
भारत का निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। संविधान के उपबंधों के अनुरूप 25 जनवरी 1950 को इसकी स्थापना की गयी, अनुच्छेद 324 में प्रावधान किया गया है कि-
1. संविधान के अधीन संसद और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण, एक आयोग में निहित होगा (जिसे इस संविधान में निर्वाचन आयोग कहा गया है)।2. निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उतने अन्य निर्वाचन आयुक्त से, यदि कोई हों, जितने राष्ट्रपति समय-समय पर नियत करें, मिलकर बनेगा तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
3. जब कोई अन्य निर्वाचन आयुक्त इस प्रकार नियुक्त किया जाता है तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।
4. लोक सभा और प्रत्यक्ष राज्य की विधान सभा के प्रमुख साधारण निर्वाचन से पहले तथा विधान परिषद वाले प्रत्येक राज्य की विधान परिषद के लिए प्रथम साधारण निर्वाचन से पहले और उसके पश्चात प्रत्येक द्विवार्षिक निर्वाचन से पहले, राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग से परामर्श करने के पश्चात, खंड(1) द्वारा निर्वाचित आयोग को सौंपे गए कृत्यों के पालन में आयोग की सहायता के लिए उतने प्रादेशिक आयुक्तों की भी नियुक्ति कर सकेगा जितने वह आवश्यक समझे।
5. संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, निर्वाचन आयुक्तों और प्रादेशिक आयुक्तों की सेवा की शर्तें और पदाविधि ऐसी होंगी जो राष्ट्रपति नियम द्वारा अवधारित करें। परन्तु मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर ही हटाया जाएगा, जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है अन्यथा नहीं और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शतोर्ं में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए लाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा। किसी अन्य निर्वाचन आयुक्त या प्रादेशिक आयुक्त को मुख्य आयुक्त की सिफारिश पर ही पद से हटाया जाएगा, अन्यथा नहीं।
6. जब निर्वाचन आयोग ऐसा अनुरोध करें, तब राष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल निर्वाचन आयोग का प्रादेशिक आयुक्त को उतने कर्मचारी वृंद उपलब्ध कराएगा जितने खंड (1) द्वारा निर्वाचन आयोग को सौंपे गए कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक हों। अत: चुनाव आयोग का गठन निम्न लोगों को मिलकर होगा।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त :- अनु0 324 के खण्ड (2) के अनुसार एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त होगा जिसे उपखण्ड (3) के अनुसार अध्यक्ष के रूप में जाना जायेगा।
- अन्य निर्वाचन आयुक्त :- अनु0 324 के खण्ड (2) के अनुसार उतने अन्य निर्वाचन आयुक्त होंगे जितने राष्ट्रपति समय-समय पर नियत करें। खण्ड (2) के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति संसद द्वारा बनायी गयी विधि के अधीन करेगा।
- प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्त :-:- अनु0 324 के खण्ड (4) के अनुसार लोकसभा, राज्य की विधानसभा और विधान परिषद के निर्वाचन से पहले राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग से सलाह लेकर उतने प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त कर सकेगा जितने वह उचित समझता है।
- कर्मचारी:-अनु0 324 के खण्ड (5) के अनुसार निर्वाचन आयोग के अनुरोध पर राष्ट्रपति या राज्य का राज्यपाल निर्वाचन आयोग या प्रादेशिक आयुक्तों को उतने कर्मचारी उपलब्ध करायेगा जितने आवश्यक हो।
निर्वाचन आयोग के कार्य एवं शक्तियां
अनुच्छेद 324 के अनुसार स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव के पश्चात एक लोक कल्याणकारी सरकार सत्ता में आये इस हेतु निर्वाचन आयोग को चुनाव से सम्बन्धित कुछ कृत्य हमारे संविधान द्वारा सौंपे गये हैं जो निम्नलिखित हैं। चुनाव आयोग के कार्य निम्नलिखित हैं -- संसद और राज्य विधानमण्डलों के निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराना एवं निर्वाचन कराना।
- राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों का अधीक्षण निदेशन और नियन्त्रण करना और निर्वाचन कराना।
- संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के निर्वाचन सम्बन्धी सन्देहो और विवादों के निर्णय के लिए निर्वाचन अधिकरण नियुक्त करना।
- मूल संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग चुनाव सम्बन्धी विवादों को भी सुनता था परन्तु 1966 में संविधान में 19 वें संशोधन द्वारा संशोधन करके चुनाव याचिकाओं को निण्र्ाीत करने का अधिकार उच्च न्यायालय को दिया गया है।
- निर्वाचन आयोग विभिन्न राजनीतिक दलों को राश्ट्रीय दल या क्षेत्रीय दल या अमान्यता प्राप्त पंजीकृत दल के रूप मान्यता प्रदान करता है और इस प्रकार मान्यता प्राप्त करने के आधार भी विनिश्चत करता है।
- मान्यता प्राप्त राजनीति दलों को आरक्षित चुनाव चिन्ह प्रदान करना और इस पर विभिन्न राजनीतिक दलों के मध्य विवादों का निपटारा आयोग ही करता है।
- चुनाव क्षेत्रों का परिसीमाकंन परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 के आधार पर चुनाव आयोग करता है।
- चुनाव आयोग चुनाव से सम्बन्धित आचार संहिता लागू करवाता है और आयोग द्वारा लागू आचार संहिता का पालन न करने वाले प्रत्याशियों तथा राजनीतिक दलों के विरूद्ध आयोग कार्य भी कर सकता है।
- चुनाव आयोग चुनाव याचिकाओं के सम्बन्ध में सरकार को आवश्यक परामर्श देता है।
- राश्ट्रपति और राज्यपाल क्रमश: संसद और विधानमण्डलों के सदस्यों की अयोग्यताओं के सम्बन्ध में चुनाव आयोग से परामर्श कर सकते हैं।
- चुनाव आयोग अपने कार्यों के सम्बन्ध में प्रतिवेदन समय-समय पर सरकार को देता है।
- चुनाव आयोग को किसी निर्वाचन स्थान को रद्द करने की भी शक्ति प्राप्त है।
- लोक प्रतिनिधत्व अधि0-1950 :- इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रावधानों का अनुसरण किया जायेगा उनका उल्लेख है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधि0 1951 :- इस अधिनियम के अन्तर्गत चुनाव हेतु मतदान हो जाने के बाद किन प्रावधानों का अनुसरण किया जायेगा इसके सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है।
- परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 :- इस अधिनियम के अन्तर्गत चुनाव क्षेत्रों के सीमांकन से सम्बन्धित प्रावधान हैं।
- किसी व्यक्ति को साक्ष्य हेतु समन करना,
- कोई दस्तावेज या अभिलेख मँगवाना,
- उसका शपथ पर परीक्षण करना,
- शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना,
- साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिये कमीशन निकालना, आदि।
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