मूल्य एक अमूर्त गुण है मूल्यों के निर्धारण में सामाजिक एवं सांस्कृतिक धरोहर का
महत्वपूर्ण योगदान लेता है आज मानव समाज से मानव ही एक प्राणी है जो व्यक्तिगत व
सामाजिक जीवन के लिये आदर्श, लक्ष्य, व्यवहार व अन्य मूल्यों को निर्धारित करता है ओर
जीवन यापन करता है ओर ये मूल्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरित होते रहते
हैं।
सामाजिक परिस्थितियों एवं विषयों के मूल्यांकन की प्रक्रिया को ही मूल्य कहते हैं मूल्य के अर्थ को स्पष्ट करने हैतु अनेक विद्धानों ने परिभाषाएं दी है जो निम्न प्रकार है:- आलपोर्ट के अनुसार:- ‘‘व्यक्ति की रूचि का सापेक्षित महत्व अथवा व्यक्तित्व की प्रबल इच्छा ‘‘मूल्य’’ कहलाता है।
डी.एच.पार्कर के अनुसार:- ‘‘मूल्य पूर्णतः मन के साथ सम्बन्धित है इच्छा की पूर्ति वास्तविक मूल्य है जिससे यह इच्छा पूरी होती है वह केवल साधन है मूल्य का सम्बन्ध हमेशा अनुभव से होता है किसी वस्तु के साथ नही’’।
कनिघंम के अनुसार ‘‘शिक्षा मूल्य शिक्षा के उद्देश्य बन जाते हैं। इन्हीं के अनुसार व्यक्ति के उन गुणों, योग्यताओं तथा क्षमताओं को विकसित किया जाता है जो वस्तुतः जीवन मूल्यों में निहित होते है।’’
आक्सॅफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार ‘‘मानव मूल्य इच्छाओं की सन्तुष्टि करने वाली वस्तुएं है इच्छा की पूर्ति से सुख होता है इसलिये सुखानुभूति में मूल्य की अनुभूति होती है।’’ अतः मूल्य वे आदर्श है जिसको मानव दिन प्रतिदिन अपने व्यवहार में लाता है तथा समाजीकरण की प्रक्रिया का आधार स्वीकार करता है।
सामाजिक परिस्थितियों एवं विषयों के मूल्यांकन की प्रक्रिया को ही मूल्य कहते हैं मूल्य के अर्थ को स्पष्ट करने हैतु अनेक विद्धानों ने परिभाषाएं दी है जो निम्न प्रकार है:- आलपोर्ट के अनुसार:- ‘‘व्यक्ति की रूचि का सापेक्षित महत्व अथवा व्यक्तित्व की प्रबल इच्छा ‘‘मूल्य’’ कहलाता है।
डी.एच.पार्कर के अनुसार:- ‘‘मूल्य पूर्णतः मन के साथ सम्बन्धित है इच्छा की पूर्ति वास्तविक मूल्य है जिससे यह इच्छा पूरी होती है वह केवल साधन है मूल्य का सम्बन्ध हमेशा अनुभव से होता है किसी वस्तु के साथ नही’’।
कनिघंम के अनुसार ‘‘शिक्षा मूल्य शिक्षा के उद्देश्य बन जाते हैं। इन्हीं के अनुसार व्यक्ति के उन गुणों, योग्यताओं तथा क्षमताओं को विकसित किया जाता है जो वस्तुतः जीवन मूल्यों में निहित होते है।’’
आक्सॅफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार ‘‘मानव मूल्य इच्छाओं की सन्तुष्टि करने वाली वस्तुएं है इच्छा की पूर्ति से सुख होता है इसलिये सुखानुभूति में मूल्य की अनुभूति होती है।’’ अतः मूल्य वे आदर्श है जिसको मानव दिन प्रतिदिन अपने व्यवहार में लाता है तथा समाजीकरण की प्रक्रिया का आधार स्वीकार करता है।
जीव विज्ञान शिक्षण के मूल्य
शिक्षा के उद्देश्य अभिवृतीय बदलाव व व्यावहारिक सुधारों द्वारा व्यक्तित्व का संगठित विकास करना है इसलिये जीव विज्ञान शिक्षण के द्वारा छात्रों में मूल्यों के विकास को नकारा नहीं जा सकता है। जीव विज्ञान छात्रों में निम्नलिखित मूल्यों को विकसित करने में सहायक है:-1. जीव विज्ञान के व्यावहारिक मूल्य
वैज्ञानिक जानकारी का व्यवहारिक मूल्य हमें पग-पग पर
दिखाई पडता है हम सभी जानते है कि आनुवांशिकी ओर भूमि रसायन में अभिनव
शोध के फलस्वरूप कृषि विकास का कार्य नये क्षेत्रों में फैलता जा रहा है। द्रुतग्रामी
साधनों के विकास ओर अच्छे बुरे सभी विचारों के प्रसार की तीव्रता का स्वयं हमारे
जीवन काल के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड रहा है वैज्ञानिक द्वारा उपलब्ध नवीन
विधियों के उपयोग से जीवाश्मों के समय से लेकर बिना पूर्वेक्षण किए तेल क्षेत्रों के
मूल्यांकन तक अनेक कार्य आसान हो गये हैं वैज्ञानिक पृथ्वी की दिन प्रतिदिन बढती
हुई जनसंख्या के लिये भोजन उपलब्ध कराने के साधन प्रदान कर सकते हैं वह भी
स्पष्ट है कि इन साधनों के अभाव में यह जनसंख्या भूखमरी द्वारा नष्ट होने के
खतरे में पड़ जायेगी।
2. जीव विज्ञान के सामाजिक मूल्य
जीव विज्ञान व्यक्ति को सिखाता है कि किस ढंग से रहने तथा
कार्य करने से समाज का कल्याण होगा। इसी के अध्ययन के द्वारा ही हम स्वस्थ
रहने का ढंग सीखते हैं कि मच्छरों से कैसे बचा जायें व रोगों से छुटकारा कैसे
पाया जाए? जीव विज्ञान के अध्ययन द्वारा ही बालकों में सामाजिक भावना का
विकास होता है यह वैज्ञानिक उपलब्धियों के ज्ञान व इनके उपयोग से जीव का
जीवन उन्नत बनाता है।
3. जीव विज्ञान के बौद्धिक मूल्य
जीव विज्ञान अनुशासनात्मक ज्ञान पर आधारित है इसकी साधना
अध्यवसाय ओर धैर्य की अपेक्षा रखती है जीव विज्ञान किसी भी तथ्य को मानसिक
शक्तियों का पूर्ण से उपयोग किए बिना तथा किसी भी समस्या का निरीक्षण तर्क एवं
चिन्तन की कसोटी पर कसे बिना ग्रहण करने की आज्ञा प्रदान नहीं करता है। परन्तु
यह निर्विवाद है कि सत्य की साधना में लीन मानव समुदाय का प्रभाव किसी भी
जाति के समग्र जीवन पर पड़े बिना नहीं रह सकता है।
4. जीव विज्ञान के सौंन्दर्यात्मक मूल्य
वैज्ञानिक के कार्यों ओर मानव संस्कृति में उसके योगदान का
एक सौन्दर्यबोधी पक्ष भी होता है निम्नतम स्तर पर उस इस बात का संतोष होता है
कि उसने मानव की ज्ञान राशि में वृद्धि की है इसका दर्शन गणितज्ञों के सूत्रों में
होता है जीव विज्ञान को वृहत व्यापकीकरणों की सरलता की कल्पना को जाग्रत
कर देती हैं यह सूक्ष्मदर्शी ओर दूरदर्शी की सहायता से वैज्ञानिक आश्चर्य तथा
सौन्दर्य के अभिनव जगत का अनावरण करता है जैसे - द्रव का एक लव
वर्णनातीत सौन्दर्य की चीज बन जाता है कि हिमालय हीरों से भी अधिक सुन्दर
होता है दूरस्थ तारा विश्व बन जाता है इस स्तर पर ही कलाओं के साथ साथ जीव
विज्ञान को भी मानव जाति के सौंदर्य बोध को विकसित करने का श्रेय है।
5. जीव विज्ञान के सांस्कृतिक मूल्य
छात्रों के जीने का ढंग समय के साथ साथ बदलता रहता है
परन्तु इस परिवर्तन के मूल के ‘‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’’ व ‘‘वैज्ञानिक आविष्कारों’’ का
हाथ रहा है। संस्कृति का अर्थ मानव सभ्यता से है अर्थात् मानव के खान पान,
रहन-सहन, रिति रिवाज, वेशभूषा, सोचने विचारनें के तरीके, सामाजिक एवं
राजनीतिक दृष्टिकोण आदि को उन्नत करने में जीव विज्ञान आदि काल से मानव
की सहायता करता रहा है देश की उन्नति जीव विज्ञान पर विशेष निर्भर करती है
संस्कृति ओर सभ्यता से जीव विज्ञान न केवल परिचित कराता है बल्कि इन्हैं
सुरक्षित रखने के उपाय भी सुझाता है जीव विज्ञान के अंतर्गत हमें सांस्कृतिक
धरोहर को सुरक्षित रखने एवं आने वाली पीढी तक पहुंचाने में भी सहायता करता
है।
6. जीव विज्ञान के व्यावसायिक मूल्य
जीव विज्ञान व्यवसाय के विभिन्न द्वारों को खोलता है आज जो
व्यवसाय सर्वाधिक प्रतिष्ठित माने जाते है जैसे- डाक्टरी, इंजीनियरिंग, वैज्ञानिक,
शोधकार्य आदि इनकी जीव विज्ञान के ज्ञान से ही पढ़ाई सम्भव है।
7. जीव विज्ञान के मनोवैज्ञानिक मूल्य
जीव विज्ञान के अध्ययन से छात्रों की मनोवैज्ञानिक
आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है तथा स्वाभाविक रूचियों का विकास हो जाता है
जिज्ञासा, रचनात्मक व संग्रह की प्रवृतियां तथा आत्म सन्तुष्टि, मोलिकता सृजनात्मक
एवं आत्मप्रकाशन आदि मन की भावनाओं की तृप्ति का जीव विज्ञान एक सफल
साधन है।
8. जीव विज्ञान के अनुशासन सम्बन्धी मूल्य
जीव विज्ञान के अध्ययन से सम्पूर्ण व्यक्तित्व
विकासमयशील, विवेकपूर्ण गम्भीर एवं चिन्तनशील बन जाता है यह छात्रों के
दृष्टिकोण को निश्चित करने में सहायक है। तथा विचार श्रृंखलाओं को निश्चित
करनें में भी सहायता मिलती है इसके अध्ययन के द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक भावना,
निष्पक्ष दृष्टिकोण, प्रयोगात्मक शक्ति, वैज्ञानिक तर्क, निरीक्षण समयबद्धता व
क्रमबद्धता का विकास होता है।
9. वैज्ञानिक दृष्टिकोण सम्बन्धी मूल्य
टी.टी. नागपाल के कथनानुसार ‘‘विद्यार्थियों में
वैज्ञानिक ढंग से सोचने समझने ओर कार्य करने की आदत होनी चाहिए। उन्हैं सभी
तरह के अन्धविश्वासों से दूर रहकर किसी भी बात को बिना प्रयोग परीक्षण अथवा
भली भांति निरीक्षण किए हुए स्वीकार नहीं करना चाहिए।’’
अतः जीव विज्ञान की शिक्षा द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक स्वभाव उत्पन्न किया जाए ताकि उनमें तथ्यों के गहन अध्ययन ओर नयी नयी वस्तुओं, तथ्यों, नियम व सिद्धान्तों तथा संकल्पनाओं के बारें में जानने व खोजने की इच्छा स्फुटित होती रह
अतः जीव विज्ञान की शिक्षा द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक स्वभाव उत्पन्न किया जाए ताकि उनमें तथ्यों के गहन अध्ययन ओर नयी नयी वस्तुओं, तथ्यों, नियम व सिद्धान्तों तथा संकल्पनाओं के बारें में जानने व खोजने की इच्छा स्फुटित होती रह