लाभांश नीति के प्रकार

लाभांश नीति के निर्धारण के लिए ऐसा कोई सूत्र नहीं दिया जा सकता है जो प्रत्येक स्थिति में लागू होता हो, क्योंकि यह कम्पनी की परिस्थितियों एवं प्रबंधकों की नीतियों पर निर्भर करती है। ऐसी नीति जो अंशधारियों एवं कम्पनी दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध हों, उसे ही सुदृढ़ व सुसंगत नीति कहा जा सकता है।

लाभांश नीति के प्रकार

लाभांश नीति के प्रकार हैं:-

(1) कठोर लाभांश नीति

इस नीति में प्रबंधक अर्जित लाभ के अधिकांश भाग को व्यवसाय में पुनर्विनियोजित करना चाहते हैं तथा अंशधारियों को लाभांश भुगतान कम से कम करना चाहते हैं। अतः वह नीति जिसमें लाभ भुगतान अनुपात बहुत कम या कभी-कभी शून्य होता है, कठोर या अनुदार लाभांश नीति कहलाती है। इस नीति को अपनाने वाले प्रबंधक अंशधारियों की वर्तमान आशाओं के स्थान पर कम्पनी की वित्तीय सुदृढ़ता को अधिक महत्व देते हैं। यह नीति निम्न परिस्थितियों में ही अपनायी जाती है:-
  1. यदि कम्पनी नवस्थापित हो, जिसे भावी विकास हेतु अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता हों
  2. यदि वर्तमान में पूँजी बाजार से पूँजी प्राप्त करने में ऊँची लागत लगती हों
  3. अंशधारी वर्तमान में नकद लाभांश के स्थान पर भविष्य में बोनस अंश प्राप्त करने के इच्छुक हों
  4. वर्तमान में तरल साधनों की कमी हों।

(2) उदार लाभांश नीति

इस नीति में प्रबंधक अर्जित लाभ का अधिकांश भाग लाभांश के रूप में वितरित कर देते हैं अर्थात् लाभांश का लाभ अनुपात उच्च होता है। लाभों का पुनर्विनियोजन उतना ही किया जाता है जितना अत्यन्त आवश्यक हो। उदार लाभांश नीति के पालन से भावी विकास व विस्तार हेतु आंतरिक साधनों की कमी आ जाती है तथा अंशों के मूल्य में सट्टे की प्रवृŸा बढ़ने से विŸाीय सुदृढ़ता को भी हानि पहुँचती है। कभी-कभी प्रबंधकों द्वारा अपने स्वार्थ की सिद्धि या प्रबंधकीय दक्षता को प्रदर्शित करने के लिए उच्च दर से लाभांश वितरण हेतु अनुचित तरीकों का प्रयोग किया जाता है। जिसके दुष्परिणाम कम्पनी को वहन करने पड़ते हैं।

(3) स्थिर लाभांश नीति

स्थिर लाभांश से आशय वर्ष-प्रतिवर्ष लाभांश भुगतान में एकरूपता होने से है, अर्थात् जब प्रबंधक व्यवसाय की आय में उतार-चढ़ाव होते हुए भी प्रति अंश लाभांश स्थिर बनाये रखने की नीति अपनाते हैं तो यह स्थिर लाभांश नीति कहलाती है। इस नीति में सदस्यों की वर्तमान अपेक्षाओं व कम्पनी की भावी आवश्यकताओं को समान महत्व दिया जाता है। अधिक लाभ वाले वर्षों में भी स्थिर दर से लाभांश वितरित कर शेष राशि से कोषों का निर्माण कर लिया जाता है। जिससे प्रतिकूल परिस्थिति वाले वर्षों में लाभ कम होते हुए भी स्थिर लाभांश नीति का अनुसरण किया जा सके। किन्तु स्थिर लाभांश नीति से आशय यह नहीं है कि जीवन पर्यन्त एक ही दर से लाभांश दिया जायेगा। कम्पनी की आय के निरन्तर वृद्धि होने पर प्रबन्धक वर्तमान दर में वृद्धि कर सकते हैं। किन्तु इस नीति के बनाये रखने के लिए कम्पनी के स्वामित्व ढाँचे व प्रबंध में भी स्थायित्व आवश्यक है।

वैकल्पिक लाभांश नीतियां

कई तरह की वैकल्पिक लाभांश नीतियों के बारे में समझदार वित्तीय प्रबन्धक सोच सकता है । तीन महत्वपूर्ण विकल्प हैं जिनके द्वारा लाभांश वितरण किया जा सकता है ।

1. प्रति अंश स्थाई लाभांश नीति - कम्पनी को चाहे जितनी आय हो, इस नीति के अनुसार उसे हर वर्ष प्रति अंश स्थाई लाभांश देना होगा। प्रति अंश स्थाई लाभांश नीति में लाभांश का स्त्रोत एक समान रहता है। अगर आय में निरन्तर बढ़त या घटक होती जाए तो लाभांश के मूल्य में बढ़ोत्तरी या कटौती हो सकती है । प्रति अंश स्थाई नीति का उद्देश्य यह है कि कम्परनी को चाहे जितनी भी आय हो अंशधारियों को उनके विनियोग पर कम से कम दर पर प्रत्याय आवश्यक रूप से दिया जाए। इस नीति के चयन का प्रभाव यह होगा कि अदायगी अनुपात में बदलाव आएंगे। 

इस नीति के अनुसार जब आय का तल कम होगा तो अदायगी अनुपात अधिक होगा और विपरीत भी सही है। यह इसलिए होता है कि कम्पनी को कम चालू आय पर अनुपात में अधिक देना पड़ता है और अधिक चालू आय हो तो अनुपात में कम देना पड़ता है अगर प्रति अंश लाभांश स्थाई दर से देना हो तो । प्रति अंश स्थाई लाभांश नीति में अदायगी अनुपात की रेंज एक से (जब सम्पूर्ण चालू आय के साथ एकत्रित आय भी लाभांश प्रति अंश के उद्देश्य को पूरा करने के लिए दे दी जाती है) शून्य तक (जहां सम्पूर्ण चालू आय बचा ली जाती है और पूर्व वर्षों के एकत्रित लाभों में से लाभांश दिया जाता है ।

प्रति अंश स्थाई लाभांश नीति के अनुसार प्रति अंश लाभांश तब बढ़ा दिया जाता है जब यह लगता है कि आय में निरन्तर बढ़त हो रही है। किसी भी अस्थाई बदलाव को प्रति अंश लाभांश को प्रभावित नहीं करने दिया जाता ।

2. शेष लाभांश नीति - इस नीति के अनुसार लाभांश नीति विनियोग नीति पर निर्भर करती है। कितना लाभांश वितरण किया जाए यह कम्पनी की विनियोग आवश्यकताओं पर निर्भर करेगा। कम्पनी लाभांश सिर्फ तब देगी जब उसके पास न विनियोगों में पैसा लगाने के उपरान्त पैसा बचेगा और कोई लाभांश नहीं देगी जब उसकी आय उसकी विनियोग आवश्यकताओं से कम होगी । इस पहुंच के अनुसार उन्नंति पथ पर अग्रसर कम्पनियां जिनकी वित्तीय आवश्यंकताएं बहुत अधिक होती हैं नाम मात्र बिल्कुल भी लाभांश नहीं देगी लेकिन उन्नंत कम्पनियां लगभग सम्पूर्ण आय लाभांश के तौर पर दे देंगी । जब शेष लाभांश नीति अपनाई जाती है तब प्रति अंश लाभांश और अदायगी अनुपात बदलता रहता है क्योंकि उसकी आय और विनियोग आवश्यकताएं भी बदलती रहती हैं ।

शेष लाभांश नीति वर्षों तक बदलता हुआ लाभांश वितरण करती है । इस तरह की लाभांश नीति विनियोक्ताओं के मन से कम्पनी को खतरे के बारे में अनिश्चितता दूर नहीं करती। इसलिए निजी कम्पनियों के अलावा जहां अंशधारी प्रबन्ध् में सक्रिय भाग लेते हैं, यह नीति सुझावित नहीं की जाती है ।

3. समतल शेष लाभांश नीति - ऊपर दी गई शेष लाभांश नीति इस वायदे पर आधारित है कि अंशधारी तब तक आय को कम्प नी के पास रखने को श्रेष्ठे मानते हैं और लाभांश लेने के इच्छुक नहीं होते जब तक ऐसे विनियोग मौके कम्पनी के पास उपलब्ध हैं जो अंशधारियों को समान खतरे के साथ दूसरे मौकों की तुलना में अधिक प्रत्याय देते हैं ।

हालांकि कई कारणों से अंशधारी बदलता लाभांश लेने के हक में नहीं होते । इसलिए शेष लाभांश नीति में बदलाव लाना वांछनीय है ताकि लाभांश अदायगी में कोई स्थापन आ सके । यह बदलाव समतल शेष लाभांश नीति द्वारा लाया जा सकता है । इस नीति के अनुसार लाभांशों में समय के साथ धीरे-धीरे बदलाव लाया जाता है। लाभांश के तल को इस तरह बनाया जाता है कि योजना अवधि के दौरान लाभांश कुल आय -  विनियोग हों ।

सन्दर्भ -
  1. “Financial Management”- M.Y. Khan & P.K. Jain, Tata Mc GrawHill.
  2. Shrivastava R.M. : Financial Decision Making Text, Problems and Cases.
  3. Arora M.N. : Cost and Management Accounting.
  4. Ravi M. Kishore : Advance Management Accounting.
  5. Prasanna Chandra : Financial Management.
  6. Sahaf M.A. : Management Accounting : Principle's and Practices.

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