पूंजी बजटन क्या है? पूंजी बजटन की विशेषतायें बताते हुए इसके उद्देश्यों का वर्णन।

पूंजी बजटन प्रबंध की वह तकनीक है जिसके अनतर्गत पूंजीगत व्यय का इस प्रकार नियोजन होता है जिससे इन व्ययों के उद्देश्य को सरलता पूर्वक प्राप्त किया जा सके। इसके अन्तर्गत पूंजीगत पूंजी विनियोग के समस्त अवसरों एवं विकल्पों का विश्लेषण कर सर्वश्रेष्ठ विकल्प/अवसर का चुनाव किया जाता है।

पूंजी बजटनः अर्थ व परिभाषाएँ

पूंजी बजटन में दो शब्द हैं पूंजी और बजटन। पूंजी व्यवसाय के थोडे़ से आर्थिक स्रोतों के बारे में बताती है और बजटन वह विस्तारित वित्तीय। आंकडे़ योजना है जो भविष्य की गतिविधियों का इस प्रकार मार्गदर्शन करती है ताकि मूल्य अधिकतम का उद्देश्य प्राप्त किया जा सके। इसलिए पूंजी बजटन उस योजना से सम्बन्धित हैं जिसके अनुसार उपलब्ध पूंजी को स्थिर लम्बी अवधि की सम्पत्तियों में निवेशित किया जाता है ताकि फर्म को अधिकतम लाभ हो।

पूंजी बजटन को हैम्पटन द्वारा इस तरह परिभाषित किया गया है, ‘‘वह निर्णय लेने की विधि जिसके द्वारा फर्म मुख्य स्थिर सम्पत्तियों जिसमें बिल्ंिडग मशीनरी और औजार भी शामिल हैं कि खरीद का मूल्यांकन करती है।‘‘ यह मानते हुए कि भविष्य में इन वर्षों पर लाभों का बहाव होगा यह उन निर्णयों से सम्बन्धित है जिसमें यह निर्णय लिया जाता है कि किस प्रकार चालू पैसों को लम्बी अवधि की सम्पत्तियों में सुरूचिपूर्वक निवेशित किया जाए। लम्बी अवधि की सम्पत्तियों वह सम्पत्तियां हैं जो कि व्यवसाय के कार्य को चलाने के लिए आवश्यक हैं और एक साल से ज्यादा अवधि के लिए आय अर्जित करती हैं। पूंजी बजटन निर्णय उन निर्णयों से सम्बन्धित हैं एक साल से ज्यादा अवधि के भाविष्य में होने वाले लाभों के कारण रोकड़ स्त्रोतों का विनियोग किया जाता है। यह लाभ या तो अधिकतर राजस्व या कम लागतों के रूप में होते हैं।

पूंजी बजटन एक प्रबन्ध तकनीक है जिसका प्रस्तावित पूंजी व्ययों एवं उनके अर्थ-प्रबन्धन पर विचार करने तथा उपलब्ध साधनों से सर्वोŸाम विनियोजन की योजना बनाने तथा उसे क्रियान्वित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। 

इसकी कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्न प्रकार हैं:-

आर.एम. लिंच के अनुसार - ’’पूंजी व्यय बजटन उपलब्ध पूंजी के विकास के नियोजन से सम्बन्धित है, जिसका फर्म की दीर्घकालीन लाभदायकता को अधिकतम करने के लिए प्रयोग किया जाता है।’’

आर.एन. एन्थोनी के अनुसार - ’’पूंजी बजटन प्रबन्ध द्वारा विश्वास की गई उचित परियोजनाओं के लिए मांगी गई नई पूंजी सम्पत्तियों की सूची है जिसमें परियोजना की अनुमानित लागत भी दी हुई होती है।’’

मिल्टन एच. स्पेन्सर के शब्दों में - ’’पूंजी बजटन सम्पत्तियों के लिए व्ययों का नियोजन है जिनसे भावी अवधियों में प्रत्यायें प्राप्त होगी।’’

इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पूंजी बजटन वह प्रबन्धकीय तकनीक है, जिसके द्वारा फर्म के दीर्घकालीन लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से विभिन्न विनियोग प्रस्तावों के उद्भव, मूल्यांकन, निर्णयन अनुवर्तन संबंधी प्रक्रिया पूर्ण की जाती है।

पूंजी बजटन की विशेषताएं

पूंजी बजटन निर्णय व्यवसाय के सामान्य निर्णयों से भिन्न होते हैं और ये निर्णय व्यवसाय के साथ-साथ निवेशकर्Ÿााओं के भविष्य को भी प्रभावित करते हैं। पूंजी बजटन की मुख्य चरित्रिक विशेषताएं इस प्रकार हैं-
  1. भविष्य के लाभों के चालू फण्डांे की अदला बदली।
  2. लम्बी अवधि की सम्पत्तियों में पूंजी लगाना।
  3. भाविष्य लाभ भविष्य में कई सालों तक होते रहेंगे।
  4. भविष्य लाभों के सम्बन्ध में उच्च मात्रा का संकट होता है।
  5. फण्डों के विनियोग और आशा अनुसार प्रत्याय में लम्बी अवधि होती है।
1. बड़े कोषों का विनियोग : पूंजी बजटन निर्णयों के तहत् संस्थानों की विशाल योजनाओं में बड़े कोषों का विनियोग किया जाता है। इस तकनीक के माध्यम से बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के बारे में निर्णय किये जाते हैं कि उन्हें लागू करना है या नहीं, अतः कोषों का कुशल बजटन आवश्यक है।

2. भावी पूंजी निवेश योजनाओं का अध्ययन : पूंजी बजटन प्रक्रिया के अन्तर्गत संस्था की विभिन्न भावी निवेश योजनाओं का विस्तृत एवं गहन अध्ययन किया जाता है जिससे यह निर्णय किया जा सकता है कि कौन सी परियोजना कितनी लाभदायक है।

3. तुलनात्मक विश्लेषण : पूंजी बजटन की दूसरी विशेषता यह है कि इस प्रक्रिया के अन्तर्गत भावी निवेश की विभिन्न योजनाओं की लागतों एवं संभावित लाभों का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता है। इसके अन्तर्गत यह भी देखा जाता है कि किस-किस योजना को क्रियान्वित करने में कितना-कितना समय लगेगा।

4. निर्णय करना - सभी परियोजनाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के पश्चात् यह निर्णय किया जाता है कि कौन सी परियोजना में विनियोजन करना है। चूँकि यह निर्णय दीर्घकाल तक प्रभाव डालता है, अतः परियोजना की लागत, उपलब्ध संसाधनों की मात्रा, भावी लाभ की संभावना आदि बातों पर गहराई से विचार करके ही निर्णय लिया जाना चाहिए।

5. निर्णय अपरिवर्तनीय  - व्यावसायिक संस्थान में पूंजी बजटन सम्बन्धी निर्णय प्रायः अपरिवर्तनीय होते हैं। एक बार पूंजी विनियोजन योजना लागू करने के बाद उसमें परिवर्तन करना संभव नहीं हो पाता है। अतः पूंजीगत विनियोग के संबंध में विवेकपूर्ण निर्णय लेना अत्यन्त आवश्यक है।

6. लाभदायकता पर दीर्घकालीन प्रभाव - पूंजी बजटन निर्णयों का व्यावसायिक संस्था की लाभदायकता पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है। अतः विशाल कोषों का विनियोग पूंजी बजटन तकनीक को ध्यान में रखकर दीर्घकालीन लाभ के लिये किया जाना चाहिए।

पूंजी बजटन के उद्देश्य व आवश्यकता

पूंजीगत सम्पत्तियों में विनियोग एक बहुत ही महत्वपूर्ण परन्तु कठिन समस्या है। बजटन स्वयं में एक आवश्यक यन्त्र है। परन्तु पूंजीगत सम्पत्तियों के बजटन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से और भी अधिक हो जाती है:-

1. तुलनात्मक रूप से अधिक लागत - पूंजीगत परियोजनाओं में बहुत अधिक धन का विनियोग होता है। अतः उनका कुशल बजटन आवश्यक है।

2. दीर्घकालीन प्रभाव - पूंजीगत परियोजनायें व्यवसाय के आगामी कई वर्षों की अर्जनों को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए श्रम के स्थान पर मशीन के प्रतिस्थापन से व्यवसाय की स्थिर लागतें बढ़ जाती हैं।

3. स्थायी विनियोग - पूंजीगत परियोजनाओं में विनियोजित धन एक स्थायी विनियोग है। बिना महत्वपूर्ण हानि के इनसे धन तुरन्त वापिस नहीं लिया जा सकता है।

4. लाभप्रदता व वित्तीय स्थिति पर प्रभाव पड़ना  - पूंजीगत विनियोगों से संस्था की लाभप्रदता तथा वित्तीय स्थिति तुरन्त प्रभावित होती है तथा प्रबन्ध अपनी संस्था के वित्तीय लोच के लिए भावी घटनाओं पर आश्रित हो जाता है। अतः ये विनियोग बड़ी सावधानी से करने चाहियें।

5. अनिश्चितता व जोखिम  - दीर्घकालीन विनियोग निर्णयों की पेचीदगियाँ अल्पकालीन निर्णयों से अधिक विस्तृत होती हैं क्योंकि एक तो इन निर्णयों का प्रभाव चालू वर्ष से भी आगे तक रहता है और इनकी शुद्धता का तुरन्त सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। दूसरे, इन परियोजनाओं का प्रभाव आगामी बहुत वर्षों तक रहने के कारण इनमें अनिश्चितता व जोखिम भी अधिक होती है।

उपर्युक्त कारणों से यह आवश्यक हो जाता है कि पूंजीगत व्ययों को करने या न करने के बारे में निर्णय लेने से पूर्व उपलब्ध विकल्पों का सम्यक विश्लेषक एवं सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाये। इस महत्वपूर्ण दायित्व के निर्वाह हेतु अपनाई जाने वाली तकनीक को वित्तीय प्रबंध में पूंजी बजटन कहा जाता है।

पूंजी बजटन के उद्देश्य

व्यावसायिक संस्थानों में पूंजी बजटन निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किया जाता है:-

1. पूंजी व्यय परियोजना का मूल्यांकन - पूंजी बजटन का प्रमुख उद्देश्य संस्थान के समक्ष उपलब्ध विभिन्न प्रस्तावित पूंजी व्यय परियोजनाओं का मूल्यांकन करना है, जिससे लाभप्रद परियोजना के चयन का कार्य सरल हो जाता है।

2. प्राथमिकता निर्धारित करना - पूंजी बजटन तकनीक अपनाने पर विभिन्न परियोजनाओं को उनकी सही लाभप्रदता का क्रम में विन्यासित किया जाता है। इससे प्रबन्ध को परियोजनाओं के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होने के साथ-साथ उनकी संस्थान में उपयोगिता व लाभदायकता के क्रम की जानकारी मिल जाती है।

3. समन्वय  - बड़े संस्थान के अन्तर्गत कार्य अनेक विभागों में विभाजित किया जाता है, किन्तु प्रभावी नियंत्रण हेतु इनके मध्य समन्वय बनाये रखना अति आवश्यक होता है। पूंजी बजटन के माध्यम से विभिन्न विभागों के पूंजी व्यय में संतुलन स्थापित किया जा सकता है।

4. पूंजी व्ययों पर प्रभावी नियन्त्रण - पूंजी बजटन में भी अन्य बजटों के समान ही परियोजना पर किये जाने वाले व्ययों के लिए बजट का निर्माण किया जाता है, जिससे विभिन्न विभागों द्वारा किये जाने वाले पूंजी व्ययों पर नियंत्रण किया जा सकता है। इसमें भी वास्तविक व्ययों की पूर्व निर्धारित व्ययों से तुलना करके इन पर प्रभावकारी नियंत्रण रखा जा सकता है।

5. पूंजी व्ययों के लिए वित्त व्यवस्था - पूंजी बजटन से प्रबन्ध को इस बात की पहले से जानकारी हो जाती है कि कब कितनी राशि का पूंजी विनियोजन करना होगा। जिससे संस्था के प्रबन्धक समय पर उस राशि के लिए उचित व्यवस्था भी कर सकते हैं।

6. भूतकालीन निर्णयों का विश्लेषण : पूंजी बजटन के तहत् गत अवधि में लिये गये निर्णयों का विश्लेषण करके यह पता लगाया जा सकता है कि वे निर्णय कहाँ तक उपयुक्त थे।

7. भावी हानियों से सुरक्षा : पूंजी बजटन में प्रत्येक पूंजीगत व्यय का विस्तृत अध्ययन होने से जोखिमों एवं अनिश्चितताओं की पूर्व में जानकारी हो जाती है। इससे सुरक्षात्मक कदम उठाकर भावी हानियों से बचा जा सकता है।

8. स्थायी सम्पत्तियों का मूल्यांकन - पूंजी बजटन के माध्यम से स्थायी सम्पत्तियों का समय-समय पर मूल्यांकन होता है, जिससे कम्पनी के चिट्ठे में इन्हें बताने में सुविधा रहती है।

पूंजी बजटन की महत्ता

पूंजी बजटन एक महत्वपूर्ण गतिविधि है क्योंकि यह फर्म के सीमित स्त्रोतों को प्रतियोगी विनियोग कार्यों में विनियोगित करती है। किसी व्यवसाय की सफलता या असफलता बहुत हद तक कार्यालय में रही पूंजी बजटन के स्तर पर निर्भर करती है। निम्नलिखित कारणों के कारण पूंजी बजटन एक बहुत ही महत्वपूर्ण गतिविधि बन गया है।

1. अधिक व्यय- लम्बी अवधि की सम्पत्तियों को ग्रहण करने के लिए बहुत अधिक पैसे की आवश्यकता होती है इसलिए फर्म को अपने विनियोग प्रोग्रामों की योजना बहुत ध्यानपूर्वक बनानी चाहिए। व्यवसाय में पूंजी बजटन में एक भी त्रुटि बहुत खतरनाक साबित हो सकती है। इतना बड़ा व्यय खुद ही पूंजी बजटन की महत्ता को शामिल करता है।

2. संकट - स्थिर सम्पत्तियों में विनियोग फर्म की संकट स्थिति को बदलती है। नई ओर बेहतर स्थिर सम्पत्तियों में विनयोग जहां एक ओर बढ़ती योग्यता के कारण सम्पूर्ण आय को बढ़ाता है वहीं दूसरी ओर संकट को भी बढ़ाता है। यह इसलिए होता है कि स्थिर सम्पत्तियों में बढ़ते विनियोग के कारण स्थिर लागतों में भी बढ़ौतरी होती है। अगर स्थाई सम्पत्तियों का प्रयोग पूर्ण रूप से नहीं हो पाता तो लाभों में गिरावट आती है।

3. लम्बी अवधि - पूंजी बजटन के निर्णयों का प्रभाव भविष्य में कई वर्षों तक फर्म अनुभव करती रहती है। भविष्य की अनिश्चितताओं के कारण पूंजी कार्यो से मिलने वाले लाभों का निर्धारण आसानी से नहीं हो सकता। प्रतियोगी पूंजी कार्यों के भविष्य के लाभों का अनुमान लगाने के लिए अधिक मेहनत और घ्यान की आवश्यता है। 

4. उन्नति/वृद्धि - पूंजी बजटन विधि का फर्म के वृद्धि दर और दिशा पर निर्णयक प्रभाव होता है। सही पूंजी बजटन निर्णय फर्म की सही दिशा में वृद्धि को सुविधाजनक बनता है। दूसरी तरफ गलत निर्णय फर्म को चलाए रखने के लिए हानिकारक साबित होते हैं।

5. अपरिवर्तनीयता - स्थिर सम्पत्तियों में विनियोग अपरिवर्तनीय है। एक बार ग्रहण की गई स्थाई सम्पत्तियों को बेचना बहुत मुश्किल है। अगर स्थाई सम्पत्तियों को बेच भी दिया जाता है तो भी फर्म को भारी हानि उठानी पड़ती है।

6. जटिलता - पूंजी बजटन निर्णय बहुत कठिन निर्णय होते हैं। इन निर्णयों में भविष्य की स्थितियों पर भविष्यवाणी करनी होती हैं ताकि विभिन्न पूंजी कार्य से मिलने वाले भविष्य रोकड़ बहावों का अनुमान लगाना जा सके। भविष्य स्थितियों और आशान्वित रोकड़ बहावों में अनिश्तिता, अनिश्चित आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और तकनीकी बहावों के कारण होती है।

पूंजी बजटन निर्णयों के प्रकार

फर्म अपनी पूंजी बजटन विधि में विभिन्न प्रकार के विनियोग प्रस्तावों को शामिल कर सकती है। कुछ महत्वपूर्ण विनियोग प्रकार इस प्रकार हैं। 

1. विस्तार - विस्तार का अर्थ है कि वर्तमान उत्पादनों पर अतिरिक्त उत्पादन सुविधाएं देकर कार्य के आकार को बढ़ाना । विस्तार की आवश्यकता तब पड़ती है जब फर्म के उत्पादन की मांग बहुत अधिक हो और वर्तमान उत्पादन सुविधाएं अपर्याप्त हों।

2. प्रतिस्थापना और नवीनीकरण - क्योंकि स्थाई सम्पत्तियों का प्रयोग होता है इसलिए वह घिस जाती हैं या तकनीक में बदलाव के कारण बेकार हो जाती हैं। प्रतिस्थापना और नवीनकरण का मुख्य उद्देश्य कार्य में क्षमता को बढ़ाना और लागत की बचत करना है। अगर घिसी हुई या बेकार सम्पत्तियों का प्रयोग किया जाएगा तो इसका नतीजा यह होगा कि क्षमता कम होगी और लागत बढ़ेगी। इसलिए फर्म को यह निर्णय अवश्य ही लेना चाहिए कि बेकार सम्पत्त्यिों की जगह नही सम्पत्तिया लेगी ताकि फर्म का कार्य पूर्ण आर्थिकता से किया जा सके। प्रतिस्थापना और नवीनकरण ज्यादा आर्थिक और क्षमतापूर्ण सम्पत्तियांें के परिचय में सहायक होते हैं इसलिए इन्हें लागत कम करने के लिए विनियोग भी कहा जाता है।

3. बढ़ौतरी - बढ़ौतरी का अर्थ होता है कि बाजार में कार्य करने की जगह कई बाज़ारों में कार्य करना। बढ़ौतरी में यह कार्य भी शामिल है कि वर्तमान उत्पादनों में कई नए उत्पादन जोड़ना। इसका उद्देश्य ज्यादा बाज़ारों में कार्य कर और ज्यादा उत्पादनों के साथ सम्बन्ध रख कर संकट को कम करना होता है। वह फर्में जो नए बाज़ारों में प्रवेश करना चाहती हैं या अपने उत्पादन को बदलना चाहती है उन्हें नये कार्या को सम्भालने के लिए नई मशीनरी की खरीद और सुविधाओं के प्रस्तावों पर ध्यान रखना होगा।

4. अनुसन्धान और निर्माण - वह फर्में जहां तकनीक शीघ्रता से बदलती है उसमें अनुसन्धान और निर्माण पर व्यय आवश्यक है। तकनीक में परिवर्तन के कारण उपस्थित उत्पादन बेकार हो जाते हैं और नए उत्पादनों के अनुसन्धान और निर्माण की आवश्यकता होती है। सामान्यतः इनके लिए बहुत बड़ी रकम चाहिए होती है जिसके कारण पूंजी बजटन निर्णय लेने पड़ते हैं।

5. सामाजिक लक्ष्यों पर पूंजी व्यय - फर्म को अपनी सामाजिक जि़म्मेवारियों को पूरा करने के लिए भी पूंजी व्यय करना पड़ता है। यह खर्च सीधे तौर पर लाभ लक्ष्य को पूरा करने में सहायक नहीं होता। इन प्रस्तावों में काफी व्यय हो सकता है जैसे प्रदूषण को नियंत्रण में रखने का यंत्र, आग से बचने के लिए तरीके और स्कूल व अस्पताल खोलना। चूंकि इनसे प्राप्त लाभ भविष्य में कई सालों तक होते रहते हैं, इसलिए इन्हें पूंजी बजटन विधि में शामिल किया जाता है।

इसके अतिरिक्त पूंजी बजटन कार्य का वर्गीकरण विभिन्न कार्यों की स्वीकार्यता के आधार पर भी हो सकता है। स्वीकार्यता के आधार पर उपक्रमों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से हो सकता है।-

1. परस्पर निवारक कार्य- यह वह कार्य होते हैं जो एक दूसरे के प्रतियोगी होते हैं। वह एक ही कार्य के लिए किए जा सकते हैं। अगर परस्पर निवारक कार्यों में से एक का चुनाव हो जाता है, तो यह अन्य की स्वीकार्यता समाप्त कर देता है। उदाहरण के तौर पर कम्पनी चाहे तो ज्यादा मज़दूर और उप आटोमैटिक मशीन का प्रयोग कर सकती है या उत्पादन के लिए पूर्ण रूप से स्वचलित यंत्रों को भी नियुक्त कर सकती है। अगर कम्पनी पहले वाला प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है यानि ज्यादा मज़दूर और उप स्वचलित मशीन तो पूर्ण रूप से स्वचलित मशीन में विनियोग की संभावना ही नहीं रहती।

2. आज़ाद (स्वच्छंद, मुक्त) कार्य - यह वह कार्य है जो एक दूसरे से आज़ाद होते हैं और विभिन्न कामों के लिए प्रयुक्त होते हैं। उनका स्वीकार्य या अस्वीकार्य होने दूसरे कार्य की स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता पर निर्भर नहीं करता। उदाहरण के तौर पर कम्पनी अपने उपलब्ध प्लांट के विस्तार और नये उत्पादन को बनाने के लिए, अपने पहले कार्य से भिन्न एक नया प्लांट स्थापित करने की सोचे। यह कार्य एक दूसरे से आज़ाद है। क्योंकि इनके लिए कुछ भी किया जा सकता है। दोनों कार्य स्वीकार भी किए जा सकते है, एक को स्वीकार और दूसरे को निरस्त भी किया जा सकता है। दोनों कार्य स्वीकार भी किए जा सकते है, दोनों को निरस्त भी किया जा सकता है। आज़ाद कार्यों के मामलों में फर्म उन्हंे ऊंची से निम्न प्राथमिकता की सीढि़यों पर आबंटित करता है फिर एक विच्छेद जगह का चयन किया जाता हैं। जो प्रस्ताव विच्छेद जगह से ऊपर होते हैं उन्हें स्वीकार कर लिया जाता है और जो नीचे होते हैं उन्हें अस्वीकार। सभी कार्यों को ध्यानपूर्वक देख, आशन्वित प्रत्याय दर और उपलब्ध पैसों को ध्यान में रखते हुए विच्छेद जगह का चयन किया जाता है।

3. पूरक कार्य - यह कार्य एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। एक कार्य में विनियोग दूसरे एक या ज्यादा कार्यों में विनियोग आवश्यक कर देता है। यह कार्य अलग अलग स्वीकार नहीं किए जा सकते। अगर एक कार्य को स्वीकार किया जाता है तो दूसरे को भी करना होगा। उदाहरण के तौर पर एक फर्म नई कार्यालय बिल्ंिडग किया जाता है तो दूसरे को भी करना ही होगा। उदाहरण के तौर पर एक फर्म नई कार्यालय बिल्ंिडग और कर्मचारियों के वाहन आदि खड़ा करने के लिए नए निर्माण की ओर ध्यान दे रही है अगर फर्म नए भवन के निर्माण को स्वीकार करती हैं तो उसे उस जगह के लिए भी स्वीकृति देनी होगी जहां कर्मचारी वाहन आदि खड़ा कर सकते हैं। अगर वह बिल्ंिडग के निर्माण को ही रद्द कर देती है तो उस जगह की भी कोई आवश्यकता नहीं रहेगी जहाँ वाहन खड़ा करने हैं। पूरक कार्यों के मामले में सम्पूर्ण व्यय एक ही विनियोग समझा जाता है।

सन्दर्भ -
  1. “Financial Management”- M.Y. Khan & P.K. Jain, Tata Mc Graw Hill.
  2. Pasha : Management Accounting.
  3. Arora M.N. : Cost and Management Accounting.
  4. Ravi M. Kishore : Advance Management Accounting.
  5. Prasanna Chandra : Financial Management.
  6. Sahaf M.A. : Management Accounting : Principle's and Practices.

1 Comments

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