योजना विधि क्या है अच्छी योजना के गुण व दोष

योजना विधि

योजना विधि के जन्मदाता प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक विलियन हैंनरी किलपैट्रिक हैं इस विधि का आधार ड्यूवी का दर्शन हैं। किलपैट्रिक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री ड्यूवी के शिष्य थे। ड्यूवी ने कहा हैं कि ‘‘विधि इस सिद्धांत पर आधारित हैं कि छात्र सहयोग एवं क्रिया द्वारा सीखते हैं।

किलपैट्रिक महोदय के अनुसार:- ‘‘प्रोजेक्ट वह क्रिया है, जिसमें पूर्व संलग्नता के साथ सामाजिक वातावरण के लक्ष्य प्राप्त किये जाते हैं।’’

थाॅमस लैंग के अनुसार:- ‘‘प्रोजेक्ट स्वेच्छा द्वारा किया जाने वाला वह कार्य है जिसमें सृजनात्मक प्रयास तथा वस्तुनिष्ठ निरीक्षण निहित होते हैं। ’’

योजना विधि के सिद्धांत

1. स्व क्रिया का सिद्धांत- यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य हैं कि छात्र उस कार्य को शीघ्र समझ लेते हैं जिसे वे स्वयं करते हैं।

2. वास्तविकता का सिद्धांत- इस विधि में छात्रों को जो कार्य करने के लिये दिये जाते हैं वे उनके जीवन से संबंधित होते हैं यह काल्पनिक समस्याएं मात्र नहीं होते, सह वास्तविक परिस्थितियों में पूर्ण भी होते हैं इस प्रकार यह विधि उनकों भावी जीवन के लिये तैयार करती हैं।

3. उपयोगिता का सिद्धांत- प्रयोजनवाद छात्रों को उन्हीं बातों को सिखाने पर बल देता है जो उनके लिये उपयोगी हों अतः ऐसी समस्याओं का चयन किया जाता हैं जो जीवन उपयोगी हांे।

4. स्वतन्त्रता का सिद्धांत-प्रत्येक व्यक्ति का कार्य करने का ढंग अलग - अलग हो सकता है अतः जो छात्र जिस कार्य को जिस विधि से अच्छी तरह सम्पन्न कर सके, उसे इसकी स्वतन्त्रता दी जाती हैं।

5. सामाजिकता का सिद्धांत- छात्रों के भावी जीवन के लिये इनमें सामाजिकता का विकास आवश्यक हैं इसके द्वारा उनमें सहयोग की भावना का विकास होगा। 

अच्छी योजना के गुण व दोष

1. योजना विधि के गुण

  1. यह विधि छात्र को केन्द्र बिन्दु मानती हैं ओर ये पर आधारित है। 
  2. इस विधि से सामाजिक भावना का विकास होता हैं क्योंकि छात्रों को परस्पर सहयोग से कार्य करना पडता हैं। 
  3. योजनाएं जीवन के लिये उपयोगी होती हैं अतः छात्र उनसे सम्बन्धित क्रियाओं को आसानी से सीख लेते हैं। 
  4. इस विधि में छात्रों को स्वतन्त्रतापूर्वक विचारने निरीक्षण करने तथा कार्य करने का अवसर मिलता हैं। 
  5. समस्याओं का हल करने के लिये छात्रों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने होते हैं अतः छात्र श्रम का महत्व समझने लगते हैं।
  6. इसमें छात्र ओर शिक्षक दोनों क्रियाशील रहते हैं, अतः दोनों में व्यवहारिक कुशलता का विकास होता हैं।
  7.  इस विधि से छात्रों में वैज्ञानिक अभिवृति का विकास होता हैं। 
  8. इस विधि से छात्रों में धैर्य, आत्म सन्तोष, आत्म निर्भरता आदि गुणों का विकास होता हैं।

2. योजना विधि के दोष

  1. इसमें जांच एवं परीक्षा का काई स्थान नहीं हैं। 
  2. उच्च कक्षाओं में जहां छात्रों की संख्या अधिक हो, उपयुक्त योजनाओं का चुनाव कठिन होता हैं। 
  3. यह आवश्यक नहीं कि छात्र योजना को पूर्ण ही कर सके, ऐसी स्थिति में यह कार्य शिक्षक को ही पूर्ण करना पडता हैं, जिससे उस पर अतिरिक्त भार आ जाता हैं ओर वह बंध सा जाता हैं। 
  4. सभी विषयों तथा पाठों को इस विधि से पढाया जाना सम्भव नहीं हैं। 
  5. यदि अध्यापक ध्यान न दे पाये तो छात्र नकल करके भी रिपोर्ट तैयार कर सकता हैं। 
  6. ज्ञान स्थायित्व के लिये अर्जित ज्ञान का अभ्यास आवश्यक है परन्तु इस विधि में इसका अवसर नहीं मिलता।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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