मानव का क्रमिक विकास

मानव का क्रमिक विकास

मानव के सबसे नजदीकी पूर्वजों के क्रमिक विकास को दो श्रेणी में विभाजित किया जा सकता हैः 
  1. होमो-पूर्व और 
  2. होमो प्रजाति का क्रमिक विकास

1. होमो-पूर्व

यह वर्ग होमिनिड के जीवाश्म साक्ष्यों से वर्गीकृत किया गया है जो मानव के नजदीकी सादृश्य तो हैं, लेकिन यह वानर से अधिक समीप्य हैं।

ड्रियोपिथिकस

ड्रियोपिथिकस, वानर सदृश्य विलुप्त जीव की एक प्रजाति है जो मानव के क्रमिक जैविक विकास के चरण का प्रतिनिधित्व करता है, जब मानव और वानर एक ही वंशावली का अंश थे। यह मिओसिन और प्लिओसिन भण्डार (23 से 2.6 लाख वर्ष पुराने) में जीवाश्म के रूप में प्राप्त हुए और शुरूआत में स्पष्ट रूप से अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। ड्रियोपिथिकस के अनेक रूप जाने जाते हैं, जिनमें छोटे, मध्यम और बड़े, गोरिल्ला के आकार के जीव सम्मिलित हैं। इसमें एक मानव और एक वानर में भेद करने वाली विशेषताओं का अभाव है। 

मानव की तुलना में श्वदंत (canine)बड़े हैं लेकिन अन्य वानर जीव जितने मजबूती से विकसित नहीं हैं। हाथ बहुत लम्बे नहीं थे। कपाल की ढाल में उचित विकास और आधुनिक वानर में मिलने वाली भारी भौंह कटक का अभाव था। इसलिए, ये गोरिल्ला और चिम्पैंजी का अग्रदूत था।

रामापिथिकस

पहला रामापिथिकस जीवाश्म 1932 में उत्तर.पश्चिमी भारत की शिवालिक पहाडि़यों के जीवाश्म भण्डार में मिला। प्राइमेट्स जीवाश्म मध्य और उत्तर माइओसिन युग (लगभग 16.6 लाख से 5.3 लाख वर्ष पूर्व) से प्राप्त होते हैं। दो प्रजाति, रामापिथिकस पंजाबीकस और रामापिथिकस विकेरी, सबसे पहले खोजी गई थीं। जीवाश्म में प्राप्त जबड़े के टुकड़े रामापिथिकस का सम्बंध एक भिन्न प्रजाति के तौर पर देखा गया जो कि आधुनिक मानव (होमो सेपियंस) का प्रथम प्रत्यक्ष पूर्वज था। फिर भी, जब अमेरिकन मानवशास्त्री डेविड पिल्बीम ने रामापिथिकस के पूरे जबड़े की खोज की, जिसमें जबड़े की सुस्पष्ट रूप से आकृति थी और जो वी आकार के थे, मानव वंशावली के सदस्यों के अणुवृत आकृति के जबड़ों से भिन्न चिन्हित किए गए। 

जिगांटोपिथिकस

एक बड़े कपि जीवाश्म की जाति, जिसमें दो प्रजातियां जानी जाती हैंः जिगांटोपिथिकस बिलासपुरेंसिस, जो कि 60 से 90 लाख वर्ष पूर्व भारत में निवास करती थीं, और जिगांटोपिथिकस ब्लैकि, जो चीन में कम से कम 10 लाख वर्ष पूर्व तक जीवित था। ये वानर उनके दांतो, निचले जबड़े की हड्डियों और संभवत बाहरी प्रांगडिका (हाथ के ऊपरी भाग की हड्डी) के टुकडे़ से पहचाने जाते हैं। ये आकार में विशाल थे, शायद गोरिल्ले से भी बड़े। ये खुले मैदान में रहते थे और इनके पीसने और चबाने वाले मजबूत दांत थे ।

सबसे पहले नमूने जर्मन-डच जीवाश्म विज्ञानी जी.एच.आर. वाॅन कोएनिग्सवाल्ड द्वारा खोजे गए, जो चीन की एक दवा की दुकान में मिलें, वहां ये ‘ड्रेगन के दांत’ के नाम से जाने जाते थे। यद्यपि, दांत बड़े थे, लेकिन उसमें मानव के दांत से कुछ समानताएं भी थीं, जिसने कुछ जीवाश्म विज्ञानियों को यह सोचने के लिए प्रेरित किया कि अवश्य ही मानव के पूर्वज ‘विशाल’ रहे होंगे। बाद में पूरे जबड़े की हड्डियों की खोज ने यह प्रमाणित किया कि वे विलुप्त वानर प्रजाति से सम्बंधित थे (रैफरटीए 2018_।

ऑस्ट्रेलोपिथिकस

ऑस्ट्रेलोपिथिकस का पहला जीवाश्म 1924 में रेमंड डार्ट द्वारा खोजा गया, वे दक्षिणी अफ्रीका, के टाँग शहर के जोहान्निसबर्ग में शरीर रचना विज्ञान के प्रोफेसर थे। यह पाँच वर्ष के बच्चे का दूध के दांतों सहित कपाल था। कपाल की संरचना में वानर सदृश्य कई विशेषताएं थीं जैसे कि उठा हुआ चेहरा और छोटा मस्तिष्क। इसकी स्पष्टतः मानव सहश्य विशेषताएं भी थीं। उदाहरण के तौर पर, वानरों की तरह नुकीले के बजाय गोलाई जबड़ा। 

फोरामेन मेग्नम कपाल के आधार पर छिद्र जो मेरुदण्ड रज्जू में मिलता ह के वेन्ट्रल की स्थिति दर्शाती है कि जीव सीधा चला करता था। कपाल 28 लाख वर्ष पुराना है और इसे ऑस्ट्रेलोपिथिकस अफ्रीकानस का नाम दिया गया। जनसाधारण में कपाल को उसकी खोज के स्थान के नाम पर टाँग बालक के तौर पर भी जाना गया। 

सबसे सुस्पष्ट और अच्छी तरह से संरक्षित किया गया ऑस्ट्रेलोपिथिकस का नमूना, एक मादा कंकाल का है जो कि 1974 में जीवाश्म विज्ञानी डोनाल्ड जाॅनसन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने इथियोपिया के हदर क्षेत्र में खोजा था। मानवशास्त्री उस कंकाल का लगभग 40ः एकत्रित कर सके और उसे ‘लूसी’ उपनाम दिया गया1। 1938 में, ऑस्ट्रेलोपिथिकस जाति के अन्य दूसरे जीवाश्म की खोज हुई, जिसे ऑस्ट्रेलोपिथिकस रोबस्टस का नाम दिया गया। 

प्रजाति होमो से ऑस्ट्रेलोपिथिकस का विभेद मुख्यतः सबसे छोटे आकार के शरीर, अपेक्षाकृत सबसे छोटे आकार के मस्तिष्क, अपेक्षाकृत सबसे छोटे दांत और बड़े चेहरे, इसके अतिरिक्त अन्य शरीरिक अंतर की वजह से है। 

नवीनतम खोजें 

जीवाश्म विज्ञानी लगातार जीवाश्मों की खोज में शामिल रहे। कुछ वर्ष पहले ही, मानव जीव की उत्पत्ति से सम्बंधित अनेक नए साक्ष्य प्राप्त हुए। उदाहरण के तौर पर, अक्टूबर 2009 में, मध्य इथियोपिया में एवाॅश के एक दल द्वारा मानव जीवाश्म का सबसे बड़ा भण्डार खोजा गया जिसमें ऑस्ट्रेलोपिथिकस और आरडीपिथिकस की अलग प्रजातियां थीं। 

8 अप्रैल 2010 को, कुछ वैज्ञानिकों ने दक्षिणी अफ्रीका में ऑस्ट्रेलोपिथिकस की नई प्रजाति के जीवाश्म की खोज की। नई प्रजाति को ऑस्ट्रेलोपिथिकस सेडिबा नाम दिया गया, जो मालापा नाम की गुफा से प्राप्त हुआ। जीवाश्म 19.5 और 17.8 लाख वर्ष के लगभग पुराना है। जीवाश्म में एक युवा नर, जिसकी आयु मृत्यु के समय लगभग 12.13 वर्ष होगी, जिसकी एक खोपड़ी और आंशिक कंकाल और एक वयस्क मादा का जबड़ा और आंशिक कंकाल सम्मिलित हैं। पहले, विस्तारित मस्तिष्क और शिशुओं का बड़े मस्तिष्क के साथ जन्म लेना मानव की उत्पत्ति के लिए एक विशिष्ट कारक माना गया था लेकिन ऑस्ट्रेलोपिथिकस सेडिबा के कंकालों के जीवाश्म पर नई खोज दर्शाती है कि कूल्हे और मस्तिष्क की बाहरी सतह में महत्वपूर्ण परिवर्तन मस्तिष्क के विस्तार से पूर्व घटित हुआ। 

दिसम्बर 2003 में, वैज्ञानिकों ने निएन्डरथल के जीन्स का खाका तीन अलग निएन्डरथल मानव जीवाश्मों की हड्डी से लिए गए डी.एन.ए. अंशों से बनाया, प्रत्येक एक-दूसरे से भिन्न हैं, यह इसे वह सबसे पहली विलुप्त प्रजाति बनाता है जिसका डी.एन.ए. खोजा गया है। यह जीवाश्म विन्दिजा गुफा, क्रोएशिआ से प्राप्त किए गए थे जो लगभग 44,000 वर्ष पुराने हैं। मार्च 2015 में वैज्ञानिकों को इथियोपिया में एक नया जीवाश्म मिला, जिसे ‘लेडी जाॅ’ का नाम दिया गया और जिसका तिथि निर्धारण 27.5 लाख से 28.0 लाख वर्ष पूर्व किया गया है। इसके निचले जबड़े, सिर्फ बाईं ओर के आधे जबड़े, जिसके ऑस्ट्रेलोपिथिकस के पूर्वज से छोटे दांत हैं, जबकि इसके अन्य गुण बाद की होमो प्रजाति से समानताएं रखते हैं जैसे कि होमो हैबिलिस। 

सितम्बर 10, 2015 को अन्य असाधारण खोज हुई जब दक्षिणी अफ्रीका की राइजिंग स्टार गुफा से पंद्रह कंकाल मिले। इन कंकालों के आधुनिक मानव के समान पैर और हाथ, साथ ही ऊंचे कंधे, चैडे़ कूल्हे और ऑस्ट्रेलोपिथिकस के प्ररूपी फैली हुई पसलियाँ इसे होमो पूर्वज के सदृश्य बनाते हैं। 

2. मानव (होमो) प्रजाति का क्रमिक

विकास ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्रथम मानव आस्ट्रौलोपिथेसिन के पूर्वज से लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व विकसित हुए। ऑस्ट्रेलोपिथिकस अफ्रेंसिस को आमतौर पर होमो जाति के पूर्वज के सबसे नज़दीकी समझा जाता है। होमो जाति को पत्थर के औज़ार के प्रयोग और कूल्हों के विकास के द्वारा वर्गीकृत किया गया था। 

होमो हैबिलिस 

होमो हैबिलिस 28 लाख से 14 लाख वर्ष पूर्व जीवित थे। यह दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में होलोसीन युग के अंत और प्रारंभिक प्लीस्टोसीन युग में विकसित हुए। पहला जीवाश्म 1960 में मैरी लीके और लुई के नेतृत्व में एक दल द्वारा तंज़ानिया के ओल्डुवई गाॅर्ज, पूर्वी अफ्रीका में खोजा गया। इस स्थान पर हड्डियों के साथ पत्थर के औज़ार मिले। इसका औज़ारों के मानव का क्रमिक विकास 4 9 साथ सम्बंध होने के कारण, यह आरंभिक मानव होमो हैबिलिस कहलाया, मतलब ‘हैंडी मैन’। होमो हैबिलिस का कद छोटा था, जिसके हाथ, पैरों से लम्बे थे और कंकाल काफी हद तक ऑस्ट्रेलोपिथिकस जैसा था। इनका मस्तिष्क बड़ा था और दाढ़ें ऑस्ट्रेलोपिथिकस की अपेक्षा छोटी थीं। 

मई 2010 में दक्षिणी अफ्रीका के गाॅन्टेन में जोहानसबर्ग के समीप स्टर्कफाँटेन गुफा में एक नई प्रजाति होमो गाॅटेनजेनसिस प्राप्त हुई। दो प्रकार के नमूने, होमो रूडोल्फेनसिस और होमो इर्गास्टर, होमो हैबिलिस और होमो इरेक्टस के मध्य के काल के माने जाते हैं। 

होमो इरेक्टस 

होमो इरेक्टस का अर्थ है ‘सीधा मानव’ जो होमो जाति की एक विलुप्त प्रजाति है। यह लगभग 19 लाख वर्ष पूर्व प्लीस्टोसीन युग में रहता था। होमो इरेक्टस एक मध्यम कद का मानव था जो सीधा चलता था। इसका मस्तिष्क कोटर  नीचे था, माथा पीछे की ओर था और नाक, जबड़े, तालू चैड़े थे। मस्तिष्क छोटा था और दांत आधुनिक मानव की तुलना में बड़े थे। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ 1,000,000 वर्ष पूर्व होमो इरेक्टस आग को काबू करने वाली प्रथम मानव प्रजाति थी। 

अब तक इसकी तीन उपप्रजातियाँः होमो इरेक्टस जावानेनसिस (जावा), होमो इरेक्टस पीकिन्सिस (चीन) और होमो इरेक्टस नरमादेन्सिस (भारत) प्राप्त हुई हैं। 

होमो सोलोएन्सिस 

होमो सोलोएन्सिस की खोज 1931.1933 के बीच गुस्ताव हेनरिक राॅल्फ वाॅन कोएंग्सवाल्ड के द्वारा की गई, यह होमो इरेक्टस की एक उपप्रजाति है। इंडोनेशिया के जावा द्वीप की सोलो नदी के किनारे इसे खोजा गया। यह प्रजाति बाद के होमो इरेक्टस का एक रूपांतर है और होमो हाइडेलबर्जेन्सिस के समय की है। यह भी संभव है कि ये आदिम होमो सेपियंस के समय की हो। आकृति के अनुसार इसकी नेत्र क्षमता 1,013.1,252 क्यूबिक सें.मी. (ब्राउन, 1992) है जो कि होमो इरेक्टस के समरूप है। 

डेनिसोवा होमिनिन्स 

डेनिसोवा होमिनिन्स अथवा डेनिसोवांस, होमो जाति के आद्य मानव की विलुप्त या उपप्रजाति है। मार्च 2010 में वैज्ञानिकों ने अल्ताई पर्वतों में स्थित साईबेरिया की डेनिसोवा गुफा से एक किशोर मादा, जो लगभग 41,000 वर्ष पूर्व अस्तित्व में थी, की उंगली की हड्डी के टुकड़े की खोज की घोषणा की। यह गुफा निएंन्डरथलों और आधुनिक मानव का भी आवास रही। इस प्रजाति के शारीरिक अवशेषों में सिर्फ उंगली की हड्डी, दो दांत और एक पैर के पंजे की हड्डी मिली है। ये साक्ष्य संकेत देते हैं कि डेनिसोवा बहुत शक्तिशाली थे, संभवतः निएंडरथल के समान आकार में बड़े थे। 

होमो निएंडरथलेन्सिस

निएंडरथल को अक्सर होमो सेपियंस निएंडरथलेन्सिस भी कहा जाता है। इनका नाम जर्मनी की एक घाटी निएंडर वैली के नाम पर रख गया है, जहां 1856 में सबसे पहले इनके जीवाश्म प्राप्त हुए। ये यूरोप और एशिया में लगभग 400,000 से 28,000 वर्ष पूर्व जीवित थे। निएंडरथल मानव ने विविध प्रकार के औज़ार बनाए जिनमें खुरचनी, भाले की नोक और हाथ की कुल्हाड़ी सम्मिलित हैं। ये झोपडि़यों और गुफाओं में रहते थे, अपने घायलों और बीमारों की देखभाल करते थे और आमतौर पर अपने मृतकों को वस्तुओं के साथ दफनाते थे। इस तरह दफनाना संकेत देता है कि मृत्यु के बाद भी जीवन होता है, इस अवधारणा में उनका विश्वास था। यह आधुनिक मानव की सांकेतिक सोच के लक्षण का पहला साक्ष्य है। 

हालांकि, आधुनिक मानव और निएंन्डरथलों की जनसंख्या के बीच कई शारीरिक भिन्नताएं हैं। निएंडरथलों की ठंड को सहन करने की क्षमता श्रेष्ठतर थी, उनके मस्तिष्क उल्लेखनीय रूप से बड़े, तथा उनकी दृष्टि बेहतर और वे शारीरिक रूप से श्रेष्ठतर थे। मानव का क्रमिक विकास 5 1 निएंडरथल लगभग 38,000 वर्ष पूर्व विलुप्त हो गए थे। हाल ही के दशकों में दो मुख्य सिद्धांत उभरे हैं जिनका फोकस उनके विलोपन पर केंद्रित है। प्रथम सिद्धांत के अनुसार, पश्चिमी यूरोप में भीषण ठंड की वजह से प्रजाति पर अत्यधिक तनाव पड़ा। दूसरे सिद्धांत के अनुसार, आधुनिक मानव जिनके मस्तिष्क बड़े, और जिनका पर्यावरण के प्रति बेहतर अनुकूलन था, से मुकाबले के कारण निएंडरथल जीवित न रह सके और विलुप्त हो गए। 

क्रमिक विकास के दौरान मानव बुद्धि के कई लक्षण विकसित हुए जैसे कि सहानुभूति, विलाप, अनुष्ठान तथा प्रतीकों और औज़ारों का प्रयोग। ये लक्षण महान् वानरों में भी पाए जाते थे लेकिन आधुनिक मानव से कम जटित रूप में, जैसे कि महान् वानरों की भाषा। होमो सेपियंस में पूर्ण रूप से समझने और एक दूसरे से संवाद करने की क्षमता विकसित थी। मानव बोध का क्रमिक विकास मानव मस्तिष्क, बातचीत और भाषा की उत्पत्ति के क्रमिक विकास से करीब से सम्बंधित है। 

आधुनिक मानव और निएंडरथलों की कंठिका की हड्डियों में लगातार गिरावट आई जिसके कारण भिन्न प्रकार की ध्वनियों का निर्माण हुआ। बुद्धिमत्ता और बोलने की क्षमता साथ.साथ विकसित होती हैं। ज्ञान के लिहाज से बुद्धिमत्ता सबसे उन्नत रचना है जो हमारी बुद्धि में यंत्रस्थ है। वास्तव में अधिकतर मानवशास्त्री इस बात से सहमति रखते हैं कि ’ग्रेट लीप फाॅरवर्ड’, जिसका आरंभ मानव अस्तित्व के आधुनिक युग में हुआ, होने का कारण पूर्ण संज्ञानात्मक विकास था जिसने जटिल भाषा को संभव बनाया। 

होमो सेपियन्स

होमो सेपियन्स यानी ‘बुद्धिमान मानव’ वह प्रजाति है जिससे आधुनिक मानव संबधित है। होमो सेपियन्स 40ए000 वर्षों पूर्व से अस्तित्व में हैं। इन्हें क्रो-मैग्नान मानव भी कहते हैं,, जिसका नाम फ्रांस की एक घाटी के नाम पर रखा गया है जहां पर उनके जीवाश्म सर्वप्रथम 1868 में खोजे गए। क्रो-मैग्नाॅन मानव का सामाजिक संगठन जटिल था और धारणा है कि उनकी भाषा क्षमता परिपूर्ण थी। वह शिकार करके जीवन बिताते थे। इसके साथ ही वे विस्तारित मस्तिष्क (इंट्राक्रेनियल ) की बढ़ी हुई क्षमता और पत्थर के औज़ारों की तकनीकी का ज्ञान और प्रयोग द्वारा चिह्रित किए जाते हैं और यही सबूत हैं होमो इरेक्टस से होमो सेपियन्स में संक्रमण का।

प्रारंभिक होमो सेपियन्स स्थायी जीवनशैली के अतिरिक्त शिकार और भोजन एकत्रीकरण पर जीवन निर्वाह के लिए निर्भर थे। वे बड़ी गुफाओं या तम्बुओं में रहते थे आरै गुफाओं में नक्काशी, चित्रकारी और अन्य प्रकार के कलात्मक क्रियाकलापों में भी संलग्न रहते थे। उनके पास बड़ी संख्या में औज़ार और शिकार करने के विविध हथियार मौजूद थे।

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