NITI AAYOG | नीति आयोग की स्थापना के उद्देश्य संरचना कार्य

नीति आयोग के कार्य

1950 से, भारत सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से पूरे देश में तेजी से सामाजिक और आर्थिक विकास लाने का प्रयास किया। इस कार्य को करने के लिए मुख्य संस्थान योजना आयोग था, जिसे 1950 में प्रारम्भ किया गया था और यह 2014 के अंत तक कार्य कर रहा था। इसके बाद जनवरी 1, 2015 को, योजना आयोग को राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफार्मिंग इंडिया), अर्थात् नीति (NITI) से बदल दिया गया।
  1. अध्यक्ष : भारत के प्रधानमंत्री
  2. उपाध्यक्ष : प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त 
  3. संचालक: परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल होते हैं।
  4. अंशकालिक सदस्य: इन सदस्यों की अधिकतम संख्या दो होती है, जो किसी भी प्रमुख विश्वविद्यालयों या अनुसंधान संगठनों या अन्य संबंधित संस्थानों से होते हैं। अंशकालिक सदस्यों को चक्रीय आधार पर नियुक्त किया जाता है।
  5. पदेन सदस्य: इसमें अधिकतम 4 सदस्य होते हैं, जो प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री परिषद से होते हैं।
  6. मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO): एक निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाता है और यह पद भारत सरकार के सचिव के पद का समानान्तर पद होता है।
विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में संबंधित कार्य क्षेत्र की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ और कार्यरत योग्य व्यक्ति को प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है। 

नीति आयोग के कार्य

नीति आयोग का क्या कार्य है?
  1. राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्र के विकास की प्राथमिकताओं और रणनीतियों का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना।
  2. सशक्त राज्य ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। इस तथ्य की महत्त्व को स्वीकारते हुए राज्यों के साथ सतत आधार पर संरचनात्मक सहयोग की पहल व तंत्र के माध्यम से सहयोगपूर्ण संघवाद को प्रोत्साहित करना। 
  3. ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजनाएँ बनाने के लिए तंत्र विकसित करना और उच्च सरकारी स्तरों पर इन्हें आगे विकसित करना। 
  4. सुनिश्चित करना कि आर्थिक सुरक्षा आरै नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को समाविष्ट किया गया है। 
  5. समाज के उन वर्गों पर विशेष ध्यान देना, जो आर्थिक प्रगति से पर्याप्त रूप से लाभान्वित होने से वंचित हो सकते हैं। 
  6. दीर्घ कालिक नीतियों और कार्यक्रमों को बनाना और साथ ही उनकी प्रगति और क्षमता की निगरानी करना। निगरानी के आधार पर मध्यावधि संशोधन सहित नवीन सुधार करना। 
  7. शैक्षिक और नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को प्रोत्साहित करना। 
  8. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, व अन्य भागीदारों के साथ एक सहयोगी समुदाय के माध्यम से ज्ञान, नवाचार, और उद्यमशीलता प्रोत्साहन प्रणाली बनाना। 
  9. विकास एजेंडा के कार्यान्वयन में तजे ी लाने के लिए अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-विभागीय मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच प्रदान करना।  
  10. एक अत्याधुनिक संसाधन केन्द्र बनाना, जो सुशासन तथा सतत और न्यायसंगत विकास की सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रणाली का भण्डार करने के साथ-साथ हितधारियों तक जानकारी पहुँचाने में भी मदद करे। 
  11. आवश्यक संसाधनों की पहचान करना, जिससे सेवाएँ प्रदान करने में सफलता की संभावनाओं को प्रबल बनाया जा सके, और साथ ही उनका मूल्यांकन तथा निगरानी भी करना। 
  12. प्रौद्योगिकी उन्नयन पर ध्यान देना। 
  13. कार्यक्रमों और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए क्षमता बढा़ना।

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