क्रेडिट रेटिंग क्या होती है? What is Credit Rating?

भारत में सर्वप्रथम सन् 1987 में पहली साख क्षमता मूल्यांकन संस्था Credit Rating & Information Services of India Ltd. (CRISIL) स्थापित की गयी। वर्तमान समय इस क्षेत्र में दो अन्य संस्थायें Credit Analysis and
Research Ltd. (CARE) ,oa Information and Credit Agency of India Ltd. (ICRAL) भी कार्य कर रही हैं।

वर्तमान प्रतियोगी युग में प्रत्येक निवेशक विशेषकर बड़े कोषों के विनियोजक किसी भी संस्था में कोष विनियोजन से पूर्व उस संस्था की विनियोग गुणवत्ता के विषय में पूर्णतः आश्स्त होना चाहता है कि वह संस्था विनियोग का उचित प्रतिफल भुगतान समयानुसार कर पायेगी अथवा नहीं। निर्गमन संस्था निवेशकों को अपनी शोधन क्षमता का विश्वास दिलाने हेतु ऋण प्रतिभूति का विशिष्ट एवं मान्य संस्थान द्वारा रेटिंग कराती है। इस रेटिंग के अन्तर्गत निर्गमन संस्था की साख एवं शोधन क्षमता का मूल्यांकन यह विशिष्ट संस्थायें अपने विशेषज्ञों के विश्लेषण के आधार पर करती है और उसी आधार पर उनकी साख श्रेणी निर्धारित की जाती है। उच्चतम विनियोग सुरक्षा व्यक्त करने वाली साख श्रेणी सर्वोत्तम मानी जाती है। यह साख श्रेणी ऋण प्रतिभूति के मूल्य एवं शोधनक्षमता संभावना को प्रतीकात्मक रूप में व्यक्त करती है जैसे ए, बी, ए ए, ए+, बी, एएए आदि। 

यह साख श्रेणी संस्था की साख गुणवत्ता की मापक या निवेश स्वीकार करने की योग्यता का परिचायक होती है। यह साख श्रेणी निर्गमित ऋण प्रतिभूति की वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर होती है, यह आकलन या श्रेणी निर्गमन संस्था की नहीं होती है। यह श्रेणी परिस्थितियों एवं समयानुसार परिवर्तित होकर निम्नतर या उच्चतर हो सकती है।

क्रेडिट रेटिंग के उद्देश्य

  1. विनियोगकर्ता तक उचित एवं प्रमाणित सूचनायें कम लागत में उपलब्ध कराना। 
  2. संस्थागत विनियोगकर्ताओं के लिए जनता के मार्गदर्शी सिद्धान्तों को लागू कराना। 
  3. सूचनायें, एकत्र करवाना, लेखा मानकों का अनुपालन करवाना एवं तद्नुसार वित्तीय सूचनाओं में सुधार करवाना। 
  4. मर्चेन्ट बैंकर, अभिगोपक अथवा अन्य सम्बन्धित अधिकारियों को ऋण सम्बन्धी मामलों में सहयोग प्रदान करना। 
  5. उच्च श्रेणी में मूल्यांकित निगम या कम्पनी की ब्याज लागत में कमी करना।
  6. ऋणी के अनुशासन एवं मनोबल में वृद्धि करना जिससे वह समयानुसार भुगतान कर सके। 

क्रेडिट रेटिंग के कार्य

1. क्रेडिट रेटिंग संस्था विनियोगकर्ता के हित में सम्बन्धित महत्वपूर्ण सूचनाओं का संग्रह कर उन तक पहुंचाती है तथा संलग्न प्रतिभूतियों के सम्बन्ध में निष्पक्ष जांच कर जोखिम की सूचना विनियोजकों तक पहुंचाती है। 

2. संस्थाओं की साख क्षमता का मूल्यांकन क्रेडिट रेटिंग एजेंसी उनकी विश्वसनीयता स्थापित करती हैं जिसके आधार पर संस्था को अपनी प्रतिभूति सम्बन्धी सार्वजनिक नीति निर्धारण में सहायता प्राप्त होती है। 

3. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी संस्था के पूर्व वित्तीय परिणामों, कार्यों, नियोजन एवं नियन्त्रण प्रणाली के आधार पर संस्था का मूल्यांकन करके उसकी प्रबन्धकीय क्षमताओं का आकलन करती है। इसके अतिरिक्त प्रबन्धकीय योग्यता एवं कार्यक्षमता, भविष्य की योजना, पूंजी संरचना, अंशधारियों एवं संचालक मंडल के पारस्परिक सम्बन्ध, औद्योगिक सम्बन्ध आदि का भी मूल्यांकन एवं विश्लेषण किया जाता है। 

4. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी द्वारा किसी भी संस्था की साख श्रेणी निर्धारित करने की प्रक्रिया में बाजार की दशाओं, व्यवसाय संचालन क्षमता, वैधानिक परिवेश एवं स्थिति एवं जोखिम की मात्रा आदि का भी आकलन एवं विश्लेषण किया जाता है। 

5. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी किसी भी संस्था की साख श्रेणी निर्धारित करने में उसकी चल एवं अचल सम्पत्ति का तकनीकी विश्लेषण करती है। चल सम्पत्ति के सम्बन्ध में मात्रा, तरलता, जोखिम आदि का विश्लेषण किया जाता है तथा अचल सम्पत्ति पर जीवनकाल हृास की दर, हृास नीति आदि मूल्यांकन के आधार होते हैं। 

6. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी अपने प्रशिक्षित, योग्यता प्राप्त, विशेषज्ञ कर्मचारियों के माध्यम से प्राथमिक एवं द्वितीयक सूचना, सर्वेक्षण, सरकारी एवं गैर सरकारी प्रपत्रों के अवलोकन आदि के माध्यम से सूचना एकत्र करती है, विश्लेषण करती है तथा परिणाम प्राप्त करती है। संस्था को अपने स्तर से यह सूचना प्राप्त करने के लिए अत्यधिक व्यय करना पड़ सकता है तथा सूचना की सत्यता और प्रमाणिकता भी संदिग्ध रहती है।

भारत में क्रेडिट रेटिंग

भारत में क्रेडिट रेटिंग की अवस्था अभी अपने शैशव काल यानि कि अपरिपक्व स्थिति में ही है। भारत में दो दशक पूर्व ही इस प्रकार की क्रियाओं का निष्पादन प्रारम्भ हुआ है। तीन पूर्व वर्णित प्रमुख एजेंसियों के अतिरिक्त FITCH,
DUFF & PHELPS, ONICRA। आदि कुछ छोटी एजेंसियां भी क्रेडिट रेटिंग के लिए सक्रिय है। आज भी प्रमुख विनियोगकर्ता CRISIL को ही अधिक प्रमाणिक एवं विश्वसनीय मानते हैं। सत्यता यह है कि भारत में इसे मात्र एक वैधानिक औपचारिकता के रूप में ही संस्थायें स्वीकार करती हैं। यद्यपि कम्पनियों द्वारा स्थायी जमा, म्युचुअल फंड तथा वाणिज्यिक प्रपत्रों को स्वीकार करने से पूर्व अनिवार्य रूप से क्रेडिट रेटिंग करानी होती है। 

Credit Rating Information Services of India Ltd. (CRISIL)

इसकी स्थापना सन् 1987 में ICICI, UTI, LIC, GIC, ADB तथा जनता के अभिदान द्वारा सार्वजनिक कम्पनी के रूप में की गयी इसका प्रमुख कार्यालय मुंबई में स्थित है। आज भी विनियोगकर्ताओं के मध्य यह सर्वाधिक विश्वसनीय एवं लोकप्रिय है। इसी ने सन् 1989 में सर्वप्रथम वाणिज्यिक प्रपत्रों की साख श्रेणी निर्धारित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ की। 1992 में CRISIL ने सम्पत्ति आधारित ऋण प्रतिभूतियों की रेटिंग भी प्रारम्भ की। 

इस संस्था की सेवाओं का लाभ वर्तमान में संयुक्त पूंजी कम्पनियों के अतिरिक्त बैंक, वित्तीय संस्थान, निगम, मर्चेन्ट बैंकर्स तथा विभिन्न अधिकृत प्राधिकरण भी प्राप्त कर रहे हैं। इसका प्रमुख कार्य निगमित संस्था या निगमों द्वारा निर्गमित ऋण प्रतिभूतियों की साख श्रेणी निर्धारित करना है।

क्रेडिट रेटिंग कार्य प्रणाली

किसी भी संस्थान या कम्पनी द्वारा निर्गमन से पूर्व अपनी क्रेडिट रेटिंग निर्धारण के लिए अनुरोध करने पर CRISIL द्वारा अपने योग्य, निपुण, विशिष्ट योग्यता प्राप्त विशेषज्ञों की टीम को इस कार्य पर नियुक्त किया जाता है। वह संस्था के सम्बन्ध में अधिकृत एवं निजी स्रोतों के माध्यम, प्रकाशित व अप्रकाशित आंकड़ों के आधार पर सर्वेक्षण के द्वारा आवश्यक जानकारी एकत्र करते हैं तथा इस सम्बन्ध में उन प्राप्त तथ्यों का मान्य विधि से अध्ययन एवं विश्लेषण करते हैं। प्राप्त निष्कर्षों को साख श्रेणी निर्धारण समिति को सौंप दिया जाता है जो प्रतिभूति के सम्बन्ध में उसकी रैंक/ग्रेड/रेटिंग निर्धारित करती है। इस सम्बनध में सम्बन्धित निर्गमित करने वाली संस्था को रेटिंग से अवगत करा दिया जाता है जो असन्तुष्ट होने पर रेटिंग के पुनर्निर्धारण का अनुरोध कर सकती है ऐसी स्थिति अतिरिक्त तथ्य एवं आंकड़े एकत्र कर विशेषज्ञ टीम रेटिंग कम्पनी को दे देती है तत्पश्चात अन्तिम रेटिंग औपचारिक रूप से प्रदान करके निर्गमन कम्पनी को सूचित कर दिया जाता है।

CRISIL इस सम्बन्ध में सामयिक परिवर्तनों को दृष्टिगत रखते हुए अपने द्वारा प्रदत्त साख श्रेणी की निरन्तर समीक्षा करती रहती है जिसके परिणामस्वरूप पूर्व प्रदत्त या घोषित साख श्रेणी सकारात्मक या नकारात्मक रूप से परिष्कृत या परिमार्जित की जाती है जिसकी सूचना सार्वजनिक माध्यम या अखबार के माध्यम से जनता या सम्बन्धित पक्ष को प्रदान की जाती है।

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