वे अविकारी या अव्यय शब्द, जो क्रिया की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें क्रिया विशेषण कहते हैं।
परिभाषा - जो अविकारी शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, उन्हें क्रिया-विशेषण कहते हैं। जैसे - जैसे - गीता तेज चलती है, वह धीरे-धीरे चलता है, वह जल्दी-जल्दी खाता है। इसमें तेज, धीरे-धीरे, जल्दी-जल्दी क्रिया विशेषण हैं।
क्रिया विशेषण के भेद
क्रिया-विशेषण का विभाजन तीन आधारों पर किया गया है -
- प्रयोग के आधार पर
- रुप के आधार पर
- अर्थ के आधार पर
1. प्रयोग के आधार पर भेद -
(क) साधारण क्रिया-विशेषण- चलो जल्दी चलें, तुम अब आ रहे हो, तुम कब जा रहे हो, जब तुम आयें थे, यहाँ पर जल्दी अब कब जब क्रिया विशेषण हैं।
(ख) संयोजक क्रिया-विशेषण संयोजक - यहाँ वहाँ जब, जितना, ज्योंही आदि संयोजक शब्दों से इसका बोध होता है। या-राकेश जितना माँगता है, उतना दो ज्यों ही मैं घर के लिए निकला त्योंही वह मुझे घर के बाहर खड़ा हुआ मिला।
(ग) अनुबद्ध क्रिया-विशेषण - तक, पर आदि अनुबंध क्रिया-विशेषण है। यथा - आपको यहाँ आने की जरूरत नहीं है।
2. रुप के आधार पर
(क) मूल - अचानक, ठीक, दूर, फिर, इत्यादि अविकारी शब्द हैं। मेरा घर यहाँ से दूर है।
(ख) यौगिक - क्रिया-विशेषण प्रत्यय या शब्द का संयोग होने से बनते हैं। अब-अब अभी यहाँ से यही, सबरे-सबेरे, दिन-भर, हाथों-हाथ, दिन-दिन, रातो-रात आदि।
(ग) स्थानिक - ये शब्द बिना किसी परिवर्तन के क्रिया-विशेषण की तरह प्रयुक्त होते हैं। यथा -
(क) सब गुड़ गोबर हो गया। (गोबर-संज्ञा)
सब कुछ मिट्टी में मिल गया।
(ख) उसने अच्छा किया।
तुमने बुरा किया।
इसमें 'अच्छा' और बुरा विशेषण शब्द क्रिया विशेषण के रुप में प्रयुक्त हुआ है।
(ग) पूर्वकालिक कृदंत - उठकर, जाना, दौड़कर, जाना, हँसकर बोलना।
3. अर्थ के आधार पर
(क) परिणाम वाचक क्रिया-विशेषण।
(क) अधिकता बोधक - बहुत, भारी खूब, अत्यंत, अतिशय, बड़ा।
(ख) न्यूनता बोधक - कम, अल्प, कुछ, जराकिंचित
(ग) पर्याप्ति वाचक - केवल, बराबर, बस, काफी, यथेष्ठ।
(घ) तुलनावाचक - अधिक, कम, जितना, उतना, कितना, बढ़कर।
(ड) श्रेणी वाचक - क्रम-क्रम से, बारी-बारी से यथाक्रम थोड़ा-थोड़ा, तिल-तिल।
2. रीतिवाचक क्रिया विशेषण - इनकी संख्या विशेष रुप से अधिक प्रयोग में लाई जाती है।
(क) प्रकार - यथा, तथा, ज्यों, ज्यों, ऐसा, वैसा, कैसा, अनायास।
(ख) निश्चय - शायद, कदाचित, यथा संभव
(ग) स्वीकार - हाँ, जी ठीक, सच।
(घ) अवधारणा - भी ही, मात्र, भर, केवल, तक, सा।
3. स्थानवाचक क्रिया-विशेषण - इसके द्वारा स्थान का ज्ञान होता है। इसके दो भेद हैं -
(क) स्थितिवाचक - यहाँ, वहाँ, ऊपर नीचे बाहर, पास, सर्वत्र।
(ख) दिशावाचक - इधर-उधर, किधर, दाएँ, बाएँ, इस तरफ उस तरफ।
4. कालवाचक क्रिया-विशेषण - इसके द्वारा समय का ज्ञान होता है इसके तीन प्रकार है -
(क) समय वाचक - आज, कल, परसों, जब, तब सबेरे शाम तुरंत।
(ख) अवधि वाचक - आजकल, नित्य, सदा, लगातार, दिन-भर, कब का
(ग) पौने पुरुष वाचक - प्रतिदिन, एक दूसरे, तीसरे बार-बार बहुधा।
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