एकाधिकार बाजार क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं ?

एकाधिकार अंग्रेजी भाषा का मोनोपाॅली शब्द ग्रीक शब्द के मोनोपाॅलियन (Monopolion) शब्द से लिया गया है। इसका अर्थ है बिक्री का एकमात्र अधिकार।

एकाधिकार को अंग्रेजी में Monopoly के नाम से पुकारा जाता है Monopoly अंग्रेजी भाषा के दो शब्दों Mono तथा poly से मिलकर बना है। mono का अर्थ है अकेला, poly का अर्थ है विक्रेता । इस प्रकार Monopoly का अर्थ हुआ अकेला विक्रेता/अकेला उत्पादक अथवा एकाधिकारी। एकाधिकार के अंतर्गत केवल एक ही उत्पादक/विक्रेता होता है और उसका वस्तु की पूर्ति तथा कीमत पर पूरा नियंत्रण होता है। अन्य शब्दों में एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है, जिसमें किसी वस्तु का केवल एक ही उत्पादक होता है। अकेला होने के कारण वस्तु की कीमत तथा पूर्ति पर उसका पूरा नियंत्रण होता है विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने एकाधिकार को विभिन्न प्रकार से समझाने का प्रयास किया है। किसी ने कहा कि एकाधिकारी के सामने गिरते हुए मांग वक्र की समस्या होती है किसी ने कहा कि इसकी कोई निकट प्रतिस्थापन वस्तु नहीं होती है और वस्तु की कीमत व पूर्ति पर उत्पादक का पूरा नियंत्रण होना ही एकाधिकारी बाजार दशा के लिये काफी होता है।

एकाधिकार बाजार की वह स्थिति होती है जिसमें किसी वस्तु का बाजार में एक ही विक्रेता होता है तथा इसके द्वारा विक्रय की जाने वाली वस्तु की निकट स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध नहीं होती है। बाजार में एक उत्पादक या फर्म होती है।

एकाधिकार बाजार का अर्थ 

एकाधिकार बाजार वह बाजार है जिसमें एक विक्रेता का बाजार पर सम्पूर्ण अधिकार होता है। एकाधिकार (MONOPOLY)ध दो शब्दों Mono+Poly से मिलकर बना है Mono का अर्थ ‘एक’ तथा Poly का अर्थ ‘विक्रय’ होता है अर्थात् एकाधिकार बाजार में एक विक्रेता होता है जिसका वस्तु की पूर्ति पर सम्पूर्ण अधिकार होता है तथा बाजार में उसका कोई भी निकट प्रतिस्थापन्न उपलब्ध नहीं होता है। 

एकाधिकार बाजार की परिभाषा

कौतसुवयानी के अनुसार, एकाधिकार वह बाजार है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है। वह जिस वस्तु का उत्पादन करता है उसके निकटतम स्थानापन्न नहीं होते तथा अन्य फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है।

बामोल के शब्दों में, एक शुद्ध एकाधिकारी की परिभाषा उस फर्म के रूप में की जाती है जो उद्योग भी है। यह किसी विशेष वस्तु जिसके निकटतम स्थानापन्न नहीं होते की एकमात्र विक्रेता होती है।

चेम्बरलिन के अनुसार, एकाधिकार उसे समझना चाहिए जो किसी वस्तु की पूर्ति पर नियंत्रण रखता है।

बेनहम के अनुसार, एकाधिकारी शब्दशः एक मात्र विक्रेता होता है और एकाधिकारी शक्ति पूर्ति के संपूर्ण नियंत्रण पर आधारित होती है।

बोल्डिंग के शब्दों में, शुद्ध एकाधिकारी वह फर्म है जो कि कोई ऐसी वस्तु उत्पन्न कर रही है जिसका किसी अन्य फर्म की उत्पादित वस्तुओं में कोई प्रभावपूर्ण स्थानापन्न नहीं होता है। प्रभावपूर्ण का तात्पर्य यहां यह है कि यद्यपि एकाधिकारी असाधारण लाभ कमा रहा है, तथापि अन्य फर्में ऐसी स्थानापन्न वस्तुएं उत्पन्न करके, जो क्रेताओं को एकाधिकारी वस्तु से दूर कर सके, उक्त लाभों पर अतिक्रमण करने की स्थिति में नहीं हैं।

फर्गुसन के शब्दों में, विशुद्ध एकाधिकार तब होता है, जब वस्तु को एक और केवल एक ही फर्म द्वारा पैदा किया जाता हो या बेचा जाता हो।

एकाधिकार के प्रकार 

1. पूर्ण एकाधिकार - जब किसी वस्तु अथवा सेवा का बाजार में विक्रय किसी एक विक्रेता के द्वारा ही किया जाता है तो इसे पूर्ण एकाधिकार कहा जाता है इस स्थिति में प्रतियोगिता का स्तर शून्य होता है। 

2. अपूर्ण एकाधिकार - जब बाजार में किसी वस्तु अथवा सेवा का विक्रय एक व्यक्ति के द्वारा किया जाता है लेकिन प्रतियोगिता का स्तर शून्य न हो तथा निकट प्रतिस्थापन्न की भी बाजार में उपलब्धता हो तो उस स्थिति को अपूर्ण एकाधिकार कहते हैं। 

3. निजी एकाधिकार - जब एकाधिकार बाजार का नियंत्रण, स्वामित्व तथा प्रबंधन निजी व्यक्तियों अथवा फर्मों के द्वारा किया जाता है तो उसे निजी एकाधिकार कहते हैं। इस प्रकार का एकाधिकार प्रायः सरकार के द्वारा स्वीकृत नहीं किया जाता है। 

4. सार्वजनिक एकाधिकार - जब बाजार में किसी वस्तु के उत्पादन, स्वामित्व, प्रबंधन व नियंत्रण का कार्य राज्य अथवा सरकार के द्वारा किया जाता है तो उसे सार्वजनिक एकाधिकार कहा जाता है जिसका मुख्य लक्ष्य ‘लाभ अध्कितमीकरण’ के स्थान पर ‘अधिकतम कल्याण’ करना होता है। 

5. साधारण एकाधिकार - जब बाजार में किसी वस्तु विशेष के लिए एक समान कीमत पर बाजार में उस वस्तु का विक्रय सभी उपभोक्ताओं को किया जाता है तो उसे साधारण एकाधिकार कहते हैं इस एकाधिकार में कीमत विभेद अर्थात् भिन्न-भिन्न कीमतों पर वस्तु का विक्रय नहीं किया जाता है सभी क्रेताओं को वस्तु का विक्रय एक समान कीमत पर ही किया जाता है। 

6. विभेदात्मक एकाधिकार - इस बाजार में एकाधिकार एक समान वस्तु का विक्रय भिन्न-भिन्न कीमतों पर करता है तथा उपभोक्ताओं से भी भिन्न-भिन्न कीमतें वसूल की जाती है एक समान वस्तु को क्रय करने के लिए, तो इसे विभेदात्मक एकाधिकार कहते हैं। 

7. प्राकृतिक एकाधिकार - जब एकाधिकार की उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से किसी स्थान विशेष पर उपलब्ध् कच्चे माल की उपलब्ध्ता के कारण उत्पन्न हो जाती है तो उसे प्राकृतिक एकाधिकार कहते हैं। 

8. कानूनी एकाधिकार - जब एकाधिकार की उत्पत्ति कानूनी अध्किारों जैसे पेंटेट अध्किार, ट्रेडमार्क, कापीराइट इत्यादि के कारण होती है तो उसे कानूनी एकाधिकार कहते हैं।

एकाधिकार बाजार की विशेषताएँ 

एकाधिकार बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 

1. अकेला विक्रेता- इस बाजार में वस्तु का एकमात्र विक्रेता ही होता है जोकि बाजार में स्वयं वस्तुओं अथवा सेवाओं का विक्रय करता है तथा उस वस्तु की कीमत भी वह विक्रेता स्वयं ही निर्धारित करता है। वस्तु की कीमत व मात्रा का निर्धारण इस प्रकार करता है जिससे कि उसे अधिकतम लाभ की प्राप्ति हो सके। 

2. निकट प्रतिस्थापन्न का अभाव- एकाधिकार बाजार में एक विक्रेता का अस्तित्व दीर्घकाल तक तभी कायम रह सकता है जब बाजार में उस विक्रेता के द्वारा बेची जाने वाली वस्तु का कोई निकट प्रतिस्थापन्न उपलब्ध ना हो। 

3. प्रवेश पर रोक- एकाधिकार बाजार का मुख्य लक्ष्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है जिसके कारण इस बाजार में अन्य फर्मों के लिए प्रवेश पर रोक या नियंत्रण होता है अन्यथा एकाधिकार के अधिकतम लाभ के लक्ष्य को प्राप्त कर पाना मुमकिन (संभव) नहीं हो पायेगा।

4. अधिकतम लाभ का लक्ष्य - एकाधिकार बाजार में विक्रेता का मुख्य लक्ष्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है जो कि इस बाजार में संभव होता है क्योंकि इस बाजार में अन्य 2 फर्मों के प्रवेश पर नियंत्रण होता है तथा बाजार में निकट प्रतिस्थापन्न वस्तु के अभाव के कारण भी विक्रेता का लक्ष्य अधिकतम लाभ प्राप्ति का संभव हो पाता है। 

5. पूर्ति वक्र का अभाव - पूर्ण प्रतियोगी बाजार में पूर्ति वक्र उपस्थित होता है क्योंकि उस बाजार में फर्म व उद्योग के बीच अंतर पाया जाता है इसके विपरीत एकाधिकार बाजार में पूर्ति वक्र का अभाव होता है क्योंकि इस बाजार में एकाधिकारी का वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण होता है। एकाधिकार चाहे तो विभिन्न कीमतों पर एक समान मात्रा को विक्रय कर सकता है तथा यदि वह चाहे तो एक समान कीमत पर भिन्न-भिन्न मात्रा का विक्रय कर सकता है। 

एकाधिकारी का मुख्य उद्देश्य

प्रत्येक विक्रेता की तरह एकाधिकारी का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है। वह चाहता है कि अपनी वस्तु का अकेला विक्रेता/उत्पादक होने के कारण उसे अधिकतम शुद्ध आय प्राप्त हो। शुद्ध आय का तात्पर्य प्रति इकाई अधिकतम लाभ से है। एक एकाधिकारी सामान्य लाभ प्राप्त करके संतुष्ट नहीं रहता है क्योंकि वस्तु की कीमत का निर्धारण करना अथवा वस्तु की पूर्ति पर उत्पादक का पूरा नियंत्रण होता है, इसलिये एकाधिकारी अपनी शक्ति का प्रयोग करके तथा वस्तु की कीमत को उसकी लागत से अधिक रखकर कुछ अतिरिक्त लाभ प्राप्त करता है। प्रत्येक एकाधिकारी का उद्देश्य अपनी विशुद्ध एकाधिकारी आय को अधिकतम करना होता है ।

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