नर्मदा बचाओ आंदोलन क्या है? नर्मदा बचाओ आंदोलन का प्रमुख कारण क्या है?

नर्मदा नदी मध्य प्रदेश से निकलकर महाराष्ट्र और गुजरात में प्रवेश कर अरब सागर में गिरती है। भारत के मध्य भाग में स्थित नर्मदा घाटी में विकास परियोजनाओं के तहत मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मध्यम और 300 छोटे बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया है। गुजरात के सरदार सरोवर और मध्य प्रदेश के नर्मदा सागर बांध के रूप में दो सबसे बड़ी और बहुउद्देष्यीय परियोजनाओं का निर्धारण किया गया है। नर्मदा के बचाव में ‘नर्मदा बचाओं आंदोलन’ चला। इस आंदोलन ने बांधों के निर्माण का विरोध किया। सरदार सरोवर परियोजना के अंतर्गत एक बहु-उद्देष्यीय विशाल बांध बनाने का प्रस्ताव है। बांध समर्थकों का कहना है कि इसके निर्माण से गुजरात के एक बहुत बड़े हिस्से सहित तीन पड़ोसी राज्यों में पीने के पानी, सिंचाई और बिजली के उत्पादन की सुविधा मुहैया कराई जा सकेगी। जिससे कृषि की उपज में गुणात्मक वृद्धि होगी। बांध की उपयोगिता इस बात से भी जोड़कर देखी जा रही थी कि इससे बाढ़ और सूखे की आपदाओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा। सरदार सरोवर बांध के निर्माण से सम्बन्धित राज्यों के गरीब 245 गांव डूब के क्षेत्र में आ रहे थे। अतः प्रभावित गांवों के करीब ढ़ाई लाख लोगों के पुनर्वास का मुद्दा सबसे पहले स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उठाया। इन गतिविधियों को एक आंदोलन का रूप 1988-89 में मिला जब कई स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों ने इसे नर्मदा बचाओं आंदोलन का रूप दिया। नर्मदा बचाओं आंदोलन से जुड़े प्रमुख व्यक्तियों में मेधा पाटेकर, बाबा आम्टे, सुंदर लाल बहुगुणा आदि थे।

बांध के फायदे

  1. प्रधानमंत्री ने नर्मदा नदी पर बनने वाली सरदार सरोबर बांध का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह महत्वाकांक्षी परियोजना नए भारत के निर्माण में करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणा का काम करेगी। 
  2. यह बांध आधुनिक इंजीनियरिंग विशेषज्ञों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय होगा, साथ ही यह देष की ताकत का प्रतीक भी बनेगा। 
  3. इस बांध परियोजना से मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के करोड़ों किसानों का भाग्य बदलेगा और कृषि और सिंचाई के लिए वरदान साबित होगा। 
  4. इस बांध की ऊँचाई को 138.68 मीटर तक बढ़ाया गया है ताकि बिजली उत्पन्न की जा सके।
  5. गुजरात क्षेत्र में सिंचाई और जल संकट को देखते हुए नर्मदा नदी पर बांध की परिकल्पना की गई थी।

बांध के विरोध का कारण

1. भारत के चार राज्यों के लिए महत्वपूर्ण सरदार सरोवर परियोजना का नर्मदा बचाओं आंदोलन वर्ष 1985 से विरोध कर रहा है। आर्थिक और राजनीतिक विषयों के अलावा इस मुद्दे की कई परतें हैं, जिनमें इस क्षेत्र के गरीबों और आदिवासियों के पुनर्वास और वन भूमि का विषय प्रमुख मुद्दा है। 

2. नर्मदा बचाओं आंदोलन द्वारा इस बांध के विरोध का प्रमुख कारण इसकी ऊँचाई है, जिससे इस क्षेत्र के हजारों हेक्टेयर वन भूमि के जलमग्न होने का खतरा है। 

3. बताया जाता है कि जब भी इस बांध की ऊँचाई बढ़ाई गई है, तब हजारों लोगों को इसके आस-पास से विस्थापित होना पड़ा है तथा उनकी भूमि और आजीविका भी छिनी है। 

4. इस बांध की ऊँचाई बढ़ाए जाने से मध्य प्रदेष के 192 गांव और एक नगर डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। इसके चलते 40 हजार परिवारों को अपने घर, गांव छोड़ने पड़ेंगे। 

5. इस आंदोलन की नेता मेधा पाटेकर का आरोप है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद भी बांध प्रभावितों को न तो मुआवजा दिया गया है और न ही उनका बेहतर पुनर्वास किया गया है। उसके बावजूद बांध का जलस्तर बढ़ाया गया। 

6. नर्मदा बचाओं आंदोलनकारियों की मांग थी कि जलस्तर को बढ़ने से रोका जाए तथा पहले पुनर्वास हो फिर उसके बाद विस्थापन। 

7. आधिकारिक आँकड़ा के अनुसार इस बांध के बनने से मध्य प्रदेश के चार जिलों के लगभग 23,614 परिवार प्रभावित हुए थे।

आंदोलनकारियों की मांग है कि पुनर्वास पूरा होने तक सरदार सरोवर बांध में पानी का भराव रोका जाना चाहिये। यह भराव गुजरात के चुनाव में लाभ पाने के लिए मध्य प्रदेश के हजारों परिवारों की जिंदगी दांव पर लगाकर किया जा रहा है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसी स्थिति को देखते हुए भारत सरकार और न्यायपालिका दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि इस प्रकार प्रभावित लोगों को पुनर्वास की सुविधा मिलनी चाहिए सरकार द्वारा 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। 

आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अडियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बांधा उत्पन्न कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बांध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह भी आदेश दिया है कि प्रभावित लोगों का पनुर्वास सही ढंग से किया जाए।

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