कब्ज के लक्षण, कारण, कब्ज को जड़ से खत्म करने के उपाय?

कब्ज की वजह से मल त्याग में भी अनियमितता आ जाती है। इससे कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। सामान्य व्यक्ति एक नियत समय पर शौच आदि से निवृत हो जाता है, जबकि कब्ज से पीडि़त व्यक्ति में यह समय सुनिश्चित नहीं होता है। मल का सुखा एवं कड़ापन शौच की अवधि को और अधिक बढ़ा देता है। इस कारण व्यक्ति में मानसिक तनाव, असंतोष एवं उत्तेजना पनपती है। मल का सूखा एवं कड़ा होना, इसकी आवृति एवं अवधि असामान्य हो जाय तो यह कब्ज माना जाता है। वर्तमान समय में खान-पान एवं जीवनचर्या में आये बदलाव के कारण कब्ज अधिकांश लोगों में एक सामान्य समस्या बन गया है। यह एक ऐसा जीर्ण रोग है, जो पाचन संस्थान के निचले भाग खास कर बड़ी आंत को प्रभावित करता है। 

कब्ज क्या है ?

शुष्क मल के रूकने में होने वाला रोग ही कब्ज है, कब्ज हमारे गलत आहार- विहार अर्थात् खान-पान सम्बन्धी अनेक अनियमितताओं के कारण मल का रूक जाना ही कब्ज है। हम जो भी खाते है, उस भोजन का आमाश्य तथा आंतों द्वारा पाचन, अवशोषण तथा सात्मीकरण किया जाता है। अनपचा कूड़ा स्वतः मल के रूप में निकाल दिया जाता है, जब मल बाहर नही निकलता है, उसे ही कब्ज कहते है। कब्ज वह अवस्था है, जिसमें लिए गये आहार का अवशोषण 48 घण्टे में भी शरीर से बार नहीं निकल पाता है और आंतों में ही पड़ा रहकर अनेंको रोग उत्पन्न करता है। 


कब्ज के लक्षण

कब्ज के लक्षण

कब्ज होने पर अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों की उत्पत्ति होने लगती है।
  1. होने पर शौंच में कठिनाई होती है। 
  2. रोगी के पेट में हर समय भारीपन रहता है। 
  3. किसी रोगी की भूख बढ़ जाती है, परन्तु अधिकतर रोगियों की भूख कम हो जाती है। 
  4. कुछ रोगियों को हल्का मीठा-मीठा दर्द रहता है तथा कुछ रोगियो में ये दर्द नही रहता है। 
  5. कब्ज के रोगियो के मुख से अक्सर दुर्गन्ध आती रही है। जीभ पर सफेद परत सी जीम रहती है। 
  6. मल के जमे रहने से, सड़ने से अधोमार्ग द्वारा दुर्गन्धयुक्त वायु निकलती रहती है। 
  7. आँतो में अन्न की सड़न से, रोगी के सिर दर्द, चक्कर आना, मानसिक तनाव व मितली एवं शिथिलता के लक्षण उत्पन्न होते है। 
  8. कब्ज के रोगियों में आलस्य, सुस्ती, नींद ना आना तथा ज्वर आदि लक्षण देखने को मिलते है। 
  9. कब्ज के रोगियों में अग्निमांद्य, अरूचि, अफारा आदि लक्षण भी देखने को मिलते है। 
  10. स्नायु सम्बन्धी रोगों का शिकार हो जाता है। 
  11.  अधिक दिनों तक कब्ज रहने से अर्श (बवासीर) की उत्पत्ति हो सकती है। 
  12. गैस बनने लगती है। पेट पर गैस बनने पर सिर दर्द तथा यह गैस हृदय को प्रभावित पर घबराहट को जन्म देती है। 
  13. एसिडिटी भी उत्पन्न हो जाती है तथा गले में जलन की शिकायत होती है। 
  14. सुबह सोकर उठने के बाद भी थकावट होना, 
  15. कब्ज के रोगियो को बार-बार सिर में दर्द होता है। 
  16. कई त्वचा सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। 
  17. रोगी में कमजोरी, चिड़चिड़ापन एंव बौखलाहट आदि लक्षण देखने को मिलते है। 
  18. नेत्रों में भारीपन की समस्या भी बनी रहती है। 
  19. सम्पूर्ण शरीर में भारीपन व्याप्त हो जाता है।

कब्ज के कारण

कब्ज हमारे गलत आहार- विहार के कारण होता है। कब्ज होने के कुछ अन्य प्रमुख कारण है- 
  1. अत्यधिक गरिष्ठ एवं मिर्च-मसाले व तली-भुनी चीजों का अत्यधिक सेवन करना। 
  2. अत्यधिक रूखा एवं बासी भेजन करने से कब्ज हो जाता है। 
  3. भोजन का समय निश्चित नहीं होना भी कब्ज का एक कारण है। 
  4. चोकर रहित अति महीन आटा, बिना छिलके की दाल तथा रेशे रहित आहार का अधिक सेवन भी कब्ज का एक कारण है।
  5. परिश्रम कम करना, अकर्मण्य जीवन जीने वाले भी कब्ज से ग्रस्त हो जाते है। 
  6. अत्यधिक व्यवस्तता के कारण या शर्म या संकोच के कारण मलोत्सर्जन रोके रखने की आदत भी इस रोग के लिए उत्तरदायी है। 
  7. अपर्याप्त आहार एवं अत्यधिक परिश्रम के कारणों से भी कब्ज का हो जाता है। 
  8. भय चिंता क्रोध आदि मानसिक विकार के कारण भी इस रोग के लिए उत्तरदायी है। 
  9. मल मार्ग के रोगों के कारण जैसे बवासीर, भगन्दर आदि। 
  10. भोजन को चबा-चबाकर नहीं खाना। 
  11. बार-बार भोजन करने की आदत। 
  12. भोजन में शाक-सब्जी का अभाव। 
  13. भोजन में विटामिन का अभाव। 
  14. कब्ज के कारणों में वृद्धावस्था में खून की कमी, उदर की पेशियों की दुर्बलता आदि है। 
  15. शरीर में पानी की कमी। 
  16. लम्बी बीमारी के कारण शारीरिक दोनों की प्रबलता जिससे शरीर के अन्य अंग-अवयव सही से कार्य नहीं कर पाते है। 
  17. बीमारी के कारण अधिक औषधियों का सेवन तथा लीवर आदि के ठीक से कार्य ना कर पाने के कारण भी कब्ज रोग होता है। 
1. निष्क्रिय जीवनशैली- कब्ज के शिकार प्रायः ऐसे व्यक्ति होते हैं जो शारीरिक श्रम नहीं करते अर्थात् अधिकांश समय बैठे-बैठे कार्य करते हैं। शारीरिक श्रम नहीं होने से आंतों की पेशियों में कड़ापन अर्थात् उसकी संकुचनशीलता कम होने लगती है। रक्त प्रवाह में भी कमी आने लगती है जिससे पाचन एवं निष्कासन मंद हो जाता है।

2. आहार संबंधी गलत आदतें- प्रायः उत्सर्जित मल की मात्रा एवं आवृति व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया गया भोजन पर निर्भर करता है। यदि आहार में पर्याप्त मात्रा में साबुत अनाज, फल, ताजी सब्जियाॅं, रेशेदार पदार्थ नहीं हो तो मल कड़ा तथा मात्रा में कम हो जाता है। मैदा से बनीं हुई खाद्य पदार्थ, बिस्किट, केक, फास्ट फूड, बे्रड, अधिक तला हुआ भोजन, दुग्ध पदार्थ, शर्करायुक्त परिष्कृत खाद्य पदार्थ आदि में रेशे की मात्रा कम एवं प्रोटीन की मात्रा अधिक होता है। इसके पाचन में अधिक उर्जा व्यय होती है तथा इसी वजह से ये भारी व कब्ज उत्पन्न करने वाले होते हैं। इसके अतिरिक्त अति आहार, भोजन में गलत समिश्रण, भोजनकाल की अनियमितता उदरीय पेशीय की कमजोरी भी कब्ज का कारण माना जाता है।

3. उचित शारीरिक व्यायाम की कमी- भोजन ग्रहण करने के बाद उसे पचाने हेतु उचित व्यायाम एवं टहलने की आवश्यकता पड़ती है। इसके अभाव में पेशियाॅ कमजोर, रक्त प्रवाह में कमी तथा प्राण शक्ति के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो जाता है।

4. शौच के समय शारीरिक स्थिति भी मलोत्सर्ग की अवधि को प्रभावित करता है। शौच के समय उकडू बैठना सर्वोत्तम स्थिति है। इससे शरीर की अपान वायु सक्रिय होकर आंतो की गतिविधि ठीक रखते हुए मलोत्सर्ग को बढ़ावा देती है। अतः कोमोड टाॅयलेट का अधिक उपयोग मलोत्सर्ग के लिए ठीक नहीं माना जाता है।

कब्ज के प्रकार 

आयुर्विज्ञानियो ने कब्ज को तीन भागो में विभाजित किया हैः- 

1. सामान्य कब्ज: इस प्रकार के कब्ज का प्रमुख कारण है-भोजन में रेशेदार पदार्थ की कमी, कम अवशेष छोड़ने वाले आहार जैसे अत्यधिक प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ आदि का अत्यधिक सेवन। परिणामस्वरूप मल के मलाशय में उतरने में देरी के कारण कब्ज उत्पन्न होता है। आहार में रेशे की कमी एवं कम अवशेषी खाद्य पदार्थ के सेवन से पशियों को उद्दीपन नहीं मिल पाता और वह सुस्त हो जाती है एवं मल को आंतों में ठीक प्रकार से नीचे की ओर नहीं धकेल पाती है। इस प्रकार के कब्ज पर नियंत्रण पाना आसान है। आहार में उच्च रेशेदार भोज्य पदार्थ, तरल पदार्थ की अधिकता आदि से इसको नियंत्रित कर पाना आसान है।

2. उग्र आइडियोपेथिक कब्ज: इस प्रकार के कब्ज की शुरूआत प्रायः बचपन या किशोरावस्था में होता है। यहाॅं मल श्रोणीय वृहदांत्र (कोलन) तक सामान्य रूप से पहुॅंचता है, किन्तु मलोत्सर्ग ठीक प्रकार से नहीं होता है। इसका सही कारण तो ज्ञात नहीं है परन्तु वृहदांत्र में मोटर स्नायविक क्रियाकलाप में आयी कमी भी इसका कारण माना जाता है। इसके अतिरिक्त मलोत्सर्ग में अवरोध का कारण गुदा की बाहरी स्फींटर की अपर्याप्त संकुचनशीलता भी माना गया है। यदि मल त्याग की उपेक्षा की जाय तो कोलन की दीवार शिथिल हो जाती है और इसकी इच्छा भी समाप्त हो जाती है। 

इस रोग में कोलन का अधिक प्रसार होता है, परन्तु इसकी दीवार की संकुचनशीलता कम हो जाती है। इससे कम मात्रा में मल त्याग होता है तथा अधिकांश मात्रा वहीं बना रहता है।

3.कायिक कब्ज- गर्भाशय, आमाशय या आँतो के विभिन्न रोग ट्यूमर, अल्सर, सूजन, घाव, निशान, फिशर, रक्तार्भ आदि कारणो से उत्पन्न कब्ज यान्त्रिक या कायिक कब्ज कहलाता है। 

4.क्रियात्मक कब्ज- मानसिक संवेगो, स्नायविक कमजोरी, अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियो के विकार, मल के वेग को रोकना, औषधिजन्य एंव आहार विषाक्तता, कम पानी पीना, श्रम का अभाव, धूम्रपान, बिना चबाये भोजन करना, भोजन में फाइबर की कमी, मैदा, बेसन आदि से बने पदार्थो का अधिक से अधिक प्रयोग से आँतो के स्वाभाविक कार्य में रूकावट आ जाती है। जिससे क्रियात्मक कब्ज होता है। 

5.जन्मजात कब्ज- बचपन में ही आँतो की संरचनात्मक विकृति के कारण जन्मजात कब्ज होता है। 

कब्ज को जड़ से खत्म करने के उपाय?

  1. मुनक्का-कब्ज होने की दशा में 5-7-11 दाने दूध में पकाकर लिये जा सकते है। 
  2. इस्सबगोल- 2 चम्मच दूध से या दही के साथ ले। 
  3. एरण्ड तेल- 1 चम्मच दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है। 
  4. त्रिफला चूर्ण- 1 चम्मच पानी से, गुड के साथ भी दिया जा सकता है। 
  5. पंचसकार चूर्ण- 1 चम्मच गरम पानी से सेवन रात्रि सोने से पहले करना चाहिए। 
  6. चोकरयुक्त आटे की रोटियाँ कब्ज में लाभकारी होती है। 
  7. कब्ज में भीगे चने में नमक और अदरक मिलाकर खाने से लाभ होता है। 
  8. भोजन के 1-2 घण्टे बाद फलों का सेवन करना कब्जनाशक प्रयोग है। 
  9. भोजन के 1 घण्टे बाद अमरूद में नींबू, नमक, कालीमिर्च डालकर खाना लाभदायक है। 
  10. मलावरोध में 100 ग्राम टमाटर का रस नित्य पीना उत्तम प्रयोग है। 
  11. मलावरोध में प्रातःकाल खाली पेट 2 सेब खाने चाहिए। 
  12. प्रातःकाल 5 बजे उठकर ताम्र पात्र के जल को पीना चाहिए जिससे रात्रि में ही रख लेना चाहिए। 
  13. मध्यांह्न ने भोजन के साथ तक्र (मट्ठा) का सेवन करना चाहिए। तक्र में सेंधा नमक, भुनी हींग, सौंठ तथा भुना जीरा पिलाना चाहिए। यह कब्ज के लिए लाभकारी है। 
  14. कब्ज के रोगी के लिए रात्रि में दुग्धपान हितकारी होता हैं। 
अन्य महत्वपूर्ण सुझाव -
  1. आहार की मात्रा, आवृति एवं गुणवत्ता के अनुसार ही नियमित पेट साफ होना चाहिए। शौच निश्चित समय पर जाने की आदत डालना चाहिए।
  2. भोजन के तुरंत बाद लेटना नहीं चाहिए। कुछ देर वज्रासन में अवश्य बैठना चाहिए। थोड़ी देर टहलना भी उपयोगी है खासकर रात्रि भोजन के पश्चात।
  3. नियमित व्यायाम जैसे तैरना, दौड़ना, टहलना आदि के लिए समय निकालना चाहिए।
  4. प्रातः संध्या हो सके तो ठंडे जल से स्नान करना चाहिए।
  5. विरेचक दवाओं के सेवन से बचना चाहिए।
  6. सामान्य दिनों में अधिक मात्रा में कम से कम आठ से दस गिलास तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए।
  7. सुबह उठते ही लगभग एक लिटर तक गुनगुना पानी पीकर शंखप्रक्षालन समूह के आसन करने से पेट जल्दी साफ होता है।
  8. भोजन ग्रहण करने के दौरान जल को अत्यधिक कम मात्रा में ग्रहण करें। केवल एक-दो घूँट ही ले। 
  9. भोजन करने के 2 घण्टे पश्चात इच्छानुसार पानी पी सकते है। पानी को सदैव घूंट-घूंट पीकर उसका स्वाद महसूस करते हुए पीना चाहिए। 
  10. प्रातःकाल खाली पेट आधा पपीता खाकर ऊपर से एक गिलास दूध पीने से कब्ज दूर होता है।
  11. नींबू पानी पर रहने से पेट को पूर्ण विश्राम मिलता है। उपवास काल में शरीर तथा तन को भी विश्राम देने के लिए पूर्ण मौन रखे। तीन दिन बाद, तीन दिन तक, तीन तीन घण्टे के अन्तराल से फल तथा सब्जी का रस मौसमानुसार तीन सौ मिली. के हिसाब से लें। 
  12. पुनः तीन दिन तक फल, सलाद तथा उबली सब्जी पर रहें। पुनः धीरे धीरे रोटी, दलिया या भात से शुरू करें।
  13. कब्ज होने पर कभी भी रेचक औषधियों का उपयोग करे। रेचक दवाइयाँ आँतो को कमजोर करती है और आँते अपनी मल निष्कासन प्रकिया को सुचारू रूप से नही कर पाता है। यदि नियमित रेचक दवाइयों का उपयोग किया जाए तो यह कब्ज के बढ़ने का एक कारण बन जाती है।
  14. कई व्यक्तियों में एनिमा को लेकर कई भ्रम है। उन्हे लगता है कि एनिमा की आदत पड़ जाती है, यह सर्वथा गलत है। 

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