एकाधिकार प्रतियोगिता का क्या अर्थ हैं?

एकाधिकार प्रतियोगिता (monopolistic competition) बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु के बहुत से विक्रेता होते हैं परंतु प्रत्येक विक्रेता की वस्तु दूसरे विक्रेताओं की वस्तुओं से किसी न किसी रूप में भिन्न होती है। अतएव वस्तु विभिन्नता एकाधिकार प्रतियोगिता की मुख्य विशेषता होती है। वस्तु विभिन्नता ब्रांड के नाम, ट्रेडमार्क, गुण-भेद, पैकग अथवा उपभोक्ताओं को दी जाने वाली सुविधाओं या सेवाओं के अंतर के रूप में हो सकती है। वास्तविक जीवन में इस प्रकार की प्रतियोगिता के बहुत से उदाहरण मिलते हैं। फोरहेंस, काॅलगेट, पेप्सोडेंट, सिबाका, बबूल आदि टूथपेस्टों का उत्पादन करने वाली फर्में एकाधिकार प्रतियोगिता के उदाहरण हैं। इस प्रकार की बाजार स्थिति में फर्म एकाधिकार भी हैं तथा प्रतियोगी भी हैं, फर्म एकाधिकार इसलिए है क्योंकि वस्तु विभेद के कारण उसका वस्तु की कीमत पर सीमित नियंत्रण होता है। तदनुसार, एकाधिकार की भाँति प्रत्येक फर्म की माँग वक्र का ढलान ऋणाात्मक होता है। 

उदाहरण के लिए, हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड का लक्स ट्रेड मार्क पर एकाधिकार है। कोई दूसरी फर्म इसका प्रयोग नहीं कर सकती। परंतु दूसरी फर्में अपने टेªडमार्क के अंतर्गत नहाने के साबुन का उत्पादन कर सकती हैं, जैसे हमाम, ब्रीज, वैफमे, डिटाॅल आदि। अन्य शब्दों में ‘लक्स’ साबुन के प्रतिस्थापन के उत्पादन करने की स्वतंत्रता है। बाजार की इस स्थिति में प्रतियोगिता का तत्व इस कारण है कि वस्तु के बहुत से विक्रेता होते हैं तथा फर्मों को प्रवेश पाने तथा छोड़ कर जाने की स्वतंत्रता होती है।

एकाधिकार प्रतियोगिता की परिभाषा 

जे.एस. बेंस के अनुसार, एकाधिकार प्रतियोगिता उस उद्योग में पाई जाती है जहाँ काफी मात्रा में छोटे-छोटे विक्रेता हों जो विभिन्न, पर साथ ही निकट स्थानापन्न बेच रहे हों।

बामोल के शब्दों में, एकाधिकार प्रतियोगिता से अभिप्राय उस बाजार ढाँचे से है जिसमें विक्रेताओं का अपने-अपने उत्पादन में एकाधिकार होता है (वे एकमात्र विक्रेता हैं) परंतु उन पर प्रतिस्थापन वस्तुओं के विक्रेताओं के महत्त्वपूर्ण प्रतियोगी दबाव का भी प्रभाव होता है। 

एकाधिकार प्रतियोगिता की विशेषताएँ

एकाधिकार प्रतियोगिता (monopolistic competition) की मुख्य विशेषताएँ हैं-

1. फर्मों तथा क्रेताओं की अधिक संख्या - एकाधिकार प्रतियोगिता में विभेदीकृत वस्तुओं का उत्पादन करने वाली फर्मों तथा क्रेताओं की संख्या काफी अधिक होती है।

2. वस्तु विभेद - वस्तु विभेद, एकाधिकार प्रतियोगिता का मुख्य लक्षण है। वस्तु विभेद से अभिप्राय है कि एक निश्चित समय में उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार, स्टाइल, ब्रांड तथा क्वालिटी की वस्तुएँ उपलब्ध होंगी। वस्तु विभेद उस समय होता है जब वस्तुओं के खरीददार एक वस्तु तथा दूसरी वस्तु में अंतर कर सकें। इसमें फर्मों की संख्या बहुत होती है ¯कतु उनकी वस्तुएँ आपस में किसी न किसी तरह भिन्न होती हैं परंतु ये वस्तुएँ एक दूसरे की निकटतम स्थानापन्न होती हैं। वस्तु विभेदीकरण, वस्तुओं की विशेषताओं के कारण जैसे आकार, माप, रंग, टिकाऊपन, क्वालिटी आदि से पैदा हो जाता है। वस्तु विभेदीकरण के बहुत उदाहरण हमें मिलते हैं जैसे लक्स, गाॅदरेज, वैफमे, रेक्सोना आदि नहाने के साबुन, लिपटन, ब्रुकबांड आदि चाय, पेप्सोडेंट, काॅलगेट, फोरहेंस आदि टूथपेस्ट।

3. फर्मों के प्रवेश होने और छोड़ने की स्वतंत्रता - एकाधिकार प्रतियोगिता की अवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता की तरह फर्मों की उद्योग में प्रविष्ट होने तथा उद्योग छोड़ने की स्वतंत्रता होती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि चेंबरलिन ने एकाधिकार प्रतियोगिता के अंतर्गत विभेदीकृत वस्तुओं का उत्पादन करने वाली अनेक फर्मों के समूह के लिए उद्योग के स्थान पर ग्रुप शब्द का प्रयोग किया है।

4. विक्रय लागत - एकाधिकार प्रतियोगिता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत प्रत्येक फर्म अपनी वस्तु का प्रचार करने के लिए विज्ञापन आदि पर बहुत धन खर्च करती है। फर्म अपनी वस्तुओं को अधिक से अधिक मात्रा में बेचने के लिए अखबारों, सिनेमाओं, पत्रिकाओं, रेडियो, टी.वी. आदि में विज्ञापन देती है। इन सब पर जो खर्च आता है उसी को विक्रय लागतें कहते हैं।

5. कीमत नियंत्रण - प्रत्येक फर्म का वस्तु की कीमत पर सीमित नियंत्रण होता है। एकाधिकार प्रतियोगिता में एक फर्म के औसत आय तथा सीमांत आय वक्र, एकाधिकार की भाँति, ऊपर  से नीचे की ओर गिरते हुए होते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि इस अवस्था में फर्म को अधिक वस्तु नोट बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ेगी तथा कम वस्तु बेचने के लिए वह कीमत बढ़ा सकेगी। एकाधिकार प्रतियोगिता में वस्तु विभेद के कारण एक फर्म का अपने उत्पादन की कीमत पर नियंत्रण होता है। परंतु एकाधिकार के विपरीत वस्तु के निकटतम स्थानापन्न उपलब्ध होने के कारण एकाधिकार प्रतियोगिता में फर्म का कीमत पर पूरा नियंत्रण नहीं होता। प्रत्येक फर्म की कीमत काफी सीमा तक बाजार में अपने प्रतियोगियों की कीमत नीति से प्रभावित होती है।

6. सीमित गतिशीलता - एकाधिकार प्रतियोगिता में उत्पादन के साधनों तथा वस्तुओं और सेवाओं में पूर्ण गतिशीलता नहीं होती है।

7. अपूर्ण ज्ञान - एकाधिकार प्रतियोगिता की अवस्था में वस्तु के क्रेताओं, विक्रेताओं तथा साधनों के स्वामियों को वस्तु की विभिन्न कीमतों का ज्ञान नहीं होता। इसका कारण यह है कि वस्तु विभेद होने के कारण विभिन्न फर्मों के उत्पादन में तुलना करनी संभव नहीं होती। ग्राहकों को किसी एक विशेष फर्म के उत्पादन के प्रति रुचि हो जाती है। वे उसी फर्म का उत्पादन खरीदते हैं चाहे कीमत दूसरों से कुछ अधिक ही क्यों न हो। इसी प्रकार उत्पादन के साधनों को भी पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं होता कि विभिन्न फर्में साधनों की सेवाओं के लिए क्या कीमत दे रही हैं।

8. गैर-कीमत प्रतियोगिता - एकाधिकार प्रतियोगिता की एक मुख्य विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत विभिन्न फर्में वस्तु की कीमत में परिवर्तन किए बिना एक दूसरे से प्रतियोगिता करती हैं जैसे ‘सर्फ’ तथा ‘एरियल’ का उत्पादन करने वाली कंपनियों का उदाहरण लीजिए। यदि आप ‘सर्फ’ का एक डिब्बा लेंगे तो एक शीशे का गिलास साथ मिलेगा, इसी तरह ‘एरियल’ का डिब्बा लेने से स्टील का चम्मच साथ मिलेगा। इस प्रकार फर्मों में ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ तथा वस्तुएँ आदि प्रदान करके अपनी ओर आक£षत करने की प्रतिद्वंद्विता चलती रहती है। इस प्रकार की प्रतियोगिता को ही कीमत में परिवर्तन किए बिना ही प्रतियोगिता कहा जाता है।

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