लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले तत्व

लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले तत्व 

लाभांश नीति का उद्देश्य यही होता है कि अंशधारियों की अधिक लाभांश आशा को पूरा किया जाए और बकाया आय द्वारा कम्पनी की विनियोग आवश्यकताओं को पूरा कर उसके कल्याण का भी ध्यान रखा जाए । इस कार्य के लिए यह निर्णय लेना आवश्यक हो जाता है कि कितना लाभ लाभांश के तौर पर विभाजित किया जाए और कितना व्यवसाय में रखा जाए । इस निर्णय को प्रभावित करने वाले कई तथ्य हैं। अब हम इन कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की चर्चा करेंगें ।

1. अंशधारियों का स्वार्थ 

 लाभांश नीति को अपने अंशधारियों के स्वार्थ का ध्यान रखना चाहिए । छोटी कम्पनियां जिनके थोड़े से ही अंशधारी हैं उनके स्वार्थों को पहचानना कोई मुश्किल कार्य नहीं है । दूसरी तरफ विभाजित मलकियत वाली बड़ी कम्पनियों के अंशधारियों के स्वार्थ के बारे में जानकारी रखना कठिन कार्य है । इसलिए छोटी कम्पिनी की लाभांश नीति बनाना बड़ी कम्पनी की लाभांश नीति बनाने से आसान है ।

अंशधारी लाभांश या पूंजी लाभों के लिए पैसा लगाते हैं (अंशधारी जो अधिक लाभांश चाहते हैं उन्हें अच्छी लाभांश नीति द्वारा और जो पूंजी लाभ चाहते हैं उन्हे कम भुगतान अनुपात द्वारा संतुष्ट किया जा सकता है।) लाभांश और पूंजी लाभों में से किसी के लिए अधिक झुकाव अंशधारी की आर्थिक क्षमता और लाभांश और पूंजी लाभों पर भिन्नता के ऊपर निर्भर करता है । पूंजी लाभ पर लाभांश आय की तुलना में कम कर देना पड़ता है । एक धनी अंशधारी जो ऊँची कर बरैक्ट में है वह पूंजी लाभों को श्रेष्ठ मानेगा और वह अंशधारी जो कम कर बरैक्ट में है और जिसका लाभांश ही आय का मुख्य स्त्रोत है वह चालू लाभांश आय की ओर झुकाव दर्शाएगा।

अंशधारियों की चालू आय और पूंजी लाभों के लिए वरीयता आय के स्त्रोत और उम्र पर भी निर्भर करती है। वह अंशधारी जो युवा है और उनके पास लाभांश के अतिरिक्त और भी स्त्रोत हैं वह लाभांश से ज्याादा पूंजी लाभों को प्राथमिकता देते हैं। दूसरी तरफ सेवानिवृत और बूढ़े लोग अंशों में चालू आय के दृष्टिकोण से विनियोग करते हैं । यह लोग विनियोग के लिए उन कम्पनियों के अंशों का चयन करते हैं जो अधिक व चलायमान लाभांश देती हो ।

एक बार जिस लाभांश नीति का निर्णय हो जाता है उसे काफी समय तक अपनाना चाहिए क्योंनकि एक स्थाई लाभांश नीति की अनुपस्थिति में नए विनियोक्ता आकर्षित नहीं होंगे और कम्पनी की वित्तीय आवश्यकताएं पूरी नहीं होंगी ।

2. विनियोग आवश्यकताएं

कई कम्पनियॉं अपनी लाभांश नीति अपनी विनियोग आवश्यकताओं के आधार पर बनाती हैं । उन्नत कम्पनियां (जिनके पास काफी विनियोग मौके हैं) वह लाभों के प्रमुख भाग को पुनर्विनियोग के लिए व्यवसाय में ही रख लेती हैं । दूसरी तरफ वह कम्पनियां जिनके पास विनियोग मौके कम हैं वह लाभों का कम भाग रखती है जिसकी वजह से उनका भुगतान अनुपात अधिक होता है ।

3. पूजी बाजार तक पहुँच 

एक अन्य तथ्य जो कम्पनी की लाभांश रणनीति को मुख्य तौर से प्रभावित करता है वह यह है कि कम्पनी की पूंजी बाजार तक किस हद तक पहुंच है । एक स्थापित कम्पनी जिसके पास लाभ का अच्छा रिकार्ड है वह पूंजी बाजार में आसानी से पैसे उठा सकती है। इसलिए ऐसी कम्पनियां बड़ी आसानी से लाभांश भी दे सकती हैं और विनियोग आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकती हैं । दूसरी तरफ वह कम्पनी जिसकी रोकड़ स्थिति कमजोर है और पूंजी बाजार तक पहुँच नहीं है वह अधिक लाभांश नहीं दे सकती ।

4. प्रबन्ध के विचार 

प्रबन्ध का नजरिया लाभांश नीति को काफी हद तक प्रभावित करता है । अगर कम्पनी के प्रबन्ध की छवि अनुकूल है और वह बात मनवाने की स्थिति में है तो वह आय के मुख्य भाग को व्यवसाय में ही रखेगी । चाहे इस पहुंच से कम्पनी अपनी भविष्य में विनियोग आवश्यकताएं आसानी से पूरी कर सकती हैं पर अंशधारी लाभांश पाने के अपने विधिक हक से वंचित रह जाते हैं । दूसरी तरफ आजाद विचारों वाली संस्थाएं यह मानती हैं कि अंशधारियों को लाभांश तब तक स्थापित दर पर मिलता रहना चाहिए जब तक वह वित्तीय रूप से मजबूत है । इन दो सीमाओं के बीच लाभांश नीति में काफी बदलाव लाए जा सकते हैं ।

5. विधिक और सम्बन्धक प्रतिबन्ध 

लाभांश नीति का निर्माण विधिक प्रतिबन्धों को देखते हुए करना चाहिए । कानून पूंजी में से लाभांश देने की अनुमति नहीं देता । लाभांश या तो चालू लाभों या पिछले लाभों में से दिया जा सकता है । कानून ने यह नियम श्रेष्ठ अंशधारियों और लेनदारों के हक को देखते हुए बनाया है क्योकि अगर सामान्य अशों पर लाभांश पूंजी में से दे दिया गया तो कम्पनी की तरलता के मौके पर श्रेष्ठ अंशधारियों और लेनदारों की बरीयता स्थिति बिगड़ जायेगी ।

ऋण समझौंतों और बाण्ड में अधिकतर ऐसे प्रावधान होते हैं जो इस बात पर जोर देते हैं कि लेनदारों और ऋण पत्रधारियों के ज्तनेजममे की अनुमति के बिना लाभांश न दिया जाए । इसलिए ऋण पत्रधारियों द्वारा लगाए गए ऐसे प्रतिबन्ध लाभांश नीति को काफी प्रभावित करते हैं ।

6. व्यवसाय का स्वभाव

लाभांश नीति काफी हद तक कम्पनी के कार्यों द्वारा भी प्रभावित होती है । कम्पनी की व्य्वस्यायिक कार्यवाईयां उसकी आय को प्रभावित करती हैं जो बदले में लाभांश नीति को ग्राहक वस्तुओं की इण्डेस्ट्रियों की मांग स्थाई रहती है, इसलिए उनकी आय में बदलाव कम आता है इसी तरह आम जनता के प्रयोग की चीजों वालों को भी स्थाई आय होती है । वह कम्पनियां जिनकी स्थाई आय है वह अधिक लाभांश दे सकती हैं । दूसरी तरफ वह कम्पनियां जिनकी आय में बदलाव आता रहता है वह ऐसे लाभांश दर बनाती हैं जिन्हें वह आसानी से पूरा कर सकती है ।

7. अंशधारियों की Composition

कम्पनी में अंशधारियों की Composition भी लाभांश नीति को काफी हद तक प्रभावित करती है । एक छोटी कम्पनी में नियंत्रक बोर्ड के निजी उद्देश्य और अधिक अंशधारियों की आशा लाभांश नीति को निर्मित करती है। दूसरी तरफ बड़ी कम्पनियों में लाभांश नीति का निर्माण उचित दायित्व और अधिक नियमित ढंग से होता है ।

8. वित्तीय क्षमता और तरलता 

वित्तीय स्थिरता और तरलता बनाए रखने की आवश्यकता भी कम्पनी भी लाभांश नीति को प्रभावित करती है। कम्पनी को इच्छा होती है कि आय को बकाया रख रिजर्व बनाए जाएं ताकि व्यवसायिक उतार चढ़ावों में उनका प्रयोग किया जा सके । वह रिजर्व बनाएंगें और भविष्य अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए रोकड़ स्त्रोंतों को बचा कर रखेंगे ।

9. कीमतों में बढ़ौतरी 

कीमतों में बढ़त भी कम्पनी की लाभांश नीति को प्रभावित करती है । बढ़ी हुई कीमतों में मूल्यह्रास द्वारा एकत्रित पैसे खराब मशीनों और औजारों की प्रतिस्थांपना के लिए काफी नहीं होते । यह इसलिए होता है कि मूल्यह्रास प्रावधान पिछली लागत पर किया होता है जब बढ़ती कीमतों के जमाने में सम्पत्तियों की प्रतिस्थापना लागत बढ़ती है। इसलिए खराब सम्पत्तियों की प्रतिस्थापना के लिए कम्पनी को पैसों के लिए बकाया कोषों पर निर्भर करना पड़ता है । इससे कम्पनी का भुगतान अनुपात कम होगा । बढ़ती कीमतों के समय में जब मूल्य ह्रास पुरानी लागत पर दर्शाया जाता है तो लाभ अधिक दिखाए जाते हैं । अगर ऐसे लाभों के आधार पर लाभांश दे दिए जाएं तो कम्पनी तरल हो जाएगी क्योंकि इसका अर्थ लाभांश पूंजी में से दिए जाएंगे । इसलिए अच्छा प्रबन्ध बढ़ी कीमतों के जमाने में अधिक से अधिक आस व्यवसाय मे ही रखेगा ताकि कम्पनी की वित्तीय स्थिति बरकरार रखी जाए ।

10. इण्डयस्ट्री में अन्य कम्पनियों की लाभांश नीतियां 

प्रतियोगियों की लाभांश नीति द्वारा भी कम्पनी की लाभांश नीति प्रभावित होती है । यह इसलिए होता है कि कम्पनी अंश में विनियोक्ता के लिए प्रतियोगिता बनी रहे ।

ऊपर दिए गए तथ्य लाभांश नीति बनाने के लिए अलग-अलग नहीं देखे जाने चाहिए । इनका कम्पनी और उसके अंशधारियों के कल्याण पर सम्पूर्ण प्रभाव देखा जाना चाहिए ।

सन्दर्भ -
  1. “Financial Management”- M.Y. Khan & P.K. Jain, Tata Mc GrawHill.
  2. Shrivastava R.M. : Financial Decision Making Text, Problems and Cases.
  3. Arora M.N. : Cost and Management Accounting.
  4. Ravi M. Kishore : Advance Management Accounting.
  5. Prasanna Chandra : Financial Management.
  6. Sahaf M.A. : Management Accounting : Principle's and Practices.

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