बाल श्रम रोकने के उपाय एवं प्रयास

बाल श्रम की समाप्ति के लिए बाल श्रम से सम्बन्धित कानूनों को उचित ढंग से लागू करने की जरूरत है। इस संदर्भ में इस मुद्दे के प्रति संवेदनशीलता और उन्मुखता का होना बहुत महत्वपूर्ण है। सार्थक और कारगर ढंग से निरीक्षण को ध्यान में रखते हुए सुझाव दिया गया कि निरीक्षण का काम अचानक किया जाना चाहिए। अगर ऐसा होगा तभी निरीक्षण के समय इस बात के ठीक सबूत मिल सकेंगे कि क्या वहां बाल मजदूर काम कर रहे है। 

यह भी देखा गया है कि कानून का उल्लंघन करने वाले मालिकों के खिलाफ प्राय: मजदूर भी बतौर सबूत के आगे नहीं आते, बावजूद इस सच्चाई के कि वे निरीक्षण के समय मालिकों द्वारा बाल मजदूरों को काम पर लगाने सम्बन्धी बयान देते है। इसलिए जरूरी है कि कानून के उल्लंघन के लिए मुकदमा शुरू करने से पहले पर्याप्त दस्तावेजी सबूत जुटा लिया जाएँ। जिन परिस्थितियों में और सीमाओं में निरीक्षकों को काम करना पड़ता है उसमें यह बहुत कठिन है कि कारगर नतीजे सामने आ सके। 

इनके पास आदमियों की कमी होती है, इनकी पहुंच बहुत सीमित होती है, मौजूदा कानूनों के अन्तर्गत इन्हें बहुत कम सुरक्षा मिलती है, समय की कमी होती है, बजट में जो प्रावधान है, वे अपर्याप्त होते है, सीमिति जवाबदेही होती है और ये सारी चीजें उन्हें निर्णायक तथा समय पर हस्तक्षेप करने से रोकती है। 

अन्तिम विश्लेषण में यह यही पाते हैं कि जब तक राज्य द्वारा किए जाने वाले सचेत प्रयासों को आम लोगों का समर्थन नहीं मिलेगा, तब तक बाल श्रम का इस्तेमाल करने वाले हतोत्साहित नहीं होगें और इसे खत्म नहीं किया जा सकेगा। 

बाल श्रम रोकने के उपाय एवं प्रयास 

1. चाइल्ड हेल्प लाइन : संकटग्रस्त, बेसहारा, लावारिस बच्चों की सहायता हेतु एक चाइल्ड लाइन की स्थापन की गयी है जो एक विशेष नि:शुल्क टेलीफोन नम्बर 1098 पर आधारित 24 घंटे कार्यरत चाइल्ड लाइन वर्तमान में देश के 73 शहरों मे कार्यरत है। जिसका उद्देश्य 0-18 वर्ष तक के संकट ग्रस्त बच्चों की तत्काल सहायता के अतिरिक्त ऐसे बच्चों की समाज में पुनस्र्थापना व पुनर्वास के प्रयास करना भी है। इन्ही प्रयासों में बाल श्रम उन्मूलन हेतु पैरोकारों, जन सुनवाई, व बाल श्रमिकों की रिहाई है। 

2. चिल्ड्रेन इन नीड आफ केयर एण्ड प्रोटेक्शन : महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार की यह योजना विशेष रूप से उन बच्चों के लिये है जो घरों, ढाबों व मोटर गैराजों में कार्यरत है। योजना के तहत मुख्य धारा से जोड़ने वाली शिक्षा योजनाओं प्रशिक्षण, चिकित्सीय सहायता योजना आदि का प्रावधान है। 

3. सेन्ट्रल एडाप्सन रिसोर्स एजेन्सी 1990 : महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार के तहत गठित एक स्वायतशाषी संस्था है। ये संस्था बेसहारा बच्चों को गोद लिए जाने की प्रक्रिया के नियमन व सुचारू बनाने के लिये जिम्मेदार है। 

4. बाल श्रम पर राष्ट्रीय स्रोत केन्द्र 1993  : इस राष्ट्रीय स्रोत केन्द्र ने बाल मजदूरी पर एक महत्वपूर्ण डाटाबेस तैयार किया है और अब यह बाल श्रम कार्यक्रमों को लागू करने में श्रम मंत्रालय को सहयोग पहुंचा रहा है। इस केन्द्र की दो अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियाँ है : अनुसंधान एवं प्रशिक्षण देने के साथ बाल मजदूरी को समाप्त करने के लिये कारगर योजना को सुझाव देना है। 

5. आश्रय गृह 2000 : किशोर न्याय अधिनियम (केयर एण्ड प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन) कानून के तहत कार्यरत आश्रय गृह दो प्रकार के बच्चों को आश्रय प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है जो (1) संकट ग्रस्त बच्चे। (2) काननू के विरूद्ध कृत्यों के लिप्त बच्चे। 

6. सर्व शिक्षा अभियान  2001-02 : मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार की यह योजना बच्चों के शैक्षिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है एवं 06-14 वर्ष के आयु के सभी बच्चे को 2010 तक यह सुनिश्चित करना था कि सभी बच्चे शिक्षा जारी रखने के साथ लड़के एवं लड़कियों के बीच अन्तराल और सामाजिक वर्ग विशेषताएं समाप्त हो। 

7. इण्डस बाल श्रम परियोजना 2004  : बाल मजदूरी उन्मूलन हेतु भारत-अमेरिका सहयोग के अन्तर्गत जारी संयुक्त वक्तव्य (अगस्त 2000) की फालोअप कार्यवाही के रूप में चलाई जा रही है। इस परियोजना की शुरूआत 10 फरवरी 2004 में की गयी इस परियोजना के अन्तर्गत अब तक लगभग 80,000 से अधिक बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा गया है। 

8. राष्ट्रीय बाल कार्य योजना 2005 : इस कार्य योजना के बाल अधिकारों की सुरक्षा हेतु राष्ट्र व राज्य स्तरों पर बाल आयोग व बाल न्यायालयों के गठन का प्रावधान है। 

बाल श्रम पर आयोग एवं समितियां 

1. राजकीय श्रम आयोग 1881 : अंग्रेज सरकार द्वारा मजदूरों के लिए गठित प्रथम आयोग बनाया था जिसकी अध्यक्षता विºटले ने किया था। इसमें बाल श्रमिकों के व्यापक इस्तेमाल को एक बुराई के रूप में चिन्ºित किया गया था। 

2. धातु उद्योग से सम्बन्धित आयोग 1906 : इसके अन्तर्गत बच्चों, औरतों की दिन एवं रात में कार्य पर लगाने के परीक्षण हेतु आयोग का सृजन किया गया। 

3. कारखाना आयोग 1907 : इसका उद्देश्य उद्योगों में कार्यरत बाल श्रमिकों की दशा पर नियंत्रण करना था। 

4. श्रम पर शाही आयोग 1929 : इस आयोग ने देश के विभिन्न हिस्सों में बीड़ी, कपड़ा, कालीन, माचिस तथा अन्य उद्योगों में बाल श्रम की मौजूदगी की जानकारी दी। आयोग ने सिफारिश की कि 10वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम करने पर कानूनी रूप से प्रतिबंध हो और काम करने वाले सभी व्यक्तियों का नाम वेतन रजिस्टर मेंं चढ़ाया जाए। 

5. राष्ट्रीय बाल श्रम आयोग 1979 : इसके अन्तर्गत स्पष्ट रूप से प्राकृतिक विकास व शिक्षा के विषय को गंभीर माना है। तथा सातवीं योजना में बच्चों को कार्यस्थल में ही अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करने की सिफारिश की है। 

6. राष्ट्रीय बाल आयोग 2003 : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तर्ज पर देश में एक राष्ट्रीय बाल आयोग का गठन किया गया है जो बच्चों के विकास सम्बन्धी योजनाएं बनाएगा। आज पर्यटन के नाम पर बच्चों को बाल वेश्यावृत्ति में भी फंसाया जा रहा है। इस तरह की अनेक समास्याओं का निदान करना आयोग का कार्य है जिससे बच्चों का सर्वागीण विकास संभव हो सके। 

7. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग 2007 : यह आयोग काम पर रखने के दौरान बाल अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें आने पर सम्बद्ध विभाग पर बाल श्रमिकों के बचाव और रिहाई के लिए दबाव डालता है। यह बाल श्रमिकों के शोषण पर सार्वजानिक सुनवाई आयोजित करता है तथा रिहा किए गये बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करने को कहता है। 

8. भारतीय कारागार समिति 1919-20 : इसका उद्देश्य युवा अपराधियों को अलग से उपचार की व्यवस्था पर बल दिया जिसका प्रमुख उद्देश्य बालकों के संरक्षण तथा युवा अपराधियों को न्याय संगत मार्ग दर्शन प्रदान करना था। 

9. श्रम विधान समिति 1944 : इस समिति ने सिफारिश की कि- बाल मजदूरों को काम पर लेने से रोकने के लिए जो उपाय अपनाए गए हैं, वे पर्याप्त नहीं है। औद्योगिक रोजगार से बच्चों को अलग करने के लिए आवश्यक सकरात्मक उपाय किए जाएँ। 

10. श्रम जांच समिति 1946 : इसके अन्तर्गत बालकों को रोजगार में प्रतिबंध से सम्बन्धित कानूनी रूपों का पालन न करके पर दण्ड का न देना पाया गया। 

11. बाल श्रम पर हरबंश सिंह समिति 1977 : इसने अपने प्रतिवेदन में बालकों में नियोजन की मौजूदा कानूनी संरचना बिखरी हुई और टुकड़ों में बंटी हुई है। इस समिति ने एकल स्वरूप के कानून बनाने की सिफारिश की है। 

12. गुरूपदस्वामी समिति  1979: इस समिति ने सिफाारिश की, कि (क) बाल श्रम सलाहकार परिषद् की स्थापना की जाए, (ख) रोजगार में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु तय की जाए, (ग) काम के घंटे, काम की स्थितियों आदि निश्चित करते समय ‘बालक और ‘किशोर की समान परिभाषाएँ स्वीकार की जाएँ, (घ) कानूनों को लागू करने की व्यवस्था मजबूत की जाए; तथा (च) एक कारगर शिक्षा नीति तैयार की जाए। 

13. सनत मेहता समिति 1986: इसने रोजगार में बच्चों के प्रवेश के लिए समान आयु की जरूरत पर बल दिया। यह समिति काम के साथ शिक्षा को जोड़ना चाहती थी। 

14. बाल श्रम तकनीकी सलाहकर समिति 1886: इस समिति का उद्देश्य है कि बच्चों के कारखानों या खदानों में या हानिकारक रोजगारों में कार्य न करने दिया जाए। जहां पर बच्चे सामान्य कार्यो में कार्य कर रहे हो तो वहां पर सुनिश्चित किया जाय कि कार्य बाल श्रम तकनीकी सलाहकर समिति के दिये गये निर्देशों के अनुरूप हो रहा है। 

15. केन्द्रीय बाल श्रम अनुश्रवण समिति : इस समिति का उद्देश्य राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजनाओं से सम्बन्धित सभी प्रकार के पर्यवेक्षण मूल्यांकन कर उनका अनुश्रवण करने का उत्तर दायित्व है। 

16. बाल श्रमिक प्रकोष्ठ 1990 : श्रम मंत्रालय तथा यूनीसेफ की सहायता से राष्ट्रीय श्रम संस्थान में एक बाल श्रम सेल खोला गया जिसका उद्देश्य बाल श्रमिकों को सम्बन्ध में जानकारी एकत्र करना तथा उसकी मुक्ति हेतु प्रयास करना है।

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