औद्योगिक संघर्ष के कारण

 यहॉं महत्वपूर्ण विषय है कि औद्योगिक संघर्ष होते ही क्यों हैं? इन औद्योगिक संघर्षों के मूल कारण क्या होते हैं? 

औद्योगिक संघर्ष के कारण

औद्योगिक संघर्षों के प्रमुख कारणों को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है -

  1. पूॅंजीवाद
  2. औद्योगिक संघर्ष के आर्थिक कारण 
  3. औद्योगिक संघर्ष के प्रबंध सम्बन्धी कारक 
  4. औद्योगिक संघर्ष के सामाजिक कारक
  5. औद्योगिक संघर्ष के राजनीतिक कारक
  6. औद्योगिक संघर्ष के मनोवैज्ञानिक कारक

1. पूॅंजीवाद

संघर्षो की पृष्ठभूिम सदैव पूजीवादी अर्थव्यवस्था की दने रही है। यदि हम विश्व के अन्य देशों का अवलोकन करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि जहॉं भी इस प्रकार की अर्थव्यवस्था है वहॉं औद्योगिक संघर्ष अपने चरम पर होती है। अत: हम कह सकते हैं के श्रम और पूंजी के बीच संघर्ष का मूल कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है। जैसे जैसे उत्पत्ति की मात्रा में वृद्धि होती जाती है वैसे श्रम और पूंजी के बीच मतभेद और विवाद उग्र होते जाते हैं।

2. औद्योगिक संघर्ष के आर्थिक कारण 

संघर्ष का द्वितीय कारण आर्थिक है। अत: जब व्यक्ति अपनी सेवाओं का विक्रय करते हैं और अपना कार्य जीवन सेवाओं, सेवाओं के क्रय करने वाले के यहॉं व्यतीत करते हैं, तब उनमें विभिन्न प्रकार का असन्तोष और औद्योगिक अशान्ति का उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक ही है। कर्मचारी विशेषरूप से असन्तोषजनक कार्य, काम करने की स्वस्थ दशायें, आगे बढ़ने के अवसर, सन्तुष्टि प्रदान करने वाला काम, औद्योगिक मामलों में कुछ कहने सुनने का अधिकार मजदूरी की हानि, अत्यधिक काम और मनमाने व्यवहार के प्रति सुरक्षा में रूचि रखते हैं। 

श्रमिकों की ये आशायें समाप्त हो जाती हैं और वह आर्थिक शोषण के ऐसे जाल में फॅंस जाता है जिससे निकलना उसके लिए असम्भव होता है। उद्योगपति श्रमिकों से अधिक से अधिक काम लेते हैं और इसके बदले में कम से कम मजदूरी देते हैं। साथ ही रहने के लिए अस्वाथ्यकर दशायें होती हैं। इस कारण उनमें असंतोष व्याप्त होता है। इसका परिणाम यह होता है कि औद्योगिक संघर्ष का जन्म होता है।  प्रमुख आर्थिक कारण जो औद्योगिक संघर्ष को जन्म देते हैं, उनमें अग्रलिखित को सम्मिलित किया जाता है-

1. अताकिक वेतन प्रणाली - औद्योगिक संघर्ष के कारणों में कम वेतन और मॅंहगाई भत्ते प्राय: अपनी प्रमुख भूमिका निभाते है।। उत्पादों के मूल्यों में दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि हो रही है, किन्तु मॅहगाई भत्त उतना ही दिया जाता है, जो वर्षों पहले दिया जाता था। जो वर्षों पहले दिया जाता था। इससे मजदूर जीवन स्तर को बनाये रखने के लिए अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है। इसका परिणाम यह होता है कि उसमें असन्तोष की भावना का विकास होता है और इसकी परिणति औद्योगिक संघर्षों के रूपों में होती है।

2. दोषपूर्ण बोनस प्रणाली - अनके उद्योगों में बोनस की व्यवस्था सन्तोषजनक नहीं है तथा बोनस अत्यन्त ही कम मात्रा में दिया जाता है, इससे श्रमिकों में असन्तोष की भावना का विकास होता है।

3. भर्ती - औद्योगिक सघंर्षो के मलू कारणों में श्रमिकों को भर्ती पद्धति का भी स्थान है। श्रमिकों की भर्ती या तो मध्यस्थों द्वारा होती है या ठेकेदारों की सहायता से। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि श्रमिक उद्योगपति के साथ वफादारी का निर्वाह करने में अपने को असमर्थ पाता है। मध्यस्थों के स्वार्थ की पूर्ति तभी हो सकती है जब वे श्रमिक और मालिक की दूरी को बनाये रखें। इसका परिणाम यह होता है कि औद्योगिक संघर्षों का जन्म होता है।

4. कार्य की दशाएँ - औद्योगिक संघर्षो का कारण कार्य की दोषपूर्ण दशायें भी हैं जिनके कारण औद्योगिक संघर्षों का जन्म होता है, जैसे - अस्वस्थ वातावरण, असन्तोषजनक सुरक्षा, कैन्टीन की सुविधाएं और काम करने के अधिक घण्टे आदि।

औद्योगिक संघर्ष के प्रबंध सम्बन्धी कारक 

प्रबन्ध सम्बन्धी कारकों ने भी औद्याेि गक संघर्षो को जन्म दिया है। मालिक उद्योगों में ऐसा प्रबन्ध करते हैं, जो श्रमिकों के हित में न हो। प्रबन्ध सम्बन्धी कारकों में अग्रलिखित तत्वों को सम्मिलित किया जा सकता है -

1. अकुशल नेतृत्व - अनके स्वाथ्र्ाी व्यक्ति जो अपने को श्रमिकों का तथाकथित नेता समझाते हैं श्रमिकों को अपने रास्ते से भटका देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि अशिक्षित श्रमिक उनके पीछे हो लेता है और उनके इशारों पर हड़ताल और तालाबन्दी की कार्यवाही करता है। उनका मौलिक उद्देश्य तो अपनी प्रसिद्धि होता है, श्रमिकों की भलाई नहीं। इसका परिणाम यह होता है कि श्रमिक इन्हीं अकुशल नेताओं के कहने मे आकर हड़ताल करने को तत्पर हो जाते हैं तथा अपने पैर में स्वयं कुल्हाड़ी मारकर संस्था को हानि पहुंचाता है।

2. प्रबंध में श्रमिकों का प्रतिनिधित्व - प्रबन्ध में श्रमिकों को स्थान देना वैसे भी असन्तोष का कारण है, किन्तु जब प्रबन्धकों द्वारा श्रमिकों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है तो इससे औद्योगिक असंतोष और अधिक भड़कता है। प्रबन्धकों द्वारा श्रमिकों के साथ जो दुव्यर्वहार किये जाते हैं जैसे - श्रमिकों को अनेक प्रकार से परेशान करना, उन मजदूरों को जो श्रमिक संघों से सम्बन्धित हैं, काम से निकाल देना, श्रमिक संघों को मान्यता न देना, और उन मध्यस्थों की बेईमानी और भ्रष्टाचार जो श्रमिकों को कार्य दिलाते हैं, आदि। इसी प्रकार के और अनेक अमानवीय व्यवहार हैं जो प्रबन्धक श्रमिकों के साथ करते हैं। इन दुव्र्यवहारों के कारण श्रमिकों में असन्तोष की भावना व्याप्त होती है और औद्योगिक संघर्षों का जन्म होता है।

3. सामूहिक सौदेबाजी का अभाव - श्रमिकों का श्रम अस्थायी प्रकृति का होता है। इसका कारण यह है कि काम न मिलने से श्रम समाप्त हो जाता है और इसकी पुन: प्राप्ति करना सम्भव नहीं होता है। साथ ही सामूहिक सौदेबाजी के कारण श्रमिकों और मालिकों के बीच निकट सम्बन्धों की स्थापना नहीं हो पाती। इसका परिणाम यह होता है कि थोड़ी सी कठिनाई होने पर श्रमिक बिना सोचे समझे हड़ताल कर देते हैं।

4. अवकाश से सम्बन्धित कारक - अनके अवस्थाओं में श्रमिकों को मालिकों द्वारा अवकाश नहीं दिया जाता जब कि अवकाश उनके लिए आवश्यक होता है। कभी कभी अवकाश के दिनों की मजदूरी भी प्रबन्धकों द्वारा काट ली जाती है। इससे श्रमिकों में असन्तोष व बीजारोपण होता है और औद्योगिक संघर्षों का जन्म होता है।

5. सेवा शर्तों का अभाव - उद्योगों में अनके सेवा शर्तों की कमी रहती है। इस कमी को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है -
  1. श्रमिकों को बिना किसी सूचना के काम से निकाल देना अथवा छॅटनी, श्रमिकों की सहमति के बिना उनके काम की दशाओं में परिवर्तन कर देना,
  2. श्रमिकों पर जुर्माना कर देना,
  3. श्रमिकों की मजदूरी में अवैधानिक ढंग से कटौती करना। इस सभी कारणों से श्रमिकों में असन्तोष का बीजारोपण होता है और यह असन्तोष औद्योगिक विवाद को जन्म देता है।

औद्योगिक संघर्ष के सामाजिक कारक

पूजींवादी, आर्थिक और प्रबन्धक सम्बन्धी कारक ही औद्योगिक संघर्षों के लिए उत्तरदायी नहीं होते है, अपितु सामाजिक कारक भी औद्योगिक क्षेत्रों में विवाद के लिए उत्तरदायी होते हैं। प्रमुख सामाजिक कारक, जो औद्योगिक संघर्षों के साथ जुड़े होते हैं वे निम्न हैं :-

1. व्यवसाय की व्यापकता - आधुनिक उद्योगों की सबसे बडी़ विशेषता यह है कि ये बड़े व्यापक स्तर पर किये जाते हैं। इसके कारण मालिकों और श्रमिकों के बीच की खाई अत्यन्त चौड़ी हो गई है। उनमें सामाजिक सम्पर्क की स्थापना नहीं हो पाती है। इससे मालिकों और श्रमिकों के सम्बन्ध मात्र औपचारिक रह जाते हैं, जिससे औद्योगिक संघर्षों का जन्म होता है।

2. बुरी आवास व्यवस्था और निम्न जीवनस्तर - श्रमिको के निवास की दशाएं अत्यन्त ही घृणित होती हैं और उनके रहन सहन का स्तर अत्यन्त निम्न होता है। इससे उनमें असन्तोष और रोष तो व्याप्त रहता ही है। साथ ही असन्तोष और रोष की मात्रा में तब और वृद्धि हो जाती है जब इस कार्य के लिए नेता मालिकों को उत्तरदायी ठहरा देते हैं। परिणामस्वरूप श्रमिकों में औद्योगिक संघर्ष का जन्म होता है।

3. सामाजिक सुरक्षा की कमी - प्रत्यके समाज में व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाती है। व्यक्ति के सामने अनेक सामाजिक कठिनाइयां होती है,जिनमें वह सामाजिक सुरक्षा का अनुभव करता है। ये कठिनाइयां इस प्रकार हैं, - बेरोजगारी की समस्या, वृद्धावस्था की समस्या, दुर्घटनाएं रोग तथा बीमारी से सम्बन्धित समस्याएं आदि। श्रमिकों को इन असुरक्षाओं से बचाने का ऐसा कोई आश्वासन नहीं मिलता जो स्पष्ट और सरल हो। इससे उनमें असन्तोष व्याप्त होता है और औद्योगिक संघर्षों का जन्म होता है।

औद्योगिक संघर्ष के राजनीतिक कारक

औद्योगिक विवादों के लिए राजनीतिक कारणों का महत्व सबसे ज्यादा है। इसमें राजनीतिक दलों का महत्व और भी अधिक है। इसका कारण यह है कि ये दल श्रमिकों को अपने विश्वास में लेना चाहते हैं। इसके लिए छोटी सी घटना को भी बढ़ा-चढ़ाकर आगे ले जाते हैं और वे इसके लिए हड़ताल अनशन आदि करने के लिए अग्रसर होते हैं और इनमें वे श्रमिकों को भी मिला लेते हैं। 

इसके साथ ही श्रम संघ राजनीतिक दलों के प्रभाव में रहते हैं और राजनैतिक उद्देश्यों के प्राप्ति के लिए हड़ताल आदि करवाते हैं।

औद्योगिक संघर्ष के मनोवैज्ञानिक कारक

औद्योगिक संघर्षो के मलू में मनोवैज्ञानिक कारण होते है। मनोवैज्ञानिक कारकों का औद्योगिक सम्बन्धों को सुधारने या खराब करने में महत्वपूर्ण हाथ होता है। मानव सिर्फ भूख और प्यास का पुतला ही नहीं होता, उसमें इन्सानियत होती है। साथ ही वह आत्मसम्मान और आदर का भी भूखा होता है। सन्तोष बाहरी तत्व नहीं है, अपितु इसकी उत्पत्ति मानव की अन्तरात्मा से होती है। अत: आन्तरिक कारण ही इसकी सन्तुष्टि के लिए उत्तरदायी होते हैं। यह श्रमिक उसकी आन्तरिक भावना होती है कि वह काम को अच्छा समझता है या बुरा। ऐसा देखा जाता है कि अग्रलिखित अधिकांश कारण औद्योगिक संघर्षों का जन्म देते हैं-
  1. ऐसी परिस्थितियों का अभाव जिनसे श्रमिक अपने कार्यों के सम्पादन में गर्व का अनुभव करें,
  2. ऐसे वातावरण की कमी जिससे श्रमिक अपने कार्यों के सम्पादन में गर्व का अनुभव करें,
  3. उन्हें अपने काम को करने में आत्मसन्तुष्टि नहीं मिल पाती, तथा
  4. उत्पादन में श्रमिकों की भावनाओं को ठेस लगती है और वे औद्योगिक संघर्ष करने को विवश होते हैं।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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