भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति में अंतर

संस्कृत और संस्कृति दोनों ही शब्द ‘संस्कार’ से बने है। संस्कार का अर्थ है कुछ कृत्यों (rituals)की पूर्ति करना। एक हिंदू जन्म से ही अनेक प्रकार के संस्कार करता है, जिनमें उसे विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभानी पड़ती है। संस्कृति का अर्थ होता हे विभिन्न संस्कारों के द्वारा सामूहिक जीवन के उद्देश्यो की प्राप्ति। यह परिमार्जन की एक प्रक्रिया है। संस्कारों को सम्पन्न करके ही एक मानव सामाजिक प्राणी बनता है। 

भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति

अमरीकन समाजशास्त्री आगबर्न ने संस्कृति को भौतिक और अभौतिक दो भागों में बाँटा है। उनके इस वर्गीकरण को अन्य वैज्ञानिक ने भी स्वीकार किया है-

1. भौतिक संस्कृति

भौतिक संस्कृति के अंतर्गत मानव द्वारा निर्मित सभी भौतिक एवं मूर्त वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें हम देख सकते हैं, छू सकते हैं और इंद्रियांे द्वारा जिनका आभास कर सकते हैं। भौतिक संस्कृति में हम घड़ी, पेन, पंखा, मोटर, मशीन, औजार, वस्त्र, वाद्य-यंत्र, रेल, जहाज, वायुयान, टेलीफोन, आदि अनेक वस्तुओं को गिन सकते हंै। भौतिक संस्कृति के सभी तत्व को गिनना सरल नहीं है। सरल एवं आदिम समाजों की अपेक्षा जटिल एवं आधुनिक समाज में इनकी संख्या अधिक है। इसी प्रकार से पुरानी पीढ़ी की अपेक्षा नयी पीढ़ी के पास भौतिक संस्कृति अधिक है।

भौतिक संस्कृति की विशेषताएँ

  1. भौतिक संस्कृति मूर्त होती है। 
  2. भौतिक संस्कृति संचयी है, अतः इसके अंगों में निरंतर वृद्धि होती जाती है। 
  3. चूँकि भौतिक संस्कृति मूर्त है, अतः उसे मापा जा सकता है।
  4. भौतिक संस्कृति की उपयोगिता एवं लाभ का मूल्यांकन सरल है।
  5. भौतिक संस्कृति में परिवर्तन शीघ्र होते हैं।
  6. एक स्थान से दूसरे स्थान पर संस्कृति का प्रसार होने पर भौतिक संस्कृति में बिना परिवर्तन हुए ही उसे ग्रहण किया जा सकता है। 

2. अभौतिक संस्कृति

मैकाइवर एवं अन्य कइ्र समाज-वैज्ञानिक ने संस्कृति में केवल अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया है। सोरौकिन इसे भावात्मक संस्कृति कहते हैं। अभौतिक संस्कृति के अंतर्गत उन सभी सामाजिक तथ्यों कोसम्मिलित किया जाता है जौ अमूर्त है, जिनका कोई माप तौल, आकार व रंग-रूप नहीं होता, इंद्रियां द्वारा जिनका स्पष्र नहीं होता वरन् जिन्हें हम केवल महसूस कर सकते हैं, वह हमारे विचारों एवं कार्यों में निहित है। 

सामान्यतः अभौतिक संस्कृति में हम सामाजिक विरासत में प्राप्त विचार, विश्वास, मानदण्ड, व्यवहार प्रथा, रीति-रिवाज-कानून, मनौवृत्तियाँ, साहित्य, ज्ञान, कला, भाषा, नैतिकता, आदि को सम्मिलित करते  है। अभौतिक संस्कृति समाजीकरण एवं सीखने की प्रक्रिया द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होती है।

अभौतिक संस्कृति की विशेषताएँ -

  1. अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है।
  2. चूंकि अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है, अतः उसकी माप नहीं की जा सकती।
  3. अभौतिक संस्कृति-जटिल होती है।
  4. अभौतिक संस्कृति की उपयोगिता एवं लाभ का मूल्यांकन भौतिक वस्तुओ  की तरह प्रकट नहीं किया जा सकता है।
  5. अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन बहुत कम और धीमी गति से होते हैं।
  6. सांस्कृतिक प्रसार के दौरान अभौतिक संस्कृति के तत्व को उसी रूप में ग्रहण नहीं किया जाता वरन् उनमें थोंड़ा बहुत परिवर्तन आ जाता है।
  7. अभौतिक संस्कृति का संबंध मानव के आध्यात्मिक एवं आंतरिक जीवन से है।

भौतिक व अभौतिक संस्कृति में अंतर

भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति सम्पूर्ण संस्कृति के दो अंग है। इनमें निम्नांकित अंतर पाये जाते हैं -
  1. अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती हे जबकि भौतिक संस्कृति मूर्त होती है।
  2. अभौतिक संस्कृति भौतिक संस्कृति की अपेक्षा धीमी गति से परिवर्तित हौती है, अतः वह भौतिक संस्कृति की अपेक्षा स्थिर हौती है।
  3. अभौतिक संस्कृति का संबंध मानव के आंतरिक जीवन से है जबकि भौतिक संस्कृति का संबंध बाह्य जीवन से।
  4. अभौतिक संस्कृति में वृद्धि धीमी गति से होती है जबकि भौतिक संस्कृति में तीव्र गति से। उदाहरण के लिए, पिछले डैढ़ सो वर्षों में कितने ही भौतिक आविष्कार हुए, कितने ही प्रकार की नई मशीनें एवं नयी वस्तुएँ बनी, जबकि हमारे विचारो, प्राथाओं, लौकरीतियों, आदि में कौई विषैष परिवर्तन नहीं हुआ है।
  5. अभौतिक संस्कृति की अपेक्षा भौतिक संस्कृति शीघ्र ग्राह्य है। जब दो भिन्न संस्कृति समूह संपर्क में आते हैं तौ एक-दूसरे की भौतिक संस्कृति शीघ्र स्वीकार कर ली जाती है, बजाय उनकी प्राथाओं एवं रीति-रिवाजौं कै।
  6. भौतिक संस्कृति के मूर्त होने से उसका सरलता से माप किया जा सकता है, जबकि अभौतिक संस्कृति के अमूर्त होने से उसका माप-तौल नहीं किया जा सकता।
  7. भौतिक संस्कृति सरल होती है, जबकि अभौतिक संस्कृति की प्रकृति जटिल है।
  8. भौतिक संस्कृति संचयी होती है, आविष्कारों के कारण उसमें वृद्धि होती जाती है, अभौतिक संस्कृति में भौतिक के समान संचय एवं वृद्धि नहीं होती है।
  9. भौतिक संस्कृति का मूल्यांकन लाभ एवं उपयोंगिता के आधार पर किया जाता है, अभौतिक संस्कृति का मूल्यांकन भौतिक वस्तुओं  की तरह उपयोगिता से नहीं किया जा सकता क्यौंकि इसका संबंध मानव के आत्मिक पक्ष से हे जिसे महसूस किया जा सकता है, किंतु मापा नहीं जा सकता।

2 Comments

Previous Post Next Post