कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के उपाय

भारतीय कृषि में कृषिगत क्षेत्र को बढ़ाने की बहुत ही कम संभवना है। केवल गहन खेती (श्रम गहन एवं पूंजी गहन दोनों ) द्वारा ही कृषि उत्पादन को बढ़ाने की ज्यादा सम्भावना है। प्रत्येक कृषक अपने खेत की उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने का प्रयास करता है। उत्पादन एवं उत्पादकता में थोड़ा अन्तर होता है। उत्पादन का सम्बन्ध कूल मात्रा से है, जबकि उत्पादकता प्रति इकाई भूमि में कूल उत्पादन है। भूमि उत्पादन का मुख्य साधन है। कुछ छोटे किसान बड़े किसानों की अपेक्षा ज्यादा उत्पादन करते है, और यह सम्भव इसलिए हो पाता है क्योंकि छोटे खेत की उत्पादकता ज्यादा है।

कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के उपाय 

कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता के कम होने के कारणों को पढ़ने के बाद हम यह बता सकते है कि उत्पादकता को कैसे बढाया जा सकता है। कृषि उत्पादकता को निम्न तरीके से बढा़या जा सकता है। 

1. सिचाई सुविधाए:- कृषि की उत्पादकता केवल आगतों की गुणवत्ता पर निर्भर नही करती, बल्कि सिचाई सुविधाओं पर भी निर्भर करती है। विभिन्न राज्यों में सिचाई के अधीन क्षेत्र में काफी अन्तर है । कुछ राज्यो जैसे पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान में बहुत अच्छी सिचाई की सुविधाएँ है, वही अन्य राज्यों में कुल सिचाई संभाव्य तथा सिचाई के विद्यमान स्तर में व्यापक अन्तर है। इसलिए सिचाई के लिए नलकूप, नहर, कूआ तथा तालाबों के स्थापना होनी चाहिए। 

2. साख एवं विपणन व्यवस्था का विकास:- उन्नत किस्म के बीजों, उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं, कृषि मशीनरी तथा सिचाई सुविधाओं के प्रयोग के लिए काफी वित्तीय साधनों की आवश्यकता होती है और ए साधन अक्सर छोटे व सीमांत किसानों के पास नही होते है। इसलिए यह आवश्यक है की सहकारी ऋण संस्थाओं, वाणिज्यिक बैंको एवं क्षेत्री ग्रामीण बैंको को इस प्रकार के निर्देश देने की जरूरत है कि वें छोटे व सीमांत किसानों को उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराये जिससे साहूकारों एवं महाजनों की कपटपूर्ण नीतियों से किसानों को बचाया जा सकें । सहकारी विपणन संस्थाओं को भी बेहतर करने की आवश्यकता है जिससे कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके । जब कृषकों को उचित मूल्य प्राप्त होगा तो वें और अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित होगे। 
3. भूमि सुधारों का कार्यान्वयन:- स्वतंत्रता के बाद मध्यस्थों के उन्मूलन के लिए, काश्तकारों की दशाओं में सुधार के लिए, भूमि पर अधिकतम सीमा निर्धारित करने के लिए तथा कृषि के पुनर्गठन के लिए कदम उठायें गये लेकिन सफलता बहुत ही कम मिल पायी है। भूमि सुधार कानूनों के कारगर कार्यान्वयन के लिए सरकार को प्रभावी कदम उठाने चाहिए ताकि भूमि उस काश्तकार को मिल सके जो उस पर वास्तव में खेती करता है। जब तक ऐसा नही होगा तब तक भूमि में निवेश करने की प्रेरणा नही होगी और उत्पादकता कम रहेगी। 

4. भूमि पर जनसंख्या के दबाव को कम करना:-भूमि पर जनसंख्या के दबाव को कम करने की आवश्यकता है। अन्य क्षेत्रों में रोजगार बढाने की आवश्यकता है और कृषि क्षेत्र से अतिरेक श्रम को उन क्षेत्रों में लगाकर भूमि पर से जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सकता है। 

5. उन्नत बीजों एवं उर्वरकों का प्रयोग:-उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होता है। तथा उन्नत बीजों के लिए उर्वरकों की काफी बड़ी बड़ी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। कई देशों के अनुभवों से तथा हमारें देश में कुछ राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के अनुभव से यह बात सिद्ध होती है। इस लिए ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों में कृषको को उन्नत किस्म के बीजों को प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए । मिट्टी, जलवायु तथा सिचाई सुविधाओं की उपलब्धि के आधार पर किसानों को सुझाव देने की आवश्यकता है कि कौन से बीज उनकी भूमि के लिए उपयुक्त रहेगें । कृषको को खेती करने के तरीके के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है। 
6. बेहतर प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराना:-कृषको को वेहतर प्रौद्योगिकी के प्रयोग पर जोर देने की आवश्यकता है क्योंकि बहेतर प्रौद्योगिकी के प्रयोग से उत्पादन के स्तर को बढ़ाया जा सकता है। उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह बात स्पष्ट होता है कि वेहतर प्रौद्योगिकी के प्रयोग से उत्पादकता का जो स्तर प्राप्त किया जा सकता है तथा उत्पादकता का जो स्तर प्राप्त किया जा रहा है उसमें काफी अन्तर है। इसलिए यह आवश्यक है कि किसानों को वेहतर प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराया जाय । 

7. बेहतर प्रबंधन:-जिस प्रकार से उद्योगों में उत्पादकता बढाने के लिए वेहतर प्रबंधन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार कृषि में भी उत्पादकता बढाने के लिए बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता होती है। 

8. कृषि अनुसंधान:-भारत में अनुसंधान का कार्य इंडियन कौंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों तथा अन्य विशिष्ट संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। लेकिन ए अनुसंधान कुछ फसलों में सफलता दिला पाये है। अन्य फसलों के लिए अभी बहुत अनुसंधान करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं में भूमि की किस्म को जानने के लिए, भूमि संरक्षण के लिए तथा कृषि मशीनरी को बेहतर बनाने इत्यादि के लिए अनुसंधान करने की आवश्यकता है।

कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता के कम होने के कारण 

इसमें कोई सन्देह नही है कि स्वतन्त्रता के बाद विशेषकर हरित क्रान्ति के बाद की अवधि में कृषि उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन जब हम अन्तर्राष्ट्रीय मानक से तुलना करते है तो हम पाते है कि यह बहुत ही कम है।

(1) उत्पादक निवेश में कमी: कृषि क्षेत्र में लोग कम निवेश करते है, क्योंकि कृषि क्षेत्र में प्रतिफल की दर अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा बहुत कम होती है। अतः निवेश को बढ़ाकर ही उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 

(2) प्राकृतिक आपदा: प्रत्येक वर्ष करोड़ों रूपये कि फसलें बाढ़, सूखा एवं अन्य प्राकृतिक आपदा के कारण नष्ट हो जाती है। भूमि का अधःपतन भी कृषि उत्पादकता को कम करता है। 

(3) भूमि पर जनसंख्या का दबाव: भूमि पर जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है। भारत में ग्रामीण जनसंख्या का लगभग तीन चैथाई जनसंख्या कृषि क्षेत्र में लगे है। गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर न बढ़ने के कारण भूमि पर जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। कृषि के अनुभवों से पता लगता है कि एक सीमा से अंिधक लोगों के कृषि में लगे होने से कृषि की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भूमि पर बढ़ता हुआ दबाव जोतों के उपविभाजन एवं अपखंडन के लिए जिम्मेदार है। 

(4) सामाजिक कारण:- हमारे देश का सामाजिक वातावरण भी कृषि विकास में बाधक समझा जाता है। निरक्षरता, अज्ञानता, अन्धविश्वास तथा रूढि़वादी सोच कृषि में नई तकनीक अपनाने में बड़ी बाधा समझा जाता है। 

(1) वित्त की कमी:- वित्त की उपलब्धता ही किसी उद्योग के विकास का आधार होती है। भारतीय सन्दर्भ में कृषि विकास के लिए पर्याप्त वित्त की कमी है। कृषि में सुधार के लिए अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों तरह के ऋण की आवश्यकता है। 

(2) विपणन सुविधाओं का अभाव:- दोषपूर्ण विपणन व्यवस्था कृषिको की कठिनाइयों को बढ़ाता है। विपणन की खराब ब्यवस्था के कारण कृषकों को अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। अगर कृषकों को कृषि उपज का उचित मूल्य मिले तो वे और अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित होगें । 

(3) जोतों का छोटा आकार:- जोतों का बहुत छोटा आकार होने के कारण भारतीय कृषि की उत्पादकता बहुत कम है। खेतों का आकार छोटा होने के कारण हम केवल श्रम प्रधान तकनीकी से ही खेती कर सकते है, इससे उत्पादकता का स्तर कम रहता है। इसके अलावा खेतों का विभाजन एवं विखण्ड़न भी कम उत्पादकता का कारण है। 

(4) भू-स्वामित्व प्रणाली:- भारतीय कृषि में कम उत्पादन एवं उत्पादकता का एक प्रमुख कारण जमीदारी प्रथा रही है। स्वतन्त्रता के बाद मध्यस्थों को समाप्त करना, पट्टेदारी एवं लगान निर्धारण सम्बन्धी ब्यवस्थाओं में कुछ सुधार किया गया, लेकिन अभी भूस्वामित्व प्रणाली में ज्यादा सुधार नही हुआ हैं । पट्टेदारी एवं लगान निर्धारण सम्बन्धी व्यवस्थाओं के अन्तर्गत काश्तकारों को सुरक्षा नहीं मिली है। आज भी अधिकांश काश्तकारों की पट्टेदारी सुरक्षित नहीं है और उन्हे अनुचित रूप से अधिक लगान देना पड़ता है । केवल तकनीकी सुधारों द्वारा उत्पादकता को बढाना संभव नही है। बल्कि भूमि सुधार की भी पहल होनी चाहिए । यदि कृषि निवेश की मात्रा बढनी है तो आर्थिक आधिक्य को हड़पने वाले सूदखोंर, महाजन वर्ग लगानखोर जमींदार वर्ग का अस्तित्व ही समाप्त करना हो।

(1) पुरानी कृषि तकनीकी:- भारतीय कृषक अभी भी कृषि के पुरानी तकनीकी का प्रयोग करते है। उर्वरकों अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग बहुत ही सीमित है, इसलिए उत्पादकता का स्तर बहुत कम है। 

(2) सिंचाई की अपर्याप्त व्यवस्था:- भारतीय कृषि का बहुत अधिक भाग अभी भी मानसून पर निर्भर हैं। भारत में कुल कृषि क्षेत्र का केवल 45.3% पर सिंचाई की व्यवस्था है, शेष भाग वर्षा पर निर्भर हैं। इस कारण से कृषि की उत्पादकता का स्तर बहुत ही कम है। भारत में वर्षा अनिश्चित रहता है, क्योंकि यह मानसूनी हवाओं पर निर्भर है । जिन क्षेत्रों में सिचाई की सुविधाएँ नहीं है वहाँ उत्पादकता का स्तर बहुत नीचा है । 

भारत में सिंचाई की व्यवस्था दोषपूर्ण है । इसके अलावा सिंचाई की लागत में लगातार वृद्धि होने के कारण छोटे किसान सिंचाई की व्यवस्था का लाभ उठाने में असमर्थ है । 

वे साधन जिन पर उत्पादकता निर्भर करती है 

कृषि की उत्पादकता जिन महत्वपूर्ण साधनों पर निर्भर करती है वें निम्न है- 

(1) जमीन की उर्वरता:- जमीन के कुछ टुकड़ों की उर्वरता दूसरे की तुलना में ज्यादा होती है, अतः ज्यादा उर्वरा जमीन में ज्यादा उत्पादन करना आसान होता है। 

(2) खेती करने की विधि:- कृषि की उत्पादकता खेती करने की विधि पर भी निर्भर करती है। खेती की पुरानी विधि तथा पुरानी तकनीकी ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के रास्ते में बाँधा है। जबकि खेती की नयी विधि और तकनीकी ज्यादा उत्पादन तथा उत्पादकता प्राप्त करने में सहायक होती है। 

(3) फसलों की प्रकृति:- कुछ फसल किसी क्षेत्र के लिए उपयुक्त होती है तो कुछ फसल अन्य क्षेत्र के लिए। यदि फसलों को क्षेत्र की उपयुक्तकता के आधार पर बोया जाय तो इससे उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। 

(4) आगतों की उपलब्धता:- अगर सभी उत्पादन के आगत पर्याप्त मात्रा में तथा उचित मूल्य पर उपलब्ध है तो इससे इनका उचित प्रयोग करके उत्पादन तथा उत्पादकता की बढाया जा सकता है। 

(5) साख सुविधा:- अगर आसानी से उचित ब्याज दर पर साख की उपलब्धता है तो इससे उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि साख का प्रयोग कृषक विभिन्न आगतों को खरीदने में करता है। इन आगतों का प्रयोग करके कृषक उत्पादन तथा उत्पादकता को बढ़ा सकता है। 

(6) खेत का आकार:- इसमें बहुत विवाद है, कुछ अर्थशास्त्री कहते है कि खेत के आकार एवं उत्पादकता में विपरीत सम्बन्ध है, तथा कुछ अर्थशास्त्री कहते है इसमें धनात्मक सम्बन्ध है। लेकिन हम खेत के आकार एवं उत्पादकता के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते है। अतः खेत की उत्पादन तथा उत्पादकता आगतों के प्रयोग व प्रवन्धन पर निर्भर करता है। 

सन्दर्भ -
  1. S.S. china “Agricultural Economics and India Agriculture ”
  2. Ramesh chand, S.S Raju and L.M. Pandey “Growth crisis in Agriculture” EPW, june 30, 2007

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