कारक का अर्थ
है - ‘करोति इति कारकम्’। जो क्रिया का निष्पादक होता है, उसे कारक कहते हैं। कैयट और भर्तृहरि का कथन है कि
क्रिया साध्य है और कारक साधन है। इस प्रकार क्रिया को सिद्ध करने वाले को ‘कारक’ कहते हैं।
संस्कृत व्याकरण के
अनुसार सात कारक माने गए हैं। कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, अधिकरण और सम्बोधन। सम्बन्ध या षष्ठी को
कारक नहीं माना जाता है, क्योंकि क्रिया की सिद्धि में उसका साक्षात् योग नहीं होता है। जैसेμराज्ञः पुरुषः आगच्छति (राजा
का पुरुष आता है), इसमें राजा का संबंध पुरुष से है, न कि क्रिया से। गंगा का जल मधुर है, में गंगा का संबंध जल से
है, क्रिया से नहीं। सम्बोधन को भी प्रथमा एकवचन का सम्बोधन का रूप माना जाता है। उसको भी स्वतंत्र सत्ता नहीं है।
इस प्रकार 6 कारक ही होते हैं।
कुछ प्राचीन आचार्यों ने सम्प्रदान और अपादान को भी क्रिया से साक्षात् सम्बद्ध न मानकर
कारकों की संख्या केवल चार मानी है। अतएव कारकत्व की पहचान ‘कृ’ धातु केवल चार कारकों में हैμकर्ता, कर्म, करण,
अधिकरण।
कारकों की संख्या विभिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न है। अंग्रेजी में दो कारक है। लैटिन और जर्मन में पाँच। प्राचीन स्लाविक
में छः, संस्कृत ग्रीक और लिथुआनी में सात, हिन्दी में आठ और जार्जी भाषा में 23 कारक है।
कारक शब्द का शाब्दिक अर्थ
‘कारक’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘करनेवाला’ किन्तु व्याकरण में यह एक
पारिभाषिक शब्द है। जब किसी संज्ञा या सर्वनाम पद का सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त अन्य पदों,
विशेषकर क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे कारक कहते हैं।
विभक्ति: कारक को प्रकट करने के लिए संज्ञा या सर्वनाम के साथ, जो चिह्न लगाया जाता
है, उसे विभक्ति कहते हैं। प्रत्येक कारक का विभक्ति चिह्न होता है, किन्तु हर कारक के साथ
विभक्ति चिह्न का प्रयोग हो, यह आवश्यक नहीं है।
कारक के प्रकार / कारक के भेद
कारक के कितने भेद होते हैं, कारक कितने प्रकार के होते हैं हिन्दी में कारक आठ प्रकार के होते हैं।
यथा -
- कर्ता
- कर्म
- करण
- सम्प्रदान
- अपादान
- सम्बन्ध
- अधिकरण
- सम्बोधन।
1. कर्ता कारक: (ने)
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध कराता है, अर्थात्
क्रिया के करने वाले को कत्र्ता कारक कहते हैं। कर्ता कारक का विभक्ति चिह्न ‘ने’ है। ‘ने’ विभक्ति
का प्रयोग कत्र्ता कारक के साथ केवल भूतकालिक क्रिया होने पर होता है। अतः वर्तमान काल,
भविष्यत्काल तथा क्रिया के अकर्मक होने पर ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं होगा।
जैसे अभिषेक पुस्तक पढ़ता है। गुंजन हँसती है। वर्षा गाना गाती है। आलोक ने पत्र लिखा।
2. कर्म कारक: (को)
वाक्य में जिस शब्द पर क्रिया का फल पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक
का विभक्ति चिह्न है- ‘को’। कर्मकारक शब्द सजीव हो तो उसके साथ ‘को’ विभक्ति लगती है,
निर्जीव कर्म कारक के साथ नहीं।
जैसे - राम ने रावण को मारा। आनन्द दूध पीता है।
3. करण कारक (से)
वाक्य में कत्र्ता जिस साधन या माध्यम से क्रिया करता है अर्थात् क्रिया के साधन को करण
कारक कहते है। करण कारक का विभक्ति चिह्न ‘से’ है।
जैसे - ज्योत्स्ना चाकू से सब्जी काटती है। मैं पेन से लिखता हूँ।
4. सम्प्रदान कारक (के लिए, को, के वास्ते)
सम्प्रदान शब्द का अर्थ है देना । वाक्य में कत्र्ता जिसे कुछ देता है अथवा जिसके लिए
क्रिया करता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। सम्प्रदान कारक का विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ है,
किन्तु जब क्रिया द्विकर्मी हो तथा देने के अर्थ में प्रयुक्त हो वहाँ ‘को’ विभक्ति भी प्रयुक्त होती
है।
जैसे
(i) आलोक माँ के लिए दवाई लाया ।
(ii) मीनाक्षी ने कविता को पुस्तक दी।
अतः द्वितीय वाक्य में ‘कविता’ सम्प्रदान कारक होगा क्योंकि दी क्रिया द्विकर्मी है। (iii)
भिखारी को भीख दो। यहाँ ‘को’ शब्द के लिए के अर्थ में आया है।
5. अपादान कारक (से पृथक् / से अलग)
वाक्य में जब किसी संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु या व्यक्ति का दूसरी वस्तु
या व्यक्ति से अलग होने या तुलना करने के भाव का बोध होता है। जिससे अलग हो या जिससे
तुलना की जाय, उसे अपादान कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति भी ‘से’ है किन्तु यहाँ ‘से’ पृथक्
या अलग का बोध कराता है।
(i) पेड़ से पत्ता गिरता है।
(ii) कविता सविता से अच्छा गाती है।
6. सम्बन्ध कारक (का, की, के,/रा, री, रे, ना, ने, नी)
जब वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम का अन्य किसी संज्ञा या सर्वनाम से सम्बन्ध हो, जिससे
सम्बन्ध हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न का, के, की, रा, रा, रे, ना, ने,
नी आदि हैं।
यथा अजय की पुस्तक गुम गई।
तुम्हारा चश्मा यहाँ रखा है।
अपना कार्य स्वयं करें।
7. अधिकरण कारक: (में, पर, पे)
वाक्य में प्रयुक्त, संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया
के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न में, पे, पर हैं।
पक्षी आकाश में उड़ रहे हैं।
मेज पर पुस्तक पड़ी है।
8. सम्बोधन कारक (हे, ओ, अरे)
वाक्य में, जब किसी संज्ञा या सर्वनाम को पुकारा या बुलाया जाता है, अर्थात् जिसे सम्बोध्
िात किया जाय, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। सम्बोधन कारक के विभक्ति चिह्न हैं - हे, ‘ओ
! अरे! सम्बोधन कारक के बाद सम्बोधन चिह्न (;) या अल्प विराम (,) लगाया जाता है। जैसे
- हे प्रभु! रक्षा करो। अरे, मोहन यहाँ आओ।
विशेष: सर्वनाम में कारक सात ही होते हैं। इसका ‘सम्बोधन कारक’ नहीं होता है।
(घ) काल
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