दमा या अस्थमा के प्रमुख लक्षण व उनके प्रकार

अस्थमा के लक्षण

दमे का दौरा सामान्यत यह अचानक आरम्भ होता है। परन्तु चेतावनी के रूप में उदासी आलस्य, निद्रा, अपच अत्यधिक मात्रा में नाक से कफ निकलना श्वास कस्ट पसीना छूटता है। दमे का आक्रमण दम (श्वास) फूलने के रूप में दिखाई देता है। इसमें सांस लेने वाली नलिकाओं के संकुचित होने और उसमें कफ जम जाने से रोगी को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है और जब सीने की असंख्य नलियाॅ कफ से भर जाती है तो दमे का दौरा पडता है। जो आधे से एक घण्टे तक चल सकता है। जब कफ ढीला होकर पिघलने लगता है। तो दमे का दौरा शान्त हो जाता है। प्रकोप के दौरान श्वास नलिकाओं की अनैच्छिक मांसपेशियों में संकुंचन होने लगता है फलस्वरूप आने जाने वाली वायु की मात्रा कम हो जाती है श्वसन को सामान्य करने के लिए रोगी को सहायक मांसपेशियों की सहायता लेनी पड़ती है। रोगी गले की मांसपेशियेां पर दबाव डालता है तथा वायु रेचन के लिए छाती की समस्त मांसपेशियों का उपयोग करता है। (सामान्य श्वसन में इसका प्रयोग नहीं होता है) असामान्य श्वसन में रोगी जल्द ही थकान का अनुभव करने लगता है। 

जब फेफड़ों की नलियों में किसी कारणवश अकड़न या संकुचन उत्पन्न होता है तो सांस लेने में तकलीफ होती है, यही अवस्था सांस रोग, दमा या अस्थमा कहलाती है।

दमा या अस्थमा के लक्षण

  1. श्वास लेन में कठिनाई
  2. अत्यधिक मात्रा में नाक से कफ निकलना
  3. श्वास कष्ट के समय पसीना आना
  4. दम घुटने की अनुभूति होना
  5. श्वास लेते हुए सीटी के समान आवाज होना
  6. अवसाद बैचेनी खांसी होना
  7. रोगी झुककर चलता है।
  8. थोड़े सेपरिश्रम से श्वास अत्यधिक फूलने लगता है।
  9. रोगी सीधा लेट नहीं पाता
व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली और एलर्जी के लिये प्रतिरोध के स्तर के आधार पर दमा के कारण अलग होते हैं प्रतिरोध के उच्च स्तर श्वसन में हवा के बहाव की रूकावट का कारण बनता है, हालांकि सांस की मांशपेशियां दिन या हृदय को आक्सीजन पंप करने के लिये बहुत अधिक मेहनत करती है तथा समय के साथ ज्यादा तनाव के कारण अधिक कमजोर हो जाती है।

मांशपेशियों पर श्वसन और हवा के आदान प्रदान की प्रक्रिया की सहायता करने के बावजूद रक्त नलिकायें सहायता करने के लिये असमर्थ होती है जिसके परिणामस्वरूप श्वसन तन्त्र प्रभावित होता है तथा मांसपेशियों की ऐठन और श्वसनी दीवार मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। ठण्डी और शुष्क हवा, धुंआ प्रदूषण, परागकण धूल कवच तनाव, चिंता और श्वसन संक्रमण जैसी एलर्जी कारकों से आप में दमा के विकास की संभावना में वृद्धि हो जाती है।

हर व्यक्ति में यह लक्षण एक समान नहीं हो सकते हैं लेकिन श्वसनी दमा का सामना करने वाले लोगों में श्वसनी दमा के हल्के व गंभीर लक्षणों के उतार चढ़ाव देखते को मिल सकते हैं और श्वसनी दमा का अटैक भी आ सकता है, आमतौर पर श्वसनी दमा लाइलाज है लेकिन उसे रोकने के कई उपाय हैं जिसमें हवा फिल्टर का उपयोग करके, अपने पर्यावरण को नियन्त्रित करना धूल मुक्त गद्दे व तकिये के कवर को सुनिश्चित करना तथा बहुत अधिक ठण्ड और शुष्क मौसम की स्थिति से बचना।

आहार:- अस्थमा रोगियों को इस बात का ध्यान देना चाहिये कि उन्हें अस्थमा का अटैक ना पड़े यानि उन्हें अस्थमा अटैक से बचाने वाले आहार पर भी खास ध्यान देना चाहिये कई बार अस्थमा रोगियों को यह पता नहीं होता है कि जिस आहार को वे ले रहे हैं उससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

दमा या अस्थमा को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ

अस्थमा के मरीजों को दूध और इससे बनने वाले खाद्य पदार्थ जैसे दही, आइसक्रीम, पनीर घी इत्यादि से बचना चाहिये क्योंकि इनसे कफ, खाँसी तथा छींक जैसी समस्यायें बढ़ जाती है।

प्रोसेस्ड फूड:- इस तरह के खाद्य प्रदार्थ रोगियों के लिये नुकसान देय होते हैं क्योंकि प्रोसेस्ड फूड लेने से साधारण अस्थमा एलर्जिक अस्थमा में बदल जाता है, खासतौर पर उन रोगियों को जिन्हें अस्थमा का अटैक पड़ता रहता है। नट्स:-इनके सेवन में न सिर्फ अस्थमा पीडि़तों की समस्यायें बढ़ जाती है अपितु अटैक भी जल्दी-जल्दी पड़ने लगते हैं ऐसे में अस्थमा के मरीजों को नट्स के सेवन से बचना चाहिये।

दमा या अस्थमा के प्रकार

दमा फेफड़ों को खासा प्रभावित करता है दमा के कारण व्यक्ति को श्वसन सम्बन्धी कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है दमा सिर्फ युवाओं और व्यक्तियों को ही नहीं अपितु बच्चों को भी अपनी चपेट में ले लेता है। हालांकि अस्थमा के इलाज के लिये इनहेलर भी दिया जाता है लेकिन इनहेलर के दुष्प्रभाव भी होते हैं। इसके अलावा सवाल ये उठता है कि दमा एक प्रकार का होता है या विभिन्न प्रकार का, आइये जानते हैं दमा के प्रकार का होता है या विभिन्न प्रकार का, आइये जानते हैं दमा के प्रकार।

1. एलर्जिक अवस्था - एलर्जिक अवस्था के दौरान आपको किसी चीज से एलर्जी है जैसे धूल- मिट्टी के सम्पर्क में आते ही आपकेा दमा हो जाता है या फिर मौसम परिवर्तन के साथ ही आप दमा के शिकार हो जाते हैं।

2. नाॅन एलर्जिक अस्थमा:-इस तरह के अस्थमा के कारण किसी एक चीज का एक्सट्रीम पर जाने से ऐसा होता है जब आप बहुत अधिक तनाव में हो, या बहुत तेज-तेज हंस रहे हांे या बहुत अधिक ठण्ड लग रही हो या बहुत अधिक खांसी जुकाम हो।

3. निमिक अस्थमा:-जब आपको स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई बीमारी जैसे निमोनियां, कार्डियक जैसी बीमारी हो तो आपको निमिक अस्थमा हो सकता है आमतौर पर मिमिक अस्थमा अधिक तबियत खराब होने पर होती है।

4. चाइल्ड आनसेट अस्थमा:- यह अस्थमा का वह प्रकार है जो सिर्फ बच्चों को होता है अस्थमैटिक बच्चा जैसे-जैसे बड़ा हो जाता है तो बच्चा अपने आप ही अस्थमा से उबरने लगता है यह ज्यादा रिस्की तो नहीं होता है पर समय पर इसका उपचार जरूरी होता है।

5. एडल्ट आनसेट अस्थमा:-यह अस्थमा युवाओं को होता है और अक्सर 20 वर्ष की आयु के बाद होता है इस प्रकार के अस्थमा के पीछे कई एलर्जिक कारण छिपे रहते हैं हालांकि इसका मुख्य कारण प्रदूषण, प्लास्टिक अधिक धूल-मिट्टी और जानवरों के साथ रहने पर होता है। विश्व अस्थमा दिवस 03 मई को माना जाता है विश्व अस्थमा दिवस मई महीने के पहले मंगलवार को पूरे विश्व में घोषित किया गया है।

अस्थमा रोगियों को पूरे जीवन भर विशेष सावधानियां अपनानी पड़ती है अस्थमा रोगियों हर मौसम में अतिरिक्त सावधानियां अपनानी पड़ती है तथा सांस ही अतिरिक्त सुरक्षा की भी आवश्यकता पड़ती है।

6. मिस्क्ड अस्थमा:-इस प्रकार का अस्थमा किसी भी कारण से हो सकता है कई बार ये अस्थमा एलर्जिक कारणों से, या नाॅन एलर्जिक कारणों से हो सकता है इतना ही नहीं इस प्रकार के अस्थमा होने के कारण का पता लगाना थोड़ा मुश्किल भी होता है।

7. एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमा:-कई लोगों को शारीरिक सक्रियता के कारण अस्थमा हो जाता है तो कई लोग क्षमता से अधिक कार्य करने लगते हैं तो वे अस्थमा के शिकार हो जाते हैं।

8. कफ वेरियंट अस्थमा:- कई बार अस्थमा का कारण वेरिएंट होता है जब आपको लगातार कफ की शिकायत रहती है या खांसी के दौरान अधिक कफ आता है तो आपको अस्थमा का अटैक पड़ सकता है।

9. आक्यूपेशनल अस्थमा:- यह अस्थमा अटैक अचानक काम के दौरान पड़ता है यदि आप नियमित रूप से एक ही जैसा काम करते हैं इस दौरान आपको अस्थमा का अटैक पड़ने लगते हैं या आपको अपना कार्यस्थल सूट नहीं होता हो जिससे अस्थमा अटैक पड़ जाता है।

10. नाइटटाइम या नाॅक्र्टनल अस्थमा:- यह एक विशेष प्रकार का अस्थमा होता है जो निश्चित समय पर अटैक आता है या अक्सर रात के समय अस्थमा अटैक पड़ने लगे तो यह समझना चाहिये कि आप नाॅक्र्टनल अस्थमा के शिकार हैं।

दमा या अस्थमा के आयुर्वेदिक उपचार

  1. तुलसी और अदरक का रस दोनों को 3-3 ग्राम शहद के साथ सेवन करें। 
  2. सफेद प्याज का रस 2 चम्मच तथा शहद दो चम्मच दोनों को मिलाकर पियें। 
  3. मदार की जड़ 10 ग्राम अजवायन 5 ग्राम तथा गुड़ 10 ग्राम सबको पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर प्रतिदिन 2 गोली गर्म पानी के साथ खायें। 
  4. गेहूं के हरे पौधे का रस नित्य पियें।
उपवास का प्रयोग करें रात में यदि भोजन न लें तो उत्तम रहेगा या अदरक नीबू तुलसी का काढ़ा बनाकर सेवन करें। 

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