वचन
सामान्यतः वचन शब्द का प्रयोग किसी के द्वारा कहे गये कथन अथवा दिये गये आश्वासन
के अर्थ में किया जाता है, किन्तु व्याकरण में वचन का अर्थ संख्या से लिया जाता है।
वह, जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं।
वचन के प्रकार / वचन के भेद
संस्कृत में तीन वचन होते हैं -एकवचन, द्विवचन, बहुवचन। वैदिक और लौकिक संस्कृत में द्विवचन का प्रयोग है। प्राचीन फारसी और अवेस्ता में इसका अत्यधिक व्यवहार होता था। प्राचीन स्लावी में यह अभी तक प्रयोग में आता है। केल्टी भाषा में केवल आयरी के प्राचीन रूपों में द्विवचन मिलता है। लिथुआनी आदि भाषाओं में भी द्विवचन मिलता है। इस द्विवचन का धीरे-धीरे लोप हो गया है। पाली, प्राकृत आदि में द्विवचन नहीं है। ग्रीक आदि में भी द्विवचन का लोप हो गया है। लैटिन में द्विवचन प्रारम्भ से नहीं था। हिन्दी में द्विवचन नहीं है। सम्भवतः हाथ, आँख, नाक, कान, पैर आदि के जोड़े को देखकर द्विवचन की कल्पना हुई थी। परन्तु बाद में इसके कम प्रयोग को देखकर, इसे व्याकरण से हटाया गया। इसके लिए दो शब्द का प्रयोग होने लगा। दो आँख, दो कान आदि।
संस्कृत में इसके लिए युग, युगल, द्वय, द्वयी आदि शब्द प्रयोग में आने लगे। जैसे - करयुगम्, करयुगलम्, करद्वयम्, करद्वयी (दो हाथ), आदि।
वचन कितने प्रकार के होते हैं, वचन के कितने भेद होते हैं, वचन दो प्रकार के होते हैं।
(i) एक वचन (i) बहुवचन
1. एकवचन
विकारी पद के जिस रूप से किसी एक संख्या का बोध होता है, उसे
एकवचन कहते हैं।
जैसे भरत, लड़का, मेरा, काला, जाता है आदि हिन्दी में निम्न शब्द सदैव एक वचन में ही
प्रयुक्त होते हैं।
सोना, चाँदी, लोहा, स्टील, पानी, दूध, जनता, आग, आकाश, घी, सत्य, झूठ, मिठास, प्रेम,
मोह, सामान, ताश, सहायता, तेल, वर्षा, जल, क्रोध, क्षमा
2. बहुवचन
विकारी पद के जिस रूप से किसी की एक से अधिक संख्या का
बोध होता है, उसे बहुवचन कहते हैं।
जैसे लड़के, मेरे, काले, जाते हैं
हिन्दी में निम्न शब्द सदैव बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं यथा -
आँसू, होश, दर्शन, हस्ताक्षर, प्राण, भाग्य, आदरणीय, व्यक्ति हेतु प्रयुक्त शब्द आप, दाम,
समाचार, बाल, लोग, होश, हाल-चाल।
वचन परिवर्तन
हिन्दी व्याकरणानुसार एक वचन शब्दों को बहुवचन में परिवर्तित करने हेतु कतिपय नियमों
का उपयोग किया जाता है। यथा -
1. शब्दांत ‘आ’ को ‘ए’ में बदलकर
कमरा-कमरे, लड़का-लड़के, बस्ता-बस्ते,
बेटा-बेटे, पपीता-पपीते, रसगुल्ला-रसगुल्ले।
2. शब्दान्त ‘अ’ को ‘एँ’ में बदलकर
पुस्तक-पुस्तकें, दाल-दालें, राह-राहें,
31
दीवार-दीवारें, सड़क-सड़कें, कलम-कलमें।
3. शब्दान्त में आये ‘आ’ के साथ ‘एँ’ जोड़कर
बाला-बालाएँ, कविता-कविताएँ, कथा-कथाएँ।
4. ‘ई’ वाले शब्दों के अन्त में ‘इयाँ’ लगाकर
दवाई-दवाइयाँ, लड़की-लड़कियाँ, साड़ी-साडि़याँ,
नदी-नदियाँ, खिड़की-खिड़कियाँ, स्त्री-स्त्रियाँ।
5. स्त्रीलिंग शब्द के अन्त में आए ‘या’ को ‘याँ’ में बदलकर-
चिडि़या-चिडि़याँ, डिबिया-डिबियाँ, गुडि़या-गुडि़याँ,
6. स्त्रीलिंग शब्द के अन्त में आए ‘उ’, ‘ऊ’ के साथ ‘एँ’ लगाकर
वधू-वधुएँ, वस्तु-वस्तुएँ, बहू-बहुएँ।
7. इ, ई स्वरान्त वाले शब्दों के साथ ‘यों’ लगाकर तथा ‘ई’ की मात्रा को
‘इ’ में बदलकर
जाति-जातियों, रोटी-रोटियों, अधिकारी-अधिकारियों,
लाठी-लाठियों, नदी-नदियों, गाड़ी-गाडि़यों।
8. एकवचन शब्द के साथ, जन, गण, वर्ग, वृन्द, हर, मण्डल, परिषद् आदि लगाकर।
गुरु-गुरुजन, अध्यापक-अध्यापकगण,
लेखक-लेखकवृन्द, युवा-युवावर्ग,
भक्त-भक्तजन, खेती-खेतिहर, मंत्री-मन्त्रि मण्डल।
विशेष:
1. सम्बोधन शब्दों में ‘ओं’ न लगा कर ‘ओ’ की मात्रा ही लगानी चाहिए यथा - भाइयो !
बहनो ! मित्रो! बच्चो ! साथियो!
2. पारिवारिक सम्बन्धों के वाचक आकारान्त देशज शब्द भी बहुवचन में प्रायः यथावत् ही रहते हैं।
जैसे चाचा (न कि चाचे) माता, दादा बाबा, किन्तु भानजा, व भतीजा व साला से भानजे,
भतीजे व साले शब्द बनते हैं।
3. विभक्ति रहित आकारान्त से भिन्न पुल्लिंग शब्द कभी भी परिवर्तित नहीं होते।
जैसे - बालक, फूल, अतिथि, हाथी, व्यक्ति, कवि, आदमी, संन्यासी, साधु, पशु, जन्तु, डाकू,
उल्लू, लड्डू, रेडियो, फोटो, मोर, शेर, पति, साथी, मोती, गुरु, शत्रु, भालू, आलू, चाकू
4. विदेशी शब्दों के हिन्दी में बहुवचन हिन्दी भाषा के व्याकरण के अनुसार बनाए जाने चाहिए।
जैसे स्कूल से स्कूलें न कि स्कूल्स, कागज से कागजों न कि कागजात।
5. भगवान के लिए या निकटता सूचित करने के लिए ‘तू’ का प्रयोग किया जाता है। जैसे
हे ईश्वर! तू बड़ा दयालु है।
6. निम्न शब्द सदैव एक वचन में ही प्रयुक्त होते हैं।
जैसे- जनता, वर्षा, हवा, आग