़ा हो जाता है। गिरते स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार अंग विशेष दूसरे सम्बन्धित अंगों को भी अपनी चपेट में ले लेता है, जिससे व्यक्ति शारीरिक रूप से अपाहिज हो जाता है। शारीरिक रोग मनुष्य को असमायोजित करके तनाव को जन्म देता है। जबकि मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के संकट से मानवीय व्यक्तित्व के विविध आयाम यथा-व्यवहार, संज्ञान इत्यादि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। स्वयं का या परिवार के किसी सदस्य का बीमार या चोटग्रस्त होना, तनाव को उत्पन्न करता है। शारीरिक रूग्णता और मानसिक अस्वस्थता के साथ-साथ औषधियों के प्रतिकूल प्रभाव भी मानसिक तनाव के हेतु है।

2. परिवारिक उत्तरदायित्व सम्बन्धित कारण - घरेलू स्तर पर ऐसे अनेको उत्तरदायित्व है जिनमें से कुछ मनुष्य को प्रायः और कुछ यदा-कदा तनाव से व्यथित करते है। उदाहरणार्थ- पारिवारिक असन्तुलन, घर का रख-रखाव, भोजन की व्यवस्था, भारी कर्ज की अदायगी, आर्थिक संकट, बच्चों की शिक्षा के दायित्व, मकान बनवाना या निवास स्थान का बदलना आदि।

3. कार्य का अतिरिक्त दबाव - आधुनिक भागदौड़ के युग में कार्य के अतिरिक्त दबाव से व्यक्ति तनाव का शिकार हो जाता है। जैसे-विभिन्न प्रकार के दायित्वों और कर्तव्यों का एक साथ पालन, केरियर बनाने के लिए किया गया कठोर श्रम, समय की अल्पता इत्यादि।

4. पर्यावरणीय परेशानियाँ - मनुष्य के आस-पास का पर्यावरण एवं वातावरण सतत् एक दूसरे को पोषित एवं प्रभावित करते है। ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, पारिवारिक दायित्वों का दबाव, विपन्न पड़ोस तथा समाज में संव्याप्त अपराध एवं भ्रष्टाचार आदि मानवीय मन के समक्ष तनाव का सकंट खड़ा कर देते हैं।

5. असुरक्षा - सुरक्षा की भावना से मनुष्य जीवन के प्रति आशान्वित होता है। किन्तु बेरोजगारी, परीक्षा में असफल होने का भय, महंगाई, सेवा निवृत्ति तथा कभी-कभी ज्योतिषीय भविष्यवाणी, अनिष्ट के घटने का भय आदि असुरक्षा के भाव को उत्पन्न करके तनाव को जन्म देते है।

6. आन्तरिक दिक्कतें -  आन्तरिक परिवेश में उपजी प्रतिकूल मनोदशा मनुष्य को तनाव के लिए बाध्य करती है। इसके अन्तर्गत अकेलेपन का भाव, आपसी मनमुटाव, समाज का मुकाबला कर पाने में अपने को असक्षम पाना आदि आता है।

7. आजीविका अर्जन में परेशानियाँ - आजीविका मानवीय निर्वाह का साधन है। आजीविका अर्जन के मार्ग में आने वाली दिक्कतें मनुष्य को तनाव से ग्रसित कर देती है। जैसे-व्यवसाय या नौकरी का बार-बार बदलना, व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा एवं असफलता, अधिकारी तथा सहकर्मियों में मतभेद, अनिश्चित आजीविका, अनिच्छित कार्य, कार्य असन्तुष्टि आदि मुख्य है।

8. निराशा- आवश्यकता सन्तुष्टि या इच्छापूर्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न होने पर मनुष्य की मानसिक प्रतिक्रिया निराशा के रूप में होती है जो परिणामतः तनाव को जन्म देती है। यहाँ पर वाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के कारक निराशा उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी हो सकते है। वाह्य कारकों के अन्तर्गत भूकम्प, बाढ़, कई प्रकार के सामाजिक नियम या प्रतिबन्ध, गरीबी इत्यादि के कारण मनुष्य प्रबल निराशा का शिकार हो जाता है। 

वाह्य कारकों के विपरीत आन्तरिक कारक मनुष्य में व्यक्तिगत रूप से कार्य करके निराशा को उत्पन्न करता है जैसे- किसी प्रकार की शारीरिक विकृति, उच्च महत्वकाक्षां, परिक्षाओें में असफल होने का भय तथा मानसिक संघर्ष इत्यादि।

9. जीवन में घटित अप्रिय घटनाए- जीवन क्रम में यदा-कदा ऐसी घटनाएं घटित होती है जो जीवन के अस्तित्व के लिए महासंकट खड़ा कर देती है। जिसके कारण मनुष्य तीव्र तनाव का शिकार हो जाता है जैसे- प्रियजन की मृत्यु, तलाक या अचानक उत्पन्न आर्थिक संकट आदि।

ऐसे अनेकानेक कारण है जो व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार है। प्रत्येक व्यक्ति की तनाव को सहन करने की सामथ्र्य अलग-अलग होती है। एक व्यक्ति जिन कारणों द्वारा तनाव से पीडि़त हो उठता है। दूसरा व्यक्ति तनाव को सहन करने की अतिरिक्त शक्ति के कारण उन्हीं परिस्थितियों में सामान्य बना रहता है।

स्वास्थ्य पर तनाव का प्रभाव

स्वास्थ्य पर तनाव का प्रभाव 

तनाव का एक व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। हृदय सबंधी विकार, दर्द और पीड़ा, अल्सर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अस्थमा, हाइपरथायरायडिज्म और यहाँ तक कि कैंसर जैसी कई बीमारियों के लिए तनाव को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

तनाव व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव डाल सकता है और इस प्रकार व्यक्ति आसानी से विभिन्न संक्रमणों और बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है और जल्दी बूढ़ा हो सकता है। जब कोई व्यक्ति तनाव का सामना कर रहा होता है, तो संसाधन और ऊर्जा को शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली से उन प्रणालियों की तरफ ले जाया जाता है जो तनाव प्रतिक्रिया में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इस प्रकार, वे व्यक्ति जो लबें समय तक तनाव का अनुभव करते हैं उनमें सक्रंमण विकसित होने का खतरा होता है क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है।

तनाव से व्यक्तियों में हृदय सबंधी विकारों का विकास हो सकता है। जब तनाव का अनुभव होता है, तो होने वाले शारीरिक परिवर्तनों में से एक यह है कि धड़कन की दर बढ जाती हे और साथ ही रक्तचाप में वृद्धि होती है। जैसे कि तनाव का अनुभव होने पर हृदय तीव्र गति में आ जाता हे और अधिक मेहनत करता है। लंबे समय तक तनाव के कारण हृदय अधिक समय तक कार्य करता रहेगा और इससे हृदय संबंधी विकारों का विकास हो सकता है। इसके अलावा, व्यक्ति की जीवनशैली, जिसमें आहार और पोषण, शारीरिक व्यायाम, शराब और नशीले पदार्थों का सेवन इत्यादि सम्मिलित हैं भी इस तरह के विकार में योगदान दे सकते है।

लंबे समय तक तनाव उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है क्योंकि सहानुभूति तंत्रिका तंत्र सक्रिय हो जाता है और रक्तचाप बढ़ जाता है और लंबे समय तक बढ़ा रहता है। रक्तचाप लंबे समय तक उच्च रहने पर हृदय संबंधी विकारों को उत्पन्न कर सकता है आरै स्ट्रोक आरै गुर्दे से संबंधित विकारों को भी उत्पन्न कर सकता है। ग्लूकोज और फैटी एसिड भी जमा हो सकता है अगर किसी व्यक्ति को लंबे समय तक उच्च रक्तचाप रहे, तो धमनी में थक्के जम सकते हैं। 

तनाव हाइपरथायरायडिज्म का कारण बन सकता हैं, क्योंकि लबें समय तक तनाव का अनुभव थायरॉयड ग्रंथि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, ग्रंथि जो चयापचय के साथ-साथ विभिन्न शारीरिक कार्यों के विनियमन के लिए उत्तरदायी है को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता हैं, तनाव न केवल पिटîटू री ग्रंथि से हार्मोन के स्राव को प्रभावित कर सकता है, जो थायरॉयड ग्रंथि को उत्तेजित करता है, बल्कि टी.3 हार्मोन, अर्थात ट्राईआयोडोथायरोनिन में रूपातं रण को कम करता है। इस प्रकार, थायरॉयड ग्रंथि की कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है। तनाव के अनुभव के रूप में विभिन्न हार्मोन भी स्रावित हाते हैं और इससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ सकता है।

इसके अलावा, तनाव दुश्चिंता और अवसाद का कारण बन सकता है। जब किसी व्यक्ति द्वारा तनाव का अनुभव किया जाता है, तो न्यूरोट्रांसमीटर (न्यूरॉन्स के बीच संकेत देने वाले रसायन) सेरोटोनिन और एड्रेनालिन का स्राव होता है। इन न्यूरोट्रां मीटरों के स्राव के बाद, तनाव से संबंधित हार्मोन स्रावित हाते हैं और ये मस्तिष्क के उस क्षेत्र पर प्रभाव डाल सकते है  जो स्मृति और प्रभाव के विनियमन से सबं ंि धत है। जब किसी व्यक्ति द्वारा लबें समय तक तनाव का अनुभव किया जाता है, तो इन प्रणालियों के कार्य करने के तरीके पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और परिणामस्वरूप व्यक्ति को मानसिक दुश्चिंता  और अवसाद विकसित होने का खतरा होता है। इसके अलावा, अवसाद को प्रतिरक्षा प्रणाली की विस्तारित सक्रियता से भी जोडा़ जा सकता है, जो कि समय की अवधि में किसी व्यक्ति द्वारा अनुभव किए गए तनाव का परिणाम है।

तनाव व्यक्ति को हानिकारक व्यवहार में भी लीन कर सकता है ताकि वह उसका सामना कर सके जिसमें नशीले मादक पदार्थ सेवन (शराब, नशीली दवाओं आदि) भी सम्मिलित हो सकता है। यह न केवल व्यसन का कारण बन सकता है, बल्कि स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है। तनाव से गुजरने वाले व्यक्ति अस्वस्थ जीवन शैली में भी लीन हो सकते हैं, जैसे कि वे व्यायाम करना, पोषक आहार करना और संतुलित भोजन शैली अपनाना।

इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि तनाव किसी के शारीरिक स्वास्थ्य के साथसाथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा, यह किसी की जीवन शैली और व्यवहार को भी प्रभावित कर सकता है जो बदले में किसी के समग्र स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

संबंधों पर तनाव का प्रभाव

व्यक्ति किसी द्वीप की तरह नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे पर निर्भर है। वे अलगाव में कार्य नहीं कर सकते हैं और विभिन्न गतिविधियों के साथ-साथ समर्थन के लिए एक-दूसरे पर भरोसा करते है। इस प्रकार, एक व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण आयाम दूसरों के साथ उसका संबंध है। तनाव का व्यक्ति के रिश्तों पर भी प्रभाव पड़ सकता है। जैसा कि हमने पहले की इकाइयों में चर्चा की है, कि एक व्यक्ति द्वारा तनाव का अनुभव किया जाता है, वह चिड़चिड़ा हो जाएगा और क्रोध भी व्यक्त कर सकता है। इससे दूसरों के साथ उसके रिश्ते पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा, तनाव से गुजरने वाले व्यक्ति स्वयं को अलग कर सकते हैं या विचलित हो सकते हैं या अपने जीवन में महत्वपूर्ण व्यक्तियों के प्रति कम लगाव प्रदर्शित कर सकते हैं। काफी समय तक तनाव का अनुभव करने से भी संसाधनों को कम करने में कमी आ सकती है, इस प्रकार तनाव का अनुभव करने वाला व्यक्ति भी दूसरों के मुकाबले कम धैर्यवान होता है।

व्यक्तियों द्वारा नियोजित सामना करने की अपर्याप्त रणनीतियों से ऐसे व्यवहार भी हो सकते है जो दूसरों के साथ व्यक्ति के रिश्ते को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, तनाव के परिणामस्वरूप व्यक्ति मादक पदार्थ (शराब और नशीली दवाओं का सेवन) में लीन हो सकते हे आरै समय के साथ इस तरह के व्यवहार दूसरों के साथ उसके संबंध को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। तनाव से पारस्परिक संघर्ष भी हो सकता है। जिसके परिणामस्वरूप रिश्तों पर फिर से नकारात्मक प्रभाव पड ़ सकता है। ऐसे व्यक्ति जो तनाव में हैं, वे कुछ बातें कह सकते हैं या कुछ गलतियाँ कर सकते हैं, जिसे करने से बचना चाहिए। 

यहाँ तक कि निर्णय लेने और व्यक्ति की समस्या समाधान की क्षमता भी प्रभावित हो जाती है और जैसा कि हमने कुछ निर्णय पर चर्चा की है, वह उन रणनीतियों को हल करने या लेने में समस्या उत्पन्न करता हैं, जिन्हें वह नियोजित कर सकता हैं, दूसरों के साथ उसके संबंधों को प्रभावित कर सकता है और पारस्परिक संघर्ष विकसित कर सकता है। तनाव में रहने वाला व्यक्ति भी अधिक संवेदनशील हो सकता है और दूसरों द्वारा कही गई कुछ बातों से, जानबूझकर या अनजाने में नाराज हो सकता हैं। ये सभी दूसरों के साथ संबंधों म ें बाधा डाल सकते हैं और रिश्ते की समस्याएँ आगे चलकर व्यक्ति में तनाव उत्पन्न कर सकती हैं।

संदर्भ -
  1. अरूण कुमार(2002) आधुनिक आसामान्य मनोविज्ञान, मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली।
  2. असमान्य मनोविज्ञान, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली।
  3. डा अजय कुमार(2008) मनोविकृति विज्ञान, अग्रवाल पब्लिकेशन्स, आगरा
  4. हरि ओम(2009) सूर्य चिकित्सा, डायमंड पाॅकेट बुक्स, नई दिल्ली।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

1 Comments

  1. How to search topic of own information... Other than that of daily publishing

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