भू-राजनीति क्या है? अर्थ, परिभाषा, विषय क्षेत्र, ऐतिहासिक विकास

भू-राजनीति (Geopolitics) दो शब्दों से मिलकर बना है (Geo) जियो एंव पाॅलीटिक्स (Polition) । जियों का सम्बध भैगोलिक तत्वों से है एवं पाॅलीटिक्स का सम्बंध राजनीतिक रूचियों से हैं जियोपाॅलीटिक्स शब्द का शाब्दिक अर्थ है देश का सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक विकास में भूगोल (Geography) का क्या योगदान है। प्रमुख भौगोलिक तत्व जैसे स्थान जलवायु, प्राकृतिक संसाधन,जनसंख्या एंव भौतिक भूभाग इत्यादि शामिल क्षेत्र, इन सभी तत्वों पर हमारे देष की राजनीतिक दषाएॅ निर्भर करती है। भारत को एक भू राजनीतिक इकाई के रूप में माना जाता हैं। भारत की भूराजनीतिक आवश्यकता बहुत महत्वपूर्ण हैं।

भू-राजनीति की परिभाषा

भू राजनीति इस बात का अध्ययन करती है कि किस तरह उसके भौगोलिक तत्व राजनीति को प्रभावित करती है। 

रैटजेल एंव जेलेन के अनुसार भू -राजनीतिक का सम्बन्ध क्षेत्र की भौगोलिकता व राजनीतिक स्वरूपों से हैं । 

हेरिटेज डिक्षनरी के अनुसार , ’’किसी क्षेत्र या राष्ट्र की प्रभावित करन े वाले भौगोलिक और राजनीतिक संयोजनों की भू-राजनीति कहते है। 

भू - राजनीतिज्ञों के अनुसार ,ब्रिटेन की सम्पूर्ण राजनीति को उसके राजनीतिक कार्यकर्ताओं की, उसकी द्धीपीय स्थिति और जलवायु की विशेषता सम्बंधी चेतना निर्धारित करती है। आधुनिक भू-राजनीतिज्ञ व्यवहारवाद की शब्दावली को अपनाकर यह बताने का प्रयास करते हे कि राजनीतिक नेता के कार्यकलाप किसी स्थान, संचार साधनों के बारे में उसकी स्वंय की धारणाओं व जीवन के निजी अनुभवों पर आधारित होती है। 

जर्मनी में ’जाइट्स क्रिफ्ट कर जियोपोलिटिक‘ नामक पत्रिका के संस्थापक तथा सैन्य विभाग के अध्यक्ष हाउषोफर के नेतृत्व में ‘भू-राजनीति’ को राजनीतिक भूगोल से अलग करते हुए ये बताया हे कि भू-राजनीति क्षेत्र का अध्ययन राज्य की दृष्टि से करती है जबकि राजनीतिक भूगोल राज्य का अध्ययन क्षेत्र की दृष्टि से करता है। 

हाउषोफर का विचार था कि जर्मनी के पक्ष में मैकिन्डर के हृदय स्थल सिद्धान्त के आधार पर राजनीतिक शक्तियों का ध्रुवीकरण किया जाये तथा मध्य व पश्चिमी यूरोप एंव अफ्रीका पर नियन्त्रण किया जाए। 

भू-राजनीति के विषय क्षेत्र

भू राजनीति के नवीन सम्प्रत्यय के आधार पर इसके विषय क्षेत्र हैं। 
  1. क्षेत्र की स्थिति,आकार, आकृति इत्यादि का अध्ययन करना। 
  2. उपरोक्त तत्वों को राजनीति से सम्बन्धित किया जाना। 
  3. इससे क्षेत्र के सभी भौतिक, जैविक व मानवीय संसाधनों का राजनीतिक क्रियाकलाप से अन्तप्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। 
  4. भौतिक संसाधनों में धरातल, जलवायु ,अपवाह मृदा, खनिज आदि सम्मिलित हैं। जैविक संसाधनों में वनस्पति, पशु, मत्स्य तथा मानवीय संसाधनों में जनसंख्या संरचना , भाषा धर्म, जाति, मानवीय प्रकृति, मानव रीति रिवाज दृष्टिकोण तथा व्यवहार सम्मिलित किया जाता हैं। 
  5. क्षेत्र में सरकार का स्वरूप, कार्यप्रणाली सरकार का गठन आदि सम्मिलित है। 
  6. क्षेत्र के एक भू-राजनीतिक इकाई के रूप में विकसित होने की प्रवृति, सम्भावनाओं तथा शक्ति सन्तुलन का अध्ययन। 
  7. सीमायें व सीमान्त, क्षेत्रीय इकाई का समीपवर्ती इकाई से सम्बंध, विवाद वाले क्षेत्र अतिक्रमण , क्षेत्रवाद, उग्रवाद आदि समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता हैं। 
इस प्रकार हम कह सकते हे कि भू राजनीति का क्षेत्र भौगोलिक विस्तार में समाज के राजनीतिक-प्रादेशिक संगठन की संकल्पना का अध्ययन है। भू-राजनीति को प्रभावित करने वाले कारक एवं आर्थिक -भौगोलिक तथ्यों के साथ-साथ सांस्कृतिक व अन्य तथ्यों का वर्णन भी करता है। 

भू-राजनीति का ऐतिहासिक विकास 

भू-राजनीति मानव भूगोल की नवीन शाखा हे जिसका विकास 19 वीं शताब्दी में हुआ। भू-राजनीति का अध्ययन प्राचीन भारतीय यूनानी व रोमन विद्वानों की रचनाओं में 49 देखने को मिलता है। पहली बार हेरोडोटस (425-485 BC ) तथा हिप्पोक्रेटस (460-376 BC) ने पृथ्वी मानव सम्बन्धों के विश्लेषण में राजनीतिक तथ्यों का वर्णन किया। प्लेटो ने (427BC.347BC) रिपब्लिक में राज्य में भूमि के सम्बंध तथा राज्य को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन किया मानव भूगोल के रूप में भू-राजनीति का तीन चरणों में विभाजित किया गया है- 
  1. प्रथम चरण में यूनानी व रोमन भूगोलवेत्ताओं से लेकर कार्ल रिटर (1779-1859 AD ) के समय तक का अध्ययन शामिल है। अध्ययन का विजय पर्यावरण का राजनीतिक प्रभाव था।
  2. द्वितीय चरण में भौगोलिक परिवेष में राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय शक्ति के अध्ययन से प्रारम्भ हुआ। इस विचारधारा का प्रवर्तन सर्वप्रथम ‘रैज रैटजेल’ (1897) के राजनीतिक भूगोल से होता है, और यह बताया की राज्य का क्षेत्र ही राज्य की शक्ति को प्रदर्षित करता हे। यहद राज्य की शक्ति में कमी आती है ता राज्य कमजोर हो जाता है। उन्होंने सीमान्त को आत्मसात के स्थानांतरण क्षेत्र  कहा जो राज्य की आवष्यकता के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। 
  3. तृतीय चरण में राष्ट्रीय शक्ति सम्बन्धी अध्ययनों की प्रमुखता रही । इस चरण में अमेरिकी व ब्रिटिष भूगोल वित्ताओं के योगदान उल्लेखनीय हैं। इस चरण के प्रमुख विद्धान बोमेन, हीटलसी, हार्टषार्न जेम्स आदि थे। वर्तमान में भू राजनीतिक विष्लेषण के प्रमुख विद्वान एस .डब्ल्यू. बोग्स, सर््आफन जोन्स, विक्टोरियो फिषर, कीथ एंव बुचनन आदि है। 

भू -राजनीति का महत्व

  1. भू-राजनीति के अध्ययन से दार्शनिक विवेचन के साथ-साथ व्यवहारिक जीवन में इसकी उपयोगिता का पता चलता है।
  2. नवीन समस्याओं का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। 
  3. और पूर्व समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है। 
  4. भू-राजनीति में राजनीतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन साथ-साथ किया जा सकता है। 
  5. देष की आन्तरिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है जैसे जनसंख्या आर्थिक ,भाषा ,धर्म एवं जाति इत्यादि। 
  6. देष की सीमा सुरक्षा में सहायक । 
  7. निर्वाचन प्रणाली की सफलता व असफलता का ज्ञान 
  8. वैष्वीकरण का विकास- भू राजनीति विश्व के राज्यों के अीच पारस्परिक सम्बन्धों का एक प्रारूप प्रस्तुत करता हैं । यह अन्तर्राष्ट्रीय समझोतो या विवादों का सही रूप प्रस्तुत करता है। 
  9. शान्ति में सहायक -विभिन्न राज्यों के आपसी मतभेदों को सुलझा कर शान्ति कायम रखनी है। विश्व में गरीबी या अमीरी का कारण वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियाँ है। 
  10. राज्य के प्राकृतिक तत्वों का ज्ञान भू- राजनीति में राज्य के भौगोलिक तत्वों जैसे स्थिति, आकार, विस्तार, जलवायु, तटरेखा एवं धरातल इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। 
  11. इन तत्वों का वहाँ की राजनीति, प्रशासन तंत्र रक्षा एवं विकास पर पडने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। शासन, व्यवस्था का भौगोलिक परिवेष में मूल्यांकन -वातावरण की अनुकूलता या प्रतिकूलता का पर राज्य शासन की सफलता या असफलता निर्भर करती हैं। राज्य की शक्तियों एवं विकास की उचित व सही जानकारी भू-राजनीति से होती है।
सन्दर्भ -
  1. Bose, s.c. (1966) : “Geopolitical Thought ; Trans Himalayan Kashmir,”Uttar Bharat Bhopal patrika.
  2. Dikshit,R.D. (1992) ;Political Geography Contemporary Prespective: Prentice Hall,New Delhi

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