हड़प्पा सभ्यता #सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल

हड़प्पा सभ्यता के कुछ स्थलों को लेते है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, इस चरण की मुख्य विशेषताओं में से एक इस संस्कृति में इसकी पूर्ण एकरूपता है। सिंधु, पंजाब या राजस्थान में स्थित भवन 1ः2ः4 के अनुपात वाली ईंटों का उपयोग करके बनाए गए थे। घर की ईंटों के आयाम 7×14×28 से.मी. थे और शहर की दीवार के लिए यह 10×20×40 से.मी. था। नगरीय योजना में अधिकांश बस्तियों को दो क्षेत्रों में विभाजित किया गया थाः नगर-दुर्ग और निचला नगर। दोनों दीवार से घिरे या किलाबंद थे। नगर-दुर्ग टीले में हम अक्सर महत्वपूर्ण इमारतों और कुछ सांयोगिक निवासों को पाते हैं। अधिकांश निवास और कार्यशालाएं निचले शहर में स्थित थे। 

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल का वर्णन, हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल कौन-कौन से हैं -

1. सिंध में मोहनजोदड़ो 

हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और कालीबगंन जैसे कुछ स्थलों में निचले शहर से कुछ दूरी पर अक्सर नगर-दुर्ग का निर्माण किया गया था, जबकि अन्य स्थलों, जैसे कि बनावली, लोथल और धोलावीरा में दोनों एक ही परिसर में स्थित थे। हडप़्पा बस्तियों की सबसे प्रभावशाली विशेषताओं में से एक उनकी जल निकासी व्यवस्था है।

खुदाई की जाने वाले पहली बस्तियों में से एक, मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के पश्चिम में स्थित है। इसका विस्तार क्षेत्र लगभग 200 हेक्टेयर है। स्थल में दो टीलें हैं। एक पश्चिमी नगरदुर्ग और दूसरा पूर्वी निचला शहर। दोनों टीले एक कृत्रिम चबूतरे पर बनाए गए हैं आरै इनकी किलाबंदी की गई है। इसकी आबादी लगभग 20,000 से 40,000 लोगों की आंकी गई हैं।

यहां कुछ प्रमुख इमारतों की खोज की गई थी। सबसे प्रसिद्ध एक संरचना है जिसे महान स्नानागार के रूप में जाना जाता है।

यह लगभग 14.5 मीटर लंबाई में, 7 मीटर चैडा़ ई में आरै 2.4 मीटर गहराई में है। यह जिप्सम गारे (Mortar) में स्थापित ईंटों से बना है। फर्श और उस तक जाने वाली सीढि़यों को डामर (Bitumen) की एक परत के प्रयोग के माध्यम से जलरोधक बनाया गया था। इसके अलावा, फर्श पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक छोटी सी प्रवेशिका नाली थी जो एक निकास नाली से जुड़ी थी। ऐसा पानी को नियमित करने के लिए किया गया था। दक्षिण की ओर जहां प्रवेश द्वार लगता था, को छोड़कर सभी तरफ़ ईंटों के स्तम्बों से स्नानागार 127 घिरा हुआ लगता है। स्नानागार का उद्देश्य बहस का मुद्दा हैं। कई लागे ों के अनुसार यह  अनुष्ठानिक प्रक्षालन के लिए उपयोग होता था, जबकि अन्य लोग इसे सार्वजनिक ताल मानते हैं।

महान स्नानागार से सटी कुछ संरचनाओं की पहचान ‘पुरोहित परिसर’ और ‘अन्न.कोठार’ के रूप में की गई है। टीले के दक्षिणी किनारे पर एक चैकोर संरचना की व्याख्या ‘सभा-भवन’ के रूप में की गई है जहाँ निवासी महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हाते े थे। सामान्य तौर पर, पूर्वी टीले पर बने घरों में कमरो से घिरा एक आंगन है। कमरों की संख्या भिन्न दिखती है। दीवारों की मोटाई इंगित करती है कि कुछ घर दो मंजिला थे। छोटे घर कार्यशाला के रूप में भी कार्य कर सकते थे। अधिकांश घरों में शौचालय थे जो शहर की जल निकासी प्रणाली से अच्छी तरह से जुड़े हुए थे। पानी के लिए शहर में लगभग 700 कुएँ थे। अनेक घरों में निजी कुएँ भी थे।

2. पंजाब में हड़प्पा (पाकिस्तान)

यह स्थल रावी नदी के सूखे नदी तल के पास स्थित है। नगर-दुर्ग क्षेत्र मोटी मिट्टी कीर् इंंटों की दीवार से घिरा हुआ था। इसके उत्तर में एक और टीला है जिसकी व्हीलर ने एक अन्न-कोठार के रूप में पहचान की है । केंद्रीय गलियारे द्वारा अलग किए गए दो खंड हैं। प्रत्येक खंड में लगभग पाँच कमरे थे। आज जो दीवारें बची हैं उनमें कुछ अंतराल हैं। यह व्हीलर के अनुसार अनाज को ताज़ा रखने के लिए वायु परिसंचरण प्रदान करता था। रोमन सभ्यता के अन्न भंडारों में इसी तरह की एक समान तकनीक को अपनाया गया था। इस परिसर के दक्षिण में पकी हुई ईंटों के वृत्ताकार चबूतरों की एक श्रृख्ंला की खाजे की गई है। वे आज भारत में पाए जाने वाले खलिहानों से घनिष्ठ रूप से मिलते जुलते हैं। जले हुए गेहूं और भूसी उतारी जौ दरारों में पाए गए हैं। यह इस तथ्य की पुष्टि करता है कि यह संरचना एक अन्न-कोठार थी।

3. कालीबंगा (राजस्थान)

यह स्थल अब सूख चुकी घग्गर नदी के पश्चिम में स्थित है। स्थल पर पश्चिम में एक उच्च नगर-दुर्ग का टीला और पूर्व में एक निचला आवासीय टीला भी है। अंदर, नगर-दुर्ग को एक दीवार द्वारा उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र में विभाजित किया गया है। उत्तरी क्षेत्र में हमें कुछ घर 128 और एक सड़क प्राप्त हुई हैं। दक्षिणी क्षेत्र में  कोई आवासीय सरं चना नहीं  है। इसके बजाय मिट्टी की ईंट के चबूतरों की एक श्रृंखला है। चबूतरों में से एक में े कुछ वेदिया हैं जिनमें राख, लकडी़ का कायेला और चिकनी मिट्टी का प्रस्तर पट्ट मिला है। इसके बगल में कुछ स्नान करने वाले चबूतरे हैं जो एक कडि़योंदार नाले से जुड़े हैं। संपूर्ण परिसर एक बलि संबंधी पंथ के अभ्यास का संकेत देता है, हालांकि यह विवादित है।

पूर्वी निचले टीले के अवशेषों में भी अग्नि वेदियों की खोज की गई है। कुछ घर शायद दो मंजिला थे। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, उनके पास आग की अंडाकार वेदियाँ थीं। ये चूल्हे थे या बलि के गर्त, यह पता नहीं लगाया जा सकता है। 

4. बनावली (हरियाणा)

यह स्थल सूखी रंगोई नदी के दाईं ओर स्थित है। यह नौ हेक्टेयर के क्षेत्र को आच्छादित करने वाली आयताकार योजना को दर्शाता है। संपूर्ण स्थल किलाबंद था। अब तक सर्वेक्षित किए गए स्थलों के विपरीत यहां का नगर.दुर्ग व निचला शहर एक ही परिसर में स्थित है। आवासो ं म ंे नहाने के चबतू रे, कुएं आरै नालिया ं हैं। एक बहु.कक्षीय घर, जो मुहरों और वज़नों का प्रमाण देता है, को एक ‘व्यापारी के घर’ के रूप में पहचाना गया है।

5. धोलावीरा (गुजरात) 

यह कच्छ के रण में  एक द्वीप पर स्थित है। कई मायनों में, यह स्थल हड़प्पा बस्तियां े में काफ़ी अनोखा है और इसकी अवस्थिति ने शायद इसकी नगरीय योजना के कई पहलुओं को प्रभावित किया। उदाहरण के लिए, ईंटों के बजाय यहां की इमारतें मुख्य रूप से स्थानीय रूप से उपलब्ध बलुआ पत्थर का उपयोग करके बनाई गई हैं। स्थल को उन व्यवस्थाओं के लिए भी जाना जाता है जो पानी के संरक्षण के लिए बनाई गई हैं

शहर की योजना अनूठी है। दो के बजाय इसमें तीन निर्धारित क्षेत्र हैं: नगर-दुर्ग परिसर, मध्य शहर और एक ही किलाबंद परिसर के भीतर स्थित एक निचला शहर। प्राचीर दुर्ग क्षेत्र के कमरो में से एक में एक स्खलित सूचना पट्ट मिला है । अक्षर सफेद कुलनार से बने हैं और एक लकड़ी के पटल पर अंकित हैं।

5. लोथल (गुजरात) 

यह हड़प्पा का एक बंदरगाह शहर है। यह सौराष्ट्र प्रायद्वीप में एक निचले दहाना क्षत्रे में स्थित है। यह माना जाता है कि समुद्र एक समय इस स्थल के अधिक समीप था। नगर-दुर्ग और निचला शहर, दोनों एक ही परिसर के अंदर स्थित है। नगर-दुर्ग में एक इमारत से लगभग 65 पकी मिट्टी  मुहरों पर सरकंडा, बुने हुए रेशों, रस्सों आरै चटाई के छापो को प्राप्त किया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि यह एक गोदाम या माल भरने का स्थान था। यह व्यापार में इस स्थल की सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है।

इसकी शहर के पूर्व में स्थित एक अन्य संरचना के द्वारा भी पुष्टि की गई है जिसे बंदरगाह के रूप में पहचाना गया है । यह भी एक पकाई हुई ईंटों की दीवार से घिरा हुआ है। यह पानी को नियमित करने के लिए दो प्रवेशिकाओं और निकास की नलियों  को दर्शाता है। मदों (माल) को उतारने में मदद के लिए पश्चिम में एक अतिरिक्त चबूतरे का निर्माण किया गया था।

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