प्रकार्यवाद का शिक्षा में योगदान

प्रकार्यवाद इस विचारधारा का विकास अमेरिका में (1842-1910) हुआ। इसका विकास संरचनावादी सम्प्रदाय की प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ। इस विचारधारा पर डारविन के विकासवादी सिद्धन्त का प्रभाव है। प्रकार्यवाद को वास्तविक स्वरूप जाॅन डीवी और रोनेल्ड एंजिल ने दिया। इसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि प्रयोजनवाद है। इस वाद का आधार क्यों और कैसे है? 

इस सम्बन्ध् में वुडवर्थ महोदय का विचार है- एक मनोविज्ञान जो इस प्रश्न पर मनुष्य क्या करते है? का सही और व्यवस्थित उत्तर देता है और आगे के प्रश्नों, किस प्रकार वे उसे करते हैं? और क्यों वे उसे करते है? का भी उत्तर देता है, प्रकार्यवाद सम्प्रदाय कहलाता है। 

मनोविज्ञान में ज्ञान संकल्प तथा क्रिया का समावेश प्रकार्यात्मवाद के कारण हुआ। यह विचारधारा मन की शक्तियों की गत्यात्मकता पर बल देती है। प्रकार्यवाद सम्प्रदाय का प्रसार विभिन्न देशों में मनोवैज्ञानिकों द्वारा हुआ। इसके प्रमुख सम्प्रदाय निम्नांकित हैं- शिकागो सम्प्रदाय- इसमें जाॅन डीवी, जेम्स रोनेल्ड एंजिल और हार्बेकर के नाम विशेष उल्लेखनीय है। जाॅन डीवी ने मनोविज्ञान के क्षेत्र में मन और बुद्धि की उपयोगिता पर विशेष बल दिया। इन्होंने समस्या समाधान में किस प्रकार चिन्तन प्रक्रिया कार्य करती है-इस पर भली-भाँति प्रकाश डाला। 

जाॅन डीवी ने अपने एक लेख ‘रिपफलेक्स आर कानसेप्ट आफ साइकोलाॅजी, में इस बात पर बल दिया है कि मानसिक कार्यों में निरन्तरता होती है। वे बिना एक क्षण भी रुके होती रहती हैं। उन्होंने उद्दीपन और अनुक्रिया में पृथकता और सम्बन्धें की खोज की है। उद्दीपन और अनुक्रिया दो अलग वस्तुएँ नहीं हैं। मानव के समस्त मानसिक कार्य का कोई उद्देश्य या प्रयोजन होता है। इन्होंने संरचनावाद की तरह मन और चेतना को मानसिक तत्वों का योग नहीं माना, बल्कि मानसिक त्तवों के प्रकार्य पर बल दिया। इसीलिए उन्होंने मानसिक प्रकार्य पर बल दिया है।

जेम्स रोनेल्ड एंजिल-इन्होंने प्रकार्यवाद की स्पष्ट व्याख्या की है। इनके अनुसार संरचनावाद का सम्बन्ध् जहाँ ‘तत्व’ या ‘वस्तु’ से है वहाँ प्रकार्यवाद का सम्बन्ध् ‘प्रक्रिया’ से है। इनके अनुसार मानसिक प्रक्रियाओं का स्वरूप क्या है और ये किस प्रकार कार्य करती हैं इनकी जानकारी पर बल देते हैं। मानसिक प्रकार्य परिस्थितियों के अनुरूप सम्पादित होते है। मन और शरीर दोनों संयुक्त रूप से क्रियाशील होते हैं और प्राणी को अपने पर्यावरण से समायोजन करने में सहायता देते हैं। सभी मानसिक क्रियाएँ मन और शरीर के सम्मलित प्रयास और योग पर निर्भर हैं। प्रकार्यवाद मन और शरीर को दो भिन्न वस्तुओं के रूप में नहीं स्वीकार करता। हार्वेकार ने मनोविज्ञान को मानसिक क्रियाओं का विज्ञान बताया है। प्रकार्यवादी मनोविज्ञान का विषय ‘क्यों’ और ‘कैसे’ है।

कोलम्बिया सम्प्रदाय- इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक कोलम्बिया विश्वविद्यालय के जेम्स कैटल, एडवर्ड थर्नडाइक और राबर्ट वुडवर्थ थे। कैटल ने साहचर्य, प्रत्यक्ष ज्ञान और मनोभौतिकी पर कार्य किया। थार्नडाइक ने बुद्धिमापन और अध्गिम प्रक्रिया पर कार्य किया। राबर्ट वुडवर्थ ने ‘समकालीन मनोवैज्ञानिक सम्प्रदाय’ पुस्तक लिखकर ख्याति प्राप्त की। इन्होंने अपने विभिन्न प्रयोगों के आधार पर प्रयोगात्मक मनोविज्ञान पर भी पुस्तक लिखी। प्रकार्यवाद में समंजन पर बल देने के कारण गत्यात्मक मनोविज्ञान का विकास हुआ। इन्होंने व्यवहार में प्रेरणा को महत्व दिया। प्रकार्यवाद ने जो पशुओं की बुद्धि और व्यवहार का अध्ययन किया उसके आधार पर ‘व्यवहारवाद’ नामक मनोवैज्ञानिक सम्प्रदाय का उदय हुआ।

प्रकार्यवाद का शिक्षा में योगदान

शिक्षा के क्षेत्र में इस सम्प्रदाय की प्रमुख देन इस प्रकार है- 
  1. इस विचारधारा ने अधिगम प्रक्रिया में पर्यावरण और समायोजन पर बल दिया। 
  2. इस सम्प्रदाय के लोगों के द्वारा वैयक्तिक भिन्नता, अधिगम, बुद्धि, समायोजन, परीक्षण व मूल्यांकन आदि के क्षेत्रों में बहुत से शोधकार्य हुए जिसका प्रभाव शिक्षा पर पड़ा। 
  3. इस विचारधारा ने शिक्षा प्रक्रिया में बालक को महत्व देते हुए बाल मनोविज्ञान के विकास में योगदान किया। 
  4. विभिन्न आयु स्तर के बालकों की शिक्षा में उनकी आवश्यकताओं को समझने पर बल दिया। 
  5. इसने शिक्षा में उपयोगिता के सि(ान्त को जन्म दिया। पाठ्यक्रम में उन्हीं विषयों को महत्व दिया जो व्यक्ति और समाज के लिए उपयोगी हों। 
  6. इसने मन और शरीर की संयुक्त (एक साथ) क्रियाशीलता पर बल दिया। उनका विचार था कि मन के बिना शरीर और शरीर के बिना मन का अध्ययन अधूरा है। मन और शरीर दोनों एक साथ क्रिया करते है। 
इसी कारण अध्ययन विधि के रूप में तीन रीतियों पर शोर दिया-
  1. दैहिक रीति-इसमें प्रत्येक क्रिया के दैहिक आधार का अध्ययन करने का प्रयास किया गया। 
  2. विभिन्न अवस्थाओं में अध्ययन रीति-इसमें विभिन्न अवस्थाओं में प्राणी का निरीक्षण किया जाता है। 
  3.  अन्तर्दर्शन विधि।

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