संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना
भारत सरकार अधिनियम, 1919 ने लोक सेवा आयोग की स्थापना की। ली आयोग ने इसे समर्थन देने के साथ, 1926 में एक केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की। साइमन कमीशन की सिफारिशों को मानकर इसे 1937 में सघ्ं ाीय लोक सेवा आयोग का नाम दिया गया। यह इसी नाम के साथ 1950 तक काम करता रहा। इसके बाद, 1950 में भारत के संविधान के लागू होने के साथ, आयोग का नाम बदलकर भारत का संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) कर दिया गया।संिवधान का अनुच्छेद 315 लाके सेवा आयोगों को तीन श्रेणियों में विभाजित करता है। संघ लोक सेवा आयोग संघ की सेवा करने के लिए, राज्य लोक सेवा आयोग राज्य की सेवाओं के लिए, और संयुक्त लोक सेवा आयोग दो या दो से अधिक राज्यों की सेवाओं के लिए। भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति से संघ लोक सेवा आयोग राज्यों की मदद भी करता है।
संघ लोक सेवा आयोग के कार्य
संघ लोक सेवा आयोग के शीर्ष पर एक अध्यक्ष होता है तथा, साथ में, कुछ अन्य सदस्य भी होते है। भारत का संविधान सदस्यों की संख्या निर्दिष्ट नहीं करता है, बल्कि सदस्यों की संख्या निर्धारित करने के लिए भारत के राष्ट्रपति को अधिकृत करता है। 1950 में, जब संघ लोक सेवा आयोग अस्तित्व में आया, तो इसमें एक अध्यक्ष सहित चार सदस्य होते थे। इसके सदस्यों की संख्या आमतौर पर छह से दस सदस्यों के बीच घटती-बढ़ती रहती है।अनुच्छेद 316 (1) के प्रावधानों के अनुसार, अध्यक्ष और आयोग के अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। आयोग के सदस्यों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को यह सुनिश्चित करना होता है कि कुल सदस्यों में से आधे सदस्य ऐसे होंगे, जिन्होंने नियुक्ति के समय कम से कम दस वर्षों तक भारत सरकार के अधीन या किसी अन्य राज्य सरकार के अधीन पद धारण किया हो।
आयोग के कार्य आमतौर पर परामर्श देना हाते ा है। यह सेवा के मामलों में विशेषज्ञ प्राधिकारी के रूप में कार्य करता है और गैर-पक्षपातपूर्ण रूप से सलाह देता है। संघ लोक सेवा आयोग निम्नलिखित मामलों में केन्द्र सरकार को सलाह देता है।
- सिविल सेवाओं और सिविल पदों पर भर्ती के तरीकों से संबंधित मामले।
- सिविल सेवाओं में नियुक्तियाँ करने और एक सेवा से दूसरी सेवा में पदोन्नति और स्थानांतरण करने के लिए बनाये गये सिद्धान्त। इन्हीं मामलों में यह उम्मीदवारों की उपयुक्तता का पता लगाने के लिए सिद्धान्तों को जारी करता है।
- भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक मामले, जिनके अंतर्गत ऐसे मामलों से संबंधित ज्ञापन या याचिकाएँ भी होते हैं।
- भारत सरकार में सिविल हैसियत में सेवारत या सेवा कर चुके किसी व्यक्ति द्वारा किया गया ऐसा दावा, जिसमें कर्त्त्ाव्य के निष्पादन में किए गए कार्य के विरूद्ध हुई कानूनी कार्यवाही से अपने बचाव पक्ष में किए गए खर्च के सम्बन्ध में भारत की संचित निधि में से धनराशि की माँग की गई हो।
- कोई अन्य मामला, जो समय समय पर राष्ट्रपति द्वारा आयोग को भेजा जाए।
संविधान में इनके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रावधान भी है, जो एक विशेष उल्लेख के योग्य हैं:
- आयोग के कार्य का विस्तार करने का अधिकार संसद को है। संसद का अधिनियम किसी भी स्थानीय या स्वायत्त निकाय की सेवाओं को आयोग की सीमा में ला सकता है।
- राष्ट्रपति नियुक्तियों में आरक्षण(SC/ST/OBC) से संबंधित मामलों को निर्दिष्ट करने वाले अधिनियम बनाने के लिए अधिकृत है।
- राष्ट्रपति को संविधान में निर्दिष्ट मामलों के अतिरिक्त अन्य मामलों पर भी आयोग से परामर्श करने का अधिकार है।
Tags:
संघ लोक सेवा आयोग