प्लेटो का शैक्षिक विचार || Plato's Educational Theory

प्लेटो
प्लेटो

प्लेटो का जन्म एथेन्स में 428-27 ई. पू. में हुआ। उसके पिता का नाम अरिस्तोन एवं माता का नाम पेरिकतिओन था। प्लेटो का वास्तविक नाम अरिस्तोक्लीज था। उसके कन्धे भरे हुए और चौड़ा थे, इसी कारण उसके व्यायाम शिक्षक ने उसे प्लातोन कहना शुरू किया क्योंकि प्लेटो शब्द का अर्थ ही होता है चैड़ा-चपटा। प्लेटो शब्द का यूनानी उच्चारण ‘प्लातोन’ है। अरबी में इसी का विकृत रूप ‘अफलातून’ है। 

जब सुकरात को विषपान का दण्ड दिया गया तो प्लेटो की आयु 28 वर्ष की थी। प्लेटो पर इस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा।

ऽ 399 ई. पू. में सुकरात के प्राणदण्ड के बाद प्लेटो का एथेन्स में रहना निरापद नहीं था। चूंकि वह सुकरात का प्रधान शिष्य और एथेन्स की लोकतान्त्रिाक व्यवस्था का विरोधी था इसलिए उसके अस्तित्व का संकट उत्पÂ हो गया। वह अपने कुछ मित्रों के साथ समीपस्थ नगर मेगरा चला गया। इसके बाद उसका 12 वर्ष तक का इतिहास अज्ञात है।

प्लेटो एक महान दार्शनिक के साथ-साथ प्रसिद्ध शिक्षाविद, राजनीतिज्ञ, गणितज्ञ तथा समाज सुधारक थे। उनके शैक्षिक विचार शिक्षा के आदर्शवादी सिद्धान्तों पर आधारित हैं। प्लेटो ने शिक्षा को “ राष्ट्र के लिए प्रशिक्षण तथा राष्ट्र के लिए प्रेम” के रूप में परिभाषित किया है। 

प्लेटो के अनुसार, विचार या अवधारणा अंतिम सत्य है। उन्होंने दो प्रकार के विश्व की कल्पना की: (क) आध्यात्मिक विश्व, (ख) भौतिक विश्व। 

प्लेटो का मानना था कि मानव आध्यात्मिक एवं भौतिक तत्वों का संयोजन है। मानव शरीर भौतिक तत्वों से बना है तथा आत्मा आध्यात्मिक तत्वों से बनी है। आत्मनियंत्रण, न्याय तथा उदारता नैतिक एवं चरित्र विकास के लिए आवश्यक है।

प्लेटो ने कहा कि “शिक्षा का लक्ष्य कवे ल मात्र सूचनाओं को प्रदान करना नहीं है यद्यपि एक नागरिक के रूप में व्यक्ति के कर्त्तव्यों एवं अधिकारों का प्रशिक्षण देना भी है।

प्लेटो के शैक्षिक विचार

प्लेटो ने अपनी पुस्तक “रिपब्लिक” में शिक्षा की सार्वभौमिक प्रकृति की चर्चा की है। वे जन शिक्षा का प्रबल समर्थक थे। उनके लिए, विधिक रूप में शिक्षा सार्वभौमिक होती है, बल्कि लोगों के एक वर्ग तक सीमित नहीं होती है। वे अनिवार्य शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। शिक्षा के प्रति उनकी अवधारणा राजनीतिक थी, उन्होंने लोगों को माता-पिता से संबद्ध होने के बजाए राज्य से संबद्ध होने के रूप में समर्थन किया। यह इसलिए कि, बच्चे को शिक्षित करने का उत्तरदायित्व केवल माता-पिता का नहीं है बल्कि यह राज्य का भी उत्तरदायित्व है। प्लेटो का सार्वभौमिक शिक्षा के विचार को वैश्विक स्तर पर व्यवहार किया गया। 

प्लेटो के शैक्षिक विचार के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं:
  1. मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्मबोध है जो वास्तविक मूल्यों जैसे सत्यम्, शिवम् तथा सुन्दरम के माध्यम से संभव हो सकता है।
  2. उत्तम राष्ट्र के लिए उत्तम तथा योग्य नागरिकों की आवश्यकता होती है। अत: विद्यार्थियों में उत्तम नागरिकता का विकास शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए।
  3. शिक्षा का लक्ष्य अच्छे व्यक्तित्व के विकास के लिए होना चाहिए।
  4. मानव मनोवैज्ञानिक प्राणी होता है, अत: मानव के शारीरिक एवं मानसिक पक्षों का संतुलित विकास शिक्षा का कार्य होना चाहिए।

पाठ्यचर्या, शिक्षण विधियाँ एवं शिक्षक

प्लेटो ने शिक्षा को एक जीवनपर्यन्त प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया, अत: उन्होंने पाठ्यचर्या की व्यापक योजना एवं संरचना का सुझाव दिया। उन्होंने समर्थन किया कि भाषा, इतिहास, तर्कशास्त्र एवं गणित, भगू ाले तथा विज्ञान बच्चे के बाैिद्धक विकास के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने पाठ्यचर्या में कला, व्यायाम, संगीत, शिल्प तथा खेल को समाविष्ट करने की बात कही। उन्होंने धर्म, नीतिशास्त्र, एवं अध्यात्म के ज्ञान को बच्चे के नैतिक विकास के लिए आवश्यक बताया। 

शारीरिक शिक्षा तथा आत्म रक्षा केवल बच्चे के व्यक्तिगत विकास के लिए नहीं है बल्कि राष्ट्र की रक्षा के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने अच्छी नागरिकता, आध्यात्म, मूल्य एवं नैतिकता आधारित शिक्षा को पाठ्यचर्या में सम्मिलित करने का समर्थन किया। 

उन्होंने व्याख्यान के उपयोग, विमर्श, प्रश्न एवं गतिविधियों को शिक्षण विधियों के रूप में सुझाया। उन्होंने बल दिया कि तर्क विधि, प्रश्नोत्तर विधि, वार्तालाप, स्वाध्याय तथा अनुकरण विधि शिक्षण विधि के रूप में उपयोग किए जाने चाहिए। स्त्री शिक्षा को महत्व देते हुए उन्होंने सुझाया कि स्त्रियों को व्यायाम, खेल, रक्षा आदि का प्रशिक्षण लेना चाहिए। प्लेटो का विचार था कि शिक्षा का स्थान समाज में सबसे उच्च होना चाहिए। एक शिक्षक को विद्यार्थियों के लिए आदर्श होना चाहिए। 

एक शिक्षक को अपने कर्त्तव्यों के प्रति निष्ठावान होना चाहिए।

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