NABARD - नाबार्ड की स्थापना, उद्देश्य, कार्य


नाबार्ड की स्थापना

नाबार्ड बैंक का पूरा नाम राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक है राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की स्थापना के सम्बन्ध में 1981 में संसद में एक अधिनियम पारित किया गया, जिसे 30 दिसम्बर, 1981 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई। 12 जुलाई, 1982 को एक शीर्षस्थ बैंक के रूप में नाबार्ड की विधिवत् स्थापना कर दी गई और 15 जुलाई 1982 से नाबार्ड ने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया। इसका मुख्यालय मुम्बई में है। इसके 4 जानेल कार्यालय तथा प्रत्येक राज्य में 28 क्षेत्रीय कार्यालयों की स्थापना की गई है। नाबार्ड 391 जिला विकास कार्यालय सहित, श्रीनगर में एक विशेष सेल है।

नाबार्ड का प्रबन्ध

नाबार्ड का प्रबन्ध एक संचालन मण्डल द्वारा सम्पन्न होता है। जिसका गठन केन्द्र सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के परामर्श पर किया जाता है। नाबार्ड के संचालन मण्डल में अध्यक्ष तथा प्रबन्ध संचालक होते हैं साथ ही ग्रामीण अर्थव्यस्था व विकास के विशेषज्ञ रिजर्व बैंक के निदेशक, भारत सरकार तथा राज्य सरकार के अधिकारी होते है। 

नाबार्ड के कार्य

नाबार्ड कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं में सर्वोच्च स्तर की संस्था है। निसन्देह सरकार एवं कृषि क्षेत्र को इस बैंक की सफलता पूर्वक भूमिका निर्वाह से अत्यधिक अपेक्षायें है। नाबार्ड को सफलतापूर्वक अपना उत्तरदायित्व निभाने के लिए कार्य सौंपे गये हैं-
  1. ग्रामीण साख के क्षेत्र में नाबार्ड शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करता है।
  2. नाबार्ड अपने कृषि साख विभाग के माध्यम से सहकारी क्षेत्र की गतिविधियों पर नजर रखता है।
  3. मौसमी कृषि कार्यों (फसल ऋणों) के लिए कृषि उत्पादन की बिक्री के लिए, उर्वरकों की खरीद व वितरण के लिए तथा सहकारी चीनी मिलों की कार्यशील पूंजी के लिए सहकारी बैंकों को अल्पकालीन ऋण (18 माह के लिए) प्रदान करता है।
  4. निर्धारित कृषि उद्देश्यों, प्रसंस्करण समितियों के शेयरों की खरीद तथा प्राकृतिक विपदाओं से ग्रस्त इलाकों में अल्पकालीन ऋणों को मध्यमकालीन ऋणों में परिवर्तित करने के लिए यह राज्य सहकारी बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण को मध्यमकालीन ऋण (18 माह से 7वर्ष तक के लिए ) प्रदान करता है।
  5. कृषि में बड़े निवेष कार्यों के लिए यह राज्य सहकारी बैंकों, भूमि विकास बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा व्यापारिक बैंकों को मध्यकालीन व दीर्घकालीन ऋण (अधिक से अधिक 25 वर्ष के लिए) प्रदान करता है।
  6. नाबार्ड सहकारी वित्त संस्थाओं की शेयर पूंजी में योगादान देने के लिए राज्य सरकारेां को ऋणों के रूप में दीर्घकालीन सहायता (अधिकतम् अवधि 20 वर्ष) प्रदान करता है। 
  7. केन्द्रीय एवं राज्य सहकारी बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के निरीक्षण की जिम्मेदारी नाबार्ड को सौंपी गई है।
  8. नाबार्ड कृषि और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में अनुशासन को प्रोत्साहित करने के लिए अनुसंधान व विकास फण्ड रखता है। जिससे विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकताओं के अनुसार परियोजना को बनाया जा सकें
  9. कृषि पुनर्वित्त विकास बैंकों के सभी कार्यों को नाबार्ड द्वारा किया जाता है।

नाबार्ड के कार्यों के प्रगति

नाबार्ड की स्थापना पर, वे सब ऋण जो रिजर्व बैंक ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा राज्य सहकारी बैंकों को दिये हुए थे। नाबार्ड को हस्तान्तरित कर दिये गये। इन ऋणों की मात्रा 750 करोड़ रूपए थी। नाबार्ड ने अपनी स्थापना के प्रथम वर्ष में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को 222 करोड़ रूपये तथा राज्य सहकारी बैंकों को 1574 करोड़ रूपये के ऋण दिये। नाबार्ड विभिन्न परियोजनाओं (भूमि सुधार, कृषि यन्त्रीकरण, लघु सिंचाई योजनाओं, मुर्गीपालन, डेयरी, भेड़-बकरियों के पालन, काॅफी प्रसंस्करण, डिब्बाबंद, प्रदूषण नियंत्रण उपकरण, कृषि यंत्र मरम्मत केन्द्र, बागवानी, मछली पालन, भण्डारण तथा विपणन, ग्रामीण आवास तथा स्वयं सहायता समूह आदि को स्वीकृति प्रदान करता है। तथा इनके लिए वित्तीय सहायता देता है।

ग्रामीण विकास में नाबार्ड की भूमिका

नाबार्ड कृषि वित्त की शीर्ष संस्था है। इसलिए यह किसानों एवं अन्य ग्रामीण जनता को सीधे सहायता प्रदान नहीं करता अपितु सहकारी साख संस्थाओं, व्यापारिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों आदि के माध्यम से सहायता प्रदान करता है। नाबार्ड के कार्यों के मुख्य रूप से 4 श्रेणियों में रखा जा सकता है। साख योजना, वित्तीय सेवायें, संवर्धन और विकास तथा निरीक्षण व पर्यवेक्षण। जिन्हें नाबार्ड ने 28 क्षेत्रीय कार्यालयों तथा पोर्ट ब्लेयर मे एक उपकार्यालय सहित 391 जिला विकास कार्यालयों द्वारा लागू करने का प्रयास किया है। नाबार्ड अपने कार्यों को निम्न कार्यक्रमों, परियोजनाओं तथा समूहों द्वारा करता है।

1. स्वयं सहायता समूह - नाबार्ड की प्रमुख सफलता की कहानियों में से एक स्वयं सहायता समूह है। जिसे 1992 में 500 स्वयं सहायता समूह है। जिसे 1992 में 500 स्वयं सहायता समूहों के रूप में बैंक से जोड़ने के उद्देश्य से प्रायोगिक आधार पर शुरू किया गया था। स्वयं सहायता समूहों गरीब लोगों का एक समूह है जिसमें सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े लोग अपनी आम समस्याओं पर काबू पाने के विचार से शामिल होते है। इन समूहों के सदस्यों को उनके द्वारा नियमित रूप से की गई बचत के आधार पर बैंक उन्हे अपने सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऋण देता है। नाबार्ड के इस प्रयास में सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं ने भी भाग लिया।

नाबार्ड के स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम में 2010-11 तक 75 लाख स्वयं सहायता समूह इसमें से 47.8 लाख को बैंकों से सीधे ऋण प्रदान किया जा रहा है। 2010-11 के दौरान लगभग 12 लाख स्वयं सहायता समूहों को सभी वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिये गये ऋण की राशि 14548 करोड़ रूपये थी। भारत सरकार के ग्रामीण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत तकरीबन 27 प्रतिशत स्वयं सहायता समूहों को जोड़ दिया गया है।

2. किसान क्लब कार्यक्रम- किसानों को संगठित कर नवीनतम् कृषि तकनीकों से परिचय कराकर बाजार तक पहुंच बढ़ाकर तथा उनकी तकनीकि जरूरतों का पूरा कर, उज्जवल भविष्य की ओर ले जाने में किसान क्लब कार्यक्रम महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ है। किसान क्लब उन्हें ऐसा मंच प्रदान करता है जहां किसान सामूहिक रूप से कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिए संगठित प्रयास कर सकें। किसान क्लब कोई भी कम से कम 10 किसान मिलकर बना सकते है। जिसकेा एक गांव को ही प्राथमिकता देना चाहिए। इनका कार्य बैंक तथा ऋण प्राप्तकर्ता के बीच बेहतर तालमेल रखना, ऋण वसूली में बैंक की मद्द करना, कृषि की आधारभूत सुविधाओं, कृषि आगतों, विपणन तथा अनुदान सम्बन्धी समस्याओं को हल करना, तथा खाद बीज, कीटनाशक की सामूहिक खरीद व फसल को क्लब के माध्यम से विक्रय को प्रोत्साहित करना है। 31 मार्च, 2007 तक किसान क्लब का विस्तार 534 जिलों के 48763 गांवों तक हो गया था।

3. ग्रामीण आधारसंरचना विकास निधि-1995-96 में 2000 करोड़ रूपये से पहला ग्रामीण आधार संरचना विकास निधि स्थापित किया गया। जिसका उद्देश्य राज्य सरकारों तथा कार्यरत निगमों को ग्रामीण आधारित परियोजनाओं के लिए वित्तीय साधन उपलब्ध कराया था त्प्क्थ् के अन्तर्गत कई उद्देश्यों के लिए ऋण दिये जाते है जैसे सिंचाई परियोजनाएं, जलसंभर प्रबंध, ग्रामीण सड़कों व पुलों का निर्माण आदि।

4. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना हेतु पुनर्वित-नाबार्ड ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों को स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए है। स्वर्ण जयन्ती योजना के अधीन पुनर्वित्त सहायता के लिए भी आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये हैं। स्वर्णजयन्ती योजना के अधीन पुनर्वित्त सहायता के लिए भी आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये गये हैं। बैंकों को सलाह दी गई है कि वे स्वर्ण जयन्ती योजना समूहों की वर्गीकृत करने के लिए आवश्यक मापदण्ड तैयार करने के लिए नाबार्ड द्वारा जारी मापदण्डों की निदर्शी सूची को ध्यान में रखें।

5. सहकारी विकास कोष- नाबार्ड ने 1993 में सहकारी विकास कोष की स्थापना की। इस कोष का उद्देश्य सहकारी साख संस्थाओं की संगठनात्मक संरचना, मानव संसाधन विकास, संसाधन एकत्रण, ऋणों की वसूली इत्यादि गतिविधियों में सुधार व मजबूती लाना है। इस उद्देश्य के लिए राज्य सहकारी बैंकों, राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों, केन्द्रीय सहकारी बैंकों तथा प्राथमिक सहकारी बैंकों को अनुदान या आसान शर्तों पर ऋण के रूप में सहायता दी जाती है।

6. वाटरशेड विकास कार्यक्रम-एक व्यापक भूमि संरक्षण सिंचाई तथा वर्षा जल के संरक्षण के द्वारा शुष्क क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास के तहत नाबार्ड ने ग्रामीण क्षेत्रों मे जल संचयन तकनीक के निर्माण पर जोर दिया है। जिसके लिए नाबार्ड 200 करोड़ रूपये से वाटरशेड विकास कोष की स्थापना की है। जो 1999-2000 में 602.76 करोड़ रूपये हो गया जिसके द्वारा 14 राज्यों के 124 जिलों में वाटरशेट कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।

7.आदिवासी विकास और वाडी दृष्टिकोण-देश की आदिवासी आबादी का 8 प्रतिशत से अधिक बड़े पैमाने पर जंगलों, पशुधन और कृषि पर निर्भर करता है। इस लिए नाबार्ड ने वाडी के साथ मिलकर इन्हें इनके पैतृक निवास स्थान पर उत्पादन प्रसंस्करण तथा विपणन कीे सुविधाओं की व्यवस्था की। वाडी माॅडल भारतीय एग्रो इंडस्ट्रीज फाउडेंशन के सहयोग से विकसित किया गया है। यह पर्यावरण विकास स्वास्थ्य सेवाओं व महिलाओं के विकास पर भी जोर देता है। इसने गुजरात में 10 वर्ष तथा महाराष्ट्र में 5 वर्ष पूरे करने के दौरान 410 गांवों के 27511 परिवारों को अपने कार्यक्रम में सम्मिलित किया है।

(8) जिला ग्रामीण उद्योग परियोजना - बैंकों तथा जिले विशेष की विकस ऐजेन्सियों को ध्यान में रखते हुए जिला ग्रामीण उद्योग का शुभारम्भ किया। यह एक एकीकृत क्षेत्र के लिऐ साख गहनता कार्यक्रम है। जिसको 1993-94 में देश के 106 जिलों में स्थायी रोजगार के अवसर पैदा करने के उद्देश्य से शूरू किया गया था।

(9) ग्रामीण उद्यमिता विकास कार्यक्रम - ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न करने के लिए ग्रामीण युवाओं में उद्यमिता कौशल विकास की आवश्यकता महसूस की गई। इसलिए नाबार्ड के समर्थन से ग्रामीण उद्यमिता विकास कार्यक्रम का प्रचार किया गया जिससे ग्रामीण शिक्षित बेरोजगार युवाओं को स्वयं का उद्यम स्थापित करने के लिए प्रेरित व प्रशिक्षित किया जा सके। अब तक 7793 ग्रामीण उद्यमित विकास कार्यक्रम द्वारा 2.32 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है।

(10) ग्रामीण विपणन- ग्रामीण हाट, मेलों, प्रदर्शनियों तथा विपणन मेलों में भागीदारी से नाबार्ड अपने प्रचार कार्यक्रमों के तहत वित्तीय सहायता देता है। जिससे ग्रामीण कारीगरों व उद्यमियों को अपने उत्पादन के बाजार मिलता दे और वह अपने उत्पादन का शहरी व देहाती बाजार में प्रदर्शन कर सकतें है जिससे उनके उत्पाद प्रतिभा का प्रचार होता है।

(11) ग्रामीण अभिनव कोष- नाबार्ड ने स्विस विकास व सहकारी ऐजेन्सी के सहयोग से नाबार्ड एसडीसी ग्रामीण अभिनव कोण की स्थापना की है जो कृषि, गैर कृषि तथा लघु वित्त के क्षेत्र में आजीविका सृजन के अभिनव व नवीन परियोजनाओं का समर्थन करता है। सरकारी, गैर सरकारी संस्थान, निगमीत निकायों, वित्तीय संस्थानों और व्यक्तियों को नये उत्पादो, प्रक्रियाओं, प्रौद्योगिकी आदि गतिविधियों के लिए वित्तिय सहायता दी जाती है। जो गरीबों के विकास में शामिल हो।

(12) नाबार्ड परामर्श सेवाएं - यह नाबार्ड की एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी है जो कृषि और सम्बन्धित गतिविधियों के लिए व्यावसायिक परामर्श सेवायें प्रदान करती है। 31 मार्च 2007 के इसने संचयी रूप से 467 राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रिय कार्य अनुबन्धित किया यह परियोजना तैयार करने, मूल्यांकन वित्तीय व्यवस्था, परियोजना प्रबन्धन व निरीक्षण, कृषि व्यापार इकाइयों का पुनर्गठन, ग्रामीण विकास विषयों पर सेमिनार का आयोजन, प्रशिक्षण आदि को बढ़ावा देती है।

(13) सहवित्त पोषण - यह अनुभव किया गया कि बैंका उच्च तकनीकी व बडे पैमाने के निर्यात आधारित परियोजनाओं में ऋण जोखिम के कारण वित्त प्रदान करने में सावधानी बरत रहें है। इसलिए नाबार्ड ने बैंकों में विश्वास पैदा करने और ऐसी परियोजनाओं के लिए ऋण सुविधा सुनिश्चित करने के लिए 14 वाणिज्य बैंकों के साथ सहवित्त पोषण समझौता किया है। वर्ष 2006-07 इसके तहत सात परियोजनाओं का 145.42 करोड रूपये था। फूलों की खेती, जैविक खेती, दुग्ध, प्रसंस्करण, इथेनाल उत्पाद और कृषि प्रसस्करण परियोजना को अभितिक स्वीकृति दी गई।

(14) किसान क्रेडिट कार्ड योजना - किसानों को अल्पकालीन ऋण सहायता प्रदान करने के लिए 1998-99 से किसान क्रेडिट कार्ड योजना शूरू की गई। नाबार्ड ने इस प्रक्रिया में तेजी लाने के प्रयास किए है। इसके परिणामस्वरूप यह लोकप्रिय हो रही है। तथा इसक कार्यान्वयन 27 बैंकों, 378 केंन्द्रिय सहकारी बैंकों तथा 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों के माध्यम से किया जा रहा है। इस कार्ड की राशि की सीमा का निर्धारण किसान की सम्पूर्ण वर्ष की साख आवश्यकता, तथा कृषि, उत्पादन क्रियाओं को ध्यान में रख कर किया जाता है। यह कार्ड तीन वर्ष के लिए मान्य होगा, जिसका प्रत्येक वर्ष पुर्ननिरिक्षण करवाना आवश्यक होगा। कार्ड से प्राप्त राशि को 12 माह में वापस चुकाना होगा। कार्ड से किसान 5000रू और इससे अधिक उत्पादन साख और इससे अधिक राशि की उत्पादन साख प्राप्त करने हुतु योग्य है। किसान क्रेडिट कार्ड धारकों को वैयक्तित दुर्घटना बीमा की सुविधा प्रदान की गई है मृत्यु या स्थायी अंपगता और आशिक अंपगता के लिए क्रमशः 50,000 और 24,000 रूपये का प्रावधान किया गया है। 1998-99 में कुल 607 किसान क्रेडिट कार्ड द्वारा 2084 करोड रू0 राशि स्वीकृत की गई। 1998 से 2009 तक 878.30 लाख किसान क्रेडिट कार्ड जारी किये जा चुके थे। इनमें से 48 प्रतिशित सहकारी बैंकों ने, 13 प्रतिशत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने तथा 39 प्रतिशत वाणिज्य बैंकों द्वारा जारी किये गये।

सन्दर्भ -
  1. https://www.nabard.org/
  2. सुबह सिंह ‘‘ग्रामीण विकास में बैंकों की भूमिका’’ (नवम्बर 2010), प्रतियोगिता दर्पण; आगरा।
  3. पंत नवीन, ‘‘ग्रामीण क्षेत्रों में बैकिंग सुविधाएं ’’ (फरवरी 2010) योजना, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, प्रकाशन विभाग भारत सरकार, नई दिल्ली।
  4. सावित्री,‘‘किसान क्रेडिट कार्ड से खत्म हुई किसानों की ऋणग्रस्तता ’’ (जून 2011) कुरूक्षेत्र, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली।
  5. डाॅ0 शिव भूषण‘; (2010) ‘‘ कृषि अर्थशास्त्र ‘‘; साहित्य भवन आगरा।
  6. माथुर बी0 एल0; (2011) ‘‘कृषि अर्थशास्त्र‘‘; अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली।
  7. आर0 एन0; ‘‘कृषि अर्थशास्त्र के मुख्य विषय ’’ ; 2007; विशाल पब्लिशिंग कम्पनी,जालन्धर।
  8. दत्त रुद्र एवं सुन्दरम के0पी0 एम0; (2007) ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्थाए‘‘ ;एस0 चन्द्र एण्ड कम्पनी लि0 नई दिल्ली।

Post a Comment

Previous Post Next Post