अभिक्रमित अनुदेशन विधि क्या है ? अभिक्रमित अनुदेशन की विशेषताएं

अभिक्रमित अनुदेशन विधि अध्ययन एक ऐसी शिक्षण प्रक्रिया विधि अथवा तकनीकी है, जिसमें सीखने योग्य विषय वस्तु को छोटे छोटे पदों के रूप में इस प्रकार अभिक्रमित किया जाता है कि शिक्षार्थी स्व प्रयत्न ओर स्व गति से सक्रिय रहकर निरन्तर ज्ञात से अज्ञात की ओर अग ्रसर होता रहता है इस प्रयास में उसके द्वारा किये गये कार्य की तुरन्त पुष्टि कराई जाती है प्रत्येक पद पर उसे सफलता की अनुभूति करा दी जाती है इससे उसके प्रयास को पुनर्बलन मिलता रहता है।

इस तकनीक को विकसित करने का श्रेय वैज्ञानिक सिडनी एल प्रेसी का योगदान प्रमुख है सन् 1954 में हारवर्ड विश्वविद्यालय के बी.एम. स्किनर ने अपने सहयोगी के साथ प्रेसी के अनुभवों को साकार किया। फलस्वरूप अभिक्रमित अधिगम का जन्म हुआ।

अभिक्रमित अनुदेशन की परिभाषा

बी.एफ स्कीनर के अनुसार:- अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षण की कला तथा सीखने का विज्ञान है। 

आर.एविल:- अभिक्रमित अनुदेशन केवल मात्र स्वाध्याय हेतु निर्मित पाठ्यवस्तु ही नहीं है, अपितु यह एक शिक्षण प्रविधि भी है।

अभिक्रमित अनुदेशन की विशेषताएं

1. अभिक्रमित अध्ययन के अन्तर्गत छोटे -छोटे फ्रेम्स बना दिये जाते हैं इसके द्वारा विषय वस्तु को तार्किक रूप में एक समय में शिक्षार्थी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जिससे वह सरलता से समझ सकें।

2. सक्रियता तथा अनुक्रिया का सिद्धांत इस अभिकम की प्रमुख विशेषता है इसमें पाठ्य वस्तु को प्रस्तुत करने के साथ साथ अधिगमकर्ता या शिक्षार्थी को सतत् कार्य करनें अथवा सक्रिय रहने हेतु विवश किया जाता है इस प्रकार अधिगम की क्रिया के दौरान वह निरन्तर आगे बढ़ता हुआ व्यस्त एवं सक्रिय बना रहता है।

3. इसमें शिक्षार्थी की दुर्बलताओं एवं गलतियों की जांच की जाती है। इसके द्वारा नियमित रूप से शिक्षार्थी की प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है अतः शिक्षार्थी के अधिगम का मूल्यांकन भी होता रहता है।

4. मानसिक रूप से पिछड़े छात्रों के लिये श्रेष्ठ विधि है।

अभिक्रमित अनुदेशन के लाभ

1. इसमें छात्र स्व प्रयत्न ओर स्व गति से अध्ययन कार्य में निरन्तर सक्रिय रहकर ज्ञात से अज्ञान की ओर बढता रहता है इसलिये इसे स्व गति विधि भी कहा जाता है। 

2. इस विधि में स्वाध्याय का एक नियमित एवं विशिष्ट क्रम होता है इसलियेंही इसे ‘अभिक्रमित स्वाध्याय‘ के नाम से जाना जाता है।

3. इस अनुक्रम के अन्तर्गत छात्र सफलतापूर्वक पुनर्बलन प्राप्त करते हुए आत्मविश्वास को दृढ़ से द्ढतर करता हुआ आगे बढ़ता है इस दृष्टि से अभिक्रमित स्वाध्याय को स्व -अनुदेशन विधि कहते हैं।

4. छात्र इस अनुक्रम के अन्तर्गत व्यक्तिशः स्वयं के अनुभव के आधार पर अधिगम करता है अतः अभिक्रमित अध्ययन को व्यक्तिशः अनुदेशन विधि कहते है। 

5. यह कमजोर एवं पिछडे़ छात्रों के लिये उपयोगी है।

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