उपलब्धि अभिप्रेरणा से आप क्या समझते हैं उपलब्धि अभिप्रेरणा को कैसे विकसित किया जा सकता है?

अभिप्रेरणा से संबंधित नई विचारधारा का नाम उपलब्धि अभिप्रेरणा है। सर्वप्रथम, इसका प्रतिपादन अमेरिका में किया गया है। उपलब्धि-अभिप्रेरणा की प्रकृति व्यक्तिगत होती है और आधारभूत लक्ष्य उपलब्धि होती है किसी भी प्रकार की उपलब्धि के लिये काम को करने की अभिप्रेरणा को उपलब्धि-अभिप्रेरणा कहा जाता है। प्रस्तुत शोध अध्ययन में उपलब्धि अभिप्रेरणा से तात्पर्य- शैक्षिक उपलब्धि, उपलब्धि अभिप्रेरणा से है। 

‘‘उपलब्धि अभिप्रेरणा से तात्पर्य विद्यार्थियों की आकांक्षा, प्रयास और दृढ़ता से है विद्याथ्र्ाी के प्रदर्शन, उत्कृष्टता तथा कुछ मानक के संबंधों में मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इस तरह की उपलब्धि को उपलब्धि अभिप्रेरणा कहा जाता है।

इस अध्ययन में उपलब्धि अभिप्रेरणा से तात्पर्य -शैक्षिक उपलब्धि अभिप्रेरणा से है। उपलब्धि अभिपे्ररणा में ‘उपलब्धि’ की मान्यता अधिक है यदि सचिन का प्रदर्शन 7 विपुल की अपेक्षा जीवन के हर क्षेत्र में उत्तम है अर्थात् उसके परीक्षा में उच्च प्रतिशत रहता है, खेल में, सांस्कृतिक कार्यक्रम में, व्यवहार में तथा अन्य सभी दृष्टिकोण से सचिन का निष्पादन (performance) विपुल से उत्तम है। यदि हम विपुल को पूछे कि सचिन के आपसे काफी अंक ज्यादा है ऐसा क्यों? उसका उत्तर मिलता है ‘तो क्या हुआ’? सभी ऐसे प्रश्नों में विपुल का उत्तर ‘तो क्या हुआ’? मिलता है। काफी समय बाद सचिन कोई बड़ा अफसर बन जाता है फिर भी विपुल का उत्तर ‘तो क्या हुआ’? ही रहता है। यदि हम इसका विश्लेषण करे तो हमें अवश्य लगेगा कि सचिन के जीवन में उपलब्धि अभिप्रेरणा का प्रभाव पर्याप्त विद्यमान है जबकि विपुल में इसके विपरीत विफलता परिहार की प्रवृत्ति है।’’

शैक्षिक उपलब्धि अभिप्रेरणा विद्यार्थियों में व्यक्तित्व की महत्पूर्ण विशेषताओं में से एक है, यह विद्यार्थियों के विचारों, भावनाओं, संवेदनाओं एवं मूल प्रवृत्तियों से संबंधित होती है। शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है कि विद्यार्थियों को उनकी उपलब्धि से अभिप्रेरित करना जिसमें विद्यालय का शैक्षिक वातावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विद्यार्थियों की उपलब्धि अभिप्रेरणा धनात्मक रूप से विद्यालय के शैक्षिक वातावरण से प्रभावित होती है।’’

‘‘सामान्य जीवन में हम बहुधा यह कहते या सुनते रहते हैं कि यह विद्याथ्र्ाी कला में निपुण है या विज्ञान के अध्ययन में अधिक रुचि रखता है इस प्रकार हम वर्तमान योग्यता को आधार मानते हुए यह भी कहते हैं कि भविष्य में यह विद्याथ्र्ाी क्या होगा? सामान्य भाषा में इसे ‘विशिष्ट योग्यता’ या ईश्वरीय वरदान की संज्ञा दी जाती है परन्तु मनोवैज्ञानिक भाषा में इसे उपलब्धि अभिप्रेरणा कहते हैं।’’

‘‘उपलब्धि अभिप्रेरणा को कई मनोवैज्ञानिकों ने समझाने की कोशिश की आखिरकार उपलब्धि अभिप्रेरणा क्या है? इससे छात्रों को क्या लाभ मिलेगा? मनोवैज्ञानिक -ए.एल्डरमैन (1999), मर्फी (1996), साइमन (1988), एटकिंसन (1974), ट्रेसी (1993), एटकिंसन और फेदर (1966), कीफ और जेनकींस (1993), पार्कर और जॉनसन (1998), और मैक्लेन्ड (1961), एटकिंसन (1968), डेविड इलियट (1996) आदि। सभी मनोवैज्ञानिक ने यही बताने का प्रयत्न किया है कि उपलब्धि अभिप्रेरणा छात्रों को सफलता से विफलता की ओर ले जाती है और विफलता से सफलता की ओर। 

उपलब्धि अभिप्रेरणा एक विद्यार्थी से दूसरे विद्यार्थी की अलग-अलग होती है कुछ विद्यार्थियों को प्रेरणा आंतरिक रुप से मिलती है तथा कुछ को बाहरी रुप में मिलती है। प्रत्येक विद्यार्थी उपलब्धि अभिप्रेरणा से ही अपने लक्ष्य तक पहुँचता है। यदि विद्यार्थी अपने लक्ष्य तक पहुुँचने में कई बार असफल होते हैं किन्तु वह असफलता को ही अपनी सफलता मानकर आगे बढ़ते हैं वह अपना लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर लेते हैं परन्तु जो विद्याथ्र्ाी असफलता के डर से कार्य नहीं करता है वह अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असमर्थ हो सकते हैं।’’

उपलब्धि अभिप्रेरणा का विकास विद्यार्थियों में किस प्रकार किया जा सकता है जिससे कि विद्यार्थी अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित हो सके। विद्यार्थियों में किस प्रकार उपलब्धि अभिप्रेरणा को विकसित किया जा सकता है 

बिग और हंट (1980)’’ उपलब्धि अभिप्रेरणा एक ऐसी छिपी हुई प्रवृत्ति है जो प्रत्यक्ष कठिन परिश्रम में तभी निहित होती है जबकि व्यक्ति निष्पादन को व्यक्तिगत रूप से कुछ पाने का साधन समझता है।’’ 

एटकिंसन और फेदर (1966)9 ‘‘मनोवैज्ञानिक उपलब्धि अभिप्रेरणा उसे कहते हैं जिसमें क्रिया क्षमता, आक्रमण शीलता तथा प्रभुता का घनिष्ठ सम्बन्ध मानव व्यवहार में लक्ष्य निर्देशन की एक पद्धति से हो।’’

 उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट होता है कि उपलब्धि अभिप्रेरणा विद्यार्थियों को किस प्रकार प्रेरित करती है। यह एक छिपी हुई प्रवृत्ति है इस प्रवृत्ति को बाहर निकालना ही शिक्षक एवं अभिभावक का कार्य होता है।

उपलब्धि अभिप्रेरणा का विकास

वर्तमान समय में उपलब्धि एक महत्वपूर्ण आवश्यकता हो गई है। उपलब्धि अभिप्रेरणा का विकास अनेक तत्वों से प्रभावित होता है जैसे घर, समाज, समुदाय, विद्यालय आदि बालक के जीवन के प्रथम चरणों में अभिवृत्ति एवं प्रेरकों के विकास के प्रशिक्षण में सहायक होते है। माता-पिता की आशायें एवं निर्देशन बच्चे के जीवन में शुरु से ही उच्च उपलब्धि प्राप्ति की आवश्यकता की भावना को भर देते है। उपलब्धि प्राप्त करने वाले बालकों की अपेक्षा उच्च उपलब्धि प्राप्त करने वाले बालकों की माताएँ अपने पुत्रों से कम आयु में ही उत्कृष्टता चाहती है। उपलब्धि अभिप्रेरणा के विकास में महत्वपूर्ण कारक निम्न हैं-
  1. महान पुरुषों का जीवन परिचय एवं उनके कार्यों की उपलब्धियाँ बालकों के लिए प्रेरणा के स्रोत है।
  2. अध्यापक को विद्यालय परिसर में उचित शैक्षिक वातावरण स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। वह बालकों में उपलब्धि अभिप्रेरणा की अपने व्यवहारिक क्रियाओं द्वारा जाग्रति ला सकता है।
  3. कक्षा में उपयुक्त सामाजिक वातावरण का निर्माण कर छात्रों में ‘‘हम’’ भावना का विकास करना आवश्यक है।
  4. बालकों की उच्च उपलब्धियाँ स्वयं प्रेरक का कार्य करती है नए विकसित प्रेरकों को जीवन की अन्य उन्नत उपलब्धियों की प्राप्ति के लिये प्रोत्साहित करना चाहिए।
  5. बालकों में उच्च आदत निर्माण एवं स्वाध्याय के लिए प्रेरणा जाग्रत करना चाहिए जिससे आत्म प्रेरणा स्थापित होने से उद्देश्य की प्राप्ति हो सके। अत: बालकों को व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के कार्य सौंपे जाने चाहिए।
उपर्युक्त रूप से विदित होता है कि उपलब्धि अभिप्रेरणा छात्रों के व्यवहार को भी प्रभावित करती है जो इस प्रकार हैं -

उपलब्धि अभिप्रेरणा का व्यवहार पर प्रभाव 

  1. विद्यार्थी सक्रिय रूप से उत्कृष्ट स्तर की प्राप्ति के लिये प्रयास करता है
  2. कार्य में अधिक निपुणता प्रदर्शित पर कार्य शीघ्र समाप्त करने की रुचि रखते हैं।
  3. अधिक लगन एवं परिश्रम द्वारा विद्यार्थी कार्य की सफलता की इच्छा प्रकट करते है।
  4. जीवन के उन्नत प्रदर्शन द्वारा सर्वोच्च स्थान पाने के लिए प्रयास करते हैं।
  5. सफलता प्राप्त होने पर गर्व एवं प्रसन्नता की भावना जाग्रत होती है, तथा विफलता में स्वयं के उत्तरदायी मानते हैं।
  6. इस प्रकार के छात्र सफलता की ओर अग्रसित होते हैं एवं विफलता से बचने का प्रयास करते हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि छात्रों का ध्यान कुछ वस्तुओं, लोगों, स्वयं के विचारों तथा संवेगों की ओर निर्देशित किया जा सकता है। शिक्षक छात्रों को अभिप्रेरित करके उनका ध्यान पाठ्यवस्तु पर केन्द्रित करने में सहायता कर सकते हैं। इसके अलावा अभिप्रेरकों द्वारा छात्रों का मानसिक विकास, सामाजिक गुणों का विकास, चारित्रिक विकास आदि के लिये छात्रों को अभिप्रेरित किया जा सकता है। 

उपलब्धि अभिप्रेरक

उपलब्धि अभिप्रेरक से तात्पर्य एक ऐसे अभिप्रेरक से होता है जिससे पे्ररित होकर विद्याथ्र्ाी अपने कार्य को इस ढंग से करने की कोशिश करता है कि उसे अधिक से अधिक सफलता प्राप्त हो।

‘‘उपलब्धि अभिप्रेरक से तात्पर्य श्रेष्ठतर के एक खास स्तर प्राप्त करने की इच्छा से होता है।’’ मन, फर्नलड तथा फर्नलड (Munn Fernallds & Fernald (1972)15 जिन विद्यार्थियों में उपलब्धि अभिप्रेरक अधिक होता है वे सफलता के उच्चतम स्तर पर पहुँचने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। उपलब्धि अभिप्रेरक सभी विद्यार्थियों में एक समान नहीं होती है, किसी में अधिक होती है किसी में कम। उपलब्धि अभिप्रेरक का एक मुख्य कारण मनोवैज्ञानिकों ने बताया है कि ‘‘स्वतंत्र प्रशिक्षण’’ जिन छात्रों को कार्य करने की स्वतंत्रता मिलती है उन छात्रों में उपलब्धि अभिप्रेरक अधिक होता है। 

उपलब्धि अभिप्रेरक का वैज्ञानिक अध्ययन मैक्लिलैण्ड तथा उनके सहयोगियों (Macclelland etal 1953) ने प्रारम्भ किया तथा इन लोगों ने इस अभिप्रेरक को मापने के लिए T.A.T. (Thematic Apperception Test) परीक्षण का निर्माण किया एटकिन्सन तथा होमेन्गा और होमेन्गा (Hoyenga & Hoyenga, 1984) द्वारा भी इस अभिप्रेरक से सम्बन्धित अध्ययन किये गये।
  1. ऐसे विद्यार्थी जिनमें उपलब्धि अभिप्रेरक अधिक होते हैं, साधारण कठिनाई वाले कार्य को करना पसन्द करते है, क्योंकि ऐसे कार्यों को करने में सफलता करीब निश्चित होती है।
  2. अधिक उपलब्धि प्रेरक वाले विद्यार्थी उन कार्यों को करना अधिक पसन्द करते है जिनके आधार पर उनकी तुलना अन्य विद्यार्थियों के साथ आसानी से की जा सकती है।
  3. जब अधिक उपलब्धि अभिप्रेरक वाले विद्यार्थी किसी कार्य में सफलता प्राप्त करते हैं तो वे अपनी आकांक्षा स्तर को धीरे-धीरे ऊँचा उठाते हैं।

उपलब्धि अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले कारक

 ‘‘एक विचार लें, उस विचार को अपनी जिंदगी बना ले, उसके बारे में सोचिये, उसके सपने देखिये, उस विचार को जियें, आपका मन, आपकी मांसपेशिया, आपके 16 शरीर का हर एक अंग, सभी उस विचार से भरपूर हो, और दूसरे सभी विचारों को छोड़ दे, यही सफलता का तरीका है।’’ 

स्वामी विवेकानंद जोन पी. डीसैको (John P. Dececco) और विलियम क्रराफोर्ड (William crawford ) ने अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले कारको को चार मुख्य वर्गों में बाँटा है - 

1. उत्तेजना - उत्तेजना से अभिप्राय विद्यार्थी की सामान्य जागृति (Alertness) और अनुक्रियात्मकता (Responsiveness) से है। जोन पी.डीसैको और विलियम क्रारफोर्ड के अनुसार उत्तेजना किसी विद्यार्थी के जोश की सामान्य स्थिति का वर्णन करती है।

विद्यार्थियों में उत्तेजना के बाहरी और आन्तरिक सूत्र (Sources) होते हैं। बाहरी सूत्रों में वातावरण द्वारा पहुँचाये गये उद्दीपन सम्मिलित होते हैं और आन्तरिक सूत्र है, ‘‘विचारों का बहाव।’’ डी. हैब के अनुसार ही वातावरण द्वारा प्रदत्त उद्दीपन और जैविक आवश्यकताओं (Biological Needs) की संतुष्टि द्वारा मस्तिष्क ओर मांसपेशियाँ क्रियाशील रहती है। संक्षेप में, विद्यार्थियों की प्रकृृति का आन्तरिक पक्ष है -क्रिया। 

जीवित रहने के लिये क्रियाशील रहना पड़ेगा इस स्तर को उत्तेजना का स्तर (Level of Arousal) का नाम दिया गया है। 

2. आकांक्षा - वरूम (Varoom 1964) के अनुसार आकांक्षा वह तात्कालिक विश्वास है जो किसी विशेष कार्य से कोई विशेष परिणाम निकलता है।

(Expectancy is a momentary belief that a particular outcome will follow a particular act) आकांक्षा उत्तेजना का एक सूत्र है। शिक्षण का उद्देश्य अध्यापकों की आकांक्षाएँ होती है इसी प्रकार विद्यार्थियों की भी आकांक्षाएँ होती हैं। अध्यापकों को इन आकांक्षाओं का ध्यान रखना चाहिये। अध्यापकों को अपनी और विद्यार्थियों की आकांक्षाओं में संतुलन रखना चाहिये। अध्यापक विद्यार्थियों की आकांक्षा स्तर को ऊँचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 

3. प्रोत्साहन - प्रोत्साहन का वास्तविक लक्ष्य-पदार्थ होते हैं (Incentive are actual goal objects) ये प्रोत्साहन कुछ उद्दीपनों के साथ संबंधित होते हैं जो विद्यार्थियों में उत्तेजना उत्पन्न करके किसी कार्य को अभिप्रेरित करते हैं। विद्यार्थियों के कार्य करने की शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकृति का प्रोत्साहन मिल रहा है। 

बी.एफ.स्किनर के अनुसार पुनर्बलन भी प्रोत्साहन है। उसके लिये कक्षा में अध्यापक प्रशंसा, उत्साहवर्धन, प्रतियोगिता, व बच्चों के परीक्षाफल को उनके प्रोत्साहन के लिये प्रयोग कर सकता है।

4. अनुशासन - अनुशासन विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य तक पहुंचाने में समर्थ होता है। अनुशासित विद्यार्थियों का उत्तम विकास शैक्षिक वातावरण में हो 18 सकता है क्योंकि वहां पर शिक्षक, प्राचार्य, मित्र आदि विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन करते हैं। विद्याथ्र्ाी अनुशासन में रहकर अपने कार्य में प्रगतिशील रहता है। 

ऊपर बताये गये कारणों के अतिरिक्त अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले और भी कारक हैं, जो इस प्रकार हैं -

1. संवेगात्मक स्थिति-(Emotional state) विद्यार्थियों की संवेगात्मक स्थिति भी उनकी अभिप्रेरणा-क्षमता को प्रभावित करती है। अत: कक्षा में अध्यापकों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों के संवेगों को नियंत्रित रखें उनमें किसी कार्य के प्रति या ज्ञान के प्रति घृणा न पनपे। 

2. रुचि-(Interest) प्राय: ऐसा देखा गया है कि जिस कार्य में विद्याथ्र्ाी रुचि दिखाता है, उसे वह जल्दी सीख लेता है और जो कार्य उसे अरुचिकर लगता है, उस कार्य को वह शीघ्र नहीं सीख पाता। अत: विद्यार्थियों को अभिप्रेरित करने के लिये उनकी रुचि को अवश्य ध्यान रखना चाहिए।

3. भय (Fear) कई बार किसी प्रकार का भय अभिप्रेरणा को प्रभावित करता है, जैसे असफलता या हानि का भय इस प्रकार के भय के अधीन आकर विद्याथ्र्ाी अधिक कार्य करने के लिये अपनी पूरी क्षमता को न्यौछावर कर देते हैं।

4. विद्यालय (School) अभिप्रेरणा के लिए विद्यालयों की अलग-अलग भूमिका होती है विद्यालयों का शैक्षिक वातावरण विद्यार्थियों की अभिप्रेरणा के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। अत: विद्यालयों का शैक्षिक वातावरण इस प्रकार का हो कि विद्यार्थी कुछ सीखने के लिये स्वयं ही प्रेरित हो सकें।

5. मूल्यांकन (Evaluation) विद्यार्थियों के ज्ञान का मूल्यांकन भी अभिप्रेरणा की प्रक्रिया में सहायक होता है। विद्यार्थियों को उनके मूल्यांकन का परिणाम अवश्य बताना चाहिये ताकि वे अपनी-अपनी कार्य प्रणाली या सीखने के ढंग में आवश्यक सुधार करने के लिये अभिपे्ररित रहें।

उपरोक्त रूप से स्पष्ट होता है कि विद्यार्थियों की उपलब्धि अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले कई कारक होते हैं जिससे कि विद्यार्थी प्रेरित होकर अपने लक्ष्य 19 तक पहुंचते हैं। 

उपलब्धि अभिप्रेरणा की प्रविधियाँ 

उपलब्धि अभिप्रेरणा की प्रविधियाँ भी विद्यार्थियों को प्रेरित करने में सहायक सिद्ध होती हैं। उपलब्धि अभिप्रेरणा की प्रविधियाँ निम्नवत् हैं-

1. सीखने की उपयुक्त स्थिति (Proper Learning situation) वर्तमान मनोवैज्ञानिक युग में सीखने की प्रक्रिया में सीखने की परिस्थितियाँ प्रमुख भूमिका निभाती है। ये परिस्थितियाँ शैक्षिक वातावरण से संबंधित होती है। स्कूलों में भौतिक सुविधाएं, अध्यापकों का अच्छा एवं स्नेह पूर्ण व्यवहार, विभिन्न क्रियाओं में भाग लेने के अवसर या आपसी सहयोग विद्याथ्र्ाी की अभिप्रेरणा को सीखने के लिये चरम सीमा पर पहुुँचा देता है।

2. पुरस्कार और दंड (Reward and Punishment) पुरस्कार और दंड अभिप्रेरणा कि लिये महत्वपूर्ण प्रविधि है ये दोनों ही विद्यार्थियों के व्यवहार में अभिप्रेरण का संचार करते हैं पुरस्कार से विद्यार्थीमें आत्मविश्वास, आत्मसम्मान आदि योग्यताओं का विकास होता है और कई स्थितियों में दंड भी आवश्यक है।

3. परिणामों का ज्ञान (Knowledge of results) जब कोई विद्यार्थीकिसी कार्य में अपना प्रयत्न करता है तो यह स्वाभाविक है कि वह उनके परिणामों को जानने के लिये उत्सुक होता है। अत: कक्षा में अध्यापक का कर्तव्य बन जाता है कि वह विद्यार्थियों के सीखने में किये गये प्रयत्नों का मूल्यांकन करे और उनके परिणामों की सूचना उत्सुक विद्यार्थी को दे। ताकि इन परिणामों के ज्ञात होने से विद्यार्थियों को और कुछ सीखने के लिये भी प्रेरणा मिल सके।

4. लक्ष्यों को निर्धारित करना (Fixing up of Goals) लक्ष्यों या उद्देश्यों को निर्धारित करने से भी अभिप्रेरणा उत्पन्न होती है। विद्यार्थी जब तक अपने सीखने के लक्ष्यों को नहीं जानेगा, तब तक वह कैसे अभिप्रेरित हो पायेगा। लक्ष्य विद्यार्थी को कार्य करने के लिये या सीखने के लिये दिशा प्रदान करते है और जब विद्यार्थी को दिशा मिल जाये तो वह लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये बड़ी तीव्रता से अभिप्रेरित हो सकते हैं।

5. शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) अभिप्रेरणा शिक्षण विधियों पर भी अधिकतर निर्भर करती है। वैज्ञानिक युग में नवीन शिक्षण विधियों का प्रचार हो रहा है जो कि मनोविज्ञान पर आधारित है। आधुनिक युग चूँकि शिक्षा का प्रत्यय (Concept of Education) ही बदल रहा हैै, अत: उसी के अनुसार अध्यापक को शिक्षण विधियों का भी चयन करना चाहिये।

6. प्रशंसा एवं निंदा (Praise and condemnation) सभ्य समाज में प्रशंसा और निदां बहुत ही प्रभावशाली और शक्तिशाली अभिप्रेरक है। हर विद्याथ्र्ाी प्रशंसा का इच्छुक होता है, अत: इस प्रशंसा को प्राप्त करने के लिये विद्याथ्र्ाी कार्य करने या कार्य को सीखने के लिये सदा ही अभिप्रेरित रहते हैं। इसी प्रकार निंदा भी अभिप्रेरणा की एक महत्वपूर्ण प्रविधि है। कमजोर विद्यार्थियों के लिये निंदा का प्रयोग मनोवैज्ञानिक आधार पर उचित नहीं रहता है। इससे उनकी अभिप्रेरणा का विकास संभव नहीं हो सकता है बल्कि वे हीन-भावना का शिकार हो जाते हैं।

7. सफलता और असफलता (Sucess and Failure) किसी कार्य में या किसी कार्य को सीखने में विद्यार्थियों की सफलता उसे आनन्दित कर देती है और वे भविष्य के लिये और कार्यो के लिये या सीखने के लिये अभिप्रेरित रहते हैं, अत: सफलता का प्रभाव विद्यार्थियों में अभिप्रेरणा जगाती है। सामान्य बुद्धि के विद्याथ्र्ाी असफलता से निरुत्साहित हो जाते हैं, लेकिन यही असफलता प्रतिभाशाली छात्रों के लिये एक चुनौती बनकर अभिप्रेरक के रूप में सामने आती है।
 
8. नवीनता (Novelty) नवीनता जिज्ञासा (Cuiorsity) की जननी है। अध्यापक द्वारा शैक्षिक वातावरण में नवीनता बनाये रखने से विद्यार्थियों की अभिप्रेरणा निश्चित होती है क्योंकि छात्र नवीन कार्यो में अधिक रुचि लेते हैं। 21
नवीनता से परिवर्तन भी होता है और कार्यों में विविधता भी आती है जो कि अभिप्रेरित व्यवहार के लिये अति-आवश्यक है।
 
9. आकांक्षा का स्तर (Level of Aspiration) आकांक्षा का स्तर विद्यार्थियों की योग्यताओं और उनके शैक्षिक वातावरण से प्रभावित होते हैं जिस वस्तु की विद्यार्थी इच्छा करता है और उनका संबंध जीवन के लक्ष्यों से होता है, उसे आकांक्षा-स्तर कहते हैं।

10. प्रतियोगिता और सहयोग (Competition and Co-operation) प्रतियोगिता अभिप्रेरणा की एक स्वस्थ-प्रविधि है। प्रतियोगिता समूहों या व्यक्तिगत तौर पर हो सकती है। प्रतियोगिता द्वारा विद्यार्थी एक-दूसरे से आगे निकलने की हौड़ में लगे रहते हैं। इस प्रविधि के उचित प्रयोग से अध्यापक विद्यार्थियों को अधिक मेहनत करने की प्रेरणा दे सकते हैं।
 
उपर्युक्त रूप से विद्यार्थियों को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में उपलब्धि अभिप्रेरणा की प्रविधियां काफी हद तक सहायक सिद्ध होती हैं।

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