अम्लीय वर्षा (Acid Rain) यह आज की घटना नहीं है अम्लीय वर्षा (Acid Rain) को सर्वप्रथम रोबर्ट एन्गस स्मिथ (Robart Angus Smith) ने 1852 में परिभाषित किया था। वर्तमान में औद्योगिक क्षेत्र अम्लीय वर्षा के कारण अधिक प्रभावित होते हैं, जबकि औद्योगिक क्रांति के पूर्व अम्लीय वर्षा का प्रभाव नहीं था।
भारत भी अम्लीय वर्षा के प्रभाव से पृथक नहीं हुआ है। भारतवर्ष में मानव जनित अनेक स्रोत पाये जाते हैं। जो SO2 को निष्कासित करते हैं, जैसे- ऊर्जा उत्पादन, परिवहन एवं घरेलू ऊर्जा जो कि खाना पकाने के लिए उपयोग होती है, अनेक प्रकार के जीवाश्म ईधन का उपयोग। भारतवर्ष में उद्योगों के माध्यम से वर्षा की अम्लीयता में वृद्धि हुई है।
भारत भी अम्लीय वर्षा के प्रभाव से पृथक नहीं हुआ है। भारतवर्ष में मानव जनित अनेक स्रोत पाये जाते हैं। जो SO2 को निष्कासित करते हैं, जैसे- ऊर्जा उत्पादन, परिवहन एवं घरेलू ऊर्जा जो कि खाना पकाने के लिए उपयोग होती है, अनेक प्रकार के जीवाश्म ईधन का उपयोग। भारतवर्ष में उद्योगों के माध्यम से वर्षा की अम्लीयता में वृद्धि हुई है।
अम्लीय वर्षा के हानिकारक प्रभाव
अम्लीय वर्षा से पर्यावरण से सजीव व निर्जीव दोनों ही प्रभावित होते हैं। अम्लीय
वर्षा के हानिकारक प्रभावों के कारण विभिन्न क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ रहा है।
वनस्पति समूहों पर प्रभाव
- पश्चिमी जर्मनी में 16 प्रतिषत वन अम्लीय वर्षा के कारण मर चुके हैं तथा एक करोड़ अस्सी लाख एकड़ वन क्षेत्र अम्लीय वर्षा से बुरी तरह से प्रभावित हैं। अम्लीय वर्षा के कारण कैल्सियम, पोटेसियम, लोहा तथा मैग्नीसियम मिट्टी को छोड़कर अलग हो जाते हैं, जो वनस्पतियों के आवश्यक पोशक तत्व होते है।
- अम्लीय वर्षा के कारण पेड़-पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया मन्द हो जाती है जिससे उनकी पतियाँ पीली पड़ जाती हैं तथा उनकी अभिवृद्धि रूक जाती है।
- मृदा में उपस्थित वैक्टीरिया अम्लीय वर्षा से प्रभावित होते हैं, जिससे फसल उत्पादन घटता है।
- अम्लीय वर्षा में सम्मिलित अम्ल पार्थिव जल से मिलकर बड़े विषैले यौगिकों का निर्माण करते हैं। मनुष्य पेय जल के रूप में इस पानी को पीता है तो उसे पाचन, श्वास से सम्बन्धित बीमारियाँ हो जाती है।
धरातलीय जल स्रोतों पर प्रभाव
नदी, झील, तालाब व समुद्री जल में अम्लीय वर्षा के कारण अम्लता बढ़ने से मछलियाँ मर
जाती है। स्वीडन में 15 हजार झीलें ऐसी हैं जिनमें अब एक भी मछली नही है। अम्लीय वर्षा के कारण
जल में उपस्थित शैवाल, आदि वनस्पतियाँ भी नष्ट होती हैं जिससे तालाब, नदी व समुद्र का
पारिस्थितिक तंत्र ही बिगड़ जाता है। अम्लीय जल के कारण मिट्टी से अल्यूमोनियम अलग होकर जल
के साथ बहकर आस-पास के जल स्रोत में पहुँचता है तथा पानी में घुलकर उनका पानी विषाक्त बना
देता है। ऐसे पानी में मछलियों का दम घुटने के कारण मृत्यु हो जाती है।
भवनों पर प्रभाव
अम्लीय वर्षा का प्रभाव बालू पत्थर व चूना पत्थर या संगमरमर से बने भवनों व मूर्तियों पर
पड़ता है। अम्लीय जल के कारण भवनों की दीवारों में छोटे-छोटे छिद्र हो जाते है। संगमरमर पत्थर
की चमक घट जाती है।
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अम्लीय वर्षा