डिप्रेशन (अवसाद) के कारण और लक्षण


अवसाद एक प्रमुख रोग है। विषाद या अवसाद से आशय मनोदशा में उत्पन्न उदासी से होता है अथवा यह भी कहा जा सकता है कि अवसाद से तात्पर्य एक नैदानिक संलक्षण से है, जिसमें सांवेगिक अभिप्रेरणात्मक, व्यवहारात्मक, संज्ञानात्मक एवं दैहिक या शारीरिक लक्षणों का मिश्रित स्वरूप होता हे।  इसे ‘‘ नैदानिक अवसाद’’ (clinical Depression) की संज्ञा भी दी जाती है। 

अवसाद के लक्षण

अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की पहचान के लिए अवसाद के लक्षणों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

कभी-कभी अवसाद स्वतः ठीक हो जाता है, लेकिन जब अवसाद का रोग मन की गहराई में उतर आता है तो वह रोगी के लिए अनेकानेक जटिल समस्यायें उत्पन्न करता है। अवसादी व्यक्ति में पाये जाने वाले महत्वपूर्ण लक्षण है-

1. अवसाद के मानसिक लक्षण

अवसादया डिप्रेशन स्वास्थ्य के लिए कष्टप्रद है। इससे ग्रसित व्यक्ति अकारण उदास रहता है।ये उदासी पूरे दिन किन्तु प्रातः काल मुख्य रूप से मन पर हावी होती है खिन्नता, निराशा, हतासा एवं कष्ट के मनोभाव उत्पन्न होते है। उसे किसी बात में कोई खुशी की अनूभूति नहीं होती है अपितु छोटी छोटी घटनाओं से दुःख से अहसास गहता होता रहता है ऐसे व्यक्ति का किसी काम में मन नही लगता और उसकी अभिरूचियाँ दिन-प्रतिदिन घटती जाती है। वह संवेदनहीन एवं निरूत्साही हो जाता है। ऐसे में उसे किसी से मिलने-जुलने में संकोच एवं हिचकिचाहट होती है।

1. एकाग्रता की कमी -अवसादी व्यक्ति का मन अशांत एवं अस्थिर होता हैं, उसमें एकाग्रता की कमी होने से वह किसी कार्य पर ठीक तरीके से केन्द्रित नहीं हो पाता है। ऐसी दशा में उसकी स्मृति या याददाश्त कमजोर पड़ जाती हैं।

2.पे्ररणा की कमी - अवसाद ग्रस्त व्यक्ति में प्रेरणा का स्तर बहुत कम होता है। वे अपने आपको दूसरों से कम समझते है। इनके मन में हीन भावना और कुण्ठा इतनी गहरी होती है कि इन्हें लगता हेै कि ये अपनी समस्याओं का निराकरण नहीं कर सकते है। परिणाम स्वरूप इनकी प्रेरणा का स्तर कम होता चला जाता है।

3. खुशी का अभाव - अवसाद ग्रस्त व्यक्ति प्रायः अपने आपको अकेला, दुःखी एवं उदास महसूस करता है। इन्हें जीवन से कोई आशा नहीं होती है। प्रकृति में इनको कोई आकर्षण नजर नहीं आता। जीवन में किसी भी परिस्थिति में इन्हें खुशी का अहसास नहीें होता। इनको हंसाना या प्रसन्न करना अत्यन्त दुष्कर है।

4.आत्मविश्वास की कमी - अवसाद ग्रसित व्यक्ति सामान्यतः अपने को अयोग्य एवं असमर्थ मानता है। जीवन में मिली असफलताओं के कारण उसका आत्म विश्वास एवं आत्म सम्मान निरन्तर घटता जाता है। अवसाद का रोगी किसी पर शीघ्र विश्वास नहीं कर पाता, इसके साथ-साथ उसका स्वयं पर से भी भरोसा उठ जाता है।

5.निराशावादी दृष्टिकोण - अवसादी अपने निराशावादी दृष्टिकोण के कारण स्वयं दुःखी एवं निराशा होता रहता है। इनकी निराशा विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त होती है। कुछ रोगी अन्तर्मुखी हो जाते है, वे प्रायः बहुत कम बोलते है और किसी कार्य की पहल करने से घबड़ाते है। कुछ अन्य अवसादग्रस्त व्यक्ति अपनी ही गल्तियाँ ढूंढते और हीन भावना से ग्रसित होते रहते है। जबकि दूसरे बहुत से अवसादी रोगी औरों की गल्तियाँढूढ़ते और चिन्तित होते है। अनेक रोगी निराशावादी चिन्तन में डूबे और गुमसुम रहते है। अपने निराशावादी दृष्टिकोण के कारण विविध कार्यों में इन्हें असफलता हाथ लगती है और साथ ही इनके पारिवारिक एवं सामाजिक सम्बन्ध भी बिखर जाते है।

6.नकारात्मक चिन्तन - अवसादी व्यक्ति का नकारात्मक चिन्तन अवसाद को गम्भीर बना देता है।नकारात्मक चिन्तन के कारण वे स्वयं को बुरा, गलत, कमजोर और दीन-हीन मानते हैं। अपनी ही गलतियाँ खोजकर परेशान और निराश होते हैं। अपनी असफलता के लिए स्वयं को जिम्मेदार समझते हैं। कुछ अवसादग्रस्त रोगी चिड़चिड़े हो जाते है और उन्हें गुस्सा आता है।

7. अपराध बोध - अवसाद के रोगी अपनी वर्तमान अवस्था के लिए स्वयं को दोषी ठहराते है। उनके भीतर अपराध की भावना इतनी गहरी हो जाती है, जिसके लिए वे प्रत्येक दिन स्वयं को कोसते रहते हैं।

8.आत्म हत्या के विचार - अवसाद ग्रस्त रोगी में जब आत्महत्या की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है, तो वह विभिन्न सांकेतिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से उसे प्रकट करता है। जिसे दर्शाने वाली कुछ सांकेतिक प्रतिक्रियाए इस प्रकार है- आत्महानि या दूसरों को नुकसान पहुँचाने की बात करना उसके लिए योजनाएं बनाना, छोटी-छोटी बातों पर रोना, परिवार के सदस्यों, मित्रादि से बचना एवं एकान्त प्रिय होना आदि।

2. अवसाद के शारीरिक लक्षण

अवसाद न केवल रोगी के मानसिक स्वास्थ्य अपितु शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। शारीरिक स्वास्थ्य के अन्तर्गत दिखने वाले लक्षणों में प्रमुख है-

1.अनियन्त्रित नींद - अवसाद के रोगी में नींद का सामान्य क्रम गड़बड़ा जाता है जिसके कारण रोगी अनिद्रा या फिर हाइपरसोमनिया का शिकार हो जाता है। अनिद्रा ग्रस्त रोगी को नींद न आने की शिकायत हो जाती है यदि नींद आ भी जाती है तो बहुत जल्दी टूट जाती है। जिसके कारण वह सुस्त और निष्क्रिय हो जाता है।

 हाइपरसोमनियाके अन्तर्गत अत्यधिक एवं अनियन्त्रित रूप से नींद आती है जिससे रोगी निष्क्रिय एवं निश्चेष्ट बना रहता है।

2.अनियन्त्रित भूख - अवसाद के रोगी की भोजन ग्रहण की शक्ति अवरोधित हो जाती है जिसके कारण भूख में अनियमितता प्रकट होती है और रोगी की भूख या तो बढ़ जाती है जिससे वह ज्यादा खाने लगता है या फिर भूख कम होने से भोजन ग्रहण की मात्रा घट जाती है। रोगी के शारीरिक वजन में भी परिवर्तन दिखाई पड़ता है। उसके शारीरिक भार में वृद्धि या कमी आ जाती है।

3.यौन के प्रति रूचि का घटना - अवसाद के रोगी में यौन के प्रति रूचि स्पष्ट रूप से घटती जाती है। रोगी में नपुंसकता एवं बाँझपन की शिकायत उत्पन्न होने लगती है।

4.अन्य शारीरिक रोग - अवसाद रोगी का प्रतिरक्षा तन्त्र कमजोर पड़ जाने से रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर पड जाती है। अवसाद से हृदय एवं मस्तिष्क को भारी क्षति होती है। हृदय रोगों के अन्तर्गत हार्ट अटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है। हृदय रोग और मस्तिष्क रोग से मृत्यु का खतरा उत्पन्न हो जाता है। अवसादी में सिर दर्द की शिकायत उत्पन्न हो जाती हैं।पाचन सम्बन्धी समस्याओं के अन्तर्गत कब्ज, अपच आदि की शिकायत प्रारम्भ हो जाती है,जो मात्र शारीरिक उपचार से कम नहीं होती है।

5. ऊर्जा की कमी - अवसाद का प्रभाव शारीरिक और मानसिक निष्क्रियता के रूप में दृष्टि गोचर होता है। जिसके कारण शरीर ऊर्जाहीन सा हो जाता है और रोगी की कार्य क्षमता घटने लगती है।

3. अवसाद के मनोगति लक्षण

अवसाद के रोगी में मनोगति के अन्तर्गत मनोगति उत्तेजना तथा मनोगति मन्दन दो प्रकार के लक्षण पाये जाते है।

1. साइकोमोटर एजिटेशन(मनोगति उत्तेजना)-इसके अन्तर्गत रोगी उत्तेजना एवं बैचेनी का अहसास करता है। वह सक्रिय रहता है किन्तु उसकी क्रियायें उद्देश्यपूर्ण नहीं होती है।

2. साइकोमोटर रिटार्डेशन (मनोगति मन्दन)-इसके अन्तर्गत रोगी का मनोगति व्यवहार मन्द पड़ जाता है। रोगी अपने आपको कार्यो के बोझसे लदा हुआ पाता है। मन्दन(रिटार्डेशन) का यह प्रभाव उसकी वाणी पर स्पष्ट दिखाई देता है।

अवसाद के इन लक्षणों से आपको स्पष्ट रूप से परिचय मिलता है कि अवसाद रोगी के मनोसंवेग, शरीर एवं व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है। रोगी दुःख की गहराईयों में इस तरह डूब जाता है कि उसे अपनी समस्या का निराकरण असम्भव लगता है।

अवसाद के कारण

अवसाद के कारणों को कई प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है। इनमें शारीरिक या जैविक कारक, मनोगतिक कारक, अधिगम कारक और संज्ञात्मक कारक अवसाद के विकास में प्रमुख भूमिका निभाते है।

1. शारीरिक या जैविक कारक-

आनुवांशिक एवं न्यूरोट्रांसमीशन अवसाद के विकास को प्रभावित करने वाले दो मुख्य जैविक कारक है-

1. आनुवंशिक कारक- माता-पिता एवं पूर्वजों के माध्यम से बच्चों में अवसाद के पहुँचने या जननिक रूप से अवसाद रोग से ग्रसित होने की सम्भावना बहुत अधिक होती है।

2. न्यूरोट्रांसमीशन कारक- अवसाद के विकास में न्यूरोट्रांसमीटर की प्रमुख भूमिका होती है। न्यूरोट्रांसमीटर मस्तिष्क में पाये जाने वाले ऐसे रसायन है जो दो न्यूरोन्स के मध्य के सन्धिस्थल पर पाये जाते है और सूचनाओं के संचारण के लिए उपयोगी होते है। सीरोटोनिन एवं नोर एपिनेफ्रीन अवसाद अवसाद के लिए उत्तरदायी दो न्यूरोट्रांसमीटर है, इन्हें संयुक्त रूप में कैटेकोलामीन्स कहते है। इनकी उपस्थिति में मस्तिष्क एवं शरीर के हिस्सों में लयबद्धता स्थापित होती है जबकि इनकी कमी अवसाद को उत्पन्न करती है।

2. मनोगतिक कारक

मनोगतिक कारकों में शारीरिक रोग एवं भौगोलिक परिवर्तन आदि अनेक कारणों से उत्पन्न तनाव के द्वारा अवसाद के विकास की सम्भावना बन जाती है। बचपन के दुखद अनुभवों के साथ-साथ दोषपूर्ण पारिवारिक पारस्परिक क्रिया का प्रभाव अवसाद को उत्पन्न करता है।

3. अधिगम या व्यवहारात्मक कारक

अवसाद को विकसित करने वाले अधिगम कारणों में पुरस्कार एवं दण्ड का अनियन्त्रित एवं असंतुलित विधान शामिल है। जब किसी व्यक्ति को कम पुरस्कार या अधिक दण्ड मिलता है या फिर किसी कार्य के लिए पुरस्कार न देकर दण्ड दिया जाता है। ऐसी दशा में उसका आत्मसम्मान कम हो जाता है। जिससे उसके उस व्यवहार के पुनः घटित होने की सम्भावना कम हो जाती है यह घटी हुई क्रियाशीलता अवसाद का प्रमुख लक्षण है।

4. संज्ञानात्मक कारक-

अवसाद का विकास संज्ञानात्मक कारक के अन्तर्गत नकारात्मक संज्ञानात्मक प्रवृत्ति और अर्जित निस्सहायता इन दो तरह से होता है। बेक(1976) के मतानुसार नकारात्मक संज्ञानात्मक प्रवृत्ति वाला व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत कमजोरियों पर अधिक ध्यान देने लगता है और किसी विषय या समस्या के सम्बन्ध में नकारात्मक ढ़ग से सोचता है तो अवसाद से घिर जाता है।

अर्जित निस्साहता भी अवसाद को उत्पन्न करती है। लम्बे समय से तनावयुक्त एवं दुखद वातावरण में रहने पर निस्सहायता का भाव जड़ जमा लेता है और तब पलायन या उपेक्षा कर पाना सम्भव नहीं होता। ऐसे निस्सहायता के भाव में अवसाद पनपता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post