मनोविज्ञान के क्षेत्र और उनका वर्णन

 मनोविज्ञान के क्षेत्र

1. नैदानिक मनोविज्ञान

मनोविज्ञान की सबसे प्रचलित एवं प्रयुक्त शाखा, नैदानिक मनोविज्ञान है। नैदानिक मनोवैज्ञानिक का कार्य समस्या से ग्रसित लोगों को ठीक करना है ताकि वे अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में समायोजन स्थापित कर सकें। शोध निदान और उपचार नैदानिक मनोवैज्ञानिक के तीन मुख्य कार्य है- जिनकी विभिन्न विधियों के माध्यम से मानसिक रोगों का उपचार किया जा सकता है।  हेतु नैदानिक मनोवैज्ञानिक कई तरह के निदान सूचक प्रविधियों का विस्तृत क्षेत्र के बाद भी इनका अधिक ध्यान मनोवैज्ञानिक समस्याओं के उपचार में ही केन्द्रित होता है। इसके कई सक्रिय क्षेत्र हैं जैसे विश्वविद्यालय, उपचार गृह मानसिक अस्पताल आदि। 

प्रायः नैदानिक मनोविज्ञान और मनोरोगविज्ञानी में संभ्रांति उत्पन्न हो जाती है क्योंकि दोनों ही क्षेत्र रोगियों को चिकित्सा प्रदान करते है। इन क्षेत्रों में चिकित्सा के दौरान मनोवैज्ञानिक रोगों की विकृतियों के विभिन्न लक्षणों को दूर किया जाता है। दोनों क्षेत्रों में सिर्फ यही अन्तर है कि मनोरोगविज्ञानी  मानसिक रोगों की चिकित्सा के समय जैविक विधियों का उपयोग करते है, जबकि नैदानिक मनोवैज्ञानी चिकित्सा के समय जैविक विधियों का उपयोग नहीं करते है। अपितु व्यावहारिक पद्धति की अनुपालन कर संवेगात्मक रचना कराते है।

2. सामुदायिक मनोविज्ञान

सामुदायिक मनोविज्ञान का तात्पर्य ऐसे मनोविज्ञान के क्षेत्र से है जो सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए मनोवैज्ञानिक नियमों, विचारों और तथ्यों का उपयोग करते है और इसी के साथ व्यक्ति को अपने कार्य और समूह में समायोजन करने में मदद करते है। अर्थात् सामुदायिक मनोविज्ञान का सम्बन्ध उस पर्यावरण परिस्थिति से होता है, जिसमें व्यवहारात्मक क्षुब्धता उत्पन्न हो सकती है, ना कि मनश्चिकित्सा और मनोनिदान से होता है। सामुदायिक मनोविज्ञानी का अधिक विश्वास पर्यावरण में परिवर्तन ला कर समस्या को दूर करने में होता है।

उदाहरण स्वरूप- स्कूल के संगठन तथा प्रशासन में परिवर्तन, पूरे समाज के बच्चों और किशोरों के अन्तः क्रिया शैली में परिवर्तन आदि ऐसे कई उदाहरण है जिनकी मदद से मनोवैज्ञानिक व्यक्ति विशेश के व्यवहार में परिवर्तन की अपेक्षा सामान्य पर्यावरण में परिवर्तन कर समस्या की गम्भीरता को कम करने हेतु प्रयास करते है। सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य आन्दोलन का एक विशेष भाग सामुदायिक मनोवैज्ञानियों को माना जाता है। ऐसे सामुदायिक मनोवैज्ञानी जो सामुदायिक समस्याओं के अध्ययन पर मानसिक स्वास्थ्य के अध्ययन से अधिक ध्यान देते है उन्हें सामाजिक समस्या सामुदायिक मनोवैज्ञानी कहते है। इनकी अधिक रुचि समुदाय के समूहों में विद्वेष, पुलिस और समुदाय के बीच खराब सम्बन्ध और रोजगार के अवसरों में कमी के कारण हो रही पीड़ा आदि के अध्ययन में होती है।

3. परामर्श मनोविज्ञान

परामर्श मनोवैज्ञानी का कार्य क्षेत्र नैदानिक मनोवैज्ञानी के कार्यक्षेत्र से काफी समान है। परन्तु अन्तर सिर्फ इतना है कि व्यक्ति के साधारण सांवैगिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं को दूर करने का प्रयास परामर्श मनोविज्ञान के तहत् होता है जबकि नैदानिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत अधिक जटिल एवं कठिन समस्याओं को दूर किया जाता है। अर्थात सामान्य व्यक्तियों को ही समायोजन क्षमता को मजबूत करने में परामर्श मनोविज्ञान अहम् भूमिका निभाता है। यह व्यक्ति की कमजोरियों और गुणांे को दर्शाता है और इस कार्य हेतु मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग किया जाता है। परामर्श मनोविज्ञान के कुछ प्रमुख क्षेत्र यह भी है कि इससे मनोविज्ञान के छात्रों को उनकी उपलब्धियों में समायोजन करना सिखाते है, छात्र के भविश्य के जीवनवृति को लेकर योजना तैयार करने एवँ सक्रिय रुप से काम में लाने में भी अहम् भूमिका निभाते हैं।

4. शिक्षा मनोविज्ञान 

सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य और परामर्श मनोविज्ञानी सम्बंधित कार्य है शिक्षा मनोवैज्ञानिक का कार्य मुख्यतः प्राथमिक तथा माध्यमिक वर्ग के स्कूलों में शिक्षा मनोविज्ञानी कार्य करते है और जरूरत के दौरान वे छात्रों को उपचार हेतु विशेषज्ञों के पास भी भेजते है। स्कूल में व्यावसायिक और शैक्षणिक परीक्षण में सेवा प्रदान करना और साथ ही साथ ऐसे परामर्श और प्रशिक्षण कार्यक्रम को आयोजित करते है जो शिक्षकों को और छात्रों को एक दूसरे के साथ संगठित रखते है और प्रशासन की समस्याओं को भी हल करने की कोशिश करते है। इसके अलावा नये प्रशिक्षण कार्यक्रम की प्रभावशीलता का अध्ययन भी शिक्षा मनोवैज्ञानी की मदद से किया जा सकता है। अन्य उदाहरण जो इसकी उपयोगिता को दर्शाते है जैसे-शिक्षकों या छात्रों के मनोबल का अध्ययन करना, गैरकानूनी औषध उपयोग के कारणों का पता लगाकर उसका निदान ढूंढना और औषध उपयोग करने के तरीके को परिवर्तित करना आदि। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक, शिक्षार्थी और शिक्षालय के मध्य समन्वय स्थापित कर शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास की पहल करता है। बच्चे अलग-अलग विद्या को अपनाना चाहते है।

5. औद्योगिक मनोविज्ञान 

मनोवैज्ञानिक नियमों और सिद्धांतों का उपयोग उद्योग क्षेत्र में भी किया जाता है। उद्योग में कर्मचारियों के मनोवैज्ञानिक समस्याओं का अध्ययन करना और उनका समाधान ढूंढने का प्रयास औद्योगिक मनोविज्ञान के तहत् किया जाता है। इस मनोविज्ञान के संबंध के अध्ययन में कर्मचारियों एवं कार्यों के विभाजन, कार्मिक चयन, कार्य मूल्यांकन, कार्य मनोवृत्ति, कार्य के भौतिक वातावरण आदि पहलुओं का ध्यान रखा जाता है। कर्मचारी के चयन और स्थान निर्धारण में भी औद्योगिक मनोविज्ञानी, मनोवैज्ञानिक परीक्षणों और साक्षात्कार का उपयोग किया जाता है। इसमें कर्मचारियों और वरिष्ठ प्रबन्धकों के लिए अलग-अलग तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होते हैं ताकि उनके तकनीकी कौशल को उन्नत किया जा सके, मनोबल को बढ़ाया जा सके और समूह तनाव को भी कम किया जा सके। कम्पनी में उत्पादकता को बढ़ाने के लिए ये लोग कुछ परिवर्तनों का प्रस्ताव रखते है और साथ ही वे कम्पनी को एक मानव संगठन भी समझते है। इस क्षेत्र में कर्मचारियों और मशीनों की डिजाइन के बीच सामंजस्य पर भी ध्यान दिया जाता है, इसे अभियांत्रिक मनोविज्ञान या मानव अभियांत्रिकी कहते हैं। 

औद्योगिक मनोविज्ञान का एक नवीनतम और विकसित रुप संगठनात्मक मनोविज्ञान है जिसकी प्रमुख अभिरुचि उद्योग के अलावा अन्य कई संगठनों के कर्मचारियों की कार्य सम्बन्धित एवं मानवीय समस्याओं के अध्ययन करने में होती है। स्कूल, सरकारी दफ्तरों, बैंक आदि इसके उदाहरण है। 

6. सैन्य मनोविज्ञान

सैन्य क्षेत्रों में इस मनोविज्ञान के नियमों एवं सिद्धान्तों का उपयोग होता है। मनोविज्ञान के सिद्धन्तों और तथ्यों का उपयोग पहली बार अमेरिकन सैन्य बलों में किया गया था। भारतीय सैन्य बलों में मनोविज्ञान का उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से किया जा रहा है और इसके द्वारा भारत सरकार द्वारा रक्षा मंत्रालय के तहत साइकोलाॅजिकल इंस्टीट्यूट आफ डिफेंस रिसर्च नाम की एक विशेष संस्था खोली गई है। मुख्यतः इस क्षेत्र के मनोवैज्ञानिकों का कार्य क्षेत्र में पाँच गतिविधियाँ सम्मिलित है;
  1. रक्षा कर्मचारियों का विभिन्न स्तर पर चयन। 
  2. कर्मियों में विशेश कार्यक्रम द्वारा नेतृत्व गुणों को विकसित करना। 
  3. कर्मियों में सुरक्षा कौशलों के विकास हेतु विशेष परीक्षण कार्यक्रमों को विकसित करना।
  4. विशेष कार्यक्रमों की मदद से सैन्य बलों में मनोबल विकसित करना। 
  5. अधिक ऊंचे स्थानों में उचित व्यवहार करने संबंधी सैनिकों की समस्याएं चिन्ता और तनाव आदि कुछ विशेष समस्याओं का अध्ययन करना।

7. पर्यावरण मनोविज्ञान

पर्यावरण एवं उसके व्यवहार में आने वाले प्रभावों का अध्ययन इस शाखा में होता है। स्कूल, घर, आवाज, प्रदूषण मौसम, भीड़-भाड़ आदि पर्यावरण के कुछ पहलू है जिनका व्यवहार पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है और पर्यावरणी मनोविज्ञान के द्वारा इन प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। पर्यावरण मनोविज्ञानी में मनोवैज्ञानिक अपने विशेष अध्ययन के द्वारा पर्यावरण के कीमती खजानों को बचाने के लिए, पर्यावरण के दोषपूर्ण पहलुआंें से मानव को बचाने के लिए और उनके जीवन के गुणों या विशेषताओं को उन्नत बनाने के लिए कोशिश करते है। 

8. स्वास्थ्य मनोविज्ञान

मनोविज्ञान का यह क्षेत्र स्वास्थ्य पर विशेषकर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करता है। अर्थात् स्वास्थ्य और उसे प्रभावित करने वाले विचारों के बीच संबन्ध को जानना स्वास्थ्य मनोविज्ञान में सम्मिलित होता है। इस क्षेत्र में यह अध्ययन किया जाता है कि तनाव और चिंता की हृदय रोग, कैंसर आदि में क्या और कितनी भूमिका होती है। इसी के साथ इसमें डाॅक्टर-रोगी के संबन्ध, अस्पताल का पर्यावरण, उपलब्ध सुविधायें, रोगियों की प्रतिक्रियाएं आदि का अध्ययन भी किया जाता है। 

9. सुधारात्मक मनोविज्ञान

जिन मानव व्यवहारों का संबन्ध सामाजिक नियम और कानून के उल्लंघन से होता है, उनका अध्ययन मनोविज्ञान की शाखा में किया जाता है। मनोवैज्ञानिक तथ्यों और विधियों द्वारा मनुष्य के ऐसे व्यवहारों को सुधारने का प्रयास किया जाता है। अतः यह मनोविज्ञान जेल के पर्यावरण और न्यायिक कोर्ट के वातावरण से संबन्धित होता है। 

10. न्यायिक मनोविज्ञान

पुराने समय से मनोविज्ञान और कानून संबन्धित रहे है। इस शाखा के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक इन दोनों के बीच संबन्धों का अध्ययन करते है। इसमें मनोवैज्ञानिक निदान की अहम् भूमिका होती है। क्योंकि यह व्यक्ति पर मुकदमा चलाने व न चलाने के निर्णय को निर्धारित करता है। जेल के भीतर मनोवैज्ञानिकों के कार्य एक चिकित्सक, पुनर्वास विशेषज्ञ आदि के रुप में होते है। मनोवैज्ञानिक व्यक्ति की जटिल इच्छाओं और अभिप्रेरणाओं को ठीक ढंग से समझकर पुलिस विभाग की मदद करते है। 

11. खेल-कूद का मनोविज्ञान

दूसरी ओर जटिल न्यायिक निर्णयों के विपरित मनोवैज्ञानिक शोधों का उपयोग ज्यादा सफलतापूर्वक किया जाता है। मनोवैज्ञानिक तथ्य एवं सिद्धांत, खेल-कूद के क्षेत्र में भी उपयोग किए जाते है। इस क्षेत्र में मनोवैज्ञानिकों के कुछ विशेष समस्याओं के अध्ययन में खेल-कूद में अधिक अभिरुचि वाले व्यक्ति, खेल-कूद से संबन्धित जोखिम व्यवहार को करने वाले व्यक्ति, खेल-खेलने वाले और खेल देखने वाले व्यक्ति के अभिप्रेरकों में अंतर आदि सम्मिलित होते है। मनोवैज्ञानिकों के गहन अध्ययनों द्वारा यह स्पष्ट हुआ है कि व्यक्ति की संगठनात्मक क्षमता को मजबूत बनाने हेतु खेल-कूद व्यवहार की अहम् भूमिका होती है। 

12. राजनीतिक मनोविज्ञान

मनोविज्ञान की इस क्षमता में राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों तथा सामान्य व्यक्तियों के व्यवहारों के बीच संबन्धों को ज्ञात कर उनका अध्ययन किया जाता है। इसमें मनोवैज्ञानिकों द्वारा राजनीतिक संबन्धों से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। शाखा में इन छुपी हुई मानव अभिप्रेरणाओं और इच्छाओं का अध्ययन होता है जो-राजनैतिक नेतृत्व, प्रभावशाली राजनैतिक रणनीतियाँ, राजनैतिक विद्रोह, दलबदली आदि से जुड़ी है। 

वृद्ध लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के अध्ययन हेतु मनोविज्ञान की इस शाखा को आज से 30 वर्ष पूर्व विकसित किया गया था। इस क्षेत्र में वृद्ध व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य के मूल्यांकन और उपचार की विधियां, वयस्क व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य के मूल्यांकन और उपचार की विधियों से कितनी भिन्न और कितनी समान होती है, इस पर विशेष रुप से अध्ययन होता है। इसमें व्यक्ति को आयु बढ़ने के साथ-साथ उसके मनोवैज्ञानिक कार्यों सामाजिक-आर्थिक स्तर, समूह सम्बन्ध, व्यक्तिगत एवं प्रजाजनी इतिहास पर जो प्रभाव पड़ता है, उसका भी अध्ययन किया जाता है। 

मनोवैज्ञानिकांें ने अध्ययनों में सुविधा को ध्यान में रखते हुए वृद्धावस्था को तीन भागों में बांटा है- कमसीन-वृद्ध 65 से 74 वर्ष की आयु के लोग, वृद्ध 75 से 85 वर्ष की आयु के लोग और पूरा वृद्ध 85 वर्ष से ऊपर की आयु के लोग। व्यक्ति की तैथिक आयु और कार्यात्मक आयु में स्पष्ट अंतर भी जरा मनोविज्ञान में किया जाता है। व्यक्ति के जन्म से लेकर आज तक के समय को तैथिक आयु कहा जाता है और इस शाखा द्वारा आयु को कार्यात्मक क्षमताओं का सही सूचक नहीं माना जाता है क्योंकि कुछ कम तैथिक आयु वाले व्यक्तियों की कार्यात्मक क्षमता अच्छी नहीं होती जबकि कुछ अधिक तैथिक आयु वाले व्यक्तियों में उत्तम कार्यक्षमता पाई जाती है। 

बिरेन तथा कन्निघम के अध्ययनों के अनुसार कार्यात्मक आयु द्वारा उम्र प्रभाव के तीन पहलुओं को प्रतिबिम्बित किया गया है- जैविक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पहलू। व्यक्ति के सामान्य जीवन अवधि के सन्दर्भ में उसके वर्तमान स्थिति का पता लगाने हेतु ‘जैविक बुद्धि’ का प्रयोग होता है। जैविक आयु का पता लगाने के लिए चिकित्सक व्यक्ति के अंगो की आत्म नियन्त्रण क्षमता का आकलन करते है यह आयु कम होने लगती है एवं वह मृत्यु के करीब पंहुचने लगता है। समाज के दूसरे व्यक्तियों की तुलना में एक व्यक्ति की आदत, भूमिकाएं और संबन्धित व्यवहार का पता सामाजिक आयु से ज्ञात होता है। व्यक्ति के सामाजिक आयु का पता उसकी पौशाक, भाषा और अन्तर्वेयक्तिक शैली से ज्ञात होता है। 

परिवर्तित वातावरण में व्यक्ति के समायोजन करने की क्षमता को मनोवैज्ञानिक आयु कहा जाता है। व्यक्ति के सकारात्मक कार्य, अभिप्रेरण और आत्म-सम्मान का प्रभाव आयु पर अधिक पड़ता है। 

13. सांस्कृतिक मनोविज्ञान

मनोविज्ञान की इस शाखा से तात्पर्य व्यक्ति के चिंतन व्यवहार और संवेग आदि को समझने में संस्कृति की भूमिका की व्याख्या करना है। विभिन्न संस्कृतियों के मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं की तुलना करते हुए सांस्कृतिक मनोवैज्ञानिक, अमुक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया किसी विशेष संस्कृति या सभी संस्कृतियों में होने के मूल उद्धेश्य को पूरा करते हैं। सांस्कृतिक तुलनाओं में शोध को बढ़ावा देने और मनोविज्ञान में संस्कृति की भूमिका से अवगत कराने में भी इन्टरनेशनल एसोसिएशन फाॅर क्रास कल्चरल साईकोलोजी की भूमिका अहम् होती है। 

14. महिलाओं के मनोविज्ञान 

मनोविज्ञान के इस क्षेत्र में उन महत्वाकांक्षाओं पर बल डाला जाता है जो महिलाओं के अध्ययन और उनके शोध को उन्नत बनाते है इस व्याख्या के अन्तर्गत महिलाओं के बारे में जो सूचनाएं प्राप्त होती है, उनका समाज और संस्थान में उपयोग कराने के लिए एक विश्वास के साथ समन्वित किया जाता है। 1973 में अमेरिकन मनोवैज्ञानिक संघ में महिलाओं के मनोविज्ञान के लिए एक अलग डिविज़न बनाया गया था। 

15. आर्थिक मनोविज्ञान

मनोविज्ञान के इस क्षेत्र में आर्थिक व्यवहार पूर्ववर्ती कारकों और उनके परिणामों के बारे में पूर्वकथन करने का प्रयास किया जाता है। इस क्षेत्र में अध्ययन करते समय, व्यक्ति का अर्थव्यवस्था पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है, जीवन के गुणवत्ता एवं कल्याण से सम्बन्धित चीजों के बारे में निर्णय लेते समय कौन सी मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं व्यक्ति के आर्थिक व्यवहार में सम्मिलित होती है आदि बातों पर प्रकाश डाला जाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार तीन प्रकार की प्रक्रियाओं के अध्ययन पर बल डाला जाता है जो हैः- 
  1. उपभोक्ताओं, उत्पादनकर्ताओं और अन्य नागरिकों के पीछे छिपे अन्य कारकों को पहचानना जैसे विश्वास, मूल्य, पसंद, उद्देश्य आदि। 
  2. उपभोक्ताओं, उत्पादनकर्ताओं और नागरिकों के द्वारा उनके आर्थिक व्यवहार का दूरदर्शिता, निर्णय और सरकारी नियम आदि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। 
  3. उपभोक्ता, नागरिकों और उत्पादनकर्ताओं के लक्ष्यों और आर्थिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि का अध्ययन किया जाता है। 
मनोविज्ञानी उपर्युक्त अध्ययनों को प्राप्त करने के लिए परिमाणात्मक आंकड़ंे और गुणात्मक आंकडे़ दोनों का संग्रहण करते है। परिमाणात्मक आंकड़ों को ज्ञात करने के लिए प्रश्नावली, सर्वे, व्यवहार रेटिंग्स, शब्दार्थ विभेदक आदि का उपयोग होता है, और गुणात्मक आंकड़ों को ज्ञात करने के लिए साक्षात्कार, सामूहिक चर्चा, प्रक्षेपी प्रविधि, शब्द साहचर्य परीक्षणों आदि का उपयोग होता है। जिसके पश्चात, उनका विश्लेषण कर किसी अन्तिम निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। 

16. यातायात तथा परिवहन मनोविज्ञान

यातायात तथा परिवहन में लगे व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है। इसमें अन्य बातों के अलावा कई पहलुओं पर अधिक बल डाला गया है जैसे दुर्घटनाओं पर रोकथाम, चालन निष्पादन की प्रभावशीलता आदि। इस तरह के लक्ष्य को पूरा करने के लिए पेशेवर चालकों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है। दुनिया का एक मात्र देश है स्पेन जहां पेशेवर चालकों को, चालान लाइसेंस देने या पुराने चालान लाइसेंस का पुर्नचलन करने में व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक परीक्षण से गुजरना अनिवार्य है। इस क्षेत्र में यातायात सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव जैसे थकान, सांवेगिक अवस्था, उनींदायन अल्कोहल एवं तम्बाकू उपयोग औषध व्यसन आदि का भी अध्ययन किया जाता है। 

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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