मौखिक अभिव्यक्ति शिक्षण : अर्थ महत्व, उद्देश्य और विशेषताएँ

मानव प्रधानतः अपनी अनुभूतियों तथा मनोवेगों की अभिव्यक्ति उच्चरित अथवा मौखिक भाषा में ही करता है प्रिय छात्रो! लिखित भाषा तो गौण तथा उसकी प्रतिनिधि मात्रा है, क्योंकि भावों की अभिव्यक्ति का साधन साधारणतः उच्चरित भाषा ही होती है। भावों के आदान-प्रदान का एक ही साधन है- भाव या वाणी।

आधुनिक जनतांत्रिक युग में जीवन की सफलता के लिए मौखिक भाव-प्रकाशन या वाणी उतना ही आवश्यक और अनिवार्य है जितना कि स्वयं हमारा जीवन। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को प्रतिपल मौखिक आत्माभिव्यक्ति की शरण लेनी पड़ती है।

मौखिक अभिव्यक्ति का अर्थ

मनुष्य सामाजिक प्राणी है, एकान्तवासी साधक नहीं। अतः उसे प्रति क्षण प्रत्येक पग पर समाज में अपनी स्थिति बनाये रखने के लिए सभी प्रकार के मनुष्यों से व्यवहार करना पड़ता है। अपनी जीविकापार्जन तथा उसके साधनों की उपलब्धि के लिए, विभिन्न क्रिया-प्रतिक्रियाओं के लिए वाणी की सहायता लेनी पड़ती है। इसके साथ ही, प्राणीजगत की यह प्रवृत्ति है, कि वह अपने भावों, अन्र्तद्वन्द्वों तथा उद्वेगों को दूसरों पर प्रकट करना चाहता है, तथा दूसरांे की प्रकृति, आदतों, विचारों को जानने का इच्छुक रहता है। सम्प्रेषण के माध्यम के रूप में मौखिक ढंग से भाषा का व्यवहार मानव की अपनी विशेषता है।

अन्य जीवों में जटिल मानसिक क्रियाओं का अभाव है। अतः भाषा के प्रतीकात्मक व्यवहार में वे अक्षम हैं। विभिन्न प्रकार की जटिल मानसिक प्रक्रियाएं परोक्ष रूप से प्रत्येक भाषायी व्यवहार में अन्तर्निहित रहती है, जिसका केवल अनुमान लगाया जा सकता है।

मौखिक अभिव्यक्ति का महत्व

  1. मौखिक भाषा ही अभिव्यक्ति का सहज व सरलतम माध्यम है। 
  2. भाषा की शिक्षा मौखिक भाषा से प्रारम्भ होती है। 
  3. मौखिक अभिव्यक्ति में अनुकरण और अभ्यास के अवसर बराबर मिलते रहते हैं। 
  4. मौखिक भाषा के प्रयोग में कुशल व्यक्ति, अपनी वाणी से जादु जगा सकता है, लोकप्रिय नेताओं के भाषण इसी बात का प्रमाण है। 
  5. मौखिक भाषा के द्वारा विचारों के आदान-प्रदान से नई-नई जानकारियाँ मिलती है। 
  6. अशिक्षित व्यक्ति बोलचाल के द्वारा ही ज्ञान-अर्जित करता है। 
  7. रोजमर्रा के कार्यकलापों में मौखिक भाषा प्रयुक्त होती है। 
  8. सामाजिक सम्बन्धों के सुदृढ़ बनाने में एवं सामाजिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने में मौखिक भाषा की प्रमुख भूमिका होती है।

मौखिक अभिव्यक्ति की विशेषताएं

  1. स्वाभाविकताः बोलने में स्वाभाविकता हो, बनावटी बोली का प्रयोग हास्यास्पद हो सकता है। अस्वाभाविक भाषा वक्ता को अविश्वसनीय बना देती है। स्वाभाविक भाषा विश्वसनीय होती है। 
  2. स्पष्टताः मौखिक अभिव्यक्ति का दूसरा गुण है- स्पष्टता। बोलने में स्पष्टता होना अति आवश्यक है। जो बात कही जाए वह स्पष्ट व साफ होनी चाहिए। 
  3. शुद्धताः बोलते समय शुद्ध उच्चारण होना चाहिए अशुद्ध उच्चारण से अर्थ का अनर्थ हो जाता है। 
  4. बोधगम्यः मौखिक अभिव्यक्ति में सरल व सुबोध भाषा का प्रयोग करना चाहिए। 
  5. सर्वमान्य भाषाः मौखिक भाव-प्रकाशन में सर्वमान्य भाषा का प्रयोग करना चाहिए। अप्रचलित शब्दों के प्रयोग से वार्तालाप नीरस हो जाता है। 
  6. शिष्टताः वार्तालाप करते समय शिष्टाचार का ध्यान रखना चाहिए। अशिष्टता सम्बन्धों को बिगाड़ देती है। शिष्टता मौखिक भाव-प्रकाशन का एक अन्य गुण है। 
  7. मधुरताः मौखिक भाव प्रकाशन का अन्य गुण है मधुरता। कहा भी गया है- ‘कोयल काको देत है कागा काको लेत, वाणी के कारणेन मन सबको हर लेत।’ मीठी वाणी का प्रयोग कर मनुष्य किसी (दुश्मन) को भी अपना बना सकता है। 
  8. प्रवाहमयताः विराम चिन्हों के उचित प्रयोग से अभिव्यक्ति में सम्यक् गति आ जाती है। अतः मौखिक भाव-प्रकाशन में उचित प्रवाहमयता होनी चाहिए। 
  9. अवसरानुकूलः मौखिक भाव-प्रकाशन की अन्य विशेषता है अवसरानुकूल भाषा का प्रयोग। हर्ष, उल्लास, सुख दुःख, दया, करूणा, सहानुभूति प्यार आदि भावों को अवसर के अनुकूल व्यक्त करते हैं। 
  10. श्रोताओं के अनुकूल भाषाः मौखिक अभिव्यक्ति की अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि सुनने वाले कौन है, किसस्तर के हैं, के अनुकूल ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

मौखिक अभिव्यक्ति कौशल की शिक्षण विधियाँ

मौखिक कार्य ही भाव शिक्षण का प्रमुख आधार है। मौखिक भाषा के बिना सीखना व सिखाना दोनों ही असम्भव कार्य है। इसके लिए शिक्षक निम्नांकित शिक्षण-विधियों का प्रयोग करता है- 

1. वार्तालापः शिक्षण सामग्री या पाठ्य विषय पढ़ाते हुए या अन्य मौकों पर छात्रों के साथ अध्यापक वार्तालाप करते हैं। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह प्रत्येक छात्रा को वार्तालाप में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। वार्तालाप का विषय छात्रों के मानसिक, बौद्धिक स्तर के भीतर ही होनी चाहिए। 

2. सस्वर वाचनः पाठ पढ़ाते समय पहले शिक्षक को स्वयं आदर्श वाचन करना चाहिए, बाद में कक्षा के छात्रों से अनुकरण वाचन या सस्वर वाचन कराना चाहिए। सस्वर वाचन करने से छात्रों की झिझक, व संकोच खत्म होता है। 

3. प्रश्नोत्तरः सामान्य विषयों पर या पाठ्य-पुस्तकों से सम्बन्धित पाठों पर प्रश्न पूछने चाहिए। अगर छात्रों का उत्तर अपूर्ण या अशुद्ध है तो सहानुभूति पूर्ण ढंग से उत्तर को पूर्ण व शुद्ध कराया जाये। 

4. कहानी सुनानाः मौखिक भाव-प्रकाशन विकसित करने की एक विधि कहानी सुनाना भी है। छोटे बच्चे कहानियां सुनना पसन्द करते हैं। अतः अध्यापक को पहले स्वयं कहानी सुनानी चाहिए। बाद में छात्रों से कहानी सुननी चाहिए। 

5. चित्र-वर्णनः प्रायः छोटी कक्षाओं के बच्चे चित्र देखने में रूचि लेते हैं। उदाहरणार्थ ‘गाय’ का चित्र दिखा कर गायों के बारे में छात्रों से पूछा जा सकता है व छात्रों को बताया जाता है। इसी प्रकार चित्र की सहायता से कहानी भी सुनायी जा सकती है। 

6. कविता सुनना व सुनानाः छोटे बच्चे कविता या बालोचित गीत सुनाने व सुनने में काफी रूचि लेते हैं अतः कविताएं कंठस्थ कराके उन्हें कविता पाठ के लिए प्रेरित करना चाहिए। अतः कविता पाठ मौखिक भाव-प्रकाशन की शिक्षा देने का अन्य उपयोगी साधन है। 

7. वाद-विवादः बालकों के मानसिक स्तर व बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखकर वाद-विवाद करवाया जा सकता है। अपने विचारों का तर्कपूर्ण प्रतिपादन करने का प्रशिक्षण देने के लिए वाद-विवाद एक उत्तम साधन है। 

8. सत्संगः सत्संग का हमारे मौखिक भाव-प्रकाशन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। साधारणतः बालक जैसे वातावरण में रहेगा। उसका इसी प्रकार का भाव प्रकाशन होगा। 

9. पाठ का सारः पाठ्य-पुस्तक के किसी पाठ या रचना को पढ़ कर छात्रा से उस पाठ का सार सुनना मौखिक अभिव्यक्ति का अन्य उपयोगी साधन है। 

10. भाषणः ‘भाषण’ भाव-प्रकाशन का एक सशक्त साधन है परन्तु ‘भाषण’ छात्रों के मानसिक एवं बौद्धिक स्तर के अनुकूल होना चाहिए। 

11. नाटक-प्रयोगः नाटक द्वारा भावभिव्यक्ति का अच्छा अभ्यास हो जाता है। रंगशाला में बालक को आंगिक वाचिक एवं भावों के अभिनय की दीक्षा सफलतापूर्वक मिल सकती है। 

12. स्वतंत्र आत्मप्रकशनः बालकों को विभिन्न घटनाओं दृश्यों या व्यक्तिगत जीवन से जुड़े अनुभव सुनाने का अवसर देकर अध्यापक मौखिक भाषा का अभ्यास करा सकता है।

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