हमारे शरीर के पांच तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश हैं। इस प्रकार यह स्थूल शरीर पंचतत्व से ही बना है तथा पंचमहाभूतों के विधिवत् उपयोग से बने आवरण में पाँच भौतिक तत्वों वाले प्राणी की क्षमताओं को विकसित करने की शक्ति अपने स्वत: स्फूर्त हो जाती है।
पंचतत्व के नाम
1. पृथ्वी
पाँच तत्वों में सर्वप्रथम तत्व पृथ्वी को माना गया है, यही सृष्टि का आधार है इसी कारण वेदों में पृथ्वी को माता कहा गया है। जबकि ऋग्वेद में पृथ्वी को बाधा हरने वाली सुख देने वाली तथा उत्तम वास देने वाली कहा गया है। इसी कारण पृथ्वी तथा पृथ्वीवासियों दोनों का आपस में आधार आधेय सम्बन्ध है।
2. जल
पृथ्वी तत्व के पश्चात जल तत्व अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा जीवन के लिए भी जल अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध हमारी ग्राह्य इन्द्रियों (स्वाद, स्पर्श, दृष्टि, श्रवण) से होता है। जल कल्याण करने वाला, बल पुष्टि और तेज देने वाला तत्व है। यह जीवन में तेज का संवर्धन करने में सर्वप्रमुख भूमिका अदा करता है।
ऋग्वेद में भी कहा गया है कि जलतत्व मे सम्पूर्ण औषधि रस विद्यमान होता है। इस प्रकार जड़ चेतन समस्त प्राकृतिक संरचनाओं का पोषक तत्व जल ही है। विशेषकर मनुष्य हेतु इसकी महती आवश्यकता है।
3. अग्नि
शरीर रचना में जलतत्व के पश्चात तेजस (अग्नि) का क्रम आता है। वास्तव में प्राणी में जो चेतनतत्व है वही प्राण है। वेदों में अग्नि को प्राणों का स्वामी कहा गया है। ऋग्वेद में अग्नि के तीन रूपों का वर्णन मिलता है -
- भौतिक अग्नि के रूप में
- सप्तलोकों के हितकारक मेघों में विद्युत के रूप में
- तथा सभी रसों का दोहन करने वाले सूर्य रूप में विद्यमान हैं।
4. वायु
वायु प्राणों का सबसे मूल आधार है। इसके बिना व्यक्ति कुछ मिनट ही जीवित रह सकता है। अतः अन्न जल शुद्धि की अपेक्षा प्राणदायक वायु की शुद्धि अधिक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है।
5. आकाश
चारों महाभूतों को व्याप्त करने वाले आकाशतत्व का अपना विशेष महत्व है। आकाश का विस्तार अनन्त है तथा पूरा ब्रह्माण्ड इसमें सावयव एवं निरवेश स्थित है। सौर परिवार के ग्रह, उपग्रह, अनन्त तारे या फिर प्रकाश की किरण विकिरण तरड़्गे आदि हों ये सभी आकाश में सम्मिलित हैं।
निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण प्रकृति में पंचमहाभूत एक दूसरे के विषयगत आधारों पर सम्बद्ध है। तथा पृथ्वी तथा इसके प्राणियों में विशेष प्रकार की समानता यह है कि इन दोनों की ही उत्पत्ति पंचमहाभूतों से हुई है जिसमें पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं आकाश एक निश्चित मात्रा में रहते हैं।
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