अल्पाधिकार बाजार किसे कहते हैं ? अल्पाधिकार बाजार ढाँचे की तीन आधारभूत विशेषताएँ

जब किसी वस्तु की कुल पूर्ति पर कुछ बड़ी फर्मों का अधिकार होता है तो इसे अल्पाधिकार कहते हैं। इस स्थिति में विक्रेता बहुत कम होते हैं, इसलिस वे वस्तु की पूर्ति तथा इसकी कीमत के प्रति सजग रहते हैं। एक विक्रेता की नीति का प्रभाव दूसरे पर भी पड़ता है। इस प्रकार सभी विक्रेताओं में कीमतों तथा उत्पादन के संबंध में पारस्पारिक संबंध होता है।

बाजार का ऐसा रूप जिसमें कुछ एक फर्मों के बीच ही प्रतियोगिता होती है, एक नई तथा उभरती हुई घटना (Emerging Phenomenon) है। किसी वस्तु का उत्पादन करने वाली फर्मों की संख्या अधिक नहीं बल्कि अल्प होती है तथा वो बाजार में परस्पर प्रतियोगिता करती हैं। स्थानीय नहीं किन्तु प्रायः अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता इतनी तीव्र होती है कि प्रायः अर्थशास्त्री इसे गला-काट प्रतियोगिता से संबोधित करते हैं। ऐसे बाजार को अल्पाधिकार (Oligopoly) बाजार कहा जाता है। उदाहरणः (i) Coke, Pepsi, और Canada Dry तथा कुछ अन्य की Soft Drink के लिए विश्वभर में प्रतियोगिता चलती है (ii) General Motors, Toyota, Maruti Suzuki, Hyundai, Ford तथा कुछ अन्य की मोटरकारों के लिए विश्वभर में प्रतियोगिता चलती है।

बाजार में अल्पाधिकार रूप का लिप्सी ने निम्नलिखित शब्दों में वर्णन किया है, अल्पाधिकार कुछेक फर्मों के बीच अपूर्ण प्रतियोगिता का सिद्धांत है। इसका संबंध ऐसे उद्योग से होता है जिसमें केवल कुछेक प्रतियोगी फर्में होती हैं। प्रत्येक फर्म की बाजार शक्ति इतनी होती है कि वह उसे कीमत-स्वीकार बनने से रोकती है, किन्तु प्रत्येक फर्म को ऐसी अंतर-फर्म प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ता है जो उसे यह सोचने से रोकती है कि समस्त बाजार माँग उसी की है।

अल्पाधिकार बाजार की परिभाषा 

मेयर्स के शब्दों में, ”अल्पाधिकार बाजार की वह अवस्था है जहां विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि प्रत्येक विक्रेता की पूर्ति का बाजार कीमत पर प्रभाव पड़ता है तथा प्रत्येक विक्रेता इस बात को जानता है।“

लेक्टविच के अनुसार, ”बाजार की वे दशाएं अल्पाधिकार की दशाएं कहलाती है जिनमें थोड़ी संख्या में इतने से विक्रेता पाये जाते हैं कि एक की क्रियाएं दूसरे के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।“

अल्पाधिकार बाजार  के  प्रकार

अल्पाधिकार बाजार निम्न प्रकार के होते हैं
  1. विभेदात्मक अल्पाधिकार
  2. विशुद्ध अल्पाधिकार
  3. गठबन्धन युक्त अल्पाधिकार 
  4. स्वतन्त्र अल्पाधिकार
1. विभेदात्मक अल्पाधिकार - विभेदात्मक अल्पाधिकार वह होता है, जिसमें फर्में विभेदित वस्तुओं का उत्पादन एवं विक्रय करती हैं। विभिन्न वस्तुओं में भेद वास्तविक अथवा काल्पनिक हो सकता है। वास्तविक विभेद गुण, आकार, डिजाइन आदि पर आधारित होता है जबकि काल्पनिक विभेद ट्रेडमार्क, ब्राण्ड के नामों के कारण होता है।

2. विशुद्ध अल्पाधिकार - विशुद्ध अल्पाधिकार वह दशा होती है, जिसमें सभी फर्मांे द्वारा लगभग एक सी वस्तु का उत्पादन तथा विक्रय किया जाता है। विशुद्ध अल्पाधिकार में गैर-कीमत प्रतियोगिता नहीं हो सकती है। एक विक्रेता की वस्तु को दूसरे विक्रेता की वस्तु की अपेक्षा क्रेता द्वारा इसलिए पसन्द किया जाता है क्योंकि वह तुलनात्मक रूप से सस्ती होती है।

3. गठबन्धन युक्त अल्पाधिकार - गठबन्धन युक्त अल्पाधिकार वह होता है जिसमें उद्योग में लगी सभी फर्में किसी औपचारिक अथवा गैर-औपचारिक समझौते के अन्तर्गत अपना कोई संघ बना लेती हैं। गठबंधन दो प्रकार का हो सकता है। (1) पूर्ण गठबंधन (2) अपूर्ण गठबंधन। पूर्ण गठबंधन के अन्तर्गत किसी केन्द्रीय कार्टेल की स्थापना की जाती है अथवा बाजार सहभागियों द्वारा कार्टेल व्यवस्था अपनायी जाती है।

अपूर्ण गठबंधन में उद्योग में लगी सभी फर्में किसी बड़ी फर्म अथवा प्रधान फर्म के मूल्य नेतृत्व को स्वीकार करती हैं अर्थात् प्रधान फर्म जो मूल्य निर्धारित करती है अन्य फर्में उसी मूल्य को स्वीकार करके उसका अनुसरण करती हैं।


स्वतन्त्र अल्पाधिकार बाजार की वह दशा होती है जिसके अन्तर्गत उद्योग में लगी सभी फर्में वस्तु के उत्पादन अथवा मूल्य निर्धारण में स्वतंत्र होती हैं उनका आपस में कोई समझौता नहीं होता है। सभी फर्मों में आपस में कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है।

अल्पाधिकार की विशेषताएँ

अल्पाधिकार की मुख्य विशेषताएँ हैं-

1. थोड़े से विक्रेता और अनेक क्रेता-अल्पाधिकार बाजार की उस अवस्था को कहते हैं जिसमें कुछ ही फर्मों का उद्योग में बोलबाला होता है। उदाहरण के लिए, भारत में चार कंपनियाँ Maruti, Hyundai, Cielo तथा Tata 90 प्रतिशत छोटी कारों का उत्पादन करती हैं। अल्पाधिकारी फर्मों द्वारा उत्पादित की जाने वाली वस्तुएँ समरूप या विभेदमूलक हो सकती हैं। फर्में अपनी क्रियाओं द्वारा कीमत तथा उत्पादन की मात्रा को प्रभावित कर सकती हैं। अल्पाधिकार में वे्रफताओं की संख्या काफी अधिक होती है।

2. समरूप या विभेदीकृत उत्पाद-अल्पाधिकारी उद्योग में फर्में या तो समरूप वस्तुओं या विभेदीकृत वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। यदि फर्में समरूप वस्तु का उत्पादन करे जैसे सीमेंट या स्टील तो उद्योग को शुद्ध या पूर्ण अल्पाधिकार कहा जाता है। यदि फर्में भेदमूलक वस्तु का उत्पादन करें जैसे मोटर कारें तो उद्योग को विभेदीकृत अथवा अपूर्ण अल्पाधिकार कहा जाता है।

3. परस्पर अंतनिर्भरता-फर्मों की परस्पर अंतनिर्भरता अल्पाधिकार की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। अंतनिर्भरता का अर्थ है कि फर्में एक-दूसरे की कीमत तथा उत्पाद संबंधी निर्णयों से बहुत अधिक प्रभावित होती हैं। एकाधिकार तथा प्रतियोगिता में फर्में स्वतंत्र निर्णय लेती हैं और कार्यवाही करती हैं तथा उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि उनके निर्णय तथा कार्यवाही का अन्य फर्मों पर क्या असर पड़ेगा या अन्य फर्मों की प्रतिक्रिया का उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा। किन्तु एक अल्पाधिकारी फर्म स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकती। चूंकि अल्पाधिकार में फर्मों की छोटी-सी संख्या एक-दूसरे से प्रतियोगिता करती है, इसलिए एक फर्म की बिक्री उस फर्म द्वारा ली जाने वाली कीमत तथा अन्य फर्मों द्वारा ली जाने वाली कीमत पर निर्भर करती है। यदि एक फर्म कीमत को कम करती है तो उस की बिक्री बढ़ेगी ¯कतु उद्योग की अन्य फर्मों की बिक्री घट जाएगी। ऐसी अवस्था में, बहुत संभव है, कि अन्य फर्में भी अपनी कीमतों को कम कर दें। अन्य फर्मों द्वारा कीमतों को घटाने से पहली फर्म के लाभ घट जाएँगे। अतः अपनी कीमतों को घटाने का निर्णय लेने से पूर्व, पहली फर्म इस बात का पूर्व अनुमान तथा हिसाब लगाएगी कि अन्य फर्मों की प्रतिक्रिया क्या होगी तथा उस प्रतिक्रिया का उसके लाभ पर कैसा प्रभाव पड़ेगा। 

अल्पाधिकार में वस्तुओं की माँग की आड़ी लोच बहुत ऊँची होती है क्योंकि ये वस्तुएँ निकट प्रतिस्थापन होती हैं। संक्षेप में, कीमत तथा उत्पादन की मात्रा संबंधी नोट नीति का निर्धारण करते समय अल्पाधिकारी फर्म को अपने प्रतिद्वंद्वियों की क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखना पड़ता है। फर्मों की यह परस्पर अंतनिर्भरता ही अल्पाधिकारी बाजार को एकाधिकारी, पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारी प्रतियोगी बाजार से भिन्न बनाती है।

4. एकरूपता का अभाव-फर्मों के आकार में एकरूपता का अभाव अल्पाधिकार की एक अन्य विशेषता है। कुछ फर्में बहुत बड़ी तथा कुछ छोटी होती हैं। उदाहरण के लिए, मारुति उद्योग का छोटी कार उद्योग क्षेत्रा में 86 प्रतिशत भाग है जबकि Santro तथा Tata का भाग सापेक्षिक काफी कम है।

5. विज्ञापन-एक अल्पाधिकारी फर्म को विज्ञापनों पर बहुत राशि खर्च करनी पड़ती है। कीमत दृढ़ता तथा उत्पादन की ऊँची आड़ी माँग लोच के कारण, एक अल्पाधिकारी फर्म के लिए अपनी बिक्री को बढ़ावा देने का एकमात्र उपाय वस्तु का विज्ञापन है। विज्ञापन पर किए जाने वाले खर्च का प्राथमिक लक्ष्य विज्ञापित वस्तु की माँग को प्रोत्साहित करना है। इस संदर्भ में बोमोल ने ठीक ही कहा है, फ्यह अल्पाधिकार ही है जहाँ विज्ञापन करना अपना पूरा प्रभाव प्रकट करता है। अल्पाधिकार में जीवन तथा मृत्यु का प्रश्न बन जाता है। जो फर्में अपने प्रतियोगियों के विज्ञापन बजट के बराबर विज्ञापन पर खर्च नहीं करतीं, उनके ग्राहकों का प्रवाह प्रतिस्पधियों की वस्तुओं की ओर हो सकता है।

6. एकाधिकार का तत्व-भेदमूलक अथवा अपूर्ण अल्पाधिकार में फर्मों को एकाधिकार की शक्ति प्राप्त होती है। वस्तु विभेद के कारण ग्राहकों में ब्रांड वफादारी का सृजन होता है। प्रत्येक फर्म का अपने फ्ब्राँडय् पर एकाधिकार होता है। कोई अन्य फर्म अपनी वस्तु को उस ब्राँड (ट्रेडमार्क) के अंतर्गत नहीं बेच सकती। इसके अतिरिक्त फर्में गठबंधन द्वारा कीमत को बढ़ा कर एकाधिकारी लाभ प्राप्त कर सकती हैं।

7. कीमत दृढ़ता का पाया जाना -कीमत दृढ़ता अल्पाधिकार की एक अन्य विशेषता है। कीमत कठोरता का अर्थ फर्मों द्वारा कीमतों में परिवर्तन नहीं करना है। क्योंकि कीमत में कोई भी परिवर्तन अल्पाधिकारी फर्म के लिए लाभप्रद नहीं होगा, अतः फर्म अपनी कीमत पर अटल रहेगी। यदि कोई फर्म कीमत को कम करने की कोशिश करेगी तो उसके उत्तर में प्रतिद्वंद्वी फर्में भी अपनी-अपनी कीमत को कम कर देंगी। अतः ऐसा करने से किसी फर्म को भी कोई लाभ नहीं होगा। इसी प्रकार यदि कोई फर्म अपनी वस्तु की कीमत बढ़ाने का प्रयत्न करती है तो अन्य फर्में ऐसा नहीं करेंगी। फलस्वरूप फर्म अपने ग्राहकों को खो देगी और घाटा उठाएगी। अतः अल्पाधिकारी बाजार में कीमत दृढ़ता पाई जाती है।

8. तीव्र प्रतियोगिता-अल्पाधिकार के अंतर्गत प्रतिद्वंद्वियों में तीव्र प्रतियोगिता पाई जाती है। अल्पाधिकार में विवे्रफताओं की संख्या इतनी कम होती है कि किसी एक विव्रेफता द्वारा उठाए गए किसी कदम का अन्य प्रतिस्पर्धी विवे्रफताओं पर तुरंत प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप प्रत्येक फर्म अपने प्रतिस्पधियों की गतिविधियों पर पूरी निगरानी रखती है तथा उनका प्रत्युत्तर देने के लिए तैयार रहती है। एक अल्पाधिकारी के लिए व्यापार एक निरंतर संघर्षमय जीवन है क्योंकि बाजार की अवस्थाएँ उसे प्रत्येक चाल का सामना करने के लिए विवश करती हैं। इस प्रकार की प्रतियोगिता अद्वितीय होती है जोकि अन्य बाजारों में नहीं पाई जाती। अल्पाधिकार प्रतियोगिता का उच्चतम रूप है।

9. अनिश्चितता-अल्पाधिकार में फर्मों की परस्पर अंतनिर्भरता के कारण विभिन्न फर्मों के व्यवहार संबंधी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। पहले से विद्यमान तथ्यों के आधार पर चालू

10. गैर-लाभ प्रयोजन का पाया जाना-अल्पाधिकार के अंतर्गत एक फर्म का उद्देश्य सदैव अधिकतम लाभ प्राप्त करना नहीं होता। इसके अन्य उद्देश्य भी हो सकते हैं जैसे-बिक्री को अधिकतम करना, जोखिम को कम से कम करना,  उत्पादन अधिकतम करना, सुरक्षा को अधिकतम करना आदि। अधिकतम लाभ के उद्देश्य की अनुपस्थिति में उत्पादन तथा कीमत के संतुलन स्तर का निर्धारण बहुत कठिन है।

11. प्रवेश पर कुछ प्रतिबंध-अल्पाधिकारी फर्म द्वारा उद्योग में प्रवेश पाने पर प्रतिबंधों का पाया जाना एक अन्य विशेषता है। कुछ सामान्य प्रतिबंध इस प्रकार हैंः पैमाने की बचतें पुरानी फर्मों को निरपेक्ष लागत लाभ का प्राप्त होना पेटेंट अधिकार महत्त्वपूर्ण आगत पर नियंत्राण निरोधक कीमत तथा क्षमता आधिक्य का पाया जाना आदि। उपरोक्त प्रतिबंध नई फर्मों के प्रवेश को रोकते हैं।

अल्पाधिकार बाजार ढाँचे की तीन आधारभूत विशेषताएँ

1.  फर्मों के बीच अंतनिर्भरता -निर्णय-निर्माण में फर्मों की परस्पर अंतनिर्भरता अल्पाधिकार की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। अंतनिर्भरता क्यों? क्योंकि जब प्रतिस्पधियों की संख्या बहुत कम होती है तब किसी एक फर्म द्वारा कीमत अथवा उत्पादन में परिवर्तन का अन्य प्रतियोगी फर्मों के लाभ पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अतः उनकी प्रतिक्रिया या तो कीमत तथा उत्पादन में परिवर्तन या गहन प्रचार द्वारा क्रेताओं को आकर्षित करने के रूप में होगी। अतः उत्पादन की मात्रा तथा कीमत का निर्धारण करते समय फर्म न केवल वस्तु की बाजार माँग वक्र को ध्यान में रखेगी अपितु बाजार में प्रतियोगी फर्मों की संभावित प्रतिक्रिया को भी सामने रखेगी। 

2. प्रचार तथा विक्रय लागतें-एक अल्पाधिकारी बाजार की फर्मों में परस्पर अंतनिर्भरता के कारण उन्हें कई विपणन संबंधी आक्रमणशील तथा रक्षात्मक तकनीक अपनाने पड़ते हैं जिससे उन्हें बाजार का अधिक हिस्सा  प्राप्त हो सके या वो अपने वर्तमान बाजार हिस्से को कायम रख सके। अतः फर्मों को प्रचार तथा बिक्री प्रोत्साहन के अन्य तरीकों पर खर्च करना पड़ता है। इसी कारण प्रचार तथा विक्रय लागतों का अल्पाधिकार बाजार में बहुत महत्त्व है। ध्यान रहे, इस प्रकार के बाजार में फर्में परस्पर अपनी वस्तुओं की कीमत को कम नहीं करतीं बल्कि गैर-कीमत आधार पर प्रतियोगिता करती हैं। क्योंकि कीमतों के घटाने के फलस्वरूप उनमें कीमत-युदद छिड़ जाता है जिसका दुष्परिणाम यह निकलता है कि कुछ फर्में बाजार से निकल जाती हैं।

3. ग्रुप व्यवहार-अल्पाधिकार का सिद्धांत समूह (ग्रुप)-व्यवहार का सिद्धांत नोट है न कि जनसमूह अथवा व्यक्तिगत व्यवहार। समूह-व्यवहार का कोई सामान्य स्वीकृत सिद्धांत नहीं है। क्या समूह के सदस्य इस बात के लिए सहमत होंगे कि अपने सामान्य हितों को बढ़ावा देने के लिए वो इकट्ठे हों या अपने व्यक्तिगत हितों की रक्षा के लिए लड़ें? क्या समूह का कोई नेता भी है? यदि है, तो वह अन्य सदस्यों को अपने पीछे कैसे लगाता है? ऐसे कुछ प्रश्न समूह व्यवहार सिद्धांत के लिए आवश्यक हैं। ¯कतु एक बात निश्चित है। प्रत्येक अल्पाधिकारी उद्योग के अन्य अल्पाधिकारियों के व्यापार व्यवहार का सतर्वफता से अध्ययन करता है। उनका व्यवहार कैसा है या वो कैसा व्यवहार करेंगे, इन मान्यताओं के आधार पर वह अपनी योजना बनाता है।

अल्पाधिकारियों तथा बाजार के अन्य रूपों जैसे पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में मूल अंतर यह है कि अल्पाधिकारिक उद्योग में विभिन्न फर्मों द्वारा लिए गए निर्णयों का अन्य फर्मों पर भी प्रभाव पड़ता है, जबकि अन्य बाजारों में ऐसा कुछ नहीं होता।

अल्पाधिकार का वर्गीकरण

अल्पाधिकार का वर्गीकरण निम्नलिखित श्रेणियों में किया जाता है-

1. पूर्ण अथवा अपूर्ण अल्पाधिकार - पूर्ण अल्पाधिकार की अवस्था में सभी फर्में समरूप वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। इसे शुद्ध अल्पाधिकार भी कहा जाता है। इसके विपरीत अपूर्ण अथवा विभेदी अल्पाधिकार बाजार की उस अवस्था को कहते हैं जिसमें सभी फर्में विभेदी ¯कतु निकट स्थानापन्न वस्तुओं का उत्पादन करती हैं।

2. खुला तथा बंद अल्पाधिकार - खुला अल्पाधिकार बाजार की वह अवस्था होती है जिसमें उद्योग में प्रवेश पाने के लिए किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं होता। फर्मों को उद्योग में प्रवेश की स्वतंत्रता होती है। किन्तु बंद अल्पाधिकार की अवस्था में फर्मों द्वारा उद्योग में प्रवेश पाने पर प्रतिबंध होते हैं। ये प्रतिबंध तकनीकी, कानूनी या किसी अन्य प्रकार के हो सकते हैं।

3. आंशिक अथवा पूर्ण अल्पाधिकार - आंशिक अल्पाधिकार उस स्थिति को कहते हैं जहाँ उद्योग में एक प्रमुख फर्म होती है। इस प्रमुख फर्म को कीमत प्रधान कहा जाता है। यह प्रमुख फर्म अथवा कीमत-प्रधान कीमत निर्धारित करती है तथा अन्य फर्में उस कीमत को अपनाती हैं। पूर्ण अल्पाधिकार वह स्थिति होती है जिसमें कोई प्रमुख फर्म अथवा कीमत-प्रधान नहीं होती।

4. गठबंधन अथवा गैर-गठबंधन अल्पाधिकार - गठबंधन अल्पाधिकार के अंतर्गत कीमत के निर्धारण में फर्में एक-दूसरे से सहयोग करती हैं। उनकी एक सामान्य कीमत नीति होती है और वो एक दूसरे से प्रतियोगिता नहीं करतीं। किन्तु गैर-गठबंधन अल्पाधिकार में फर्में स्वतंत्रतापूर्वक कीमत का निर्धारण करती हैं तथा उनमें परस्पर प्रतियोगिता भी होती है।

संदर्भ -
  1. microeconomics-David Besanco and Ronald Brutigamm, Wiley India, 2011, PBWEF, 4th Edition.
  2. Microeconomics-Sipra Mukhopadhyay, Any Books, 2011.

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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