एडवर्ड शिल्स को राजनीतिक आधुनिकीकरण प्रमाणित व्याख्याकार माना जाता है। शिल्स ने अपनी पुस्तक 'Political Modernization' में आधुनिकीकरण की व्याख्या करते हुए राष्ट्रों के पांच प्रतिमान विकसित किए हैं। इस वर्गीकरण के अनुसार ही राजनीतिक आधुनिकीकरण को सही ढंग से समझा जा सकता है।
राजनीतिक आधुनिकीकरण पर एडवर्ड शिल्स के विचार
शिल्स के अनुसार राजनीतिक आधुनिकीकरण के अनुसार राष्ट्रों के पांच प्रतिमान हैं :-
- राजनीतिक लोकतन्त्र (Political Democracy)
- नाममात्री या अधिष्ठातृ लोकतन्त्र (Tutelary Democracy)
- आधुनिकीकरणशील वर्गतन्त्र (Modernizing Oligarchy)
- सर्वाधिकारी वर्गतन्त्र (Totalitarian Oligarchy)
- परम्परागत वर्गतन्त्र (Traditional Oligarchy)
राजनीतिक लोकतन्त्र
यह प्रतिमान राजनीतिक व्यवस्था के सर्वोत्तम रूप का प्रतिनिधि है जिसकी तरफ आधुनिकीकरणशील राष्ट्र उन्मुख है। इस प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाई जाती है। शिल्स ने इसे प्रतिनिधितात्मक संस्थाओं और सार्वजनिक स्वतन्त्रता के माध्यम से नागरिक शासन के रूप में परिभाषित किया है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं :-- सार्वभौम व्यस्क मताधिकार।
- राजनीतिक दलों की अनिवार्यता।
- सत्ता का कानूनी रूप।
- न्यायपालिका की स्वतन्त्रता व निष्पक्षता।
- लोकतांत्रिक आत्मनियन्त्रण व संविधानिक सरकार।
- प्रशिक्षित व संगठित लोक सेवाएं।
- कानून का शासन
- लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति वचनबद्धता।
नाममात्री या अधिष्ठातृ लोकतन्त्र
इसे संरक्षक लोकतन्त्र भी कहा जाता है। यह राजनीतिक व्यवस्था का दूसरा श्रेष्ठ रूप है। यह राजनीतिक लोकतन्त्र से इस बात में भिन्न है कि इसमें राजनीतिक लोकतन्त्र की संरचनात्मक व्यवस्थाएं व्यवहारिक रूप में सक्रिय नहीं रहती। इसमें वास्तविक सत्ता कार्यपालिका के हाथ में होती है। यह व्यवस्था उन देशोंं का अनुकरण करने की कोशिश करती है जहां राजनीतिक लोकतन्त्र है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं :-- कार्यपालिका की श्रेष्ठता।
- विधायिका पर कार्यपालिका का नियन्त्रण।
- विरोध की व्याख्या।
- सक्षम व वफादार नौकरशाही।
- कानून का शासन।
आधुनिकीकरणशली वर्गतन्त्र
यह व्यवस्था पूर्ण रूप से अलोकतांत्रिक होती है। इसकी स्थापना नागरिक और असैनिक दोनों ही क्षेत्रों में हो सकती है। इसमें सरकार सैनिक शक्ति पर ही टिकी हेाती है और सदा विरोध और विद्रोह का भय बना रहता है। यह परम्परागत वर्गतन्त्र से अधिक है। इस राजनीतिक व्यवस्था की बागडोर या तो असैनिकों के हाथों में हो सकती है जिनका सैनिकों पर नियन्त्रण है या उच्च सैनिक अधिकारियों के हाथों में हो सकती है। इसमें राजनीतिक व्यवस्था को औचित्यपूर्ण बनाए रखने के लिए सैनिक शासक और गैर सैनिक जनता का भी सहयोग ले सकते हैं। इसकी प्रमुखता विशेषताएं होती हैं :-- इसमें संसद नाममात्र की संस्था होती है।
- इसमें विरोधी पक्ष को अवैध माना जाता है।
- निष्पक्ष व स्वतन्त्र चुनावों का अभाव होता है।
- सार्वजनिक संचार के साधनों पर नियन्त्रण रहता है।
- नौकरशाही की स्थिति अधिक मजबूत रहती है।
- कानून के शासन व निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र न्यायपालिका का अभाव होता है।
सर्वाधिकारी वर्गतन्त्र
इसका सम्बन्ध फासीवाद तथा नाजीवाद जैसी शासन-व्यवस्थाओं से होता है। चीन की साम्यवादी व्यवस्था इसका उदाहरण है। यह व्यवस्था तानाशाही शासन की सूचक है। इसमें मौलिक अधिकारों व स्वतन्त्रता का कोई महत्व नहीं होता। यह एक दलीय शासन व्यवस्था का प्रतिफल है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं :-- वर्ग व जाति जैसी विशेषता के आधार पर सत्ता का किसी वर्ग विशेष में केन्द्रित होना।
- अनुशासित व सुसंगठित अभिजन वर्ग।
- साम्यवादीदल की सर्वोच्चता।
- विधि के शासन, स्वतन्त्र व निष्पक्ष न्यायपालिका तथा विरोधी दल का अभाव।
- साम्यवादी विचारधारा का विकास।
- संसदीय संस्थाओं का प्रदर्शनात्मक उद्देश्य।
परम्परागत वर्गतन्त्र
यह व्यवस्था परम्परागत धार्मिक विश्वासों से सम्बन्धित शक्तिशाली राजतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित होती है। इसके अन्तर्गत शासक वर्ग वंशानुगत आधार पर नियुक्त किया जाता है। इसमें कोई विधायिका नहीं होती। शासक वर्ग ही कानून का निर्माता होता है। इसमें जनसेवा का कोई महत्व नहीं होता है। सम्पूर्ण शासन-व्यवस्था सामन्तवाद पर आधारित होती है। इस शासन में जन-सहभागिता का अभाव पाया जाता है। इस व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं होती हैं :-- इसमें शासक वर्ग राजनीतिक सत्ता का प्रयोग स्वयं द्वारा चुने हुए सलाहकारों की मदद से करता है।
- इसमें नौकरशाही न के बराबर होती है।
- इसमें शासक अपने शासन को चलाने के लिए सीमित व कुशल सेना व पुलिस की व्यवस्था करता है।
- यह व्यवस्था सामन्तवादी होती है। क्षेत्रीय स्तर पर छोटे छोटे शासक होते हैं।
- इसमें विरोधी पक्ष का अभाव होता है।
- इसमें जनमत का निर्माण करने वाली संस्थाएं नहीं होती।
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