लगान के प्रकार

लगान के प्रकार

लगान के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैंः

आर्थिक लगान

केवल भूमि के प्रयोग के लिए किया जाने वाला भुगतान आर्थिक लगान कहलाता है। अर्थशास्त्र में लगान शब्द का प्रयोग आर्थिक लगान के लिए ही किया जाता है। अतएव रिकार्डों तथा दूसरे परम्परावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार, ‘‘आर्थिक लगान वह लगान है जो केवल भूमि की सेवाओं के लिए प्राप्त होता है।’’ आर्थिक लगान को आधिक्य भी कहा जाता है क्योंकि वह भू-स्वामी की तरफ से बिना कोई प्रयत्न किए ही प्राप्त होता है। प्रो. बोल्डिंग ने इसे आर्थिक आधिक्य कहा है।

कुल लगान

कुल लगान वह लगान है जो भूमि की सेवाओं तथा उस पर लगाई गई पूँजी के लिए दिया जाता है। कुल लगान में निम्नलिखित तत्त्व शामिल होते हैं- 
  1. आर्थिक लगानμयह केवल भूमि के प्रयोग के लिए किया जाने वाला भुगतान है।
  2. भूमि की उन्नति के लिए अर्थात् भूमि के निकट कुआँ खुदवाने, झोंपड़ी बनवाने, नालियाँ बनवाने आदि पर जो धन व्यय किया जाता है, उसका ब्याज कुल लगान में शामिल किया जाता है। 
  3. भूमिपति भूमि के सुधार के लिए धन व्यय करके जोखिम उठाता है, इस जोखिम का पुरस्कार भी कुल लगान में शामिल होता है।

दुर्लभता लगान

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री माल्थस के अनुसार, लगान के उत्पन्न होने का मुख्य कारण भूमि का दुर्लभ होना है अर्थात् भूमि की पूर्ति का माँग से कम होना है। समरूप भूमि की दुर्लभता के कारण जो लगान देना पड़ता है उसे दुर्लभता लगान कहा जाता है। । यदि सब भूमि एक ही प्रकार की हो परन्तु भूमि की माँग उसकी पूर्ति से अधिक हो जाए तो सारी भूमि को दुर्लभता के कारण आर्थिक लगान प्राप्त होगा। इसलिए लगान उस समय ही उत्पन्न होगा जब भूमि की पूर्ति बेलोचदार  होगी अर्थात् माँग के बढ़ने पर पूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता। रिकार्डों का भी यह मत था कि भूमि लाभप्रद तो है लेकिन दुर्लभ भी है। भूमि की उत्पादकता तो प्रकृति की उदारता का सूचक हो सकती है परन्तु उसकी कुल पूर्ति का लगभग स्थिर रहना प्रकृति की कन्जूसी का प्रतीक है।

भेदात्मक लगान

रिकार्डों के अनुसार, भूमि का उपजाऊ शक्ति  में अन्तर पाए जाने के फलस्वरूप लगान उत्पन्न होता है। प्रत्येक देश में कई प्रकार की भूमि पाई जाती है। कुछ भूमि अधिक उपजाऊ होती है तथा कुछ भूमि कम उपजाऊ होती है। जब कम उपजाऊ भूमि पर भी खेती करनी पड़ती है तो अधिक उपजाऊ भूमि के स्वामी को अपेक्षाकृत अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। यह आधिक्य जो भूमि की उपजाऊ शक्ति में भेद पाये जाने के कारण उत्पन्न होता है, भेदात्मक लगान कहलाता है। इस प्रकार का भेदात्मक लगान विस्तृत खेती  में उत्पन्न होता है। 

रिकार्डों का यह विचार भी था कि यदि एक ही प्रकार की भूमि पर अधिक उत्पादन बढ़ाने के लिए श्रम तथा पूँजी की अधिक मात्राओं का प्रयोग किया जाए अर्थात् गहन खेती की जाए तो जैसे-जैसे भूमि के एक निश्चित क्षेत्रफल में पूँजी तथा श्रम की अधिक-से-अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाएगा उनकी सीमान्त उत्पादकता कम होती जाएगी अर्थात् घटते प्रतिफल का नियम लागू होने लगेगा। इस नियम के फलस्वरूप भूस्वामी श्रम तथा पूँजी की जिस अन्तिम इकाई का प्रयोग करेगा, उसे सीमान्त इकाई कहा जाएगा तथा उससे पहले की इकाईयों को अन्तर-सीमान्त इकाईयाँ कहा जाएगा। घटते प्रतिफल के नियम के कारण सीमान्त इकाई तथा अन्तर सीमान्त इकाई के उत्पादन में जो भेद होगा उसे भी भेदात्मक लगान कहा जाएगा। इस प्रकार घटते प्रतिफल के नियम के अनुसार गहन खेती में भेदात्मक लगान उत्पन्न होता है। 

स्थिति लगान

भूमि की स्थिति में अन्तर पाये जाने के कारण जो लगान पाया जाता है उसे स्थिति लगान कहते हैं। जो भूमि मण्डी या शहरों के अधिक समीप होती है उस पर शहर से दूर स्थिति भूमि की अपेक्षा अधिक लगान प्राप्त होता है। इसका एक कारण है कि शहर का मण्डी के अधिक समीप होने के कारण उस भूमि की उपज को कम खर्च में मण्डी में पहुँचाया जा सकता है। इस प्रकार यातायात खर्चें की बचत हो जाती है। दूसरा कारण यह होता है कि मण्डी में वस्तु की कीमत गाँव से अधिक प्राप्त होती है। इस प्रकार की स्थिति में अन्तर के कारण से भूमिपति को जो आधिक्य प्राप्त होता है, उस लगान को स्थिति लगान कहते हैं।

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