संसार में आज के समय सबसे बडी आर्थिक समस्या आर्थिक संवृद्धि और विकास की है। आधुनिक युग में आार्थिक विकास प्रमुख चिंतन का विषय है। मायर एवम् बाल्डविन के अनुसार ‘‘राष्ट्रों की निर्धनता का अध्ययन राष्ट्रों के धन के अध्ययन से भी अधिक महत्वपूर्ण है।’’ आर्थिक विकास का महत्व सभी देशों के लिए है लेकिन अल्पविकसित देशों के लिए इसका विशेष महत्व है। क्योकि अल्पविकसित देशों में गरीबी, असमानता, बेरोजगारी जैसे अनेक आर्थिक समस्याएं रहती है। अल्पविकसित देश गरीबी, और बेरोजगारी से छुटकारा पाना चाहते है।
आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्नलिखित है।
मानवीय शक्ति का आर्थिक विकास के लिए सही ढंग से प्रयोग करने हेतु कुछ तत्वों की आवश्यकता होती है।
आर्थिक विकास की समस्या का एडम स्मिथ ने क्रमबद्ध रूप के अपनी पुस्तक में 1776 में विचार प्रकट किए थें। उसके बाद अनेक अर्थशास्त्रियों ने विकास सम्वन्धी समस्या का अध्ययन किया है। परन्तु केन्ज और इससे पहले के अर्थशास्त्रीयांे का ध्यान विकसित देशों की ओर था। अल्पविकसित और अविकसित देशो की तरफ ध्यान 20वीं शताब्दी के 50 के दशक के बाद गया है। आर्थिक समृद्धि औंर विकास की सकल्पनाओं में बहुत सारे अर्थशास्त्रियों ने अपना योगदान दिया है। शुरूआती दौर मे आर्थिक संवृद्धि और विकास में अन्तर नहीं बताया जाता था। आर्थिक संवृद्धि को विकास ही माना जाता था। अब आर्थिक संवृद्धि का प्रयोग विकसित देशों के लिए किया जाता है और अल्पविकसित अथवा विकासशील देशों के लिए आर्थिक विकास का प्रयोग किया जाता है।
आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने वाले तत्व
आर्थिक संवृद्धि को अनेक कारक कम या ज्यादा प्रभावित करते है। कुछ कारक आर्थिक संवृद्धि को बढाते है और कुछ कारक संवृद्धि को कम करते है। अलग - अलग अर्थशास्त्र की विचारधाराओं के अनुसार आर्थिक संवृद्धि के अलग कारक है। क्लासिकल अर्थशास्त्रीयों के अनुसार पूजीं निर्माण आर्थिक संवृद्धि का सबसे बडा कारक है। अलग - अलग अर्थशास्त्रियों ने अलग - अलग कारकों केा आर्थिक संवृद्धि का कारक बताया है।
प्रो0 शुम्पीटर के अनुसार ‘नव-प्रवर्तन आर्थिक विकास का आवश्यक तत्व है।
प्रो0 रोस्टोव ने पूंजी निर्माण और श्रम - शक्ति को आर्थिक विकास का कारक माना है।
प्रो0 रोस्टोव ने पूंजी निर्माण और श्रम - शक्ति को आर्थिक विकास का कारक माना है।
आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्नलिखित है।
1. प्राकृतिक साधन
एक देश के प्राकृतिक साधन उस देश के आर्थिक विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। आमतौर पर यह कहा जा सकता है कि जिस देश के पास प्राकृतिक साधन जितनी मात्रा में अधिक होगें उस देश का उतनी ही मात्रा में आर्थिक विकास होगा और शीघ्र होगा। प्राकृतिक साधनों से अभिप्राय किसी देश के उन सभी भौतिक साधनों से है जो देश को प्रकृति की तरफ से उपहार स्वरूप प्राप्त होते है। एक देश की प्रकृति की ओर से उपहार स्वरूप प्राप्त होने वाले कुछ इस प्रकार है जैसे खनिज पदार्थ, वन सम्पति, जल - सम्पदा, जलवायु, वर्षा और प्राकृतिक बन्दरगाह। ये सभी प्राकृतिक साधन देश के आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक साधनों को आर्थिक विकास के लिए कितना महत्व है।इस बारे में रिचार्ड गिल ने लिखा है कि प्राकृतिक साधन भी किसी देश के आर्थिक विकास में जनसंख्या तथा श्रम की पूर्ति की तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कृषि का विकास उपजाऊ भूमि और पानी के अभाव में नही हो पाता है। बढता औद्योगीकरण कोयला, लोहा, खनिज सम्पदा के कारण अधूरा रह जाता है। प्राकृतिक साधनों के बारे में दो बातों को याद रखना अति आवश्यक है। पहली प्राकृतिक साधन सीमित व निश्चित होते है। माननीय प्रयत्नाों से ही खोजा जा सकता है। परन्तु उनका नव - निर्माण नही किया जा सकता
4 संवृद्धि एवम् विकास का अर्थशास्त्र
है। दूसरी ओर यह भी बहुुत बडी भूल होगी कि जिस देश में जितने अधिक प्राकृतिक साधन होगें उस देश का विकास उतना ही अधिक होगा। लुइस के अनुसार ‘‘ अन्य बाते समान होने पर, लोग अल्प - साधनों की अपेक्षा समृद्ध साधनों का श्रेष्ठतर उपयोग कर सकते है। अल्पविकसित देशों के सामने सबसे बडी समस्या यह है कि उनके प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पूर्ण रूप से नही होता है। संसाधनों का उचित रूप से प्रयोग न होना देश को अल्पविकसित बना सकता है। जबकि जापान जैसे देश जिनमें बडी कम मात्रा में प्राकृतिक संसाधन है, वे अपनी श्रेष्ठतम तकनीकी की बदौलत कम संसाधनों का भी किफायतपूर्ण प्रयोग करके विकासशील से विकसित देश की श्रेणी में आ जाते है।। इसलिए संसाधनों के उचित प्रयोग के लिए हमारे पास तकनीक भी उच्च स्तर की होनी चाहिए। कम प्राकृतिक संसाधन और उच्च तकनीक के साथ भी आर्थिक विकास संभव हो सकता है।2. श्रम अथवा मानवीय साधन
मानवीय साधनों की अभिप्राय किसी देश में निवास करने वाली जनसंख्या से है। व्यष्टि अर्थशास्त्र में हमने पढा है कि श्रम और पूंजी उत्पादन के दो महत्वपूर्ण साधन है। परन्तु इन दोनों में से श्रम सबसे महत्वपूर्ण है। उत्पादन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण साधन श्रम को माना गया है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्र एडम स्मिथ ने कहा है कि ‘‘ प्रत्येक देश का वार्षिक श्रम वह कोष है जो मूल रूप से जीवन की अनिवार्यताओं व सुविधाओं की पूर्ति करता है।’’ एक देश का आर्थिक विकास मानवीय श्रम पर निर्भर करता है। ऐसा माना जाता है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास की पहली आवश्यकता है। लेकिन जब जनसंख्या वृद्धि अधिक तेजी से होती है तो वह आर्थिक विकास के लिए घातक सिद्ध हो जाती है। जब तक जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नही डालती तब तक उस को श्रेष्ठतम माना जाता है और जब जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालना शुरू कर देती है तो उस जनसंख्या वृद्धि को हानिकारक माना जाता है।मानवीय शक्ति का आर्थिक विकास के लिए सही ढंग से प्रयोग करने हेतु कुछ तत्वों की आवश्यकता होती है।
- जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाए।
- मानवीय पूंजी निर्माण को बढाया जाए।
- श्रम शक्ति द्वारा उत्पादकता को बढाया जाए।
रिचर्ड गिल के अनुसार ‘‘आर्थिक विकास एक मानवीय उपक्रम है। न की यांत्रिक प्रक्रिया मात्र है। अन्य मानवीयों उपक्रमों की भांति इसका परिणाम सही अर्थो में इसको संचालित करने वाले जन समुदायों की कुशलता गण्ुाों व प्रवृत्तियों पर निर्भर करता है। उत्पादन क्षमता में वृद्धि श्रमिकों की दक्षता के कारण होती है।
आर्थिक विकास के लिए जनसंख्या का उपभोग कई तरीको से कर सकते है। सबसे पहले जनसंख्या पर नियंत्रण होना चाहिए। जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाने चाहिए और जन्म दर को कम करने के उपाय करने चाहिए। इसके साथ में वर्तमान में जो श्रम शक्ति है। उसके दृष्टिकोण में बदलाव करने की जरूरत है। उनमें श्रम - गौरव का महत्व उत्पन्न करने की जरूरत है। इसके लिए उनमें धार्मिक, सांस्कृतिक, संस्थागत और सामाजिक परिवर्तन करने की जरूरत है। श्रमिकों के दृृष्टिकोण में परिवर्तन करने का जिससे उनकी उत्पादकता बढ सके। सबसे अच्छा साधन उनकी अच्छी शिक्षा है। शिक्षा के साथ प्रशिक्षण भी आर्थिक विकास में अपना योगदान देता है। क्योंकि दिन - प्रतिदिन नई - नई तकनीकी उत्पादन प्रक्रिया में शामिल होती रहती है। श्रमिकों और कर्मचारियों को नई तकनीक सीखने की जरूरत होती है। ऐसा करने से इनकी उत्पादकता बढती है। प्रशिक्षण में कमी से भौतिक पूंजी की उत्पादकता काफी कम हो जाती है। प्रशिक्षण और शिक्षा में निवेश मानव - पूंजी में निवेश है जोकि उत्पादकता को बढाता है। शिक्षण - प्रशिक्षण से आर्थिक विकास की गति तीव्र हो जाती है।
आर्थिक विकास के लिए जनसंख्या का उपभोग कई तरीको से कर सकते है। सबसे पहले जनसंख्या पर नियंत्रण होना चाहिए। जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाने चाहिए और जन्म दर को कम करने के उपाय करने चाहिए। इसके साथ में वर्तमान में जो श्रम शक्ति है। उसके दृष्टिकोण में बदलाव करने की जरूरत है। उनमें श्रम - गौरव का महत्व उत्पन्न करने की जरूरत है। इसके लिए उनमें धार्मिक, सांस्कृतिक, संस्थागत और सामाजिक परिवर्तन करने की जरूरत है। श्रमिकों के दृृष्टिकोण में परिवर्तन करने का जिससे उनकी उत्पादकता बढ सके। सबसे अच्छा साधन उनकी अच्छी शिक्षा है। शिक्षा के साथ प्रशिक्षण भी आर्थिक विकास में अपना योगदान देता है। क्योंकि दिन - प्रतिदिन नई - नई तकनीकी उत्पादन प्रक्रिया में शामिल होती रहती है। श्रमिकों और कर्मचारियों को नई तकनीक सीखने की जरूरत होती है। ऐसा करने से इनकी उत्पादकता बढती है। प्रशिक्षण में कमी से भौतिक पूंजी की उत्पादकता काफी कम हो जाती है। प्रशिक्षण और शिक्षा में निवेश मानव - पूंजी में निवेश है जोकि उत्पादकता को बढाता है। शिक्षण - प्रशिक्षण से आर्थिक विकास की गति तीव्र हो जाती है।
3. पूंजी
प्रो0 कुजनेट्स के अनुसार ‘‘पूंजी व पूंजी का संचय आर्थिक विकास की एक अनिवार्य आवश्यकता है।’’ आर्थिक विकास का लक्ष्य तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक देश में पर्याप्त मात्रा में पूंजी व पूंजी निर्माण नहीं हो सकता है। प्रो0 नर्कसे ने कहा है कि आर्थिक विकास की पूर्व शर्त पूंजी निर्माण ही मानी जाती रही है। किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त मात्रा में पूंजी व पूंजीगत वस्तुओं की आवश्यकता होती है। पूंजीगत वस्तुओं के कारखाने, मशीनरी, भवन, बांध, नहरे, रेले, सडके आदि शामिल होते है। एक देश का आर्थिक विकास उतना ही अधिक होगा जितने कि उस देश के पास साधन होगें। जो देश आज के दिन विकसित कहे जाते है उनके विकसित होने का मुख्य कारण पूंजी निर्माण की ऊंची दर का होना है। पूंजी निर्माण से अभिप्राय पूंजीगत पदार्थो की ऊंची दर का होना है। पूंजी निर्माण से अभिप्राय पूंजीगत पदार्थो में वृद्धि है।अतः यह कहा जा सकता है कि जितनी मात्रा में पूंजीगत पदार्थो में वृद्धि होगी उतनी ही अधिक मात्रा में पूंजी निर्माण होगा। पूंजी निर्माण के कारण गरीब देशों को धनवान बनाया जा सकता है। हम इस निष्कर्ष पर पहूंच सकते है कि किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए पूंजी निर्माण की आवश्यकता है और पूंजी निर्माण पूंजी से ही सम्भव हो सकता है। वास्तविक पूंजी आर्थिक विकास का सबसे बडा निर्धारक तत्व है। आर्थिक संवृद्धि और पूंजी निर्माण में धनात्मक संबंध है। हम पूंजी भंडार का आर्थिक विकास पर प्रभाव देखने के लिए श्रम पूर्ति को स्थिर मान लिया जाता है। पूंजी निर्माण को बढाने के दो महत्वपूर्ण पहलू है एक तो राजकोषीय और दूसरा मौद्रिक। सरकार की राजकोषीय नीति बचतो को बढाने का काम करती है। गैर - आर्थिक संस्थाएं भी बचतों को प्रभावित करती है। पूंजी निर्माण सामाजिक और सांस्कृतिक प्रणाली द्वारा भी प्रभावित होती है। पूंजी निर्माण का दूसरा पहलू मौदिक विस्तार है। यह वित्तीय संस्थाओं की कार्यशैली पर निर्भर करता है। बचत इकट्ठी करने के बाद उसकी निवेेश का रूप भी देना पडता है। निवेश का लक्ष्य उच्चतम सामाजिक सीमान्त उत्पादकता होनी चाहिए।
4. तकनीक
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो0 शुम्पीटर ने भी माना है कि तकनीकी प्रगति किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए मुख्य घटक है। तकनीकी ज्ञान के कारण कम लागत पर वस्तुएं उत्पन्न की जा सकती है और नई वस्तुओं का उत्पादन भी सम्भव होता है। नये - नये नवप्रवतनों द्वारा भी उत्पादन को बढा कर आर्थिक विकास प्राप्त किया जा सकता है। तकनीकी पिछडेपन के कारण आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है। उत्पादन करने के लिए अल्पविकसित देशों में तकनीक ठीक ढंग से विकसित नही हो पाती जिसके कारण आर्थिक विकास में रूकावट आती है। शोध कार्य के लिए भी तकनीक की आवश्यकता होती है। पूंजी प्रधान तकनीक का प्रयोग करके देश के आर्थिक विकास को बढावा दिया जाता है।
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