गुटनिरपेक्ष आंदोलन का 15 वां शिखर सम्मेलन के घोषणा पत्र के कुछ प्रमुख बिन्दु

गुटनिरपेक्ष आंदोलन का 15 वां शिखर सम्मेलन, शर्म अल शेख मिश्र (2009) :- 15-16 जुलाई 2009 गुटनिरपेक्ष आंदोलन का 15वां शिखर सम्मेलन मिश्र के शर्म अल शेख में 15-16 जुलाई 2009 को सम्पन्न हुआ। नाम शिखर सम्मेलन के मेंजबान मिश्र के राष्ट्रपति हुसनी मुबारक ने नाम के अध्यक्ष का कार्यभार क्यूबा के राष्ट्रपति राउल क्रास्त्रों से उद्घाटन समारोह में ग्रहण किया। 

वैश्विक वित्तीय संकट, शांति व विकास कें अतिरिक्त आतंकवाद के मुद्दे उद्घाटन समारोह में विषेश चर्चा का विषय रहे। उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुये भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी उन्ही मुद्दों का उठाया। मौजूदा वैश्विक मंदी का उल्लेख करते हुये उन्होंने कहा कि विकसित देशों के बाजारो में संरक्षणवाद ने वैश्विक मंदी को मजबूती दे दी है। वास्तव में यह सम्मेलन पिछले सम्मेलनों से दो बातो में भिन्न था। प्रथम सम्मेलन में भाग लेने वाले शीर्ष नेताओ ने गत सम्मेलनों की तरह लम्बे व आदर्शवादी भाषण के स्थान पर छोटे व सटीक वक्तव्यों के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया कि गुटनिरपेक्ष देष शांति व विकास के लिये एकजुटता दिखायें। व जहां तक संभव हो द्विपक्षीय मुद्दो को न उठाये। प्राय: इस सम्मेलन में ऐसे मुद्दो को उठाया भी नहीं गया। 

दूसरे सम्मेलन के अंत में जो घोषणा जारी हुई उसमें सटीकता के साथ वैश्विक मुद्दों के संदर्भ में सामूहिक कार्यवाही की आवष्यकता पर बल दिया गया। आश्चर्य जनक रूप से इसकी घोषणा का प्रारूप छोटा ही रखा गया था और पर्यवेक्षको ने यह स्वीकार किया था कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन शांतिपूर्ण प्रक्रिया से गुजर रहा है।

सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधित्व डा. मनमोहन सिंह ने किया। उन्होने अपने संबोधन में विश्व में समानता पूर्ण परिवर्तन हेतु गुटनिरपेक्ष आंदोलन को नैतिक शक्ति बताया। उनके अनुसार वर्तमान वैश्विक संकट के दौर में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये जो उपाय किये जा रहे है उसमें विकासशील देशों के हितों ध्यान में रखना इस आंदोलन का प्रमुख दायित्व है जो वर्तमान में ओर बढ़ गया है। आर्थिक संकट के दौर में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का औचित्य ओर भी बढ़ गया है।

भारतीय प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में दिसम्बर 2009 में कोपेनहेगन में होने वाले सम्मेलन का भी जिक्र किया उन्होने कहा कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि इस आदोंलन का परिणाम गरीब देशों के लिये समानता पूर्ण हो। प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ व विभिन्न संस्थाओं में सुधार की बात कही। उन्होने विश्व विकास में अफ्रीकी देशों की समस्याओं को ध्यान में रखने, फिलिस्तीनी समस्या के समाधान करने तथा आंतकवाद के विषय में एक व्यापक संधि स्वीकार करने की मांग उठाई। भारत गुट निरपेक्ष आंदोलन का एक संस्थापक देष है। तथा भारत के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस घोषणापत्र में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा उठाये गये मुद्दो का प्रमुखता से शामिल किया गया।

16 जुलाई 2009 को सम्मेलन में जो घोषणापत्र तैयार किया गया वह अब तक का सबसे छोटा व सटीक घोषणा पत्र था। इसका सारांश यही था कि सदस्य राष्ट्र वर्तमान विश्व की समस्याओं के प्रति सामूहिक दृष्टिकोण व कार्य योजना को स्वीकार करने को सहमत हो। सम्मेलन में वेष्विक आर्थिक संकट, आतंकवाद, निषस्त्रीकरण, जलवायु परिवर्तन आदि ज्वलंत मुद्दों पर सदस्य राष्ट्रों के दृष्टिकोण पर विषेश बल दिया गया। 

गुटनिरपेक्ष आंदोलन का 15 वां शिखर सम्मेलन के घोषणा पत्र के कुछ प्रमुख बिन्दु 

इस घोषणा के कुछ प्रमुख बिन्दु इस प्रकार है:-
  1. विश्व आर्थिक संकट ने गरीब ओर विकासशील देशों को अत्यधिक प्रभावित किया है। अत: इस संकट के समाधान की प्रक्रिया में गरीब देशों के हितो पर विषेश ध्यान देने की आवश्यकता है। 
  2. घोषणा में निशस्त्रीकरण का लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आणविक शस्त्र सम्पन्न देशों से सकारात्मक अंत: क्रिया तथा ठोस कार्यवाही करने पर बल दिया गया।
  3. सदस्य राष्ट्रों ने मध्यपूर्व में स्थाई शांति की स्थापना हेतु अरब शांति योजना को पूर्ण रूप से स्वीकार करने पर बल दिया। जिसके अंतर्गत स्वतंत्र फिलीस्तीन राज्य की स्थापना, पश्चिमी जैरूसलम को उसकी राजधानी बनाना, तथा फिलीस्तीनी क्षेत्रों से इजरायली बस्तियों को हटाने की बात कही गई।
  4. घोषणापत्र पत्र में सदस्य राष्ट्रों ने सुरक्षा परिषद के विस्तार सहित संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। ताकि संगठन को अधिक प्रभावी तथा आज की परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जा सकें।
  5. घोषणा पत्र में अंतर्राष्ट्रीय आंतकवाद पर एक व्यापक समझोते को अंतिम रूप देने पर बल दिया गया ताकि आंतकवाद के विरूद्ध प्रभावी कार्यवाही की जा सके।
  6. जलवायु परिवर्तन के संबन्ध में गुटनिरपेक्ष के सदस्य देशों ने विकसित देशों के हितों की रक्षा हेतु सामान्य किन्तु विभेदीकृत सिद्धान्त को स्वीकार करने पर बल दिया। इस सिद्धान्त कें अनुसार चूंकि पर्यावरण प्रदूषण में विकसित देशों की ऐतिहासिक जिम्मेंदारी हैं अत: इस समस्या कें समाधान के उपायों जैसे, हानिकारक गैसो का उत्सर्जन में कमी, वित्तीय तथा तकनीकी संसाधनों का हस्तांतरण आदि में विकसित देषों की जिम्मेदारी अधिक होगी। 
इस सिद्धान्त को 1992 में सम्पूर्ण हुये रियों के पृथ्वी सम्मेलन में स्वीकार किया गया था। यह प्रस्ताव इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा कि दिसम्बर 2009 में कोपनहेगन में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में यह निर्धारित किया गया कि 2012 के बाद जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के क्या उपाय किये जायेगे। विश्व के अनेक हिस्सों में वायरस (स्वाइन फ्लू) के प्रसार सहित अन्य महामारियों के फैलने पर घोषणापत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन व अन्य एजेन्सियों की तरफ से सदस्य देशों के मध्य सहयोग बढ़ानें की मांग की गई। यही कह सकते है कि यह सम्मेंलन भी गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता बनाये रखने की दिषा में उत्सुक रहा।

संदर्भ -
  1. Schuman, International Politics, New York, 1948
  2. Narman A. Grabner, Cold war Diplomacy, 1962.
  3. Libson, Europe in the 19th and 20th Centuries, London, 1949
  4. D.F. Fleming, The Coldwar and its origins, 2 vol, 1961
  5. J.W. Spenier, American Foreign Policy since world War II, 1960
  6. Robert, D. Worth, Soviet Russia in World Politics, 1965

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