तेलंगाना राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई?

सन् 2014 में आंध्र प्रदेश राज्य के कुछ जिलों को मिलाकर तेलंगाना राज्य का निर्माण हुआ था। एक राज्य बनने से पहले तेलंगाना आंध्र प्रदेश राज्य का विशेष पहचान वाला राज्य था। यह आंध्र प्रदेश के दो अन्य क्षेत्रों रायलसीमा और तटीय आंध्र से भिन्न था। हैदराबाद निजाम के शासन में तेंलगाना हैदराबाद राज्य तथा तेलंगाना और आंध्र मद्रास प्रेजिडेंसी के हिस्से थे। कांग्रेस तथा भारतीय कम्युनिस्ट दल ने तेलंगाना, आंध्र तथा रायलसीमा क्षेत्रों को भाषा के आधार मिलाकर एक आंध्र राज्य बनाने की माँग की थी। 

तेलंगाना राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई?

1953 आंध्र तेलुगु भाषा के आधार पर एक राज्य निर्माण की मांग गांधीवादी पाँटी श्रीरामलू के लिए भूख हड़ताल की थी जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी। उन्होंने मांग की थी आंध्र प्रदेश को भूतपूर्व मद्रास प्रेसिडेंट तथा हैदराबाद राज्य के तेलंगाना क्षेत्रों को मिलाकर बनाया जाए। पाँटी श्रीरामलू की मृत्यु के बाद केंद्रीय सरकार राज्य पुर्नगठन आयोग (एस. आर. सी.) की स्थापना की जिसका उद्देश्य नये राज्यों के निर्माण की आवश्यकताओं तथा उनके आधारों की जाँच करना था। एस. आर. सी. ने 1955 में रिपॉर्ट जमा की तथा पाया की तेलंगाना , रायलसीमा तथा तटीय आध्ं ा्र क्षेत्रों में एकरूपता का अभाव था। आयोग ने एक पाँच साल के लिए तेलंगाना राज्य बनाने का सुझाव कुछ शर्तों के आधार पर किया। यह शर्त थी कि तेलंगाना राज्य के अस्तित्व में आने के पाँच साल बाद तेलुगु भाषा के आधार पर तेलंगाना के साथ-साथ तटीय आंध्र और रायलसीमा को मिलाकर एक राज्य का निर्माण किया जाए। परन्तु पाँच साल की समाप्ति से पहले तेलुगु भाषा के आधार पर 1956 में रायलसीमा, तटीय आंध्र और तेलंगाना को मिलाकर आंध्र प्रदेश राज्य का निर्माण किया गया। 

आंध्र प्रदेश के निर्माण को तेलंगाना क्षेत्र में इस संदेह के साथ देखा गया कि यह उनके ऊपर आंध्र क्षेत्र के लोगों कावर्चस्व स्थापित कर देगा क्योंकि तेलंगाना क्षेत्र के लागे आंध्र  क्षेत्र के लोगों से आर्थिक और शैक्षिक आधार से पिछड़े थे। यह आशंका इसके बावजूद हुई कि आन्ध्र प्रदेश के विभिन्न क्षेत्र एक समान तेलुगु भाषा बोलते थे। आंध्र राज्य बनने के विरोध में एक आंदोलन हुआ। जिसके परिणामस्वरूप तेलंगाना और आंध्र  क्षेत्रों के कांग्रेसी नेताओं के मध्य 1956 में एक समझौता हुआ। इस समझौते के जेटिलमेन एग्रीमेंट (Gentleman Agreement) के नाम से जाना गया था तथा इसका उद्देश्य तेलंगाना क्षेत्र के हितों की रक्षा करना था। अन्य आश्वासनों के साथ, जेंटिलमेन एग्रीमेंट के दो मुख्य आश्वासन थे। प्रथम, एक क्षेत्रीय समिति का निर्माण किया जाएगा जो क्षेत्रीय समस्याओं का निरीक्षण कर उनके समाधान का सुझाव देगी। 

द्वितीय, यदि मुख्यमंत्री एक क्षेत्र से होगा तो उपमुख्यमंत्री दूसरे क्षेत्र से होगा। जेंटिलमेन एग्रीमेंट के हस्तातरित होने के कुछ समय पश्चात तेलंगाना क्षेत्र के लोग में रोश पैदा हो गया कि समझौते का पालन नहीं किया गया। तेलंगाना क्षेत्र के लोगों ने शिकायत की कि उनका क्षेत्र आतंरिक उपनिवेश बन गया; विद्याथ्र्ाी, नौकरशाह, अध्यापक, वकील तथा व्यापारी आंध्र क्षेत्र से थे; उनका मानना था कि तेलंगाना आंध्र प्रदेश में एक पिछड़ा क्षेत्र बना रहा। नवयुवकों के एक बुद्धिजीवी समूह ने तेलंगाना प्रजा समिति (टीपीएस) का निर्माण किया जो एक गैर राजनीतिक संगठन था तथा जिसका उद्देश्य तेलंगाना राज्य के लिए लामबंदी करना था। 

टी पी एस के निर्माण के कुछ समय पश्चात् इसमें चेन्ना रेडडी तथा काँडा लक्ष्मण जैसे राजनीतिज्ञ शामिल हो गए। टीपीएस ने 1971 को लोक सभा चुनाव तेलंगाना राज्य बनाने के मुद्दे पर लड़ा। इसने तेलंगाना क्षेत्र की 14 में 10 सीटों पर विजय प्राप्त की। चुनाव के बाद टीपीएस का कांग्रेस में विलय हो गया तथा तेलगं ाना का मुद्दा पीछे रह गया, यद्यपि, एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय की हैदराबाद में स्थापना हो गई थी। 1985 में जी. ओ. 610 द्वारा एन टी रामाराव के नेतृत्व वाली टी.डीपी. सरकार ने तेलंगाना क्षेत्र की समस्याओं को सम्बन्धित किया। इस जी. ओ. में नौकरियों में कुछ चयनों पर तेलंगाना में वहाँ के लोगो को रखने का आश्वासन दिया गया। 

यद्यपि चद्रबाबू नायडू की सरकार तेलंगाना राज्य निर्माण की विरोधी थी, इसने जी. ओ. 610 को लागू करने के उद्देश्य से एक व्यक्ति की सदस्यता वाले आयोग . जे. एस. गर्गलानी आयोग की नियुक्ति की। गर्गलानी आयोग के अनुसार जी. ओ. 610 का उलंघन किया गया तथा तेलंगाना  क्षत्रे के व्यक्तियों के स्थान पर आंध्र क्षेत्र के व्यक्तियों की नियुक्ति की गई। तेलंगाना राज्य की मांग को 2001 में के. चंद्रशेखर (के सी आर) द्वारा स्थापित तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरएस) ने फिर से उठाया। इसने 2004 के लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा। टी आर एस . कांग्रेस गठबंधन ने 2004 में सरकार बनाई, जिसमें कांग्रेस का मुख्यमंत्री बना। केंद्र में भी टीआरएस कांग्रेस के साथ यूपीए का सदस्य थी। यूपीए सरकार ने एक उपसमिति का गठन किया जिसके प्रणव मुखर्जी तथा शरद पवार सदस्य थे। इस समिति का उद्देश्य तेलंगाना राज्य निर्माण के मुद्दे की समीक्षा करना था। इस समय, कांग्रेस तथा टीआरएस में मतभेद हो गए। परिणामस्वरूप 2006 में टीआरएस यूपीए से बाहर निकल गया।

टीआरएस के यूपीए गठबंधन से बाहर होने के पश्चात 2007 में आंदोलन ने फिर से जोर पकड़ा। ओस्मानिया विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, अध्यापकों तथा कर्मचारियों ने आंदोलन में बढचढक़र हिस्सा लिया। 2009 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना का मुद्दा हावी रहा, जिसका टीआरएस ने समर्थन तथा कांग्रेस ने विरोध किया। फिर भी, यूपीए सरकार ने जस्टिस श्रीकृष्णा के नेतृत्व में एक समिति का गठन था जिसका उद्देश्य तेलंगाना मुद्दे का निरीक्षण कर 31 दिसंबर 2010 रिपोर्ट जमा करना था। कई वर्षों की तेलंगाना राज्य की माँग की पृष्ठभूमि में यूपीए मंत्रीमण्डल ने 7 फरवरी, 2014 को एक बिल पास किया जिसमें आंध्र प्रदेश को दो राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव था . तेलंगाना और आंध्र प्रदेश। इसके संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति के पश्चात 2 जून, 2014 को तेलंगाना राज्य की स्थापना हो गई।

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