अल्सर के लक्षण और इसके मुख्य कारण

अल्सर के लक्षण

अल्सर रोग पाचन संस्थान से संबंधित है। अल्सर को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में पेप्टिक अल्सर के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में इसे उदर व्रण भी कहते हैं। आमाशय में लम्बे समय तक जलन या अति अम्लता या अम्लपित्त की स्थिति इस रोग को जन्म देता है। यह एक ऐसा रोग है जो प्रायः ग्रासनली (ईसोफेगस) के निचले छोर, आमाशय भित्ती अथवा ग्रसनी (ड्यूडेनम ) के प्रथम हिस्से या पायलोरिक वाल्व के ठीक पास किसी भी स्थान में हो सकता है। अक्सर इस रोग से पीडि़त रोगी अपच या पेट में बराबर दर्द की शिकायत करता है। 

इस रोग की पहचान शुरूआत में कठिन होता है क्योंकि इसके अधिकांश लक्षण अपच के लक्षणों से मिलता-जुलता है। चिकित्सा विज्ञान में इसका निदान बेरियम का घोल पिलाकर एक्सरे द्वारा गैस्ट्रोस्कोपी के माध्यम से किया जाता है। पेप्टिक अल्सर दोनों रूप में हो सकते हैं- तीव्र या जीर्ण अवस्था में। दोनों ही अवस्था में आमाशय या ग्रसनी के मसकुलेरिस म्युकोसा स्तर का क्षय होने लगता है।

पेप्टिक अल्सर को दो रूपों में विभाजित किया जाता है-

1. आमाशय का अल्सर या गैस्ट्रिक अल्सर-यह आमाशय की भित्ति में पाया जाता है।

2. ग्रसनी का अल्सर या ड्यूडेनल अल्सर - यह आमाशय के निचले हिस्से से जुड़ी हुई ग्रसनी के प्रथम हिस्से में पाया जाता है। इनके लक्षणों तथा प्रभाव के ढंग में कुछ भिन्नता पाई जाती है।

1.गैस्ट्रिक अल्सर (आमाशय का अल्सर): जीर्ण गैस्ट्रिक अल्सर का 90 प्रतिशत मामला या तो आमाशय के लेसर कर्व या बाॅडी के मध्य भाग में पाया जाता है इस रोग में रोगी अक्सर छाती के मध्य भाग में तीव्र दर्द महसुस करता है। यह दर्द प्रायः भोजन के कुछ देर बाद तेज हो जाता है। पेट के उपरी भाग को दबाने से भी दर्द महसुस होता है। जीर्ण अवस्था में जब इस घाव के उत्तेजना से रक्त स्त्राव होने के कारण रक्त की उल्टियाॅं भी हो सकती है। चुॅकि यहाॅं दर्द की तीव्रता भोजन के बाद बढ़ जाती है अतः रोगी की भूख भी भयवश समाप्त हो जाता है। समुचित आहार या भूख की कमी से रोगी के शरीर का वजन भी घटने लगता है। शराब का सेवन, धुम्रपान, गरिष्ट मिर्च-मसालेदार भोजन रोग की तीव्रता को और अधिक बढ़ा देता है। 

इस रोग को मनोकायिक (सायकोसोेमेटिक) माना जाता है। व्यक्तित्व के कुछ खास प्रकार जैसे अत्यधिक प्रतिस्पद्र्धी, जीवन में अत्यधिक तनाव वाले व्यक्ति में इसकी सम्भावना अधिक रहती है। ऐसे व्यक्ति की निराशा, कुण्ठा आदि भाव को सहन करने की क्षमता कमजोर होती है तथा व्यक्ति इससे बचने के लिए मद्यपान, धुम्रपान आदि का सहारा लेता है। इस रोग से पीडि़त व्यक्ति अक्सर चिंताग्रस्त दिखाई देते हैं। 

इन्हीं कारणों से रोग उत्पन्न होने की संभावना तथा इस रोग की तीव्रता में वृद्धि होती है।

2.ड्यूडेनल अल्सर (ग्रसनी का अल्सर ): यह रोग ग्रसनी के उपरी हिस्से अर्थात् जहाॅ आमाशय के पाचित तथा रस मिला भोजन घोल के रूप में पाइलोरिक वाल्व से होकर पहुॅचता है। इसी हिस्से में अर्थात् ग्रसनी के प्रारंभिक भाग की भित्ति में यह घाव पनपता है। यहाॅं रोग से संबंधित पीड़ा या दर्द उदर के मध्य गहराई में महसुस होता है। यह दर्द रोगी को प्रायः खाली पेट अधिक अनुभव होता है तथा भोजन लेने के उपरांत कम पड़ जाता है। यहाॅं यह बात ध्यान देने योग्य है कि आमाशयिक अल्सर में दर्द या पीड़ा भोजन लेने से बढ़ता है जबकि ड्य ूडेनल अल्सर में भोजन ग्रहण के पश्चात् कम होने लगता है। अतः यह लक्षण आमाशयिक अल्सर से एकदम विपरीत है। रोगी इस दर्द को कम करने के लिए दिनभर कुछ न कुछ खाता रहता है। 

परिणामस्वरूप वजन बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। रात भर में पेट खाली हो जाने के कारण रोगी का प्रातः दर्द से नींद जल्द ही टूट जाता है। इसमें प्रातः दूध पीने से जल्द ही आराम मिलता है। दूध प्रायः अम्ल को शांत कर आमाशय एवं ग्रसनी की भित्ति पर शीलत प्रभाव डालता है। 

अल्सर के कारण

अत्यधिक चिंता, कुण्ठाग्रस्त या भयभित रहने वाले व्यक्तियों के मस्तिष्क के स्नायु तंत्र में दवाव रहता है। इस प्रकार के लगातार दबाव आवेग को उत्सर्जित कर अनुकम्पी एवं परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र, जो कि स्वैच्छिक तंत्रिकातंत्र का हिस्सा माना जाता है को उत्तेजित करते रहते हैं इन तंत्रिकाओं के आवेग आमाशय की भित्ती तक पहुंचकर उससे अम्ल का स्त्राव बढ़ा देता है। इससे आमाशयिक भित्ति की क्रियाशीलता बढ़ जाती है तथा उसमें तेज ऐंठन उत्पन्न हो जाती है। यह गतिविधि रात-दिन चलती रहती है। यदि पेट खाली हो तो अम्ल की मात्रा बढ़ती चली जाती है तथा अति अम्लता की स्थिति आ जाती है। 

गरिष्ठ तथा मसालेदार भोजन, शराब, धुम्रपान भी तंत्रिकाओं के आवेग को बढ़ाता है। जिससे बार-बार अपच तथा आमाशयिक भित्ति में क्षोभ व सूजन उत्पन्न होती रहती है। जैसे ही अति तीव्र अम्ल युक्त जठर रस जिसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पेप्सिन की मात्रा अधिक होती है, इस सूजन या रूग्न भित्ति के सम्पर्क में आता है तो संक्षारक प्रक्रिया से छाले बनने लगते हैं तथा जलन एवं दर्द बढ़ने लगता है। जठर रस में उपस्थित अम्ल की तीव्र संक्षारक प्रक्रिया तथा रूग्न भित्ति की धटी हुई प्रतिरोधक क्षमता दोनों ही एक साथ मिलकर भित्ति की पेशियों और स्तर को क्षय कर घाव उत्पन्न कर देते हैं। 

अल्सर के प्रमुख कारण बिन्दुवार इस प्रकार हैं-

  1. धूम्रपान - यह ड्यूडेनल अल्सर की तुलना में गैस्ट्रिक अल्सर के लिए अधिक जिम्मेदार माना जाता है जैसे ही अल्सर पैदा होता है धूम्रपान इसे और अधिक जटिल बना देता है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण भी हैं-
  2. एच. पायलोरी नामक जीवाणु का संक्रमण
  3. कुछ दवा का सेवन जैसे एस्प्रीन, नाॅन स्टेराॅयडल एण्टी इन्फ्लामेटरी ड्रग्स आदि
  4. खाद्य विषाक्तता, इन्फ्लूएन्जा, सेप्टिसेमिया आदि संक्रमण
  5. भावनात्मक तथा मानसिक तनाव
  6. अत्यधिक चाय-काॅफी का सेवन, अति भोजन की प्रवृति आदि
  7. मौसम एवं जलवायु जनित तनाव भी कुछ हद तक इसका कारण माना जाता है।
  8. अनुवांशिक अर्थात् मात-पिता से धरोहर के रूप में भी आ सकता है
  9. सामाजिक एवं आर्थिक वातावरण-जैसे गैस्ट्रिक अल्सर प्रायः गरीबों में अधिक पाया जाता है, जबकि ड्यूडेनल अल्सर सभी वर्गों के लोगों में पाया जाता है।
  10. लिंग भी अल्सर से संबंध रखता है जैसे ड्यूडेनल अल्सर पुरूषों में स्त्रियों की अपेक्षा पाॅंच गुणा अधिक पाया जाता है। तथा गैस्ट्रिक अल्सर दो गुणा अधिक देखा गया है। कुल मिलाकर अल्सर की गम्भीर अवस्था पुरूषों में स्त्रियों की अपेक्षा दस से बीस गुणा अधिक देखा गया है।

अम्लपेप्सिन बनाम म्यूकोसल अवरोध: प्रायः अल्सर तब पैदा होता है जब उत्तेजक और उत्प्रेरक कारकों के बीच असंतुलन पैदा हो जाता है जैसे अम्ल और पेप्सिन का संक्षारक क्षमता एवं आमाशय और ग्रसनी के म्यूकोसा स्तर जो कि इस अम्ल एवं पेप्सिन के संक्षारक क्षमता से भित्तियों की सुरक्षा करता है। यह म्यूकोसल अवरोध गैस्ट्रिक-म्यूकोसल-बेरियर का कार्य करता है।

अल्सर के लक्षण

  1. दीर्घकालिन अपच
  2. भोजन के बाद पेट में पीड़ा खासकर गैस्ट्रिक अल्सर में, सामान्यतः आमाशय के उपरी हिस्से में
  3. ड्यूडेनल अल्सर में भोजन के निर्धारित समय के बीच या खाली पेट रहने पर पीड़ा बढ़ती है तथा दूध या भोजन लेने के पश्चात् आराम मिलता है। यह दर्द रोगी को सुबह 2-4 बजे के बीच जगा देता है क्योंकि इस समय पेट खाली हो जाता है।
  4. गैस्ट्रिक अल्सर का दर्द प्रायः भोजन के घण्टे भर बाद शुरू होता है। दोनों ही स्थिति में दर्द एक निश्चित समय पर महसुस होता है एवं फिर बंद हो जाता है।
  5. भूख की कमी, जी मिचलाना, उल्टी, वजन में कमी (गैस्ट्रिक अल्सर में), छाती में जलन, अधिक लार बनना
  6. अल्सर की गम्भीर अवस्था में वमन के समय खून का आना या मल के साथ काला रक्त बाहर आना। अचानक वमन के साथ रक्त आने से रोगी को मानसिक सदमा लगता है तथा रक्त की कमी के कारण कमजोरी आती है।

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