अन्वेषण विधि क्या हैं ? इसके सिद्धांत, गुण व दोष की विवेचना

अन्वेषण विधि

अन्वेषण विधि के जन्मदाता लंदन के प्रोफेसर आर्मस्ट्रांग हैं। इन्होंनें Heurisco नामक ग्रीक शब्द पर इस विधि का नामांकन किया। इस शब्द का अर्थ हैं - मैं स्वयं खोजता ह I Find out myself इस विधि का आधार अर्ज न की प्रक्रिया हैं वस्तुतः यह विधि स्वयं अन्वेषण करने की विधि हैं अतः इस विधि का उद्देश्य छात्रों में अन्वेषण प्रवृति को जाग्रत करना हैं तथा छात्रों को स्वयं चिन्तन अवलोकन निरीक्षण एवं प्रयोग तथा प्रयोग कर सही निष्कर्ष निकालना हैं यह विधि जीव विज्ञान हेतु सबसे अधिक उपयुक्त मानी जाती हैं।

अन्वेषण विधि की परिभाषा

आर्मस्ट्रांग के अनुसार - ‘‘अन्वेषण विधि वह विधि हैं, जो छात्रों को यथा संभव एक अन्वेषक की स्थिति में ला देती हैं विधियां जिसमें केवल वस्तुओं के विषय में कहें जाने की बजाय उनकी खोज को अधिक आवश्यक माना गया हैं।

हरबर्ट स्पेन्सर के अनुसार - बालकों को कम से कम बताना चाहिए ओर उन्हें अधिक से अधिक स्वयं खोज निकालनें के लिये प्रेरित करना चाहिए।

अतः इस विधि में छात्र एक आविष्कारक की भांति कार्य करता हैं। छात्र किसी समस्या का विश्लेषण विभिन्न पुस्तकों तथा शिक्षक की सहायता लेकर कर सकता हैं। इससे वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचता हैं सक्रिय होकर समस्या का समाधान करता हैं

अन्वेषण विधि के सिद्धांत

अन्वेषण विधि निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित हैं। 
  1. वैज्ञानिक दृष्टिकोण:- इस विधि द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न किया जा सकता हैं इससे उनमें वैज्ञानिक अभिरूचि तथा निरीक्षण का विकास होता हैं।
  2. क्रियाशीलताः- छात्र किसी समस्या पर प्रयोग करके हल निकालते हैं तथा क्रियाशील रहते हैं, म ूक दर्शक बनकर नहीं रहते।
  3. मनोवैज्ञानिक विकासः- इस विधि में छात्रों की मानसिक शक्तियों एवं मनोभावों के अनुरूप पाठन होता हैं अतः वह अपनी रूचि एवं योग्यता के अनुरूप ज्ञान प्राप्त कर उन शक्तियों का विकास करते हैं।
  4. करके सीखना:- इस विधि में छात्र प्रयोग करके सीखता हैं अतः चिन्तनशीलता आत्म विश्वास, आत्म अनुशासन तथा परिश्रम करने की आदत का विकास होता हैं।

अन्वेषण विधि के गुण 

अन्वेषण विधि के निम्नलिखित गुण हैं:- 
  1. छात्रों में सोचने विचारने निरीक्षण करने एवं परीक्षण कर निष्कर्ष निकालने की शक्ति का विकास होता हैं।
  2. यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं तथा अनुकूल रुचियों एवं आदतों का विकास करती हैं।
  3. इस विधि में प्रत्येक छात्र को सीखनें का अवसर मिलता हैं तथा अध्यापक के सम्पर्क में छात्र रहता हैं।
  4. छात्र में स्वयं करके सीखनें की प्रवृति का विकास होता हैं।
  5. छात्र क्रियाशील रहते हैं एवं इससे अर्जित ज्ञान स्थायी होता हैं।
  6. छात्रों में आत्मसंयम, आत्मानुशासन एवं आत्म विश्वास जाग ्रत होता हैं।
  7. यह विधि वैज्ञानिक अभिरूचि एवं दृष्टिकोण उत्पन्न करती हैं तथा अवलोकन एवं प्रयोग पर बल देती हैं।
  8. इससे समस्या पर विस्तृत रूप से चिन्तन का अवसर मिलता हैं अतः सोचने के आधार के साथ स्वाध्याय की भी आदत बनती हैं।
  9. इस विधि में छात्रों को गृह कार्य नहीं दिया जाता। छात्र अपना समस्त कार्य विद्यालय में ही समाप्त कर लेते हैं इससे छात्रों को शिक्षा बोझ नहीं लगती।
  10. इस विधि में छात्र अध्यापक संबंध आत्मिक होते हैं क्योंकि अध्यापक छात्र पर ध्यान देता हैं।

अन्वेषण विधि के दोष

इस विधि में निम्नलिखित दोष हैं:-
  1. यह विधि केवल उच्च कक्षाओं के लिये उत्तम हैं। छोटी कक्षाओं के लिये उपयुक्त नहीं हैं क्यों कि छोटी आयु के छात्रों का मानसिक विकास इतना उच्च नहीं होता कि केवल सीमित तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाल सकें। 
  2. केवल प्रतिभाशाली छात्रों के लिये उत्तम हैं, समस्त छात्रों के लिये नहीं। 
  3. इस विधि के लिये विद्यालयों में पर्याप्त पुस्तकों, वस्तुएं तथा उपकरणों का अभाव रहता हैं। 
  4.  ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया धीमी होती हैं, क्योंकि छात्र शीघ्रता से निष्कर्ष नहीं निकल पाते। 
  5. सम्पूर्ण पाठ्यक्रम इस विधि से पूरा नहीं हो पाता 
  6. भारत जैसे देश में यह विधि अत्यधिक व्यय साध्य हैं उत्तम प्रयोगशाला ओर प्रतिभाशाली अध्यापक के बिना यह विधि कल्पना मात्र ही रह जाती हैं। 
  7. प्रत्येक छात्र को इस विधि से प्रत्येक पाठ को पढाना प्रत्येक अध्यापक के लिये संभव नहीं हैं केवल विशेष ढंग से विद्वान व्यक्ति ही इस विधि का प्रयोग कर पढा सकते हैं आधुनिक समय में प्रशिक्षित योग्य, परिश्रमी निष्ठावान आत्मनिर्भर एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले शिक्षकों का अभाव हैं। 
  8. केवल उच्च स्तर के लिये ही उपयोगी हैं क्योंकि क्षमता के अनुरूप सैकण्डरी स्तर पर ही वह समस्या का विश्लेषण कर पाता हैं।

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