केन्द्रीय सचिवालय का संरचना एवं कार्य प्रणाली

प्रत्येक मंत्रालय में निम्नतम स्तर पर एक अनुभाग होता है, जिसमें एक अनुभाग अधिकारी होता है तथा कई सहायक और टंकक होते हैं, जो अनुभाग अधिकारी के अधीन काम करते हैं। यह अनुभाग इसे आवंटित किए गए विषय से सम्बन्धित कार्य को करता है। इस अनुभाग को कार्यालय भी कहा जाता है। दो अनुभागों से मिलकर एक शाखा बनती है, जो अवर सचिव के अधीन होती है, जिसे शाखा अधिकारी भी कहते है। दो शाखायें मिलकर एक विभाग बनाती है, जिसका प्रमुख उपसचिव होता है। जब कार्य का भार सचिव के प्रबंधनीय कार्यों से अधिक हो जाता है, तब एक या दो स्कंध और भी बना दिए जाते हें आरै प्रत्येक स्कंध एक संयुक्त सचिव के अधीन होता है। कभी अतिरिक्त सचिव के अधीन भी स्कंध रखे जाते हैं। विभाग आमतौर पर ऐसी इकाइयाँ होती है, जो मंत्रालयों के भीतर होती है और मंत्रालय से सम्बंधित विभिन्न क्षेत्रों को देखती है। 

ये विभाग आमतौर पर एक सचिव या विशेष सचिव के नेतृत्व में कार्यरत होते हैं। हालाँकि, कुछ मामलों में विभाग मंत्रालय की ही तरह स्वायत्तता और दर्जे में भी उनके बराबर हो सकते है। सचिव मंत्रालय का प्रशासनिक प्रमुख होता है।

इस तरह, सचिवीय पदों का क्रम निम्नानुसार है, प्रत्येक स्तर पर सम्बंधित मामलों को देखने के लिए एक अधिकारी प्रभारी होता है।

मंत्रालय: सचिव

विभाग: सचिव/विशेष सचिव
स्कंध: संयुक्त/ अतिरिक्त सचिव
प्रभाग: उपसचिव
शाखा: अवर सचिव
अनुभाग: अनुभाग अधिकारी

सचिव

सचिव किसी मंत्रालय या विभाग का प्रशासनिक प्रमुख होता है। वह नीति से सम्बन्धित सभी मामलों में सम्बन्धित मंत्री का प्रमुख सलाहाकार होता है। संबंधित मंत्रालय/विभाग के सभी प्रशासनिक मामले भी इस अधिकारी के अधीन आते हैं।

विशेष सचिव

एक विशेष सचिव की नियुक्ति एवं उसके पद व वेतन को उचित रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। आमतौर पर, उसका वेतन मामले की गम्भीरता (योग्यता) के आधार पर तय किया जाता है। विशेष सचिव एक विभाग या कभी-कभी एक स्कंध का प्रभार संभाल सकता है।

संयुक्त/अतिरिक्त सचिव

संयुक्त सचिव व अतिरिक्त सचिव विभिन्न स्कंध के एकल रूप में प्रभारी होते हैं। जब सचिव का कार्यभार उसके प्रबध्ं ाकीय कार्यों से अधिक हो जाता है, मंत्रालय के अधीन एक या एक से अधिक स्कंध की स्थापना की जाती है और तब ये स्कंध संयुक्त सचिव या कुछ मामलों में अतिरिक्त सचिव के अधीन कार्य करते हैं।

उप-सचिव

उपसचिव वह अधिकारी होता है, जो एक सचिवालय विभाग (division) का कार्यभार संभालता है और विभाग के अंतर्गत आने वाले सभी कार्यों के लिए उत्तर \दायी होता है। अवर सचिव
अवर सचिव एक मंत्रालय में एक शाखा का प्रभारी होता है। इसका कार्य शाखा के अंतर्गत आने वाले सभी कार्यों के निपटारे पर नियंत्रण रखना तथा साथ में, अपनी शाखा में अनुशासन भी रखना होता है।

केंद्रीय सचिवालय के कार्य

केंद्रीय सचिवालय, केंद्रीय विषयों को प्रशासित करने के लिए एक बुनियादी संस्थान है। केंद्रीय सचिवालय के कार्य इस प्रकार हैं:
  1. यह सरकारी नीतियों के निर्माण में मंत्रियों की सहायता करता है। इस ओर, इसका कार्य वित्तीय उपलब्धता, मानवशक्ति उपलब्धता, अंतर्निहित कानून आदि का व्यापक एवं विस्तृत परीक्षण करना है और संबंधित मंत्री के समक्ष मसौदा रखने से पहले उस पर गहन चर्चा करना है।
  2. केंद्रीय सचिवालय एक विचारक मण्डल है और साथ ही सूचनाओं का भण्डार ग्रह है, जो सरकार को तत्कालीन नीतियों की समीक्षा करने और भविष्य के लिए योजना बनाने में सक्षम बनाता है।
  3. नीति ओर वित्त आयोग जैसे आयोगों के बीच यह सचिवालय एक कडी़ का कार्य करता है सचिवालय राज्यों तथा विभिन्न आयोगों व संस्थानों (जैसे नीति व वित्त आयोग) के बीच संचार के माध्यम के रूप में काम करता है।
सचिवालय सरकारी नीतियों बनाने में सम्बन्धित मंत्रियों की मदद करता है, इस मदद के तहत वह उन्हें प्रासंगिक(सम्बन्धित) दस्तावेज प्रदान करता है। एक बार नीतियाँ तैयार होने के बाद, यह सचिवों की जिम्मेदारी होती हे कि वह इन नीतियों के कार्यान्वयन पर ध्यान रखें इसके लिए उन्हें क्षेत्र अभिकरण (फील्ड एजेंसियां) द्वारा अपनायी गई नीतियों और कार्यक्रमों के निष्पादन पर नियंत्रण करना होता है और साथ ही साथ परिणामों का मूल्यांकन करना होता है। 

इसके अतिरिक्त इसका कार्य समय-समय पर नीतियों में वृद्धिशील संशोधन, नीतियों को प्रभावशाली बनाने के लिए नियमों और विनियमों का निर्माण, संचालन योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति, क्षेत्रीय योजना में भाग लेना व कार्यक्रमों को तैयार करना, बजट सम्बन्धित कार्य और बजटीय नियंत्रण, तथा नीतियों का समन्वय आरै व्याख्या करना होता है इन्हें ससंद में उठाये गये सवालों के सम्बन्ध में सम्बन्धित मंत्रियों को सूचना देनी होती है, जिससे सम्बन्धित मंत्रिगण प्रांसगिक उत्तर देने में सक्षम हो सके। इन्हें अपने आंतरिक संगठनात्मक क्षमता को अधिक से अधिक विकसित करना होता है। इसके साथ, उन्हें राज्य प्रशासन के साथ सपंर्क व समन्वय बनाये रखना होता है।

भारतीय प्रणाली में सामान्यज्ञ और विशेषज्ञ कार्यों के बीच कोई विशष्े ा सीमा रेखा विद्यमान नहीं होती है, इसलिए कभी कभी विशेषज्ञ कुछ विभागों के पदेन अध्यक्ष के रूप में काम करते हैं, जिससे नीतियों का निष्पादन आसान और प्रभावी हो जाता है। इस प्रकार केंद्रीय सचिवालय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और भारतीय प्रशासन में एक प्रतिष्ठित स्थान रखता है।

कार्य प्रणाली 

सचिवालय के वरिष्ठ पदों पर उन अधिकारियों को रखने की प्रथा है, जो अधिकारी राज्यों से (या केन्द्रीय सेवाओं से) एक विशिष्ट समय के लिए आते हैं और अपना कार्यकाल समाप्त कर अपने मूल राज्यों या सेवाओं में वापस चले जाते हैं। इस प्रथा को कार्यकाल प्रणाली कहते हैं। 1905 से ही सचिवालय में यह प्रणाली रही है और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इस प्रणाली को भारत सरकार द्वारा बनाए रखा गया। इस प्रणाली के अंतर्गत: 
  1. अधिकारी, जो कार्यकारी प्रणाली के अंतर्गत केन्द्र व राज्य स्तरों पर कार्य करते हैं, इससे इन स्तरों के बीच प्रशासनिक समन्वय उत्पन्न होता है। हमारी संघीय नीतियों के कार्यचालन पर एक समकेक प्रभाव भी पड़ता है।
  2. मत्रं ालय व विभाग, जिला और राज्य स्तरों पर प्रत्यक्ष अनुभव रखने वाले, नौकरशाहों के प्रशासनिक अनुभव से लाभान्वित होते हैं।
  3. सचिवालय में लम्बे समय तक रहने के कारण वरिष्ठ अधिकारियों का क्षेत्र स्तर पर प्रशासनिक वास्तविकता से संपर्क टूट जाता है। कार्यकाल प्रणाली द्वारा उन्हें आम जनता तथा क्षेत्र से बराबर अनुक्रिया मिलती है।
  4. वरिष्ठ अनुभवी अधिकारी सभी समस्याओं से संबंधित एक व्यापक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य रखते हैं इस कारण राजयों को भी लाभ होता है।
  5. कार्यकाल प्रणाली में अधिकांश अधिकारियों को राज्य व केन्द्र स्तरों में काम करने का मौका मिलता है, जिससे उन्हें राष्ट्रीय व राज्यीय समस्याओं पर एक साकल्पवादी अवलोकन प्राप्त होता है।
  6. इससे सिविल सेवाओं की स्वायतत्त्ाा को शक्ति मिलती है, जिससे राजनीतिक नेताओं की चापलूसी नहीं करनी पड़ती है।
यद्यपि कार्यकाल प्रणाली अब भी प्रचलित है, इस पर अनेक आरोप लगाये गए हैं। संक्षेप में ये इस प्रकार है:
  1. सचिवालय में धीरे-धीरे नौकरशाही का काम विशिष्ट होता जा रहा है। अत: कार्यकाल प्रणाली इस प्रकार के सामान्यज्ञ प्रतिमान के अनुरूप नहीं हो पाती है।
  2. कार्यकाल प्रणाली कार्यालय व्यवस्था पर अतिरिक्त निर्भरता को बढ़ा देती है।
  3. कार्यकाल प्रणाली के अंतर्गत आए कई अधिकारीगण अपने मूल विभागों में वापस नहीं जाते हैं। परिणामस्वरूप कार्यकाल प्रणाली के मूल सिद्धांत का अर्थ नहीं सिद्ध हो पाता तथा सचिवालय का ‘अति नौकरशाहीकरण’ हो जाता है।
सन्दर्भ -
  1. avasthi,a., 1980, Centraladministration, Tata McGraw Hill, New Delhi
  2. Chanda,asok, 1967, Indianadministration, Georgeallenand Unwin Ltd, London
  3. Indianadministration, 2013, Dr. B. R.ambedkar Open University, Hyderabad
  4. Indianadministration, BPAE-102, 2005,school ofsocialsciences, IGNOU, New Delhi
  5. Jain, H.M., 1969, The Union Executive, Chaitanya Publishing House, Allahabad
  6. Khera,s.S., 1975, The Central Executive, Orient Longman, New Delhi

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