अधिगम स्थानांतरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, सिद्धांत

शिक्षा में सीखने के स्थानांतरण का अर्थ ‘सीखी हुई क्रिया या विषय का अन्य परिस्थितियों में उपयोग करना।’ दूसरे शब्दों में एक विषय या परिस्थिति में अर्जित ज्ञान का अन्य विषयों या परिस्थितियों के ज्ञानार्जन पर प्रभाव पड़ना ही अधिगम का स्थानांतरण कहलाता है। इसे ‘अधिगम संक्रमण’ या ‘अधिगमानान्तरण’ भी कहते हैं। उदाहारणार्थ- गणित सीखने से जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र तथा सांख्यिकी विषय को सीखने में सहायता करता है। यह क्रिया ही अधिगम का स्थानांतरण कहलाती है। 

इसी प्रकार बालक अपने दैनिक जीवन में गणित के साधारण ज्ञान का उपयोग बाजार में वस्तुओं को खरीदते समय करता है। स्पष्ट है कि शिक्षा का किसी-न-किसी रूप में सम्बन्धित क्षेत्र में संक्रमण होता रहता है।

अधिगम स्थानांतरण की परिभाषा

अधिगम स्थानांतरण का अर्थ शिक्षा मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गई निम्न परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है-

1. वेलोन एवं वीनस्टीन-अधिगम के स्थानांतरण का अर्थ है एक कार्य की निष्पत्ति दूसरे कार्य की निष्पत्ति द्वारा प्रभावित होती है।

2. क्रो और क्रो- फ्साधरणतः अधिगम के एक क्षेत्र में प्राप्त होने वाले विचार, अनुभव या कुशलता का ज्ञान या कार्य करने की आदतों का, सीखने के दूसरे क्षेत्र में प्रयोग करना ही प्रशिक्षण स्थानांतरण कहलाता है। 

3. काॅलेसनिक-स्थानांतरण पहली परिस्थिति में प्राप्त ज्ञान, कुशलता, आदतों, अभियोग्ताओं या अन्य क्रियाओं का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है। 

4. प्रो. सोरेन्सन-स्थानांतरण एक परिस्थिति में प्राप्त किया हुआ ज्ञान, प्रशिक्षण और आदतों को दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरित किये जाने की चर्चा करता है।

5. पे्रटरसन-स्थानांतरण सामान्यीकरण है, क्योंकि वह एक नये क्षेत्र तक विचारों का विस्तार है। इस परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि पहले सीखे हुए अर्जित ज्ञान, कौशल, आदतों या अन्य अनुक्रियाओं का प्रयोग दूसरी परिस्थिति में करना ही स्थानांतरण है।

अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत

अधिगम के स्थानांतरण का अर्थ समझ लेने के बाद यह जानना आवश्यक है कि स्थानांतरण किस प्रकार होता है। इसके लिए स्थानांतरण के विभिन्न सिद्धांतों का अध्ययन करना आवश्यक है। ये सिद्धांत हैं-

1. मानसिक शक्ति का सिद्धांत और औपचारिक अनुशासन की धारणा - यह सिद्धांत शक्ति मनोविज्ञान पर आधारित है। इसके अनुसार व्यक्ति का मन विभिन्न शक्तियों जैसे निरीक्षण, स्मृति, कल्पना, तर्क, निर्णय आदि से मिलकर बना है और ये शक्तियाँ एक-दूसरे से भिन्न या स्वतंत्र हैं। अभ्यास द्वारा इन्हें प्रशिक्षित करके तीव्र बनाया जा सकता है और इनका उपयोग कुशलतापूर्वक किसी भी परिस्थिति में किया जा सकता है। 

उदाहरणार्थ यदि स्मरण-शक्ति को प्रशिक्षित करता है तो उन शब्दों को भी याद कर लेना आवश्यक समझा जाता है, जिनकी उस समय व्यक्ति के लिए उपयोगिता नहीं है। इसी प्रकार इस सिद्धांत के समर्थकों का विचार है कि गणित द्वारा तर्क-शक्ति को प्रशिक्षित किया जा सकता है और फिर इससे उन विषयों को सीखने में सहायता मिलती है जिसमें तर्क करने की आवश्यकता पड़ती है। 

इस सिद्धांत के अनुसार पाठ्य विषयों का चुनाव इस प्रकार किया जाए जिनसे उपर्युक्त मानसिक शक्तियाँ पुष्ट हो सके । आधुनिक मनोविज्ञान मानसिक शक्तियों के विभाजन को स्वीकार नहीं करता। अतः इस सिद्धांत को मान्यता नहीं दी जाती।

2. समान तत्वों का सिद्धांत -इस सिद्धांत के प्रवर्तक थाॅर्नडाइक महोदय ने अपने प्रयोगों के आधार पर इस बात की पुष्टि कि जब दो अनुभवों की विषय-सामग्री में या विषयों में समानता होती है तभी स्थानांतरण की अधिक सम्भावना होती है। यदि विषयों में परस्पर समानता होती है तब एक विषय का अर्जित ज्ञान दूसरे विषय के अध्ययन में सहायक सिद्ध होता है। जैसे गणित का ज्ञान भौतिकशास्त्र व सांख्यिकी में, इतिहास का ज्ञान राजनीति में, मनोविज्ञान का ज्ञान शिक्षा-मनोविज्ञान में और दर्शनशास्त्र का ज्ञान शिक्षा दर्शन के अध्ययन में हमें सहायता देता है, और हमें कठिनाई नहीं होती। इसका कारण यह है कि इन विषयों में परस्पर समान अंश या तत्व पाये जाते हैं। 

इसके समर्थन में गेट्स महोदय का कथन है-यह देखा गया है कि समान तत्वों से स्थानांतरण का अनुपात अधिक होता है।य् यही कारण है कि विद्यार्थी पाठ्य-विषयों का चुनाव करते समय उन विषयों को लेने का प्रयत्न करते हैं जिनमें परस्पर कुछ अंशों में समानता पाई जाती है जैसे-आधुनिक इतिहास के साथ राजनीति विषय लेना।

3. समान्यीकरण का सिद्धांत -इस सिद्धांत के प्रतिपादक चाल्र्स जड महोदय हैं। इस मत के अनुसार जब व्यक्ति अपने अनुभव, अध्ययन या ज्ञान के माध्यम से एक सामान्य सिद्धांत निकाल लेता है तब वह उसे दूसरी परिस्थितियों में स्थानान्तरित कर सकता है। जड महोदय ने इस सिद्धांत की व्याख्या करते हुए- इस सिद्धांत के अनुसार विशिष्ट कुशलता का विकसित होना, विशेष तथ्यों पर पूर्ण अधिकार, विशेष आदतों और मनोवृत्तियों की प्राप्ति, दूसरी स्थिति में स्थानांतरण की दृष्टि से बहुत कम महत्व रखती है- जब तक कि कुशलता, तथ्य और आदत उन दूसरी परिस्थितियों से क्रमब( रूप से सम्बन्धित नहीं हो जाते, जिनमें कि उनका प्रयोग किया जा सके।

4. सामान्य एवं विशिष्ट अंश का सिद्धांत -इस सिद्धांत के प्रणेता मनोवैज्ञानिक स्पीयरमैन हैं। इनके मतानुसार प्रत्येक विषय को सीखने के लिए बालक को ‘सामान्य’ और विशिष्ट योग्यता की आवश्यकता होती है सामान्य योग्यता या बुद्धि का प्रयोग सामान्यतः जीवन के प्रत्येक कार्य में होता है किन्तु विशिष्ट बुद्धि का प्रयोग विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है। सामान्य व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थितियों में सहायता देती है। इसलिए सामान्य योग्यता या तत्व का ही स्थानांतरण होता है, विशेष तत्व का नहीं। इतिहास, भूगोल, साहित्य आदि विषयों का सामान्य योग्यता से होता है, किन्तु चित्रकला, संगीत आदि विषयों का सम्बन्ध विशिष्ट योग्यता से है।

5. गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों का सिद्धांत -गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों में प्रमुखतया कोहलर आदि का नाम आता है। कोहलर आदि परिस्थितियों का पूर्णाकार रूप में प्रत्यक्षीकरण करने तथा सूझ-बूझ का उपयोग करने पर बल देते हैं। ये मनोवैज्ञानिक अधिगम में सूझ-बूझ को महत्व देते हैं। सूझ का विकास ही अधिगम है, जो एक परिस्थिति में प्रयुक्त होता है। 

इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार एक परिस्थिति में प्रयुक्त अथवा विकसित सूझ का दूसरी परिस्थितियों में प्रयोग में लाना ही अधिगम स्थानांतरण है। व्यक्ति तो पहले और बाद की परिस्थितियों में समानता का प्रत्यक्षीकरण करता है और वह पहली परिस्थिति से प्राप्त सूझ का प्रयोग दूसरी परिस्थिति में अन्तरण कर देता है। यह स्थानांतरण प्रत्यक्षात्मक समानता के कारण घटित होता है। समस्या समाधान में इस प्रकार का स्थानांतरण देखा जा सकता है जिसमें व्यक्ति एक परिस्थिति में अर्जित समाधान का उपयोग दूसरी समान परिस्थिति में आयी समस्या समाधान में कर लेता है। अतः यह स्थानांतरण उद्देश्यपूर्ण तथा सप्रयास होता है और इसके लिए अवसरों की समानता आवश्यक है। कोहलर ने चिंपांजी पर अनेक प्रयोग कर इस सिद्धांत की पुष्टि की है। 

बेयल्स के मतानुसार अधिगम स्थानांतरण के लिए तीन बातों का होना अपेक्षित है- 
  1. अवसरों का आना, 
  2. अवसर को देखना (प्रत्यक्षीकरण) तथा 
  3. व्यक्ति द्वारा अवसर से लाभ उठाने की प्रवृत्ति।
उपर्युक्त सिद्धांतों से स्पष्ट हो जाता है कि सीखने का स्थानांतरण होता है। इनमें से किसी एक सिद्धांत को प्रधानता नहीं दी जा सकती। इन सिद्धांतों को समन्वयात्मक दृष्टिकोण से देखना अधिक उपयुक्त होगा। 

अधिगम स्थानांतरण के प्रकार

अधिगम-स्थानांतरण के प्रमुख छः प्रकार हैं-

1. सकारात्मक स्थानांतरण 

जब एक विषय का अधिगम दूसरे विषय के अधिगम में सहायक सिद्ध होता है तो इसे सकारात्मक स्थानांतरण कहते हैं। सकारात्मक स्थानांतरण में हम यह पाते हैं कि पूर्व में प्राप्त ज्ञान,कौशल एवं अभिवृत्ति या अन्य अनुक्रियाओं का प्रभाव बाद में सीखे जाने वाले ज्ञान, कौशल एवं अभिवृत्ति या अन्य अनुक्रियाओं का प्रभाव बाद में सीखे जाने वाले ज्ञान, कौशल एवं अभिवृत्ति या अन्य अनुक्रियाओं पर सहायक रूप में पड़ता है। 

उदाहरणार्थ जो व्यक्ति अंग्रेजी के टाइपराइटर पर टाइप करना सीख लेते हैं, वह हिन्दी के टाइप-राइटर पर टाईप करना सरलता से सीख लेते हैं। अर्थात् अंग्रेजी टाइपराइटिंग अधिगम हेतु सहायक सिद्ध होती है। सकारात्मक स्थानांतरण के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों के विचार निम्नलिखित हैं-
  1. माॅर्गन एवं किंग- फ्जब पहले सीखी गई कोई चीश एक नई परिस्थिति में कार्य या अधिगम को लाभान्वित करे तो सकारात्मक स्थानांतरण घटित होता है।
  2. सोरेन्सन- फ्एक व्यक्ति स्थानांतरण से उस सीमा तक सीखता है जिस सीमा तक एक परिस्थिति में प्राप्त योग्यताएँ दूसरी में सहायक होती हैं। सकारात्मक स्थानांतरण क्षैतिजीय एवं अनुलम्बीय प्रकार का होता है। 

2. नकारात्मक स्थानांतरण 

जब एक विषय या कौशल का अधिगम दूसरे विषय या कौशल के अधिगम में बाधक होता है या कठिनाई उत्पन्न करता है, तब उसे नकारात्मक स्थानांतरण कहते हैं, जैसे विज्ञान के विद्यार्थी को कला विषयों को समझने में कठिनाई का अनुभव करना। एक अन्य उदाहरण-जैसे हिन्दी का टाइपराइटर सीखने में पहले से सीखी गई अंग्रेजी टाइपराइटिंग की दक्षता या ज्ञान का अवरोध् उत्पन्न करना। यह नकारात्मक स्थानांतरण है जिसमें हम पाते हैं कि पूर्व कार्य का निष्पादन बाद के कार्य के निष्पादन में नकारात्मक स्थानांतरण के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों के विचार निम्नलिखित हैं- 
  1. माॅर्गन एवं किंग- फ्नकारात्मक स्थानांतरण तब घटित होता है जब पहले सीखी गई कोई चीज एक नयी परिस्थिति में कार्य या अधिगम में बाध उत्पन्न करती है। 
  2. बोरिंग तथा अन्य-फ्जब एक सीखा गया कार्य दूसरे कार्य के अधिगम में कठिनाई उत्पन्न करने लगे तो हम उसे नकारात्मक स्थानांतरण कहेंगे। 
नकारात्मक स्थानांतरण की प्रकृति निम्नलिखित दो प्रकार की होती है- 
  1. पूर्वलक्षी नकारात्मक स्थानांतरण - जब पहले प्रकार की सीखी गई कोई चीज दूसरी प्रकार की सीखी जाने वाली चीज से दुष्प्रभावित होने या भूलने लगे तो इस स्थिति को पूर्वलक्षी नकारात्मक स्थानांतरण कहते है। उदाहरणार्थ दूसरी कविता को याद कर लेने के पश्चात् पहले याद की गई कविता भूल जाए या स्मृति कमजोर पड़ जाए।
  2. प्रतिलक्षी नकारात्मक स्थानांतरण -जब पहले प्रकार की सीखी गई कोई चीज दूसरी प्रकार की सीखी जाने वाली किसी चीज पर बुरा प्रभाव डालने लगे या बाध उत्पन्न करने लगे तो इस स्थिति को प्रतिलक्षी नकारत्मक स्थानांतरण कहते हैं। उदहारणार्थ पहली याद की गई कविता के पश्चात् यदि दूसरी कविता याद करने में बाध उत्पन्न हो अथवा स्मृति में पहली कविता की पंक्तियाँ आ जाएँ।

3. क्षैतिजीय स्थानांतरण 

क्षैतिजीय स्थानांतरण सकारत्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार का होता है। जब भिन्न प्रकार की योग्यता अथवा ज्ञान अन्य सीखी जाने वाली योग्यता अथवा ज्ञान में सहायक होता है तो उसे क्षैतिजीय स्थानांतरण कहते हैं। यह स्थानांतरण एक कक्षा में दो विषयों के मध्य घटित होता है। 

उदहारणार्थ, कक्षा 10 में एक विद्यार्थी का गणित सम्बन्धी ज्ञान का भौतिक विज्ञान के अध्ययन में सहायक होना। इस प्रकार के स्थानांतरण को हम सकारात्मक क्षैतिजीय स्थानांतरण कहते हैं। इसके विपरीत जब एक विषय अथवा कौशल अन्य विषय या कौशल सीखने की स्थिति में अवरोध उत्पन्न करता है तो इसे क्षैतिजीय स्थानांतरण कहा जाएगा किन्तु यह नकारात्मक होगा। 

उदहारणार्थ कक्षा दस का एक विद्यार्थी जब गणित में ज्ञान अथवा कौशल अर्जित करे और यह ज्ञानार्जन हिन्दी साहित्य के ज्ञानार्जन में अवरोध उत्पन्न करे तो इस प्रकार के स्थानांतरण को हम नकारात्मक क्षैतिजीय स्थानांतरण कहेंगे।

4. अनुलम्बीय स्थानांतरण 

अनुलम्बीय स्थानांतरण भी सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार का होता है। जब एक स्थिति में अर्जित किया गया ज्ञान अथवा कौशल सम्बन्ध्ति ज्ञान एवं कौशल अर्जित करने में आगे चलकर सहायक सिद्ध हो तो अनुलम्बीय सकारात्मक स्थनान्तरण कहेंगे। 

उदहारणार्थ, एक विद्यार्थी द्वारा कक्षा आठ में गणित में अर्जित किया हुआ ज्ञान कक्षा दस में गणित का ज्ञान आर्जित करने में सहायक सिद्ध हो। इसके विपरीत जब एक ही स्थिति से सम्बन्ध्ति आर्जित ज्ञान एवं कौशल आगे चलकर उसी स्थिति से सम्बन्ध्ति ज्ञान एवं कौशल अर्जित करने में बाध उत्पन्न करे तो इस प्रकार के स्थनान्तरण को अनुलम्बीय नकारात्मक स्थानांतरण कहेंगे। 

उदहारणार्थ, कक्षा आठ के एक विद्यार्थी का साहित्यिक ज्ञान अगली कक्षा के साहित्यिक ज्ञान अर्जित करने में अवरोध् उत्पन्न करे अर्थात अधिगम का पहला सोपान अधिगम के दूसरे सोपान में कठिनाई अथवा बाध उत्पन्न करे।

5. पार्श्विक स्थानांतरण

जब शरीर के एक अंग द्वारा अर्जित कार्यकुशलता उसी अंग की दूसरी सम्बन्ध्ति कार्यकुशलता को प्रभावित करें तो इसे पार्श्विक स्थानांतरण कहेंगे। उदहारणार्थ, दायें हाथ से हिन्दी लिखने की कुशलता का संस्कृत लिखने की कुशलता को प्रभावित करना।

6. द्वि-पार्श्विक स्थानांतरण

जब शरीर के द्वारा अर्जित कार्य-कुशलता दूसरे अंग की कार्य-कुशलता को प्रभावित करे तो इस प्रकार के स्थानांतरण को द्वि-पार्श्विक स्थानांतरण कहेंगे। उदाहरणार्थ एक व्यक्ति दायें हाथ से लिखना सीखता है किन्तु यदि आवश्यकता पड़ जाये तो वह बायें हाथ से भी लिख सकता है, जबकि उसने हाथ से लिखने का अभ्यास कभी न किया हो। इस स्थिति में हम देखते हैं कि दायें का कौशल बायें में स्थानान्तरित हो गया।

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