13 वां गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन के महत्वपूर्ण बिन्दु

13 वां गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन 24-25 फरवरी 2003 को 13 वां गुटनिरपेक्ष सम्मेलन मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में हुआ। जिसमें 116 देशों ने भाग लिया। 24 फरवरी को अपने उद्घाटन भाषण में मलेशिया के प्रधानमंत्री व इस सम्मेलन के अध्यक्ष महातीर मोहम्मद ने युद्ध तथा परमाणु शस्त्रों को हटाने के लिये बहुपक्षीय अभियान का सुझाव दिया। उस समय इराक पर अमेरिकी आक्रमण का संकट मंडरा रहा था।
 
जिस पर संकेत करते हुये उन्होंने आग्रह किया सारी कार्यवाही संयुक्त राष्ट्र संघ कें तत्वाधान में की जानी चाहिये। उन्होंने ने कहा कि हमें नई विश्व व्यवस्था लाने हेतु प्रयास करना चाहिये। जिसमें लोकतंत्र राज्य के मात्र घरेलू प्रशासन तक सीमित न हो बल्कि सारे विश्व के प्रशासन को समाहित करें। इस नाते संयुक्त राष्ट्रसंघ का पुर्नगठन किया जावे में उसका समर्थन किया जाये। बहुपक्षवाद पर बल दिय जाये। तथा युद्ध में जीते गये देशों की शक्तियों को नियंत्रित किया जावे। आतंकवाद पर कड़ा नियंत्रण लगाया जावे। तथा फिलीस्तीनी लोगो के मौलिक अधिकारों का दमन न हो।

इस अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री वाजपेयी ने आग्रह किया कि इस आंदोलन का अब निर्माण होना चाहिये। विकास के संबन्ध में सतत कार्यक्रम अपनाया जाये। दुनिया से गरीबी हटाने के लिये 300 मिलीयन डालर का विश्व गरीब निवारण कोश बनाया जाये। दक्षिण दक्षिण सहयोग से अनेक देष अपना विकास कर सकते है। मलेशिया की कम्पनियां भारत में राजमार्ग बना रही है तो भारत की कम्पनियां मलेशिया में लोक निर्माण के कार्य कर रही है। उर्जा सुरक्षा, खाद्य, पर्यटन आदि के क्षेत्र में ऐसे परस्पर सहयोग को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने इस बिन्दु पर खेद भी व्यक्त भी किया कि इस सम्मेलन में दुनिया की 2/3 जनसंख्या भाग ले रही है। 

लेकिन विश्व के सकल उत्पादन में इन 116 देशों का केवल 20 प्रतिशत योगदान है। उन्होंने इस तर्क का खण्डन किया कि अब इस आंदोलन की प्रासंगिकता जा चुकी है। यही मंच विश्व को परमाणु संकट से बचा सकता है तथा सीमा पारीय आंतकवाद को रोक सकता है। अत: इसके इतिहास की पुन: रचना करने की आवश्यकता है।

दो दिनों के इस सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण घोषणा अपनाई गई जिसमें निम्न बिन्दुओ पर बल दिया गया :-
  1. संयुक्त राष्ट्र संघ की सुधरी हुई संरचना या उसके पुर्नगठन के माध्यम से एक नई बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था लाने हेतु सामूहिक प्रयास किया जाये।
  2. संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्य से ही शांतिपूर्ण तरीके से ईराक समस्या का समाधान हो ताकि उसकी प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखण्डता बनी रहे।
  3. विश्व व्यापी आंतकवाद से निपटने के लिये सामूहिक संघर्ष किया जावे।
  4. जटिल फिलीस्तीन समस्या का यथाशीघ्र समाधान किया जावे।
  5. युद्ध व परमाणु अस्त्रो के निराकरण हेतु सामूहिक प्रयास किया जावे।
  6. लोकतंत्र पर आधारित नई अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक व्यवस्था स्थापित हो।
  7. मुद्दों के साझे आधारों पर भूमण्डलीकरण की चुनौतियों का मुकाबला किया जाये।
  8. आर्थिक मुद्दो का राजनीतिकरण ना हो तथा द्विपक्षीय मुद्दों से उन्हे दूर रखा जाये।
  9. पूंजी निवेश तथा व्यापार संबन्धी मुद्दों पर दक्षिण दक्षिण सहयोग को बढ़ावा दिया जावे।
  10. सकल विकास संबन्धी कार्यक्रम के माध्यम से भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया को सुधारा जावे ताकि उसको नवोमुखी बनाया जाये।
  11. न्यूयोर्क,जिनेवा, वियना आदि स्थलो पर समन्वय ब्यूरों की नियमित रूप से बैठके की जाये। 
  12. विश्व के बडे़ औद्योगिक देशों (जी-8) से संवाद व अन्त:क्रिया की प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित किया जावे।
चूंकि उस समय ईराक पर अमेरिकी आक्रमण के बादल मंडरा रहे थे, गुटनिरपेक्ष देशों ने सावधान किया कि ईराक पर लगे आर्थिक प्रतिबन्ध हटाये जायें उसके विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही न की जाये। खेद की बात है कि अमेंरिका ने इस आग्रह का आदर नहीं किया। बल्कि कुछ दिनो बाद उसने सुरक्षा परिषद को एक तरफ करके ईराक पर आक्रमण कर दिया व सद्दाम हुसैन के शासन का अंत कर दिया।

संदर्भ -
  1. Schuman, International Politics, New York, 1948
  2. Narman A. Grabner, Cold war Diplomacy, 1962.
  3. Libson, Europe in the 19th and 20th Centuries, London, 1949
  4. D.F. Fleming, The Coldwar and its origins, 2 vol, 1961
  5. J.W. Spenier, American Foreign Policy since world War II, 1960
  6. Robert, D. Worth, Soviet Russia in World Politics, 1965

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