दलीय व्यवस्था का वर्गीकरण

आधुनिक समय में दल-व्यवस्थाओं का राजनीतिक समाज में महत्वपूर्ण स्थान है। विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां दल नहीं है। विश्व के सभी देशों में किसी न किसी रूप में दलीय प्रणाली अवश्य विद्यमान है। राजनीतिक व्यवस्था के स्वरूप व संरचना तथा राजनीतिक दलों की प्रकृति, उद्देश्यों, संरचना आदि के आधार पर विश्व में अनेक दलीय-प्रणालियां विद्यमान हैं। 

अनेक विद्वानों ने राजनीतिक दलों की विशेषताओं, दलों के पारस्परिक सम्बन्ध, दल का इतिहास, राजनीतिक व्यवस्था की संरचना, सामाजिक संरचना व संस्कृति, दलों की विचारधारा, दलों की संख्या, दलों के संगठन आदि के आधार पर दलीय-व्यवस्थाओं का अनेक भागों में वर्गीकरण किया है। 

एलेन बाल ने दलीय-व्यवस्था को (i) अस्पष्ट द्विदलीय पद्वतियां (ii) सुस्पष्ट द्विदलीय पद्धतियां (iii) कार्यवाहक बहुदलीय पद्धतियां (iv) अस्थिर बहुदलीय पद्धतियां (v) प्रभावी दल पद्धतियां (vi) एकदलीय पद्धतियां तथा (vii) सर्वाधिकारी एकदलीय पद्धतियां, सात भागों में बांटा है। ऑमण्ड ने दलीय व्यवस्था को सत्तावादी, गैर-सत्तावादी, प्रतिस्पर्धात्मक दो दलीय तथा प्रतिस्पर्धात्मक बहुदलीय में बांटा है। 

लॉ पालोम्बरा तथा वीनर ने दल प्रणालियों को प्रतियोगी तथा अप्रतियोगी दल प्रणालियां दो भागों में बांटा है। जॅम्प जप ने दलीय व्यवस्था को (i) अस्पष्ट द्वि-दलीय (ii) स्पष्ट द्वि-दलीय (iii) बहुदलीय (iv) वर्चस्ववादी (v) उदार एक-दलीय (vi) संकीण एक-दलीय (vii) सर्वाधिकारवादी व्यवस्थाओं में बांटा है। 

आज अनेक विद्वानों ने दलों की संख्या के आधार पर भी दलीय-व्यवस्थाओं को तीन भागों में बांटकर उनके उपवर्गों के अन्तर्गत सभी दल-व्यवस्थाओं को समेट दिया है। आज भी मोरिस डूवेरजर के त्रिस्तरीय वर्गीकरण को ही प्रमुख स्थान प्राप्त है। 

दलीय व्यवस्था का वर्गीकरण

इस त्रिस्तरीय वर्गीकरण में दलों की संख्या के आधार पर दलीय-व्यवस्थाओं को निम्नलिकखत तीन भागों में बांटा गया है :-
  1. एकदलीय प्रणाली (Single Party System)
  2. द्विलीय प्रणाली (Bi-Party System)
  3. बहु-दलीय प्रणाली ;Multi-Party System)

1. एकदलीय प्रणाली

एकदलीय प्रणाली ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें शासन का सूत्र एक ही राजनीतिक दल के हाथों में रहे। कर्टिस ने इसको परिभाषित करते हुए कहा है-”एकदलीय पद्धति की यह विशेषता है कि इसमें सत्तारूढ़ दल का या तो सभी अन्य गुटों पर प्रभुत्व होता है जो सभी राजनीतिक विरोधों को अपने में समा लेने का प्रयास करता है, या वह बहुत ही अतिवादी स्थिति में उन सभी विरोधी गुटों का दमन कर देता है जिन्हें प्रति क्रांतिकारी या शासन के प्रति तोड़फोड़ करने वाला दल समझा जाता है, क्योंकि उनमें राष्ट्रीय इच्छा को विभाजित करने वाली शक्तियां होती हैं।” इस व्यवस्था के अन्तर्गत केवल एक ही दल को कार्य करने की अनुमति प्राप्त होती है और सरकार पर उसी का वर्चस्व लम्बे समय तक भी बना रह सकता है। 

यह व्यवस्था सर्वाधिकारवादी और लोकतन्त्रीय दो प्रकार की होती है। भारत में 1967 तक लोकतन्त्रीय व्यवस्था का प्रचलन रहा। अन्य दलों के होते हुए भी वहां पर केन्द्र सरकार स्वतन्त्रता के बाद 1967 तक कांगे्रस की ही रहीं। इस प्रकार की दल व्यवस्थाएं भारत, जापान, मैक्सिको, कीनिया, ब्राजील आदि देशों में है। इसके विपरीत सर्वाधिकारवादी एक-दलीय व्यवस्थाएं इटली, जर्मनी, पुर्तगाल, चीन, सोवियत संघ, पोलैण्ड, हंगरी, वियतनाम, उत्तरी कोरिया, क्यूबा, पूर्वी जर्मनी, बुलगारिया, चैकोस्लोवाकिया, अलबानिया, स्पेन आदि देशों में रही है और कुछ में तो अब भी विद्यमान है।

एकदलीय प्रणाली के गुण

  1. विभिन्न दलों के संघर्ष के अभाव में यह राष्ट्रीय एकता को कायम रखती है, क्योंकि सभी नागरिक एक ही विचारधारा से बंधे रहते हैं।
  2. एक ही दल की कार्यपालिका तथा मन्त्रिमण्डल होने क कारण सह स्थायी सरकार की जनक है।
  3. किसी दूसरे दल के प्रभाव के बिना इसमें सुदृढ़ व मजबूत शासन की स्थापना होती है।
  4. लम्बे समय तक एक ही सरकार के रहने के कारण इसमें दीर्घकालीन योजनाओं को लागू करना संभव है।
  5. सरकार के सदस्यों में पारस्परिक विरोध न होने के कारण शासन के निर्णय शीघ्रता से लिए जाते हैं जिससे शासन में दक्षता आती है।
  6. ये गुटबन्दी की कमियों से सर्वर्था दूर है।

एकदलीय प्रणाली के दोष 

  1. यह प्रणाली नागरिकों की स्वतंत्रता का हनन करने वाली होने के कारण अलोकतांत्रिक है।
  2. यह प्रणाली निरंकुशता की जनक है।
  3. इसमेंं सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकता।
  4. इसमें मनुष्यों के व्यक्तित्व का विकास नहीं हो सकता।
  5. यह लोगों को राजनीतिक शिक्षा देने में असमर्थ है।
  6. इसमें विरोधी दल को सकारात्मक भूमिका की अनुपस्थिति है।
  7. इसमें चुनाव एकमात्र ढोंग है।
  8. यह बहुमत पर आधारित प्रणाली नहीं है।
उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है कि एकदलीय प्रणाली एक तरह से तानाशाही शासन व्यवस्था की ही परिचायक है। जिन देशों में यह विद्यमान है, वहां नागरिकों की स्वतन्त्रता का हनन हो रहा है, अधिकसारों के नाम पर नागरिकों पर कर्त्तव्य थोपे जा रहे हैं। इस प्रणाली की तानाशाही ने ही सोवियत संघ को बिखेर दिया था। तानाशाही के बल पर शासन को चलाना और वैधता बनाए रखने का प्रयास कदापि सफल नहीं हो सकता। जिस देश में जनतन्त्रीय भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है, वहां पर थोड़ी सी भी ढील मिल जाने पर जनता उस शासन का तखता ही पलट देती है। निरन्तर शक्ति बनाए रखना ही इस शासन प्रणाली के अस्तित्व का एक मात्र आधार है। विश्व में चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जहां यह प्रणाली लम्बे समय से कार्य कर रही है। आज आइवरी कोस्ट, केन्या, मलावी, जांबिया, लाइबेरिया, गिनी, सोवियत संघ, घाना आदि देशों में इस शासन प्रणाली के विनाश का उदाहरण हमारे सामने यह तर्क प्रस्तुत करता है कि जनसहभागिता के अभाव में एकदलीय प्रणालियां अधिक दिन तक चलने वाली नहीं हैं, देर-सवेर इनका अन्त अवश्यम्भावी है।

2. द्वि-दलीय प्रणाली

द्वि-दलीय राजनीतिक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें शासन का सूत्र दो दलों के हाथ में रहता है। ये दोनों राजनीतिक दल इतने सशक्त होते हैं कि किसी तीसरे दल को सत्ता में नहीं आने देते। इन दो दलों के अतिरिक्त अन्य दलों की राजनीतिक व्यवस्था में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती। ब्रिटेन तथा अमेरिका द्वि-दलीय व्यवस्था के सर्वोंत्तम उदाहरण हैं। ब्रिटेन में लम्बे समय से कंजर्वेटिव पार्टी तथा लेबर पार्टी ही कार्यरत् है। इसी तरह अमेरिका में लम्बे समय से दो ही दलों - डैमोक्रेटिक तथा रिपब्लिकन का वर्चस्व है। 

इंग्लैण्ड में साम्यवादी दल तथा उदारवादी दल भी हैं, लेकिन उनका कोई महत्व नहीं है, अमेरिका और ब्रिटेन में इन दो दलों को छोड़कर कभी किसी अन्य दल को सरकार बनने का अवसर नहीं मिला है। इनमें से एक दल तो सत्तारूढ़ रहता है, जबकि दूसरा दल अल्पमत में होने के कारण विरोधी दल की भूमिका अदा करता है। 

राजनीतिक शक्ति का द्वि-दलीय विभाजन होने के कारण ही इसे द्वि-दलीय प्रणाली कहा जाता है। बेल्जियम, आयरलैण्ड तथा लकजमबर्ग, पश्चिमी जर्मनी, कनाडा आदि देशों में भी द्वि-दलीय व्यवस्थाएं ही प्रचलित हैं।

द्वि-दलीय प्रणाली के गुण

  1. इसमें सरकार स्थिर होती है, क्योंकि इसमें मन्त्रिमण्डल और विधानमण्डल दोनों में एक ही दल का बहुमत होता है। कठोर दलीय अनुशासन के कारण न तो मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास किया जा सकता है और न ही समय पूर्व चुनाव कराए जा सकते हैं।
  2. इसमें सरकार बहुमत पर आधारित होने के कारण अधिक दृढ़ या शक्तिशाली होती है। इसी कारण वह अपनी नीति को आसानी से लागू कर सकती है। बिलों पर वाद-विवाद करते समय मन्त्रिमण्डल को बहुमत के कारण अधिक कठिनाई से बिन पास करवाने नहीं पड़ते। प्रत्येक बिल सरलता से पास हो जाता है।
  3. इसमें स्थायी सरकार होने के कारण दीर्घकालीन योजनाएं लागू की जा सकती हैं और नीति को भी प्रभावी रखा जा सकता है।
  4. इसमें सरकार अच्छे या बुरे शासन के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, क्योंकि मन्त्रीमण्डल मेंं एक ही दल के सदस्य होते हैं। अत: यह प्रणाली उत्तरदायी सरकार को जन्म देती है।
  5. यह जनमत की भावना पर आधारित प्रणाली है। इसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से सरकार का चुनाव करती है। जनता की इच्छा के अनुसार ही कोई राजनीतिक दल सत्तारूढ़ होता है।
  6. स्पष्ट बहुमत के कारण इसमें सरकार बनाना आसान होता है। इसी कारण यह बहुदलीय प्रणाली की तरह भ्रष्ट तरीकों से सरकार बनाने के दोषों से जनता को राजनीतिक शिक्षा भी मिलती है।
  7. इसमें संगठित विरोधी दल होता है जो सरकार की रचनात्मक आलोचना करके सरकार को जनता की इच्छा का ध्यान दिलाता रहता है। इससे सरकार जन-इच्छा के प्रति जागरूक बनी रहती है।
  8. इसमें निरंकुशता की भावना नहीं है। शासन का संचालन जनतंत्रीय भावनाओं को ध्यान में रखकर ही किया जाता है। 

द्वि-दलीय प्रणाली के दोष

  1. इसमें मन्त्रिमण्डल की तानाशाही की स्थापना हो जाती है, क्योंकि विधानमण्डल में मन्त्रिमण्डल का बहुमत रहने के कारण हर बिल को पास कराने में सुविधा रहती है।
  2. इसमें विधानमण्डल मन्त्रिमण्डल के हाथों का खिलौना बनकर रह जाता है, क्योंकि बहुमत के नशे में मन्त्रिमण्डल विधानमण्डल पर हर अनुचित व उचित दबाव डाल सकता है।
  3. इसमें मतदाताओं की स्वतन्त्रता सीमित हो जाती है, क्योंकि उनके सामने दो ही दल होते हैं, जिनमें से एक को ही वे चुन सकते हैं। ;4द्ध इसमें सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता, क्योंकि जटिल सामाजिक संरचना में जन-प्रतिनिधित्व के लिए कई दलों का होना आवश्यक होता है।
  4. इसमें सारा देश दो परस्पर विरोधी गुटों या विचारधाराओं में बंट जाता है, जिससे राष्ट्रीय एकता को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस प्रणाली में निर्वाचकों की स्वतन्त्रता सीमित हो जाती है और संसद की स्थिति मन्त्रिमण्डल के हाथों में एक खिलौने जैसी हो जाती है। लेकिन फिर भी यह प्रणाली सर्वोत्तम मानी जाती है। संसदीय व अध्यक्षात्मक सरकारों की सफलता के लिए इसका होना बहुत आवश्यक है। स्थिर प्रशासन व उत्तरदायी सरकार के रूप में आज यह प्रणाली अमेरिका और ब्रिटेन में सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। अत: नि:संदेह रूप से यह प्रणाली बहुत ही महत्वपूर्ण है।

3. बहुदलीय प्रणाली

जिस देश में दो से अधिक राजनीतिक दल ऐसी स्थिति में हों कि चुनाव में उनमें से किसी को स्पष्ट बहुमत न मिल पाए, वहां बहुदलीय प्रणाली मिलती है। इससे सरकार एक दल की भी बन सकती है और कई दलों को मिलाकर सांझा सरकार भी बन सकती है। सांझा सरकार बनने का प्रमुख कारण यह होता है कि इसमें किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता, क्योंकि वोट विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व बल करने वाली पर्टियों में वितरित हो जाते हैं। ऐसी दल प्रणाली विश्व के अनेक देशों में पाई जाती हैं। भारत इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। यह दल प्रणाली-स्थायी और अस्थायी दो तरह की होती है। स्थायी बहुदलीय प्रणाली वह है जिसमें अनेक दल सत्ता के लिए संघर्ष तो करते हैं, लेकिन उनका ध्येय सरकार चलाने के साथ-साथ यह भी रहता है कि राजनीतिक व्यवस्था में अस्थिरता न आए। स्विट्जरलैंण्ड में ऐसी ही प्रणाली है। वहां पर सोशल डैमोक्रेटस, रेडिकल डैमोक्रेटस, लिब्रल डैमोक्रेट ओर साम्यवादी दल राजनीतिक विघटन की स्थिति पैदा किए बिना ही सत्ता प्राप्ति का संघर्ष करते हैं। इसके विपरीत अस्थायी बहुदलीय प्रणाली में राजनीतिक अस्थिरता की राजनीतिक दलों को कोई चिन्ता नहीं होती है, उनका लक्ष्य तो सत्ता प्राप्त करना है। भारत तथा फ्रांस में ऐसी ही प्रणालियां हैं।

बहुदलीय प्रणाली के गुण 

  1. इसमें सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है, क्योंकि विभिन्न वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक राजनीतिक दल राजनीतिक व्यवस्था में विद्यमान रहते हैं।
  2. इसमें जन-साधारण को विचारों की स्वतन्त्रता प्राप्त होती है और राष्ट्र दो विरोधी गुटों या विचारधाराओं में नहीं बंटता।
  3. इसमें मतदाताओं को चुनाव की स्वतंत्रता रहती है। वे किसी एक दल को अच्छा मानकर उसका समर्थन कर सकते हैं।
  4. इसमें मन्त्रिमण्डल की तानाशाही स्थापित नहीं होती, क्योंकि कई बार कई दल मिलाकर ही सरकार बनती है, जिसका संसद में मिला-जुला ही बहुमत रहता है।
  5. इसमें विधानमण्डल मन्त्रिमण्डल के हाथों का खिलौना नहीं बनता, क्योंकि इसमें मन्त्रिमण्डल को विधानमण्डल में एक दल के बहुमत पर निर्भर न रहकर विधानमण्डल के ही बहुमत पर निर्भर रहना पड़ता है।
  6. इसमें सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। यदि सरकार जनहित विरोधी कार्य करती है तो वह समय से पूर्व भी टूट सकती है।
  7. इसमें स्थानीय स्वशासन की भावना का विकास होता है।
  8. इस प्रणाली का स्वरूप प्रजातांत्रिक है।
  9. इसमें राष्ट्रीय सरकार की परिकल्पना सम्भव है।

बहुदलीय प्रणाली के दोष 

  1. इसमें सरकार कई दलों से मिलकर बनी होने के कारण निर्बल और अस्थायी होती है, जो किसी भी समय टूट सकती है।
  2. इसमें सरकार दीर्घकालीन योजनाओं को लागू नहीं कर सकती और न ही दृढ़ नीतियों का निर्माण करके उन्हें लागू कर सकती है।
  3. इसमें सरकार का निर्माण करने में काफी मुसीबतें आती हैं। सरकार बनाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों में जो सौदेबाजी होती है, वह राजनीतिक भ्रष्टाचार का ही उन्नत रूप है।
  4. इसमें दल-बदली को बढ़ावा मिलता है और अनुशासनहीनता बढ़ती है।
  5. इसमें प्राय: संगठित विरोधी दल का अभाव रहता है।
  6. इसमें विभिन्न दलों के सदस्यों को मिलाकर मन्त्रिमण्डल का निर्माण होता है जो दल शासन का निर्माण नहीं कर सकता। 
  7. इसमें शासनाध्यक्ष या प्रधानमंत्री की स्थिति बहुत कमजोर होती है। किसी एक दल द्वारा समर्थन वापिस ले लेने पर सरकार गिर जाती है।
  8. सांझा-सरकार होने के कारण इसमें उत्तरदायित्व का अभाव पाया जाता है। 
  9. यह अवसरवादिता और सिद्धान्तहीनता की जनक है।
  10. यह अस्थिर सरकार की जनक होने के कारण देश पर चुनावी बोझ लादने वाली है।
उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है कि बहुदलीय प्रणाली किसी भी देश में अधिक सफल नहीं रही है। निर्बल व अनुत्तरदायी सरकार के रूप में इसकी निरन्तर आलोचना होती रही है। इसमें कभी भी स्थिर सरकारों का निर्माण नहीं हुआ है। यद्यपि भारत में वर्तमान वाजपेयी सरकार ने अपना पूरा कार्यकाल निकाला है। सांझी-सरकार होते हुए भी ऐसी स्थिरता देना अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है। लेकिन फ्रांस में 1870 से 1914 तक 88 सरकारों का निर्माण हुआ। बहुदलीय प्रणाली का इतिहास बताता है कि सांझा सरकारें कभी अधिक सफल नहीं रही हैं। ऐसे अवसर बहुत ही कम आए हैं जब बहुदलीय प्रणाली में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत मिलने पर सरकार बनाई गई हो। 

भारत में 1967 तक ही बहुदलीय प्रणाली अधिक सफल रही है। आज कम ही ऐसे देश हैं जहां बहुदलीय प्रणाली के अन्तर्गत स्थिर सरकारों का निर्माण हुआ है। यदि बहुदलीय प्रणाली के दोषों में से कुछ का भी निवारण कर दिया जाए तो यह प्रणाली स्थिर सरकारों के मार्ग पर चल सकती है। भारतीय संसद ने हाल ही में दल-बदल विरोधी कानून पास करके निर्धारित अवधि तक किसी भी विधायक को विधानमण्डल में दूसरे दल का प्रतिनिधित्व करने पर रोक लगा दी है। इससे सांझा सरकार का आधार मजबूत होने के प्रबल आसार हैं और बहुदलीय प्रणाली की सफलता के भी। लेकिन वर्तमान में तो यह अस्थिर सरकारों की जनक ही है।

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