भारत में औद्योगिक वित्त निगम की स्थापना कब हुई थी इसके उद्देश्य एवं कार्य?

भारतीय औद्योगिक वित्त निगम की स्थापना जुलाई 1948 को औद्योगिक वित्त निगम अधिनियम 1948 के अन्तर्गत वैधानिक निगम के रूप में की गयी। 1 जुलाई 1993 को निगम की प्रकृति में परिवर्तन करके इसे एक कम्पनी का रूप प्रदान कर दिया गया है। इस प्रकार अब इसका नाम भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटिड हो गया है। निगम केवल ऐसी कम्पनियों या सहकारी समितियों को ऋण दे सकता है जिनका रजिस्ट्रेशन भारत में हुआ हो और वस्तुओं के निर्माण या प्रक्रिया, खनन, विद्युत शक्ति या अन्य किसी प्रकार की शक्ति के सृजन या वितरण, जहाजरानी एवं जहाज निर्माण, होटल उद्योगों एवं वस्तुओं के संरक्षण में संलग्न उद्योगों से सम्बन्धित है। निगम से वित्तीय सहायता केवल उसी दशा में प्राप्त की जा सकती है जब किसी उद्योग के लिए पूंजी निर्गमन के द्वारा धन प्राप्त करना सम्भव न हो अथवा बैंकों द्वारा दी गयी सहायता अपर्याप्त हो। 

भारतीय औद्योगिक वित्त निगम के उद्देश्य एवं कार्य

  1. इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य विभिन्न औद्योगिक संस्थानों को दीर्घकालीन एवं मध्यकालीन ऋण प्रदान करना है। 
  2. प्रारम्भ में यह निजी स्रोत की कम्पनियों तथा सरकारी इकाइयों को ही वित्तीय सहायता प्रदान करता था परन्तु अब यह सार्वजनिक क्षे़त्र एवं संयुक्त क्षेत्र के औद्योगिक उपक्रमों को भी वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
  3. यह संस्था नवीन इकाईयों की स्थापना, पुरानी इकाइयों के आधुनिकीकरण एवं विस्तार के उद्देश्य के लिए भी सहायता प्रदान करती है। 

भारतीय औद्योगिक वित्त निगम के कार्य

1. ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना- निगम द्वारा विभिन्न औद्योगिक संस्थानों को पच्चीस वर्षाें की अवधि तक का दीर्घकालीन ऋण प्रदान किया जा सकता है साथ ही यह आवश्यक होने पर अग्रिम राशि भी प्रदान कर सकता है। आवश्यकता होने पर यह औद्योगिक प्रतिष्ठानों को विदेशी मुद्रा में भी ऋण उपलब्ध कराता है। 

2. अंशों एवं ऋण पत्रों का निर्गमन एवं अभिगोपनः- औद्योगिक वित्त निगम औद्योगिक कम्पनियों द्वारा जारी किये गये अंशों एवं ऋण पत्रों को क्रय कर सकता है तथा उनका अभिगोपन भी कर सकता है परन्तु यदि अभिगोपन के दौरान उसकी कुछ प्रतिभूतियां उसे स्वयं क्रय करनी पड़े तो उन्हें सात वर्षों के अन्दर विक्रय करने की बाध्यता रहती है। 

3. ऋणों की गारण्टी करना:- यह औद्योगिक संस्थाओं द्वारा पूंजी बाजार में लिये जाने वाले पच्चीस वर्ष की अवधि तक के ऋण की गारण्टी कर सकता है। इसके अतिरिक्त भारतीय आयातकों द्वारा विदेशी निर्माताओं से निलम्बित भुगतान के आधार पर आयात किये गये माल के मूल्य के भुगतान की गारण्टी दे सकता है।

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