भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मण्डल द्वारा होता है जिसमें संसद के दोनों सदनों अर्थात लोकसभा एवं राज्यसभा तथा राज्यों की विधान सभाओं के सभी निर्वाचन सदस्य होते है। संसद के मनोनीत सदस्य तथा राज्य विधान परिषदों के मनोनीत सदस्य इस निर्वाचक मण्डल के सदस्य नहीं होते। निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय प्रणाली द्वारा किया जाता है। मतदान गुप्तमत द्वारा होता है।
संविधान निर्माता चाहते थे कि संसद के निर्वाचन सदस्यों के मत तथा सभी राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचन सदस्यों के मत एक समान हों। इसलिए मतों की समानाता को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने एक तरीका निकाला जिसके द्वारा प्रत्येक निर्वाचित सांसद तथा विधायक के वोट का मूल्य निर्धारित किया जा सके। किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जाता है:-
राज्य की कुल जनसंख्या राज्य विधान सभा के कुल निर्वाचन सदस्यों की संख्या सरल शब्दों में हम इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि राज्य की कुल जनसंख्या को राज्य विधान सभा के निवार्चन सदस्यों की संख्या से भाग करके भागफल को फिर 1000 से भाग दिया गया ।
राज्य की कुल जनसंख्या राज्य विधान सभा के कुल निर्वाचन सदस्यों की संख्या सरल शब्दों में हम इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि राज्य की कुल जनसंख्या को राज्य विधान सभा के निवार्चन सदस्यों की संख्या से भाग करके भागफल को फिर 1000 से भाग दिया गया ।
राष्ट्रपति के चुनाव का सूत्र
उदाहरण:- मान लीजिए अभी 2009 में राज्य की जनसंख्या 2,08,33,803 है तथा विधान सभा के सदस्यों की संख्या 90 है तो प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य होगा-
20,83,33,803
= -------- » 1000
90
= 231.48 = 231
( क्योंकि, .48 50प्रतिशत से कम हैं । )
संसद के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य निकालने के लिए सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित क्षेत्रों - दिल्ली एवं पांडीचेरी की विधान सभाओं के सभी सदस्यों के मत जाडे कर लाके सभा तथा राज्य सभा के सभी निर्वाचित सांसदो की संख्या से विभाजित किया जाता हैं
उदाहरण : सभी राज्यों की विधान सभाओं के मतों को जोड़ दिया जाता है । मान लिजिए यह संख्या 5; 44 ; 971 है और संसद के कुल निर्वाचन सदस्य है 776 तो -
गणना करते समय यदि शेष फल 50 प्रतिशत से कम हो तो उसे छोड दिया जाता है और यदि 50 प्रतिशत से अधिक हो तो भागफल में एक मत जोड दिया जाता है।
सभी विधान सभाओं के निर्वाचित विधायकों के कुल मत
= एक सांसद के मत --------------------
संसद के दोनों सदनों के कुल निर्वाचित सांसदों की संख्या
544971
प्रत्येक सांसद के मत = ---------- = 702.28 776
= 702 (पूर्ण संख्या बनाने पर )
एकल संक्रमणीय मत प्रणाली - राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रामणीय मत प्रणाली से होता हैं। इस प्रणाली में सभी प्रत्याशियों के नाम मतपत्र पर लिख दिए जाते है। और मतदाता उनके आगे संख्या लिखते हैं। प्रत्येक मतदाता मतपत्र पर वरीदता क्रम में उतनी पसंदे लिखता है जितने प्रत्याशी होते है
इसी प्रकार वह अन्य प्रत्याशियों के नाम के आगे भी अपनी पसंद के आधार पर संख्या 2, 3, 4 आदि........ लिख देता है। यदि पहली पसंद न लिखी जाए अथवा एक से अधिक प्रत्याशियों के नाम के आगे पहली पसंद लिखी जाए तो मत अवैध घोषित कर दिया जाता हैं ।
मतगणना परिणाम की घोषणा - राज्य विधान सभाओं के सदस्य अपना मतदान राज्यों की राजधानियों में करते है जबकि संसद सदस्य अपना मत दिल्ली या राज्य की राजधानियों में कर सकते है मतगणना नई दिल्ली में होती है पहली पसंद के आधार पर सभी प्रत्याशियों के मत अलग करके गिन लिए जाते है निर्वाचित घोषित होने के लिए कुल डाले गए वैध मतो के 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना आवश्यक हैं। इसे कोटा अथवा न्यूनतम आवश्यकता अंक कहते है कोटा निकालने के लिए कूल डाले गए वैध मतों को निर्वाचित होने वाले प्रत्याशिंयों की संख्या में एक जोडकर भाग किया जाता हैं। क्योंकि केवल राष्ट्रपति को निर्वाचित होना है इसलिए 1+1 अर्थात दो से भाग दिया जाता है । न्यूनतम अंकाे को 50 से अधिकतम बनाने के लिए भागफल में एक जोड़ दिया जाता है । इसलिए
कुल डाले गए वैध मत
कोटा = -------------- + 1
1 + 1
यदि अब भी किसी प्रत्याशी को कोटा मत प्राप्त नहीं होता तो सबसे कम मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी के मत उसकी तीसरी पसंद के आधार पर बाकी प्रत्याशियों में हस्तांतरित कर दिए जाते हैं। यह प्रकिया तब तक चलती है जब तक कि कोई भी प्रत्याशी वांछित मत प्राप्त करके विजयी घोषित नहीं होता।
आइए हम, इसे एक उदाहरण की सहायता से समझने का प्रयास करें मान लीजिए कुल वैध मत 20,000 हैं और अ, ब, स और द चार प्रत्याशी है। यहां पर वांछित अंक या कोटा होगा :-
20,000
------- = +1 = 10,0001
1 + 1
मान लीजिए पहली गणना में चारों प्रत्याशियों को पहली पसंद के आधार पर मिले मत इस इस प्रकार हैं :-
अ = 9000
ब = 2000
स = 4000
द = 5000
इस स्थिति में किसी भी प्रत्याशी को वांछित अंक अर्थात 10,001 मत नहीं मिले सबसे कम अंक प्राप्त करने वाले प्रत्याशित ब को हटा दिया जाता हैं और उसके 2,000 मत दूसरों को हस्तातंरित कर दिये जाते हैं । मान लीजिए मतों के हस्तांतरण से अ को 1100, स को 500 तथा को द 400 मत मिलें। अब उनकी स्थिति इस प्रकार हैं :
अ = 9000 + 1100 = 10,100
स = 4000 + 500 = 4,500
द = 5000 + 400 = 5,400
क्योंकि प्रत्याशित अको वांछित मत अर्थात कोटा मिल गया गया है इसीलिए इसे राष्ट्रपति पद के लिए विजयी घोषित कर दिया जाता है। राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने से पूर्व उसे भारत के मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति में शपथ लेनी होती है ।
राष्ट्रपति का कार्यकाल
राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है परन्तु वह त्यागपत्र द्वारा (जो उपराष्ट्रपति को सम्बोधित किया जायेगा जो इसकी सूचना लोक सभा के अध्यक्ष को देगा) इस कालावधि से पहले भी अपना पद त्याग सकता है।यदि राष्ट्रपति संविधान का अतिक्रमण करता है तो उसे अनुच्छेद 61 में अपबन्धित तरीके से महाभियोग द्वारा उसके पद से हटाया जायेगा। यहाँ पर राष्ट्रपति अपने पद की समाप्ति के पश्चात भी तब तक पद धारण किये रहेगा। जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता।
संविधान के अनुच्छेद-57 के अनुसार राष्ट्रपति अपने पद पर पुन: निर्वाचित हो सकता है अर्थात् कोई व्यक्ति एक से अधिक बार राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित हो सकता है (अनुच्छेद-57) जबकि अमेरिका में 22वें संविधान संशोधन के अनुसार कोई व्यक्ति 2 से अधिक बार राष्ट्रपति पद नहीं ग्रहण कर सकता है।
राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रकिया / महाभियोग
राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने की प्रकिया को महाभियोग कहते है। महाभियोग का प्रस्ताव संसद के सदन के किसी में प्रस्तुत किया जा सकता है। संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटाने जाने की प्रणाली निम्न हैं -
- महाभियोग सूचना सदन को 14 दिन पूर्व प्राप्त होनी चाहिए। उस प्रस्ताव की सूचना पर उस सदन के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर होना चाहिए।
- यह प्रस्ताव जिस सदन में रखा जाता है उसके कुल सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित हो कर ही दूसरे सदन में भेजा जावेगा ।
- द्वितीय सदन में जांच के दौरान राष्ट्रपति स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से स्पष्टीकरण दे सकता है।
- द्वितीय सदन जांच के पश्चात अपने कुल सदस्यों के 2/3 बहुमत से महभियोग के प्रस्ताव को पारित कर दे तो राष्ट्रपति पर महाभियोग सिद्ध हो जाता है और उसी दिन राष्ट्रपति को अथवा पद त्यागना पड़ता है।
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